मेरठ में ब्रिटिश सैनिकों के लिए छावनी की स्थापना होने के बाद मेरठ में उनके तथा उनके परिवार और अन्य यूरोपीय नागरिकों के लिए कई सुविधाओं का निर्माण किया गया। इस काल में ईसाई धर्मं प्रचार एवं प्रसार भी हो रहा था। इन सभी इसाई धर्म के लोगों के लिए बहुतसे प्रार्थना स्थल और गिरिजाघर बनाये गए। मेरठ के छावनी क्षेत्र में आज तीन-चार बड़े और पुराने चर्च मौजूद हैं। इस क्षेत्र में स्थित संत जॉन द बैप्टिस्ट चर्च उत्तर भारत का सबसे पुराना प्रार्थनास्थल है। सन 1834 में सरधना की बेगम समरू ने यहाँ पर एक चर्च बनवाया जिसे संत जोसफ कैथेड्रल मतलब संत जोसेफ गिरिजाघर के नाम से जाना जाता है। ईसा मसीह की कुछ धार्मिक कथाओं में संत जोसफ को मेरी माता के पति और ईसा मसीह के पिता का दर्जा दिया है। इन्हें एक संरक्षक के रूप में जाना जाता है तथा ऐसी मान्यता है की पिताओं को और चर्च के पादरी आदि को उनका अनुसरण करना चाहिए। संत जोसेफ मजदूरों के भी संरक्षक संत माने जाते हैं। पोप पायस IX ने उन्हें इसाई धर्मं और प्रार्थना स्थलों का संरक्षक और तारक का दर्जा दिया है। उनकी मूर्ति ज्यादातर एक बच्चे, जिसे ईसा मसीह माना जाता है, को लिए दिखाया जाता है। उन्हें कुमुदिनी और जटामांसी से प्रतीकात्मक रूप से जोड़ा जाता है। बहुतसी मूर्तियों में इन्हें ईसा मसीह को बालक -रूप में हाथों में लिए हुए दिखाया जाता है। मेरठ के संत जोसफ गिरिजाघर में प्रवेश करने पर सबसे पहले हमे संत जोसफ की मूर्ति शिशुरूप ईसा मसीह को लिए खड़ी दिखती है। यह गिरिजाघर अंग्रेजी स्थापत्यकला का उत्तम नमूना है। इस के एक तरफ़ छोटी मेरी माता की खोह है तथा दुसरी तरफ बड़ा मैदान है जिसमे क्रिसमस आदि त्यौहार एवं ईसाई धर्म के विशेष दिवस और बहुतसे अलग कार्यक्रम मनाये जाते हैं। गिरिजाघर के प्रवेशद्वार के दोनों तरफ संगमरमर की पट्टिकाएं दिवार में जड़ी हुई हैं जिनमे इस प्रार्थनाघर के निर्माण का इतिहास अंग्रेजी और लैटिन भाषा में लिखा गया है। ये कैथोलिक चर्च आज तक़रीबन 184 सालों के बाद भी कार्यरत है और हररोज़ यहाँ ईसाई धर्मियों का समाज इकठ्ठा होकर प्रार्थना करता है। प्रस्तुत चित्र संत जोसेफ गिरिजाघर के हैं। 1. संत जोसफ कैथेड्रल http://sjcmeerut.org/about.php 2. डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर ऑफ़ द यूनाइटेड प्रोविन्सेस ऑफ़ आग्रा एंड औध: हेन्री रिवेन नेविल, 1904 3. द हिस्ट्री ऑफ़ क्रिस्चानिटी इन इंडिया- फ्रॉम द कमेंसमेंट ऑफ़ द क्रिस्चियन एरा, वॉल्यूम 4: जेम्स हौग्ह 4. इन द दोआब एंड रोहिलखंड- नार्थ इंडियन क्रिस्चानिटी 1815- 1915: जेम्स आल्टर 5. अ हिस्ट्री ऑफ़ द चर्च ऑफ़ इंग्लैंड इन इंडिया: एयर चाटरटन http://anglicanhistory.org/india/chatterton1924/22.html
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