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स्वामी विवेकानंद जयंती विशेष: वह भाषण जो सन 1893 में भी वायरल हुआ

मेरठ

 12-01-2023 11:15 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

आपने एक कहावत अवश्य सुनी होगी कि व्यक्ति को दीर्घ नहीं, विशाल जीवन जीना चाहिए। स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन पर यह कहावत एकदम सटीक बैठती है। मात्र 39 वर्षों का जीवन जीने वाले इस अलौकिक पुरुष ने अपने इस लघु अर्थात छोटे से जीवन में ही, न केवल भारत वरन पश्चिमी समाज में भी अपने क्रांतिकारी व्यक्तित्व का प्रभाव स्थापित कर दिया था। 1893 में शिकागो (Chicago) में आयोजित विश्व धर्म संसद (World’s Parliament of Religions) में उनके द्वारा दिया गया ज़बरदस्त भाषण आज भी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों के रूप में दर्ज है। स्वामी विवेकानंद के योगदान के सम्मान में, भारत में उनकी जयंती के अवसर को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद, एक हिंदू संत और भारत में प्रमुख आध्यात्मिक नेता थे। 1893 में आयोजित विश्व धर्म संसद में उन्होंने अपने देश और धर्म का प्रतिनिधित्व किया। 11 सितंबर से 27 सितंबर तक चली इस धर्म सभा में, जो अपनी तरह का पहला प्रयास था, दुनिया भर के धार्मिक प्रतिनिधि एक साथ आये थे । स्वामी विवेकानंद, 31 मई, 1893 को तत्कालीन बॉम्बे (मुंबई), भारत से संयुक्त राज्य अमेरिका ( United States of America) की यात्रा पर निकले। इस यात्रा को उनके मद्रास के शिष्यों, राजाओं, दीवानों और अन्य अनुयायियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था। अपनी यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद ने चीन, जापान और कनाडा का भी दौरा किया। चीन में, उन्होंने कैंटन (गुआंगज़ौ) (Canton (Guangzhou) में बौद्ध मठ देखे। जापान में, उन्होंने योकोहामा (Yokohama) पहुंचने से पहले नागासाकी (Nagasaki) और कई अन्य प्रमुख शहरों का भी दौरा किया। सितंबर 1893 में, अमेरिका पहुंचकर स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म संसद में कई व्याख्यान दिए। पहले दिन, वे शुर-शुरू में घबराए हुए थे, लेकिन शीघ्र ही उन्होंने अपने भीतर एक नई ऊर्जा महसूस करते हुए “अमेरिका के बहनों और भाइयों!" (Sisters and brothers of America!) के अभिवादन के साथ अपना भाषण शुरू किया।
अपने पहले व्याख्यान में उन्होंने हिंदू भिक्षुओं की सबसे प्राचीन व्यवस्था, सभी धर्मों की जननी और सभी वर्गों और संप्रदायों के लाखों -करोड़ों हिंदू लोगों की ओर से सभी दर्शकों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि “सम्मेलन गीता में बताए गए अद्भुत सिद्धांत का एक प्रमाण है, जिसके अनुसार सभी रास्ते एक ही मंजिल या गंतव्य पर जाते हैं।
15 तारीख को, उन्होंने विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के बीच असहमति के मुद्दे को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने दो मेंढकों की कहानी सुनाई, जिनमें से एक मेंढक जो कुंए में रहता था और मानता था कि यह दुनिया उसके कुएं ही जितनी बड़ी है, और दूसरा मेंढक जो समुद्र से आया था, वह कुएं के मेंढक को समुद्र की विशालता समझाने की कोशिश करने लगा, पर नहीं समझा पाया! विवेकानंद ने इस कहानी के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया कि कैसे प्रत्येक व्यक्ति या समूह अपने “छोटे से कुएं" में ही फंस के रह सकता है और दूसरों के परिप्रेक्ष्य या नज़रिये को देखने में असफल हो सकता है। इस मंच पर स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म का संक्षिप्त परिचय दिया और “हिंदू धर्म के अर्थ" पर भी बात की। उन्होंने दुनिया के 3 सबसे पुराने धर्मों, अर्थात हिंदू धर्म, पारसी धर्म और यहूदी धर्म, के अस्तित्व और ईसाई धर्म के उद्भव के बारे में भी बात की। इसके बाद उन्होंने आगे बढ़कर वेदांत दर्शन एवं हिंदू धर्म में ईश्वर, आत्मा और शरीर की अवधारणा के अपने ज्ञान को साझा किया। उन्होंने हिंदू धर्म द्वारा सिखाई गई सहिष्णुता और स्वीकृति के बारे में बात की और इस बात पर भी चर्चा की, कि किस तरह से इतिहास में सनातन धर्म ने सभी धर्मों और राष्ट्रों के लोगों का स्वागत किया तथा उनकी रक्षा की।
इसके बाद उन्होंने एक भजन का पाठ किया जो इस विचार पर जोर देता है कि सभी मार्ग और धर्म अंततः एक ही ईश्वरीय सत्य की ओर ले जाते हैं। इस सभा में विवेकानंद ने संप्रदायवाद, कट्टरता और कट्टरता के कारण होने वाले नुकसान की निंदा की और आशा व्यक्त की कि इस भव्य सभा के आयोजन से ऐसे विनाशकारी व्यवहारों का अंत होगा। दुनिया भर के विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाने वाली विश्व की धर्म संसद सफल रही। स्वामी विवेकानंद ने उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया जिन्होंने इस कार्यक्रम को संभव बनाया । इसके अलावा उन्होंने दर्शकों और वहां आये अन्य लोगों के विचारों का स्वागत किया। उन्होंने विरोध करने वाले विचारों को व्यक्त करने वाले लोगों को भी धन्यवाद दिया, क्योंकि उनके विपक्ष ने घटना के समग्र सामंजस्य को और अधिक स्पष्ट कर दिया।
विवेकानंद ने धार्मिक एकता के विचार के बारे में भी बात की और कहा कि धार्मिक एकता को एक धर्म की विजय और दूसरे धर्म के विनाश के माध्यम से हासिल नहीं किया जा सकता। इसके बजाय, इस प्रक्रिया की तुलना उन्होंने एक बीज में उगने वाले पौधे से की, जो पृथ्वी, हवा और पानी से पोषक तत्वों को ग्रहण करता है, लेकिन अलग रहता है और अपनी प्रकृति के अनुसार बढ़ता है। उन्होंने तर्क दिया कि धर्म को भी ऐसा ही होना चाहिए, जिसमें प्रत्येक आस्था अपने व्यक्तित्व को बनाए रखे, लेकिन अन्य परंपराओं के सकारात्मक पहलुओं को भी अपनाए। विवेकानंद ने कहा कि धर्म संसद ने प्रदर्शित किया है कि पवित्रता और दान किसी एक धर्म के लिए अनन्य नहीं हैं और यह कि सभी प्रणालियों ने महान चरित्र वाले व्यक्तियों का उत्पादन किया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस आयोजन का संदेश संघर्ष और विनाश के बजाय सहयोग, आत्मसात, सद्भाव और शांति का होगा। इसी आशा और आह्वान के साथ उन्होंने अपने भाषण का समापन किया।

संदर्भ
https://bit.ly/3vJXWl0
https://bit.ly/3GptVMj
https://bit.ly/3ilVsWS

चित्र संदर्भ

1. स्वामी विवेकानंद के भाषण को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. 1893 संसद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. स्वामी विवेकानंद को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. विश्व धर्म संसद में भाषण देते स्वामी विवेकानंद को दर्शाता एक चित्रण (Maeeshat)

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