वैज्ञानिक शोध अनुसार, समावेशन, विविधता में एकता, है भारतीय सभ्यता के अनुवांशिक ढांचे की प्रकृति

मेरठ

 08-02-2023 10:28 AM
सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के वैज्ञानिक कार्यों की सराहना करने के लिए प्रत्येक वर्ष 12 फरवरी को ‘चार्ल्स डार्विन दिवस’(Charles Darwin Day) मनाया जाता है। चार्ल्स डार्विन, जिन्हें “प्राकृतिक चयन” (Natural Selection) या 'योग्यतम की उत्तरजीविता' (Survival of the fittest) के सिद्धांत के जनक के रूप में जाना जाता है, का जन्म 12 फरवरी, 1809 को हुआ था।1859 में डार्विन ने अपनी पुस्तक "ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़" (On the Origin of Species) प्रकाशित की, जिसमें प्राकृतिक चयन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया था। उन्होंने अपने जीवन का एक लंबा समय जीवों के विकास को समझने तथा इस विषय पर कार्य करने में व्यतीत किया। जैसा कि हम इस माह 12 फरवरी को चार्ल्स डार्विन दिवस के करीब आ रहे हैं, तो आइए इस मौके पर जानें कि प्राचीन डीएनए (DNA) का आनुवंशिक विश्लेषण भारतीय आनुवंशिक विरासत के बारे में क्या कहता है? ‘पेट्रोस बोन' (Petrous bone) मानव खोपड़ी का एक सुंदर लेकिन उपयोगी हिस्सा है - मूल रूप से यह आपके आंतरिक कान की रक्षा करता है। लेकिन यह केवल इतना ही नहीं है। हाल के वर्षों में, प्राचीन कंकालों से डीएनए निकालने के लिए काम कर रहे आनुवंशिक वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि पेट्रोस हड्डी के अत्यधिक घनत्व से किसी भी अन्य शेष ऊतक की तुलना में 100 गुना अधिक डीएनए प्राप्त किया जा सकता है । कुछ हद तक यह नवाचार भारतीय आनुवंशिक विरासत के बारे में सबसे गर्म बहसों में से एक को हल कर सकता है। राखीगढ़ी, हरियाणा में वैज्ञानिकों की एक टीम चार मानव कंकाल की ‘पेट्रोस बोन' पर काम कर रही है, जिसे प्राचीन डीएनए प्राप्त करने के लिए उपयोग किया गया था। इससे कई चौंका देने वाले प्रमाण सामने आए हैं। नए शोध, जिसमें प्राचीन डीएनए का उपयोग किया गया है, भारत में प्रागैतिहास काल का पुनर्लेखन कर रहा है तथा यह बता रहा है, कि भारत की सभ्यता कई प्राचीन प्रवासन का परिणाम है। हम में से कई लोगों का मानना है कि हम आदिकाल से ही इस उपमहाद्वीप में रह रहे हैं, लेकिन सच यह नहीं है। पिछले कुछ सालों में इन सवालों को लेकर बहस और भी गरम हो गई है। हिंदू दक्षिणपंथी ‘आर्यन’ जनजाति को भारतीय सभ्यता का स्रोत मानते हैं। आर्य, घुड़सवारी करने, मवेशी पालने वाले योद्धाओं और चरवाहों की खानाबदोश जनजाति है,जिन्होंने हिंदू धर्म के सबसे पुराने धार्मिक ग्रंथ ‘वेदों’ की रचना की। 19वीं शताब्दी के कई यूरोपीय नृवंशविज्ञानी और यहां तक की एडॉल्फ हिटलर (Adolf Hitler) भी आर्यों को सबसे महान जाति मानते थे, जिन्होंने यूरोप (Europe) पर विजय प्राप्त की थी । जब विद्वान “आर्यन” शब्द का उपयोग करते हैं, तो यह उन लोगों के समूह को संदर्भित करता है जो इंडो-यूरोपीय (Indo-European) भाषा बोलते थे और खुद को आर्यन कहते थे। इस कारण कई भारतीय विद्वानों ने " भारत के बाहर” की (Out of India) उत्पत्ति के सिद्धांत पर सवाल उठाया है, तथा यह तर्क दिया है कि इंडो-यूरोपीय भाषा बोलने वाले ‘आर्यन; संभवतः प्रागैतिहासिक प्रवासियों की कई धाराओं में से एक थे, जो पूर्व विद्यमान सभ्यता के पतन के बाद भारत पहुंचे थे। यह हड़प्पा सभ्यता थी, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है , जो मिस्र (Egypt) और मेसोपोटामिया (Mesopotamia) सभ्यता के समय के आसपास उत्तर-पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में पनपी थी। हालाँकि, हिंदू दक्षिणपंथी मानते हैं कि हड़प्पा सभ्यता भी एक आर्य या वैदिक सभ्यता थी, जिसके कारण यह विषय पिछले कुछ समय से विभिन्न समूहों के बीच तनाव का एक स्रोत रहा है। लंबे समय से चल रहे इस विवाद के परिणाम स्वरूप वैज्ञानिकों द्वारा जनसंख्या आनुवंशिकी के तहत प्राचीन डीएनए का उपयोग करके यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि कौन से लोग किस समय कहां मौजूद थे जिसके कारण आज के भारतीयों की उत्पत्ति हुई। हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के आनुवंशिकीविद् डेविड राईक (David Reich) के नेतृत्व में इस विषय पर सबसे हालिया अध्ययन मार्च 2018 में प्रकाशित हुआ था और इसे दुनिया भर के 92 विद्वानों द्वारा लिखा गया था। अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 10,000 वर्षों में भारत में दो प्रमुख प्रवासन हुए हैं। जनसंख्या आनुवंशिकी के नए विज्ञान ने, जो हजारों साल पुराने कंकालों के प्राचीन डीएनए का अंवेषण कर रहा है, नाटकीय सफलताएं हासिल की हैं। इनके द्वारा मिलें साक्ष्यों से यह ज्ञात हुआ है कि भारतीयों के वंशज लगभग 65,000 साल पहले मौजूद थे । यह वो समय था, जब आधुनिक मनुष्यों या होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) का एक समूह अफ्रीका (Africa) से इस उपमहाद्वीप में आया। वे अफ्रीका से एशिया (Asia) पहुंचे और दक्षिणी एशिया के तट के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया (Australia) भी पहुंचे। जबकि एक अन्य समूह मध्य एशिया और यूरोप (Europe) पहुंचा। इन प्रथम भारतीयों की आनुवंशिक वंशावली से आज हमारे डीएनए का 50-65% हिस्सा मिलता है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि सभी मनुष्य अफ्रीका के वंशज हैं। इस पहले प्रवासन के बाद, भारत में प्रमुख प्रवासन की तीन और लहरें पैदा हुईं और नए प्रवासी स्थानीय आबादी के साथ मिश्रित हो गए। दिलचस्प बात यह है कि 20,000 साल पहले ही उपमहाद्वीप में दुनिया की सबसे बड़ी मानव आबादी मौजूद थी। दूसरा बड़ा प्रवास 9,000 से 5,000 साल पहले हुआ था, जब ईरान (Iran) के ज़ाग्रोस (Zagros) क्षेत्र के कृषक भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में पहुंचे और संभवतः उन पहले भारतीयों के साथ मिश्रित हो गए, जिन्होंने पहले हड़प्पा तथा बाद में शहरी सिंधु घाटी सभ्यता बनाई। फिर हड़प्पा के लोग दक्षिण की ओर चले गए और स्थानीय लोगों के साथ मिश्रित हो गए। इससे पैतृक दक्षिण भारतीयों का विकास हुआ, जिनकी संस्कृति द्रविड़ भाषाओं पर आधारित थी। खेती से संबंधित एक तीसरा प्रवास 2000 ईसा पूर्व के आसपास हुआ, जब चीन प्रवासियों ने दक्षिण-पूर्व एशिया को पार किया और ऑस्ट्रो एशियाटिक (Austroasiatic) भाषाओं के साथ भारत पहुंचे। इन ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषाओं में पूर्वी और मध्य भारत में बोली जाने वाली मुंडारी और खासी भाषा शामिल है ।चौथा प्रवास सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के तुरंत बाद 2000 और 1000 ईसा पूर्व के बीच हुआ था। इस प्रवास में कजाख स्तिपी (Kazakh Steppe) से मध्य एशियाई पशुपालक आए, जो इंडो-यूरोपियन भाषा बोलते थे और जो संभवत आर्यों का एक दूसरा समूह था । वे संभवत: अपने साथ संस्कृत का एक प्रारंभिक संस्करण, घोड़ों पर निपुणता और नई सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे बलि अनुष्ठानों की एक श्रृंखला लाए, जो बाद में प्रारंभिक हिंदू एवं वैदिक संस्कृति का आधार बनी। प्राचीन डीएनए का अध्ययन एक नया, विकासशील विज्ञान है और इससे और भी अधिक निष्कर्ष मिलने बाकी हैं। लेकिन अब तक मिले आनुवंशिक प्रमाण इस पुरानी औपनिवेशिक परिकल्पना की पुष्टि करते हैं कि इंडो-यूरोपीय (Indo- European) भाषा बोलने वाले लोग, जो खुद को आर्य कहते थे, सिंधु घाटी सभ्यता के समाप्त होने पर भारत आए थे तथा वे अपने साथ संस्कृत का एक प्रारंभिक संस्करण लाए थे। वे हड़प्पावासियों के साथ घुल-मिल गए, ताकि पैतृक उत्तर भारतीय आबादी का निर्माण किया जा सके। किसी कारण से भारत में लोगों के मिश्रित होने की यह प्रक्रिया 100 वीं ईसवी के आसपास समाप्त हो गई। नया शोध एक वास्तविक किंतु रोमांचक और उम्मीद भरा संदेश देता है। इससे यह ज्ञात होता है कि भारतीयों ने विभिन्न आनुवंशिकताओं और इतिहासों के माध्यम से एक लंबे समय तक चलने वाली सभ्यता का निर्माण किया है। अपने सर्वोत्तम काल में भारतीय सभ्यता की खास बात यह रही है कि इसने समावेशन को अपनाया है, अपवर्जन को नहीं। विविधता में एकता, वास्तव में, भारत के अनुवांशिक ढांचे या प्रकृति का केंद्रीय विषय है।

संदर्भ:
https://bit.ly/2wzY7QP
https://bbc.in/2SnLemJ
https://bit.ly/40wcMtp

चित्र संदर्भ
1. भारतीय सभ्यता के अनुवांशिक ढांचे की प्रकृति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. चार्ल्स डार्विन को संदर्भित करता एक चित्रण (Max Pixel)
3. पेट्रोस बोन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारतीयों को दर्शाता करता एक चित्रण ( Look and Learn)
5. भारत में विभिन्न भाषा परिवारों के भौगोलिक वितरणको संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. ऑस्ट्रिक भाषाओँ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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