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प्रारंग देश-विदेश श्रृंखला 1 - प्रसिद्ध जापानी ‘यूकीयो-ऎ’ कला भारतीय परिवेश को भी बखूबी दर्शाती है

मेरठ

 21-02-2023 10:38 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

कला, वास्तव में, दुनिया के लिए एक उपहार है। कला हमारे जीवन को अर्थ देती है और हमें अपनी दुनिया को समझने में मदद करती है। इसलिए कला प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक विशेष महत्व रखती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कला के किसी न किसी रूप से अवश्य ही प्रभावित होता है। कला के विस्तृत परिदृश्य में जापानी कला भी अपना एक विशेष महत्व रखती है। शायद आप में से कुछ लोग जापानी कला से अत्यंत प्रभावित होंगे, क्योंकि जापानी कला शैली बहुत सुंदर होती है। यूकीयो-ऎ (Ukiyo-e) ऐसी ही एक जापानी कला की शैली है जो 17वीं से 19वीं सदी तक फली-फूली है। इस कला के कलाकारों ने सुन्दर महिलाओं, काबुकी अभिनेता और सूमो पहलवान, इतिहास और लोक कथाओं के दृश्य, यात्रा के दृश्य और परिदृश्य, वनस्पति और जीव तथा प्रेमकाव्य जैसे विषयों का लकड़ी के खंडों पर मुद्रण (Woodblock printing) कर चित्रकारी का निर्माण किया। यूकीयो-ऎ का शाब्दिक अर्थ ‘तैरती हुई दुनिया अथवा दुखद दुनिया की तस्वीर’ होता है । मुद्रित या चित्रित यूकीयो-ऎ कला मुख्य रूप से चोनिन वर्ग (व्यापारी, शिल्पकार और श्रमिक) में अत्यधिक लोकप्रिय थी । 1670 के दशक में, यूकीयो- ऎ चित्रकारी सबसे पहले हिशिकावा मोरोनोबु (Hishikawa Moronobu) के चित्रों के द्वारा सुंदर महिलाओं की एकरंगी चित्रकारी के साथ उभर कर सामने आई । बाद में धीरे-धीरे इस चित्रकारी में रंगों का प्रयोग किया जाने लगा, किंतु प्रारंभ में इसमें रंगों का प्रयोग केवल विशेष कार्यों के लिए ही किया जाता था । 1740 के दशक तक, ओकुमुरा मसानोबू (Okumura Masanobu) जैसे कलाकारों ने लकड़ी के कई खंडों का इस्तेमाल, रंग के क्षेत्रों को मुद्रित करने के लिए किया। 1760 के दशक में सुज़ुकी हारुनोबू (Suzuki Harunobu) के “ब्रोकेड प्रिंट्स (Brocade prints)”– जो जापानी बहुरंगी वुडब्लॉक प्रिंटिंग का एक प्रकार है, में प्रत्येक मुद्रण को बनाने के लिए दस या अधिक खंडों के साथ बहु रंगों का उपयोग किया गया, जिसकी सफलता के कारण यह बाद में मुद्रण को बनाने के लिए पूर्ण-रंग उत्पादन का मानक बन गया।
कुछ यूकीयो- ऎ कलाकार चित्रकारी बनाने में माहिर थे, लेकिन इस कला के ज्यादातर काम मुद्रण के ही थे। कलाकारों ने छपाई के लिए शायद ही कभी अपने स्वयं के लकड़ी के खंडों को तराशा होगा। कला का उत्पादन कलाकारों के बीच विभाजित किया गया था:
मुद्रण बनाने वाले को कलाकार; लकड़ी के खंडों को काटने वाले को नक़्क़ाशी करने वाला; लकड़ी के खंडों को हस्तनिर्मित कागज पर छापने वाले कोमुद्रक; और इन सभी कार्यों को वित्तपोषित, प्रचारित और वितरित करने वाले को प्रकाशक कहा जाता था। चूंकि तब छपाई हाथ से की जाती थी, मुद्रक मुद्रण के खंडों पर रंगों का सम्मिश्रण या श्रेणीकरण करने में भी सक्षम थे। 18वीं शताब्दी के अंत में तोरी कियोनागा (Torii Kiyonaga), उतामारो (Utamaro) और शारकू (Sharaku) जैसे कलाकारों द्वारा बनाए गए सुंदरियों और अभिनेताओं के इस कला के चित्र अत्यंत बेशकीमती है। 19वीं शताब्दी में जापानी कला के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक कलाकार होकुसाई (Hokusai) की ‘द ग्रेट वेव ऑफ कानागावा’ (The Great Wave off Kanagawa) और कलाकार हिरोशिगे (Hiroshige) की ‘द फिफ्टी-थ्री स्टेशन्स ऑफ़ द टोकैडो’ (The Fifty-three Stations of the Tōkaidō) के निर्माण के साथ यूकीयो- ऎ परंपरा के प्रगल्भ कलाकारों की निरंतरता भी देखी गई। किंतु इन दो कलाकारों की मृत्यु के उपरांत, 1868 में मीजी बहाली (Meiji Restoration) के बाद तथा तकनीकी और सामाजिक आधुनिकीकरण के कारण यूकीयो-ऎ कला के उत्पादन में भारी गिरावट आई। हालांकि, 20वीं सदी में जापानी चित्रकारी में शिन-हैंगा (Shin–hanga,) जो कि मुद्रण की एक नई शैली थी, और सोसाकु-हैंगा (Sosaku–hanga) जो कि एक ‘रचनात्मक कला आंदोलन था , के माध्यम से एक पुनरुद्धार देखा गया। इन शैलियों ने एक ही कलाकार द्वारा मुद्रित, नक्काशी किए हुए और रचित व्यक्तिवादी कार्यों को बढ़ावा दिया। 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से यह मुद्रण एक व्यक्तिगत कला के रूप में गुणवत्ता के साथ जारी है, जिसे अक्सर पश्चिम से आयातित तकनीकों के साथ बनाया जाता है। 19वीं सदी के अंत तक जापानी कला के रूप में पश्चिमी देशों द्वारा यूकीयो-ऎ (विशेष रूप से होकुसाई और हिरोशिगे के परिदृश्य) का ही मुख्य रूप से उपयोग किया जाता था। 1870 के दशक के बाद से, पश्चिमी यूरोपीय कलाकारों के बीच जापानी कला और डिजाइन की लोकप्रियता और प्रभाव एक प्रमुख प्रवृत्ति बन गई।
20वीं सदी के शुरुआती दशकों में अन्य एशियाई देशों की तरफ जापान की रुचि बढ़ने लगी , क्योंकि जापान उपनिवेशवाद के मुद्दों से जूझ रहा था और एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक शक्ति के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर रहा था।
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में जापान और यूरोप के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के परिणामस्वरूप एक वुडब्लॉक प्रिंटमेकिंग (Wood Block Print Making) आंदोलन शुरू हो गया । आंदोलन के कारण पारंपरिक यूकीयो-ऎ को यूरोपीय प्रभावों के साथ मिश्रित करने की मांग की जाने लगी । चार्ल्स बार्टलेट (Charles Bartlett), जो एक ब्रिटिश चित्रकार एवं मुद्रक थे, के मुद्रण की सफलता भी मुख्य रूप से एशिया के अन्य हिस्सों के साथ जापान के आकर्षण के कारण थी ; क्योंकि उस समय जापान यूरोपीय और अमेरिकी औपनिवेशिक प्रभाव के विरुद्ध खुद को तेजी से अलग कर रहा था । बार्टलेट ने भारत भ्रमण के वक्त हमारे देश के कुछ खास शहरों जैसे कि मदुरै, मथुरा, आगरा, बनारस, उदयपुर, अमृतसर तथा कश्मीर में चित्रकारी का आनंद लिया था। भारत के संदर्भ में वे चित्र आज भी काफी दिलचस्प है।
हिरोशी योशिदा (Hiroshi Yoshida), जो एक जापानी कलाकार थे, को भी यूकीयो-ऎ कला के प्रति अत्यधिक लगाव था जो 1931 में भारत में उनकी यात्रा के दौरान बनाई गई कलाकृति के रूप में प्रत्यक्ष होता है। । उनका काम उत्कृष्ट था। उन्होंने आगरा के ताज महल से लेकर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर और हमारे देश की अन्य सुंदरता को अपनी कला के जरिए हमारे सामने प्रस्तुत किया ।

संदर्भ
https://bit.ly/3Ia2uqv
https://bit.ly/3jYY9Pb
https://bit.ly/415c06W
https://bit.ly/411Zl4K

चित्र संदर्भ
1. प्रसिद्ध जापानी ‘यूकीयो-ऎ’ कला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कत्सुशिका होकुसाई द्वारा ‘यूकीयो-ऎ’ वुडब्लॉक प्रिंट को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. यूकीयो- ऎ चित्रकारी सबसे पहले हिशिकावा मोरोनोबु (Hishikawa Moronobu) के चित्रों के द्वारा सुंदर महिलाओं की एकरंगी चित्रकारी के साथ उभर कर सामने आई । को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक यूकीयो- ऎ चित्र को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. वुडब्लॉक प्रिंटमेकिंग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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