सन 1857 की क्रान्ति में मेरठ का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। 1857 के गदर की शुरुवात यहीं से हुई थी और दिल्ली चलो का नारा भी यहीं पहली बार गूंजा था। 10 मई 1857 के दिन बंगाल इन्फेंट्री रेजिमेंट और इंडियन लाइट कैवेलरी ने बगावत शुरू की। 29 अप्रैल 1857 से इस बगावत तक ले जाने वाली घटनाओं की शृंखला शुरू हुई थी। 1 जनवरी 1857 को एनफ़ील्ड राइफल पहली बार मेरठ में जारी की गयी जिसके कारतूस को चर्बी से पहले पोतना पड़ता था। इसके ऊपर विवाद हुआ और 29 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे ने कुछ ब्रिटिश अधिकारीयों को मारने की कोशिश की और बहुतों को घायल किया। 24 अप्रैल 1857 को 85 सिपाहियों ने इस कारतूस को इस्तेमाल करने से इनकार किया जिसके कारण दुसरे दिन उनका कोर्ट मार्शल कर के उन्हें 10 साल के लिए कैद-ए-बामुशक्कत की सज़ा दी गयी। इस घटना के बाद ही बगावत बड़े पैमाने पर शुरू हो गयी जो फिर दिल्ली चलो का नारा लगाते हुए तथा ब्रिटिश राज को पराजित करते हुए मेरठ से दिल्ली की तरफ आगे बढ़ी। इस संग्राम की चुनिंदा यादें मेरठ के राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में संचित की गयीं हैं। इसमें 1857 की गदर से लेकर भारत स्वन्त्रंत्र होने तक की घटनाओं का चित्रण एवं उससे जुड़ी चीजें मौजूद हैं। प्रस्तुत चित्र इसी संग्रहालय से हैं: चित्र 1: इसमें मेरठ के उन 85 सिपाहियों को कोर्ट मार्शल करके जंजीरों में जकड़ा था उस घटना का चित्रण है। चित्र 2: इसमें मेरठ के विद्रोही जब दिल्ली की तरफ निकल पड़े उस घटना का चित्रण है। 1. द हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया: जॉन एफ. रिड्डीक 2. म्युटिनी ऐट द मार्जिन्स- न्यू पर्सपेक्टिव्स ओन द इंडियन अपराइजिंग ऑफ़ 1857: क्रिस्पिन बटेस 3. डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर ऑफ़ द यूनाइटेड प्रोविन्सेस ऑफ़ आग्रा एंड औध: हेन्री रिवेन नेविल, 1904
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