भारतीय संस्कृति में पवित्र गंगा नदी को “माँ" के उच्चारण से सबोंधित किया जाता है। माँ गंगा, न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वयं पर निर्भर तकरीबन 520 मिलियन लोगों के जीवन का आधार (पालनकर्ता) भी मानी जाती है। हालांकि, इस सौभाग्य के बदले हम लोगों ने इस पवित्र नदी को आभार के रूप में, केवल शोषण और प्रदूषण ही दिया है।
गंगा नदी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी मानी जाती है। साथ ही यह भारत की जीवन रेखा मानी जाती है, क्यों कि यह नदी पनबिजली उत्पादन और कृषि कार्यों के लिए पानी की सभी जरूरतों को पूरा करती है। हालांकि इसके नतीजतन, नदी बेसिन में जलीय संतुलन (Hydrological), भू-आकृति और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं की श्रंखलाएं गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, जिससे नदी के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हाल ही में किये गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि बांधों और बैराजों के निर्माण से न केवल नदी के प्रवाह और पारिस्थितिकी में गिरावट आ सकती है, बल्कि नदी की जैव विविधता पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
नदियों को बचाने के लिए उनके स्वास्थ्य का आकलन करना बेहद आवश्यक है, और इसके लिए भौतिक, रासायनिक तथा जैविक कारकों का एकीकरण जरूरी हो गया है जो नदी के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना को बनाए रखते हैं।
नदी पारिस्थितिकी तंत्र में कई प्राकृतिक पौधों और जीवो का उपयोग स्वास्थ्य मूल्यांकन और जलीय पर्यावरण निगरानी के लिए किया जा सकता है। नदी के स्वास्थ्य के संकेतक के रूप में फाइटोप्लैंक्टन (Phytoplankton) का उपयोग करना एक बेहतरीन तरीका माना जाता है। दरसल फाइटोप्लैंक्टन छोटे-छोटे जलीय जीव होते हैं, जो प्राथमिक उत्पादकों के रूप में कार्य करके छोटे जूप्लैंक्टोन (Zooplankton) से लेकर व्हेल जैसे बड़े जलीय जीवों के लिए भोजन का प्रबंध करके जलीय खाद्य तंत्र का आधार बनाते हैं। वे कम समय में तेजी से प्रजनन करते हैं और कई जलीय जीवों के लिए भोजन के रूप में कार्य करने के अलावा पानी में पारिस्थितिक परिवर्तन के उत्कृष्ट संकेतक के रूप में काम करते हैं।
फाइटोप्लैंक्टन की वृद्धि कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide), सूर्य के प्रकाश और पोषक तत्वों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। उन्हें प्रजातियों के आधार पर पोषक तत्वों जैसे नाइट्रेट (Nitrate) फॉस्फेट (Phosphate), सिलिकेट (Silicate), कैल्शियम (Calcium) आदि की आवश्यकता होती है। यह नदियों को बचाने के संदर्भ में एक अहम् कड़ी साबित हो सकते हैं। हालांकि इसके अलावा भी भारत सरकार द्वारा नदियों को बचाने के लिए कई अहम् कदम उठाए गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने हाल ही में केंद्र सरकार की ‘नमामि गंगे' परियोजना को दुनिया की दस “अग्रणी" पहलों में से एक के रूप में मान्यता प्रदान की है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Program (UNEP) और संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (United Nations Food and Agriculture Organization (FAO) द्वारा समन्वित एक वैश्विक आंदोलन, ‘पारिस्थितिक तंत्र बहाली’ (Ecosystem Restoration) के तहत दुनिया भर के 70 देशों की 150 से अधिक ऐसी पहलों में से इस पहल का चयन किया गया था।
‘नमामि गंगे' परियोजना, जिसे 2014 में शुरू किया गया था, का उद्देश्य प्रदूषित गंगा नदी को साफ करना, प्रदूषण को कम करके इसे फिर से जीवंत करना, इसका संरक्षण तथा कायाकल्प करना, गंगा बेसिन के कुछ हिस्सों को फिर से बनाना, टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना और सॉफ्टशेल कछुए (Softshell Turtles), ऊदबिलाव तथा डॉल्फिन (Dolphin) जैसी प्रमुख वन्य जीव प्रजातियों को पुनर्जीवित करना है। ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम समग्र और बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण को अपनाता है, तथा नदी की पारिस्थितिकी और उसके स्वास्थ्य के व्यापक संरक्षण के लिए नवीन मॉडल पेश करता है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप गंगा बेसिन में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के उपचार, नदी के पानी की गुणवत्ता और जैव विविधता में सुधार और 30,000 हेक्टेयर से अधिक वनीकरण की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। इस कार्यक्रम ने इससे पहले ग्लोबल वाटर इंटेलिजेंस (Global Water Intelligence) द्वारा 2019 में “पब्लिक वाटर एजेंसी ऑफ द ईयर (Public Water Agency of the Year)" का खिताब भी जीता है। सरकार ने अब तक परियोजना में $4.25 बिलियन तक का निवेश किया है और इस पहल ने अब तक नदी के 1,500 किमी को बहाल कर दिया है। हालांकि,जल विशेषज्ञों द्वारा संयुक्त राष्ट्र द्वारा दी गई इस मान्यता के प्रति संदेह दर्ज किया गया है, जिनका कहना है कि संयुक्त राष्ट्र ने सूची बनाने में प्रयोग किये गए मानदंडों के बारे में ब्योरा नहीं दिया है।
पिछले कुछ वर्षों में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि गंगा में पानी की गुणवत्ता अभी भी खराब है । पर्यावरणविद् और जल विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह के अनुसार “कई योजनाओं और उपायों के कार्यान्वयन के बावजूद गंगा प्रदूषित हो रही है। यह अब पहले की तुलना में अधिक प्रदूषित है, और 'नमामि गंगे' कार्यक्रम सिर्फ एक "सौंदर्यीकरण का प्रयास" है।”
नदी में प्रदूषण से संबंधित अध्ययनों का विश्लेषण करने वाले 2022 के एक शोध पत्र में पाया गया कि “सब ठीक नहीं है और गंगा की गुणवत्ता दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है"।
इसी प्रकार 2019 के एक अध्ययन में कहा गया है, “विभिन्न सफाई योजनाओं के तहत कई मिलियन रुपये खर्च करने के बावजूद, नदी की स्थिति में बहुत कम सुधार हुआ है।"राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) ने इस साल जुलाई में कहा था कि लगभग 50 फीसदी अनुपचारित सीवेज अभी भी नदी में बहाया जा रहा है।
यह भी देखा गया कि स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन द्वारा भी गैर-अनुपालन के खिलाफ कड़े कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इस साल जुलाई में, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, कोलकाता (Indian Institute of Science Education and Research, Kolkata) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि नदी के निचले हिस्से सबसे अधिक प्रदूषित हैं। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि गंगा को साफ करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। और इस मुद्दे से निपटने के लिए कई सरकारी योजनाओं और उपायों के बावजूद अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
संदर्भ
https://bit.ly/3iBBHuK
https://bit.ly/3CKFdtk
https://bit.ly/3QCiF3S
चित्र संदर्भ
1. नदी की सफाई को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. वाराणसी में गंगा नदी तट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. फाइटोप्लैंक्टन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. स्वच्छ गंगा के लिए राज्य मिशन - उत्तर प्रदेश के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बिष्णुमती नदी की सफाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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