City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1518 | 592 | 2110 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
आपको इंटरनेट पर तैरते हुए अनेक चलचित्रों में सैकड़ों की संख्या में विदेशी नागरिक, भगवान श्री कृष्ण की स्तुति में नाचते-झूमते हुए अवश्य दिखाई दिए होंगे। न केवल भारत बल्कि भारत के बाहर भी, श्री कृष्ण की महिमा का विस्तार करने का श्रेय स्वयं भगवान कृष्ण के अवतार माने जाने वाले, महापुरुष “चैतन्य महाप्रभु" को जाता है। उन्ही के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर आज वैष्णववाद की सबसे नवीनतम शाखा “गौड़ीय वैष्णववाद " पूरे विश्व में अपना विस्तार कर रही है।
गौड़ीय वैष्णववाद को वैष्णववाद की नवीनतम शाखाओं में से एक माना जाता है। इसे बंगाली वैष्णववाद या चैतन्य वैष्णववाद के नाम से भी जाना जाता है। गौड़ वैष्णववाद रहस्यवादी चैतन्य महाप्रभु (1486-1534) के साथ प्रारंभ हुआ, जिन्हें उनके अनुयायियों द्वारा हिंदू भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है। गौड़ीयवैष्णववाद “हरे कृष्ण आंदोलन" अर्थात प्रसिद्ध ‘अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना संघ’ (International Society for Krishna Consciousness (ISKCON) का आध्यात्मिक और दार्शनिक आधार माना जाता है।
कृष्णकृपामूर्ती श्री श्रीमद् अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के आज तक के सबसे बड़े प्रचारक माने जाते हैं। ‘हरे कृष्ण आंदोलन’ या इस्कॉन (ISKCON), गौड़ीय वैष्णववाद की एक शाखा है। हालांकि, इसकी जड़ें ब्रह्मा और माधव सम्प्रदाय के माध्यम से, श्री कृष्ण से जुड़ी हुई हैं। लेकिन दार्शनिक रूप से गौड़ीय वैष्णववाद बहुत अलग “द्वैत” माना जाता है। यह दर्शन सर्वोच्च ईश्वर और उसके अंशो के बीच एक अकल्पनीय एकता और अंतर दोनों के होने के सिद्धांत को “अचिंत्य भेदाभेद तत्त्व” के रूप में दर्शाता है। इस दर्शन को राधा और कृष्ण के संयुक्त अवतार माने जाने वाले भगवान चैतन्य द्वारा प्रतिपादित किया गया था। वृंदावन में स्थित श्री राधा रमण जी का मंदिर श्री गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
इस दर्शन के अनुसार (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और प्रेम) 5 पुरुषार्थ हैं। इस दर्शन में पहले 4 पुरुषार्थों को भौतिक मानकर मानव खोज के लिए अनुपयुक्त बताया गया है। इसलिए अंतिम “प्रेम” ही ऐसा एकमात्र लक्ष्य है, जो खोजने योग्य है।
गौड़ीय वैष्णववाद में, श्रीमन नारायण (भगवन विष्णु) के सभी अवतारों की पूजा करने के बजाय केवल कृष्ण नाम का रसपान किया जाता है। गौड़ीय वैष्णव, कृष्ण मंत्र के संकीर्तन या सामूहिक जप का अभ्यास करते हुए, भक्ति में तल्लीन होकर नृत्य भी करते हैं। गौड़ वैष्णव गुरु के माध्यम से “अनुकुलस्य संकल्प:, प्रतिकुलस्य वर्जनम; रक्षिस्यति विश्वासो; गोपतृत्वे वरणम; तथा आत्मा निक्षेप कर्पन्ये" के 5 सिद्धांतों का पालन करके कृष्ण के प्रति समर्पण करते हैं। ऐसा करने के बाद उनके द्वारा “हरे कृष्णा हरे रामा"मंत्र का निरंतर जप किया जाता है।
शुरुआत से ही चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन, या भगवान के नामों का जाप करने की प्रथा को बढ़ावा दिया।
चैतन्य महाप्रभु के अनुसार, हिंदू शास्त्र हमें नौ सिद्धांत सिखाते हैं:
1.) हरि (सर्वशक्तिमान ईश्वर) केवल एक है ।
2.) वह असीम शक्ति से परिपूर्ण है ।
3.) वह रस (सौंदर्य और मिठास) के सागर हैं।
4.) सभी आत्माएं और जीव, उनके ही अलग-अलग रूप हैं।
5.) कुछ आत्माएं भगवान की भ्रामक ऊर्जा माया, में उलझी हुई हैं।
6.) कुछ अन्य आत्माएं माया के बंधन से मुक्त हो जाती हैं।
7.) सभी आध्यात्मिक और भौतिक घटनाएँ भगवान से जुड़ी हैं लेकिन फिर भी उनसे अलग हैं।
8.) केवल ईश्वर की भक्ति ही जीवन के अंतिम और उच्चतम उद्देश्य, आध्यात्मिक अस्तित्व की प्राप्ति का एकमात्र साधन है।
9.) कृष्ण के लिए पवित्र प्रेम, ही जीवन का अंतिम और सर्वोच्च उद्देश्य है।
गौड़ीय वैष्णव दर्शन के अनुसार, हमारी चेतना भौतिक संसार का पदार्थ या उत्पाद नहीं है, बल्कि आत्मा का एक लक्षण है। जानवरों और पेड़ों सहित सभी जीवित प्राणियों (जीवों) में एक आत्मा होती है। धर्म ईश्वर के साथ हमारा संबंध स्थापित करता है। यह हमें आध्यात्मिक खोज के सर्वोच्च उद्देश्य ‘पवित्र प्रेम’ को प्राप्त करने की ओर ले जाता है। धर्म सामंजस्यपूर्ण और सार्वभौमिक होता है। दार्शनिक रूप से, हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना भौतिक पुतला है। जबकि आत्मा एक आध्यात्मिक इकाई है जो भौतिक शरीर और पदार्थ से बने सूक्ष्म शरीर से काफी अलग है। आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। आत्मा का शाश्वत अस्तित्व है।
यह विलुप्त होने के दायित्व से भी मुक्त है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा की नियति स्वयं बनती या बिगड़ती है। आध्यात्मिक प्राणियों के रूप में, सभी व्यक्तिगत आत्माओं के पास दैवीय रूप से प्रदान की गई स्वतंत्र इच्छा की क्षमता होती है। वे ईश्वर के इस उपहार का दुरुपयोग कर सकते हैं या वे इसका सर्वोत्तम उपयोग कर सकते हैं।
जिस प्रकार सूर्य की किरणें हमेशा सूर्य से जुड़ी होती हैं, उसी प्रकार सभी व्यक्तिगत आत्माओं से अपेक्षा की जाती है कि वे शाश्वत अस्तित्व वाले भगवान के साथ जुड़ी रहें, सर्वज्ञ भगवान को जानें और अनंत आनंद की अनुभूति करती रहें।
संदर्भ
https://bit.ly/41GIwg4
https://bit.ly/41Dl4Ao
https://bit.ly/3J743Hx
https://bit.ly/3IHg6de
चित्र संदर्भ
1. कृष्ण भक्ति में झूमते गौड़ीय वैष्णवो को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
2. गौड़ीय वैष्णव तिलक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. महा मन्त्र का जप करते हुए गौड़ीय वैष्णवो को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. कृष्ण बलराम मंदिर, वृंदावन, भारत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.