समुद्र की सतह से हजारों फीट नीचे, समुद्र तल एक ऐसी दुनिया है जो अंधेरे और रहस्य में डूबी हुई है। समुद्र के पानी के भीतर कई अनभिज्ञ जीव होते हैं, जो स्ट्रिंग लाइट की तरह चमकते हैं। साथ ही यह समुद्र तल असीमित एवं अप्रयुक्त धन से भी भरा हो सकता है। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, गहरे समुद्र में अरबों बहु धातु ग्रंथियां, (Polymetallic nodules) जिनमें आर्थिक रूप से मूल्यवान धातुएं जैसे कि ताँबा (Copper), कोबाल्ट (Cobalt), निकिल और मैगनीज (Manganese) होते हैं, होने का अनुमान है। ये धातु लिथियम आयन बैटरी के लिए महत्वपूर्ण है जो, इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर आईफ़ोन तक, सभी में उपयोग होने के कारण उच्च मांग में हैं। पृथ्वी के गर्भ से धातुओं, अयस्कों, औद्योगिक तथा अन्य उपयोगी खनिजों को बाहर निकालना खनिज खनन (Mining) कहलाता है। आधुनिक युग में धातु एवं खनिजों की खपत इतनी अधिक हो गई है कि प्रतिवर्ष उनकी आवश्यकता करोड़ों टन की होती है। ऊर्जा क्रांति को शक्ति देने के लिए उपयुक्त होने वाली धातुओं के खनन के लिए राष्ट्रों द्वारा भूमि का निरंतर दोहन किया जा रहा है। अनेक राष्ट्र इलेक्ट्रिक कारों से लेकर पवनचक्कियों तक के निर्माण हेतु महत्वपूर्ण धातुओं के लिए भूमि का दोहन कर रहे हैं। कौंगो (Congo) जैसे लोकतांत्रिक गणराज्य में कोबाल्ट (Cobalt)के प्रयोग से प्रदूषण तथा मानवाधिकारों का दुरुपयोग किया जा रहा है एवं जांबिया (Zambia) में ताँबे के खनन उद्योग ने वहाँ की नदियों को अत्यधिक जहरीला बना दिया है। निकिल (Nickel) धातु से समृद्ध इंडोनेशिया (Indonesia) ने अत्यधिक खनन कर पानी में अपवाह उत्पन्न कर दिया है। कई देशों ने धातुओं के खनन के लिए अब गहरे समुद्र तल पर भी अपनी नजरें गढ़ा दी हैं क्योंकि यह धातुओं का सबसे बड़ा स्रोत है। समुद्रों को संभावित रूप से बहु धातु ग्रंथियां होने के कारण पॉलिमेटेलिकनोड्यूल्स (Polymetallic nodules धातु के संभावित संसाधनों के रूप में देखा जाता है। विभिन्न देशों का मानना है कि इन सम्पदाओं को प्राप्त करके हरित भविष्य के सपने को साकार किया जा सकता है, परंतु कुछ लोग अपने स्वार्थ सिद्ध करने हेतु इन संसाधनों के साथ खिलवाड़ करते आ रहे हैं।
भारत जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है, अतः भारत द्वारा स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता दी जा रही है। नवंबर 2022 में, इंडोनेशिया में ‘G20 शिखर सम्मेलन’ के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2030 तक, भारत की आधी बिजली "नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न होगी।" इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, भारत समुद्र तल में छिपे खजाने की ओर भी देख रहा है । संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (United States of America), यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) , जर्मनी (Germany) ,फ्रांस (France), रूस (Russia) जापान (Japan) और चीन (China) के साथ, भारत भी अब समुद्र तल पर उपस्थित संपत्ति का दोहन कर अपने हरित भारत के सपने हो पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Science(MOES) के तहत चेन्नई में राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (The National Institute of Ocean Technology (NIOT) ने 6000 मीटर की गहराई तक 'मत्स्य' नामक पनडुब्बी पर तीन सदस्यीय चालक दल भेजने की योजना की घोषणा की है, जिसे ‘समुद्र यान मिशन’ का नाम दिया गया है। यह पनडुब्बी 2026 तक संचालन के लिए तैयार हो जाएगी। इस योजना का उद्देश्य गहरे समुद्र के अस्पष्टीकृत क्षेत्रों का निरीक्षण करना और समझना है।
'समुद्रयान मिशन' एक बहुत बड़ी परियोजना है और 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधान मंत्री द्वारा घोषित ‘डीप ओशन मिशन’ (Deep Ocean Mission) का हिस्सा है। अग्रणी निवेशक के रूप में, भारत को खनन के लिए मध्य हिंद महासागर बेसिन में 75,000 वर्ग किलोमीटर आवंटित किया गया था। इस क्षेत्र में लगभग 380 मिलियन टन बहु धातु ग्रंथियां मौजूद हैं। ‘एनआईओटी’ की एकीकृत खनन प्रणाली भी 5000-5500 मीटर की गहराई पर खनन के लिए तैयार है। समुद्र तल संसाधन विकास के तहत भारत को अपनी ब्लू अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के लक्ष्य को हासिल करने के लिए वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद के 4% के बराबर लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
1960 के दशक में जे एल मेरोके मिनरल रिसोर्सेज ऑफ द सी के प्रकाशन से गहरे समुद्र में खनन की संभावना सामने आई थी।समुद्र तल में धातुएं मैग्नीज नोड्यूल्स के निक्षेपों में पाई जाती है ,जो लगभग 5000 मीटर की गहराई पर समुद्र तल पर संकुचित फूलों की गांठ के रूप में दिखाई देती है।
समस्या यह है कि समुद्र तल खनन के लिए केवल आर्थिक लागत ही नहीं चुकानी पड़ सकती है बल्कि इसके कई पर्यावरण के नुकसान भी हैं। कई विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि गहरे समुद्र में खनन के साथ आगे बढ़ने से एक ऐसा उद्योग शुरू हो सकता है जो अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय नुकसान पहुंचाता है, समुद्री जीवों के आवासों को क्षति पहुंचा सकता है और यहां तक कि उन समुद्री प्रजातियों को मिटा सकता है जिनकी अभी तक पहचान नहीं की जा सकी है। खनन के जोखिमों को समझने के लिए और अधिक समय एवं अन्वेषण की आवश्यकता है।
आपको बता दें कि गहराइयों से भरे समुद्र में खनन करते समय पर्यावरणीय एवं इंजीनियरिंग दोनों ही रूपों में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मिशन के तहत समुद्र में पानी के नीचे के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर समुद्री संसाधनों की खोज एवं निष्कर्षण के कारण पड़ने वाले प्रभाव का भी आकलन किया जाता है। खनन के समय समुद्री पर्यावरण की नाजुकता और पानी के नीचे की जैव विविधता का भी विशेष ध्यान रखा जाता है ।
हालांकि समुद्र तल खनन का विकास किया जाना आवश्यक है किंतु खनन करते समय यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि इससे समुद्री पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर विपरीत प्रभाव ना पड़े । अन्यथा इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3lcdUCB
https://bit.ly/3HDAFGU
चित्र संदर्भ
1. समुद्र में खनन को संदर्भित करता एक चित्रण (rawpixel)
2. गहरे समुद्र में खनन आरेख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. समुद्र में गोताखोरों को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. समुद्री जहाज को दर्शाता करता एक चित्रण (Picryl)
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