सर्दियों की सुबह इलायची की थोड़ी मीठी और थोड़ी तीखे स्वाद वाली सुगंधित चाय के बिना फीकी-फीकी सी मालूम होती है। ऊपर से इलायची हमारे स्वास्थ तथा विशेष तौर पर हमारी पाचन प्रक्रिया के लिए भी बेहद लाभकारी मानी जाती है, जिस कारण पूरी दुनिया में इसकी लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इलायची (Cardamom), अदरक के परिवार से संबंधित है। इलायची का प्रयोग कम से कम 4000 साल पहले से होता आ रहा है। स्वाद और सुगंध के मामले में इस मसाले का कोई भी सानी नहीं है। बेशकीमती इलायची को “मसालों की रानी" के नाम से भी जाना जाता है।
इलायची का विकास मूल रूप से दक्षिण भारत के पश्चिमी घाटों में हुआ था । यहां के कई क्षेत्रों को आज भी इलायची की पहाड़ियों (Cardamom Hills) के नाम से जाना जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इलायची का सबसे पहला उल्लेख सुमेर और भारत के आयुर्वेदिक साहित्य में पाया जाता है।
भारत से बाहर इलायची की यात्रा सन 1914 में शुरू होती है जब ऑस्कर मैजस क्लोफर (Oscar Majus Klopfer) नामक एक जर्मन कॉफी प्रेमी इलायची को अपने साथ ग्वाटेमाला (Guatemala) ले गए। और आज यह देश (ग्वाटेमाला) इलायची निर्यातकों की सूची में सबसे ऊपर है। भारत इसके बाद दूसरे स्थान पर है। मूल्य के लिहाज से, इलायची, वैनिला (Vanilla) और केसर जैसे अन्य मसालों के साथ शीर्ष पर काबिज है।
इलायची की बुआई बेहद सुनियोजित ढंग से करनी पड़ती है। इसके बीज बलांगी, देवदार और इलांगी जैसे छायादार पेड़ों के नीचे बोये जाते हैं, क्योंकि यह पेड़ इलायची के लिए एक छतरी का काम करते हैं। इलायची का फूल हरे रंग का होता है, जिसमें सफेद और बैंगनी रंग की मिश्रित नोक होती है। इलायची के फल को “कैप्सूल (Capsules)" के रूप में जाना जाता है और इन्हें पकने पर ही तोड़ा जाता है।
इलायची को वैज्ञानिक रूप से एमोमम सबुलैटम (Amomum subulatum) या एमोमम कोस्टाटम (Amomum Costatum) के नाम से जाना जाता है। इसे मुख्य रूप से पूर्वी हिमालय (नेपाल, सिक्किम और भूटान) क्षेत्र में उगाया जाता है। इलायची का यह पौधा 5 फीट की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। इलायची मुख्यतः दो तरह की होती है छोटी इलायची एवं बड़ी या काली इलायची। काली इलायची की फली में मोटी, सूखी और झुर्रीदार त्वचा होती है और अक्सर इसके आकार के कारण इसे बड़ी इलायची या मोती इलाइची भी कहा जाता है। जबकि छोटी इलायची, जिसे की हरी इलायची भी कहा जाता है बड़ी इलायची से लगभग एक तिहाई छोटी होती है और यह छिलके के साथ भी खाई जा सकती है।
इलायची की फसलें 15 से 35 डिग्री के बीच के तापमान में सबसे अच्छी तरह पनपती हैं। इलायची के रोपण के लिए मानसून का समय बेहद उपयुक्त होता है। इलायची के पौधों को उच्च रखरखाव की आवश्यकता होती हैं। इलायची के बागानों में नियमित रूप से निराई, गर्मी के महीनों में बार-बार पानी देना, मानसून के दौरान पर्याप्त रोशनी सुनिश्चित करना तथा गर्मियों के दौरान पर्याप्त छाया प्रदान करनी पड़ती हैं। इसके अलावा कीटों को दूर रखने के लिए खाद का प्रयोग भी किया जाता है।
इलायची के पौधे रोपण के दूसरे या तीसरे वर्ष में फल देने लगते हैं। पकने के बाद फलों की कटाई की जाती है। यह एक ऐसा फल है जिसे आज भी हाथ से तोड़ा जाता है। कटाई के बाद, इन फलों को मौसम की स्थिति के आधार पर धूप या मशीन से सुखाया जाता है। इसके बाद आकार और रंग के आधार पर इलायची को वर्गीकृत किया जाता है।
इलायची, खाद्य विधियों के साथ-साथ औषधीय दृष्टिकोण से भी एक बहुप्रतीक्षित सामग्री मानी जाती है। इलायची को मसूड़ों और दांतों के संक्रमण जैसी दंत समस्याओं का रामबाण इलाज माना जाता है। साथ ही इसे सांप और बिच्छू दोनों के जहर के लिए एक मारक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
भारत मसालों की एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन करता है। उष्णकटिबंधीय से उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण तक भारत की विविध जलवायु के कारण, लगभग सभी मसाले भारत में शानदार ढंग से उगते हैं। इन मसालों में इलायची भी शामिल है।
भारत को मुख्य रूप से अपनी दो प्रकार की इलायची (छोटी इलायची और बड़ी इलायची) के लिए जाना जाता है। इसमें छोटी इलायची सबसे कीमती मसालों में से एक है, जबकि बड़ी इलायची को ‘काली इलायची' भी कहा जाता है। बड़ी इलायची मूलतः भारत के पूर्वी हिमालयी क्षेत्रों में उगाई जाती है।
छोटी इलायची की कटाई का मौसम अगस्त से मार्च और विपणन का मौसम अक्टूबर से मई तक होता है, वहीं बड़ी इलायची की कटाई का मौसम अगस्त से दिसंबर और विपणन का मौसम अक्टूबर से फरवरी तक होता है।
छोटी इलायची का उपयोग दवा, भोजन, इत्र और पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है। जबकि बड़ी इलायची का उपयोग भोजन, पान मसाला और दवाई बनाने में किया जाता है।
छोटी इलायची पश्चिम एशिया (Western Asia), यूरोपीय देशों (European Countries) और मध्य पूर्व के देशों जैसे जापान (Japan) और रूस (Russia) को निर्यात की जाती है, वहीं बड़ी इलायची पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सिंगापुर (Singapore) और ब्रिटेन (Britain) को निर्यात की जाती है।
2016 के दौरान भारत के 3 राज्यों में कुल 70,080 हेक्टेयर भूमि पर छोटी इलायची का रोपण किया गया था। इस दौरान सर्वाधिक रोपण क्षेत्र (39,680 हेक्टेयर) केरल, इसके बाद कर्नाटक (25,240 हेक्टेयर) और तमिलनाडु (5,160 हेक्टेयर) में था। इसके अलावा, छोटी इलायची के समान, ही बड़ी इलायची की भी भारत में व्यापक रूप से खेती की जाती है।
साल 2017 में छोटी इलायची के रोपण क्षेत्र में कमी देखी गई। हालांकि, छोटी इलायची के विपरीत, बड़ी इलायची के कुल रोपण क्षेत्रफल में पिछली अवधि की तुलना में 1% की वृद्धि दर्ज की गई थी।
2016 से 2019 की अवधि में भारत द्वारा इलायची के उत्पादन में काफी उतार-चढ़ाव आया था। 2016 में छोटी इलायची का उत्पादन 23,890 मीट्रिक टन तक पहुंचा था। इसके अलावा, 2016 में बड़ी इलायची का उत्पादन 5,315 मीट्रिक टन तक पहुंचा था। 2106 से 2020 के दौरान, भारत में छोटी और बड़ी इलायची का कुल उच्चतम उत्पादन 2016 में 29,205 मीट्रिक टन दर्ज किया गया था, जबकि सबसे कम 2019 में 21,609 मीट्रिक टन होने का अनुमान लगाया गया था। 2021-22 भारत में इलायची का कुल 26510 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ, जिसमें केरल लगभग 59% के अपने उत्पादन के साथ शीर्ष पर था।
संदर्भ
https://bit.ly/3YFoMqR
https://bit.ly/3YhCxMG
shorturl.at/cCLVX
चित्र संदर्भ
1. इलायची वाली चाय को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. बरकरार और खोली हुई इलायची की फली, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भंडारण कंटेनरों में इलायची की लेबल वाली किस्मो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इलायची के फूल के तने को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
5. इलायची कॉफ़ी को दर्शाता करता एक चित्रण (ccnull.de)
6. इलायची के शीर्ष दस उत्पादक - 2017 देशों को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
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