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एक ऑस्ट्रेलियाई लेखक के लेखन में मिलता है मेरठ छावनी का वर्णन, रस्किन बॉन्ड ने है इसे खोजा

मेरठ

 28-02-2023 10:08 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

जब मेरठ ब्रिटिशों की छावनी हुआ करता था, तब कई लोगों ने छावनी में रहने और रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी के व्यक्तिगत अनुभव लिखे है।इसी प्रकार के कुछ अनुभव,‘द मेरठ ग्रेवयार्ड एंड अदर स्टोरीज़’ (The Meerut Graveyard & other stories)' ऑस्ट्रेलिया (Australia) के एक लेखक जॉन लैंग (John Lang) द्वारा लिखी गई एक किताब में भी मिलते हैं, जो औपनिवेश काल के दौरान मेरठ छावनी में रहते थे। उनके निधन के बाद उन्हे मसूरी के एक कब्रिस्तान में दफना दिया गया था । जॉन लैंग ने 1820-1840 के दशक में मेरठ छावनी में जीवन के बारे में विस्तार से लिखा था। यह अनुभव 1857 (पहले स्वतंत्रिता संग्राम) से पहले के थे। जॉन लैंग ने ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लागू किए गए व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति (Doctrine of Lapse) का विरोध किया था। यह सिद्धांत भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी (Lord Dalhousie) द्वारा प्रख्यापित थाजिसके अंतर्गत कोई भी भारतीय राज्य, या तो जिसका शासक पुरुष उत्तराधिकारी के बिना मृत्यु को प्राप्त कर गया था या एक अक्षम नेता द्वारा शासित था, ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा कब्जा कर लिया जाएगा। 19वीं शताब्दी के मध्य में, पत्रकारिता के प्रति झुकाव के कारण, लैंग ने मेरठ से बाहर ‘द मोफस्सिलाइट’ (The Mofussilite ) नामक एक समाचार पत्र को संपादित करना और छापना शुरू किया। भारत से प्यार करने वाले और लगाव रखने वाले लैंग ने भी भारतीयों के लिए अपनी कानूनी विशेषज्ञता का प्रयोग करना शुरू कर दिया था। लैंग ने ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के खिलाफ अपनी कानूनी लड़ाई में झांसी की रानी सहित कई अन्य भारतीयों का प्रतिनिधित्व किया। लैंग ने एक बार एक भारतीय श्रमिक का प्रतिनिधित्व किया था जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भुगतान नहीं किया गया था। लैंग भारतीय स्वशासन के प्रति सहानुभूति रखते थे, जिसके कारण उस समय भारत पर शासन करने वाले यूरोपीय लोगों द्वारा उनकी बहुत उपेक्षा भी की गई थी।
जब 1857 का विद्रोह हुआ था उस समय लैंग इंग्लैंड में थे । उनके कई ब्रिटिश एवं भारतीय दोस्त विद्रोह के दौरान मारे गए थे, जिस कारण वह 1859 में भारत लौट आए । अत्यंत हताश होकर उन्होंने अपना अखबार बेच दिया और मसूरी में सेवानिवृत्त हो गए। हालांकि मसूरी में उनपर पाए जाने वाले रिकॉर्ड बहुत कम हैं - किसी को भी न तो उनके बारे में और न ही उनकी कब्र के बारे में पता था ।। लगभग सौ साल बाद, हमारे दौर के प्रसिद्ध लेखक, रस्किन बॉन्ड (Ruskin Bond) ने 1964 में जॉन लैंग के लेखन की फिर से खोज की और उनकी कब्र की भी पहचान की। 1857 से पहले के मेरठ में जीवन पर आधारित जॉन लैंग की कहानियाँ और लेख उल्लेखनीय हैं तथा उनके हिंदी अनुवाद आवश्यक है।
जॉन लैंग द्वारा लिखित वांडरिंग इन इंडिया: स्केचेस ऑफ़ लाइफ़ इन हिंदोस्तान’ (Wandering in India: Sketches of life in Hindustan) पुस्तक में उनके द्वारा वर्णित भारत में जीवन रेखाचित्र, बहुत प्रगल्भ है। इनका यह कार्य प्रभावशाली है और इसमें अलग-अलग विषयों पर 17 निबंध शामिल हैं। वे हिमालय, मेरठ छावनी और कलकत्ता से लाहौर और दिल्ली तक उनकी यात्रा के बारे में भी है।1816 में सिडनी (Sydney) में जन्मे, जॉन जॉर्ज लैंग को आम तौर पर ऑस्ट्रेलिया का पहला उपन्यासकार माना जाता है। वह एक वकील, पत्रकार और यात्री भी थे। लैंग को कई उपन्यास लिखने का श्रेय दिया जाता है, जिनमें सबसे प्रसिद्ध बॉटनी बे (Botany Bay), टू क्लेवर बाइ हाफ और टू मच अलाइक (Too Clever by Half and Too much Alike) हैं। 1859 में,एक पत्रिका ने लैंग का यात्रा वृतांत वांडरिंग्स इन इंडिया’ प्रकाशित किया । 1964 में मसूरी में ‘कैमल्स बैक’ (Camel’s Back) कब्रिस्तान के अपने एक दौरे पर, रस्किन बॉन्ड ने लैंग की कब्र की खोज की, जो तब झाड़ियों में छिपी हुई थी। समय के साथ, बॉन्ड को उनके कुछ लेख भी मिले, जो लैंग के इंग्लैंड के एक मित्र द्वारा उन्हें भेजे गए थे। उन्हें तब 1857 में सिपाही विद्रोह से पहले उत्तर भारत में जीवन का लैंग के द्वारा लिखा गया एक दिलचस्प लेखा-जोखा मिला। बॉन्ड ने अंततः ‘द बुक ऑफ़ इंडियन घोस्ट स्टोरीज़’ (The Book of Indian Ghost Stories) में लैंग द्वारा लिखी गई एक लघु कहानी ‘द मेरठ ग्रेवयार्ड’ (The Meerut Graveyard) के बारे में लिखा एवं उसे संपादित भी किया। वह चाहते थे कि दुनिया, लैंग जैसे भारत के शुरुआती इतिहासकारों में से एक के कामों को अंग्रेजी भाषा में पढ़े।
बॉन्ड का विचार है कि, “लैंग की किताबें अब प्रिंट होनी बंद हो गई हैं. और कुछ किताबों की केवल संग्रहालयों में प्रतियां मिलती है। हालांकि, अगर ऑस्ट्रेलियाई अधिकारी अभिलेखागार से लैंग के कार्यों के पुनरुत्पादन की व्यवस्था कर सकते हैं, तो मैं एक प्रस्तावना लिख ​​सकता हूं और प्रकाशकों से एक बार फिर उनका काम प्रकाशित करने का अनुरोध कर सकता हूं। आज के पाठकों को उनके कार्यों से परिचित कराने का शायद यह सबसे अच्छा तरीका होगा।” अपनी कब्र की खोज के बाद से, लैंग की यहां के साहित्यिक चिंतन में एक मानक विशेषता रही है। सच में, लैंग का लेखन भारत के औपनिवेशिक इतिहास को बयां करता है।लैंग को लोग भूल गए थे,परंतु फिर रस्किन बॉन्ड ने उन्हें उजागर किया। अब हमारी यह जिज्ञासा होनी चाहिए की हम उस इतिहास को जान ले।
वही दूसरी ओर, हमारे मेरठ शहर का सेंट जॉन्स कब्रिस्तान (St. John Cemetery) लगभग 200 साल पुराना कब्रिस्तान है, जहां हजारों कब्रें हैं, एवं जिनमें से नौ 1857 के विद्रोह में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों की हैं। कब्रिस्तान में एक तरफ अंग्रेजों की कब्रें हैं तो दूसरी तरफ भारतीयों की। ये कब्रें मुगल और औपनिवेशिक वास्तुकला का एक मिश्रण हैं, जिनमें कई गुंबद हैं। कुछ कब्रों में, शिलालेख अभी भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं । यहाँ की सबसे पुरानी कब्र 1810 की है,इसके बाद विद्रोह के पहले दिन 10 मई को 1857 में मारे गए पहले ब्रिटिश अधिकारी कर्नल जॉन फिनिस की कब्र है । इसके इलावा यहाँ एक लंबा समाधि स्मारक है जिस पर 100 से अधिक यूरोपीय सैनिकों के नाम खुदे हुए हैं जिनकी मृत्यु 1888 और 1905 के बीच भारत में उनकी सेवा के दौरान हुई थी। किंतु आगंतुक रजिस्टर को देखने के पश्चात पता चलता है कि इन कब्रों पर इन अधिकारियों के परिवार से कभी भी कोई नहीं आता। विद्रोह के दौरान मेरठ और उसके आसपास के गांवों को ब्रिटिश सेना द्वारा जला दिया गया था। उस समय यहां तबाही के दौरान मारे गए 50 ब्रिटिश सैनिकों में से 32 को कब्रिस्तान में दफनाया गया था। लेकिन केवल नौ कब्रें ही शेष है, जो सीमेंटेड थीं। बाकी मिट्टी की बनी हुई कब्रें समय के साथ खो गई। 1857 में मरने वाले ब्रिटिश पुरुषों की कब्रें दिल्ली और लखनऊ में भी देखी जा सकती हैं। वास्तव में, ब्रिटिश लोगों द्वारा उन लोगों को भुला दिया गया जिन्होंने उनका विद्रोह किया बल्कि उन्हें भी भुला दिया जो उनकी अपनी सेवा करते हुए मारे गए।

संदर्भ
https://bit.ly/3xGAOoC
https://bit.ly/3xKoCDh
https://bit.ly/3khW2WN
https://bit.ly/3YTICzk
https://amzn.to/3EwC8y1
https://bit.ly/3KvLFtc
https://bit.ly/3Kul4g7

चित्र संदर्भ
1. मेरठ छावनी बाजार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ऑस्ट्रेलिया (Australia) के एक लेखक जॉन लैंग की पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (AbeBooks)
3. 2014 में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री टोनी एबॉट को जॉन लैंग की स्मृति को समर्पित एक फोटो कोलाज। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जॉन लैंग द्वारा लिखित वांडरिंग इन इंडिया: स्केचेस ऑफ़ लाइफ़ इन हिंदोस्तान को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
5. मेरठ शहर के सेंट जॉन्स कब्रिस्तान को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
6. सेंट जॉन्स कब्रिस्तान के प्रवेश द्वार को दर्शाता एक चित्रण (prarang)

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