महाशिवरात्रि दर्शन: साठ साल में एक बार पूरी तरह से जलमग्न होता प्राचीन गुड़ीमल्लम शिव मंदिर

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
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महाशिवरात्रि दर्शन: साठ साल में एक बार पूरी तरह से जलमग्न होता प्राचीन गुड़ीमल्लम शिव मंदिर

भगवान शिव को “आदियोगी” के नाम से भी संबोधित किया जाता है। शिवजी का यह नाम उन्हें विश्व के प्रथम योगी के रूप में संदर्भित करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में महादेव अर्थात आदिगुरु का सबसे पुराना मंदिर कहां और किस रूप में है, तथा यह मंदिर इतना विशेष क्यों है?
भगवान शिव को समर्पित ‘गुड़ीमल्लम शिव मंदिर’ को भारत का दूसरा सबसे पुराना कार्यरत शिव मंदिर माना जाता है। इस मंदिर को “परशुरामेश्वर मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है। गुड़ीमल्लम मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां स्थित प्राचीन “लिंग” है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित इस लिंग में भगवान शिव की पूरी आकृति उकेरी गई है। इसे भगवान शिव से जुड़ा अब तक का दूसरा सबसे पुराना लिंग माना जाता है। इस लिंग को दूसरी या तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का बताया जाता है। वहीं बिहार के कैमूर जिले में मुंडेश्वरी मंदिर को भारत का सबसे पुराना क्रियाशील शिव मंदिर माना जाता है। पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि यह मंदिर कम से कम 635 ईसा पूर्व पुराना है।
इस आधार पर गुड़ीमल्लम शिव मंदिर को भारत में दूसरा सबसे पुराना (और दक्षिण भारत में सबसे पुराना) कार्यरत शिव मंदिर माना जाता है। गुड़ीमल्लम की मूर्तिकला, 7 वीं शताब्दी ईसवी अर्थात पल्लव राजवंश की मूर्तियों से पहले की प्राचीन दक्षिण भारत में मौजूद एकमात्र महत्वपूर्ण कलाकृति मानी जाती है। हालांकि, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के उज्जैन के तांबे के सिक्कों पर गुड़ीमल्लम लिंगम जैसी आकृतियाँ पाई गई हैं, और मथुरा संग्रहालय में पहली शताब्दी की एक मूर्ति में भी इसी तरह की आकृति मौजूद है। गुड़ीमल्लम मंदिर निर्माण की तारीख का अनुमान काफी भिन्न-भिन्न लगाया जाता है, लेकिन यह आमतौर पर बाद के चोल और विजयनगर काल का प्रतीत होता है। यहां स्थित लिंग मूल रूप से खुले आकाश के नीचे बनाया गया था, जिसके चारों ओर आयताकार पत्थर था जो आज भी बना हुआ है। आज हजारों वर्षों बाद भी यह मंदिर पूजा के लिए खुला हुआ है। हालांकि, यह मंदिर सन 1954 से ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ (Archaeological Survey of India (ASI) के संरक्षण में है। यहाँ उपस्थित शिलालेखों में मंदिर का नाम “परशुरामेश्वर मंदिर” बताया गया है। इन शिलालेखों में मंदिर के मूल निर्माताओं का उल्लेख नहीं है। लेकिन ये शिलालेख दैनिक पूजा के संचालन के लिए मंदिर को दिए गए उपहारों जैसे भूमि, धन और गायों का वर्णन करते हैं। लिंगम में उकेरे गए शिव खड़ी मुद्रा में हैं और उनकी मूर्ति के दो हाथ हैं। बाएं हाथ में, शिव एक गोलाकार बर्तन पकड़े हुए हैं और एक युद्ध कुल्हाड़ी (परसु) बाएं कंधे से टिकी हुई है। इस प्रतिमा में भगवान शिव एक झुके हुए बौने यक्ष (अपस्मार) के कंधों पर खड़े हैं, जो आध्यात्मिक अज्ञानता का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रतिमा मुख्य आधार से 5 फीट से अधिक ऊंचीऔर एक फुट से थोड़ा अधिक व्यास वाली है। लिंगम पर उकेरे गए शिव की भुजाओं में पाँच कंगन सुशोभित हैं। इस प्रतिमा में भगवान शिव ने कोई भी यज्ञोपवीत या पवित्र धागा नहीं पहना है। उनके कानों में कई बालियां हैं और उसकी कमर के चारों ओर एक पतली लंगोटी है। इस मूर्ति के चारों ओर एक निचली वेदिका में बौद्ध और जैन प्रभावों के कला रूपांकन भी नज़र आता हैं। कहा जाता है कि साठ साल में एक बार यह जगह एक दिन के लिए पूरी तरह से पानी में डूब जाती है। इस घटना के पीछे का जटिल रहस्य अभी भी छिपा हुआ है। मूर्ति का निचला हिस्सा फर्श में दबा हुआ है, इसलिए इसकी पूरी लंबाई दिखाई नहीं देती है। इस लिंग में उकेरी गई भगवान शिव की छवि एक भयंकर शिकारी का प्रतीक है। इस को ‘विप्र पिता' या 'ब्राह्मण अग्रहार' भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस लिंगम में त्रिमूर्ति (यक्ष रूप में भगवान ब्रह्मा, परशुराम अवतार में भगवान विष्णु और पुरुष लिंग के रूप में भगवान शिव) के दर्शन होते हैं। जब भगवान सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायण की ओर बढ़ते हैं तो सूर्य की किरणें भगवान शिव के चरणों पर पड़ती हैं। मंदिर परिसर में श्री आनंदवल्ली (पार्वती), श्री वल्ली देवसेना सुब्रमणयम स्वामी, सूर्य देव और भगवान गणेश के छोटे मंदिर भी हैं।
परिसर में सबसे पहला शिलालेख बाना परिवार (पल्लवों के अधीन एक सामंती शाही परिवार, लगभग 842-904ईसवी ) का है और नवीनतम शिलालेख यादव देवराय (1346 ईसवी) के समय का मिलता है। विक्रमचोला के समय के एक शिलालेख से पता चलता है कि 1126 ईसवी में गोपुरा (प्रवेश द्वार) और कुएं के साथ मंदिर का पूरी तरह से जीर्णोद्धार किया गया था। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के येरपेडु मंडल के एक छोटे से गांव ‘गुड़ीमल्लम’ में स्थित है, जो तिरुपति से लगभग 25 किमी और रेनिगुंटा से 10 किमी दूर स्थित है और सड़क, ट्रेन और हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के कारण, यह सभी शिव भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां शिव को मल्लिकार्जुन के रूप में पूजा जाता है और उनकी पत्नी ब्रम्रामंबिका देवी हैं। इस मंदिर में एक मनमोहक प्रतिमा में भगवान शिव को माँ पार्वती (भोजन की देवी: अन्नपूर्णेश्वरी के रूप में) से भिक्षा मागंते हुए दर्शाया गया है । मान्यता है कि अद्वैतवाद के महानतम दार्शनिक आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर की यात्रा के दौरान अपनी प्रसिद्ध महाकाव्य कविता ‘शिवानंद लहरी' की रचना की थी।

संदर्भ

https://bit.ly/3lEUqGV
https://bit.ly/3YCsYrZ
https://bit.ly/3Yz1JP2

चित्र संदर्भ
1. गुड़ीमल्लम शिव मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गुड़ीमल्लम मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां स्थित प्राचीन “लिंग” है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. परशुरामेश्वर स्वामी शिव मंदिर गुड़ीमल्लम, प्राचीन शिव लिंग, यारपेडु, चित्तूर आंध्र प्रदेश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गुड़ीमल्लम शिव मंदिर के प्राचीन शिवलिंग की विशेषताओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. परशुरामेश्वर स्वामी शिव मंदिर गुड़ीमल्लम, के बाहर लगे सूचना बोर्ड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. लिंग के साथ परशुरामेश्वर मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)