City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2039 | 782 | 2821 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
भारत में केसर की कृषि का इतिहास लगभग 3500 से भी अधिक वर्षों पुराना है। रोमन लोग इसका उपयोग दुर्गंध नाशक के रूप में करते थे। मिस्र के चिकित्सकों ने इसे पेट से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया था और ऐसा कहा जाता है कि क्लियोपेट्रा (Cleopatra), जो कि प्राचीन काल में मिस्त्र की रानी हुआ करती थी, सौंदर्य प्रसाधन के लिए केसर का इस्तेमाल करती थी। साथ ही, 16वीं शताब्दी की कश्मीर की कवयित्री हब्बा खातून की कविताओं और गीतों में भी केसर को चित्रित किया गया है।
ईरान और कश्मीर में मुख्य रूप से केसर की खेती की जाती है। यह एक बहुत ही श्रम साध्य फसल है तथा केसर एक अत्यधिक प्रतिष्ठित मसाला है। अक्सर, केसर को सोने (Gold) से भी अधिक मूल्यवान माना जाता है । भारत में केसर की खेती मुख्य रूप से कश्मीर में की जाती है,हालांकि हिमाचल प्रदेश ने भी अभी इस दिशा में छोटे कदम उठाना शुरू कर दिया है। केसर की खेती हाल ही में हिमाचल राज्य के किन्नौर, चंबा, मंडी, कुल्लू और कांगड़ा जिलों में शुरू हुई है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश में ‘वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (Council of Scientific and Industrial Research) के ‘हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Institute of Himalayan Bioresource Technology) द्वारा पालमपुर में केसर की खेती का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसके तहत अनेक किसानों को केसर की खेती का प्रशिक्षण दिया गया। आज इस राज्य के कई किसानों ने अपनी नियमित फसल की उपज केसर के साथ बदल दी है।
केसर एक मसाला है जो ‘क्रोकस सैटिवस’ (Crocus Sativus) पौधे के बैंगनी फूलों के योनि छत्रों (फूलो के स्त्री जननांग) से आता है। प्रत्येक फूल में तीन योनि छत्र होते हैं जिन्हें हाथ से चुना जाता है और फिर केसर का मसाला बनाने के लिए सुखाया जाता है। एक ग्राम केसर के उत्पादन के लिए हजारों केसर के फूलों की आवश्यकता होती है। योनि छत्र आमतौर पर नारंगी-लाल रंग के होते हैं। सबसे अच्छे प्रकार के केसर में गहरा लाल रंग, शहद जैसी सुगंध के साथ एक नाजुक लेकिन कस्तूरी स्वाद होता है। कश्मीर का केसर, जो अपने स्वाद और रंग के लिए जाना जाता है, साल में सिर्फ एक बार अक्टूबर के अंत से नवंबर के मध्य तक काटा जाता है।
कश्मीर में केसर की खेती के तहत कुल 5,707 हेक्टेयर भूमि में से 90 प्रतिशत से अधिक दक्षिण कश्मीर में पुलवामा जिले की पंपोर तहसील में स्थित है, जबकि शेष मध्य कश्मीर के बडगाम और श्रीनगर जिलों में स्थित है। पूर्व में पुलवामा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर केसर की खेती की जाती थी। हालाँकि, केसर की खेती में विभिन्न बाधाओं के कारण, उत्पादक अन्य बागवानी फसलों में स्थानांतरित हो गए और आज केसर की फसल पंपोर और उसके आस-पास के क्षेत्रों तक ही सीमित है।
अपने लंबे और गहरे लाल रंग के कारण, कश्मीरी केसर को बाजार में उपलब्ध केसर की सबसे अच्छी किस्म माना जाता है। केसर का न केवल एक मसाले के रूप में बल्कि कई अन्य तरीकों से भी उपयोग किया जाता है,और साथ ही इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी है।
केसर बनाने के लिए, प्रत्येक फूल के लाल रेशों से इसे निकाला जाता है। एक किलोग्राम मसाले के लिए 1,50,000 से अधिक फूलों को छांटा जाता है। इसके बाद, कोयले की आग पर इन रेशों को सुखाया जाता है। कश्मीर में 2021 में केसर की 15.04 मीट्रिक टन पैदावार हुई थी,जो की एक बहुत अच्छी खबर है।
केसर का रोपण जुलाई, अगस्त और सितंबर में हाथों से या मशीन से किया जाता है, और कटाई रोपण के लगभग आठ सप्ताह बाद अक्टूबर के अंत से नवंबर के मध्य तक की जाती है। केसर को धूप की आवश्यकता होने की वजह से इसे मैदानों में ही उगाया जाता है। इन्हीं कारणों से केसर की खेती बहुत श्रम गहन है। और शायद इन्ही वजहों से केसर की कीमत भी आसमान छूती रहती है।
भारत केसर के विश्व के कुल उत्पादन में 5% योगदान देता है, जिसमें से 90% आपूर्ति केवल जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों से की जाती है। भारत में जम्मू-कश्मीर में केसर का उत्पादन 3.83 टन है जबकि इसकी वार्षिक मांग लगभग 100 टन है। भारत में, ऐसे कुछ भौगोलिक क्षेत्र हैं जिनकी पर्यावरण और पारिस्थितिक स्थिति जम्मू-कश्मीर के समान है और वहां केसर की फसल की शुरुआत करने की संभावना है।
पारिस्थितिक आवास मॉडलिंग (Ecological Niche Modelling(ENM)) ऐसी वैज्ञानिक कार्यविधि है, जिसके माध्यम से हुए वैज्ञानिक अनुसंधान की सहायता से,ऐसे क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है, जो केसर की खेती के लिए उपयुक्त हो सकते हैं । इस कडी में, भारत में केसर उत्पादन के लिए जम्मू और कश्मीर को छोड़कर, नए उपयुक्त क्षेत्रों को खोजने के लिए 103 पर्यावरण पहलुओं, 20 विवरणों तथा तथ्यों और स्थलाकृतिक मापदंडों (ऊंचाई, ढलान और पहलू) का उपयोग करके ईएनएम परीक्षण किया गया था। वर्षा और तापमान इसकी खेती को प्रभावित करने वाले मुख्य पर्यावरणीय पहलू थे। तब,केसर को भारत के विभिन्न राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर और तमिलनाडु में नए मॉडल स्थानों में बोया गया था। इनमें से कुछ क्षेत्रों में उत्पादित केसर की गुणवत्ता और उपज का मूल्यांकन किया गया और इसे भारत में परंपरागत रूप से उगाए जाने वाले केसर के बराबर पाया गया। इस परियोजना में प्राप्त परिणामों के अनुसार, हम केसर की अपनी राष्ट्रीय मांग को पूरा करने के लिए भारत में नए मॉडल क्षेत्रों में केसर की खेती का अधिक विस्तार कर रहे हैं।
ईएनएम ने भारत में 6 राज्यों की पहचान की, जहां केसर की खेती की संभावना है। देश के इस कुल 5.09% क्षेत्र में से, उत्तर-पश्चिमी हिमालय का 4.81% क्षेत्र था (जम्मू और कश्मीर में 2.12% तथा उत्तराखंड में 1.41%); पूर्वी हिमालय में 0.65% (अरुणाचल प्रदेश में 0.62% तथा सिक्किम में 0.03%) और दक्षिणी भारत में तमिलनाडु में 0.44% क्षेत्र केसर की वृद्धि के लिए अनुकूल था। हालांकि प्रत्येक क्षेत्र में केसर की गुणवत्ता अलग - अलग रहेगी।
भारत के एक बड़े क्षेत्र में केसर की खेती शुरू करने का अवसर है। और अगर ऐसा होता है, तो यह हमारे लिए निस्संदेह ही अच्छी खबर होगी। साथ ही, केसर तो कई पहलुओं में हमारे लिए मूल्यवान है ही। इसका इतिहास, इसकी खेती, खेती में श्रमिको का योगदान तथा इसके खेती की संभावनाएं सारी ही बाते काफी दिलचस्प है।
संदर्भ
https://go.nature.com/3iSLEUD
https://bit.ly/3kuNag0
https://bit.ly/3J0MklE
चित्र संदर्भ
1. केसर की खेती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. केसर फार्म को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. केसर की पंखुड़ियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. निकट से केसर के पुष्प को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.