Post Viewership from Post Date to 29-Jan-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1357 831 2188

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

भारत में सबसे पहले साइकिल का उपयोग किस रूप में किया गया ?

मेरठ

 29-12-2022 10:45 AM
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

उन्नीसवीं सदी आविष्कारों की सदी थी । औद्योगिक क्रांति के पूरे जोरों पर होने और मांग तथा आपूर्ति में वृद्धि के साथ, उत्पादन की समनुक्रम शैली भी मुख्य रूप से उन्नीसवीं शताब्दी में पेश की गई थी। जैसे ही तकनीक आम आदमी के सामने आई, नए आविष्कारों की बाजार में बाढ़ आ गई। कैमरे से लेकर बिजली की बैटरी, टेलीफोन और सिलाई मशीन, और यहां तक ​​कि कोका-कोला तक, सभी को उन्नीसवीं शताब्दी में पेश किया गया था। जनसंख्या बढ़ने लगी और इसके परिणामस्वरूप परिवहन के तेज़ साधनों पर निर्भरता बढ़ गई । यहीं से साइकिल का अविष्‍कार हुआ।
उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में बैरन कार्ल वॉन ड्रैस (Baron Karl von Drais) द्वारा आविष्कृत, पहली साइकिल एक लकड़ी के सांचे से बनी हुई थी, और सवार को आगे के पहिये को चलाने के लिए अपने पैरों से साइकिल को धक्का देना पड़ता था। हालांकि, 1860 के दशक में, पियरे मिचौक्स (Pierre Michaux) और पियरे लेलेमेंट (Pierre Lallement) ने मैकेनिकल क्रैंक ड्राइव (mechanical crank drive) और पैडल को एक बड़े फ्रंट व्हील (front wheel) में जोड़ा, जिसे वेलोसिपेड (velocipede) कहा जाने लगा। वेलोसिपेड आगे चलकर पेनी-फर्थिंग (penny-farthing) के रूप में विकसित हुआ, जिसे पहली मशीनरी, साइकिल के रूप में जाना जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में साइकिल के आगमन का श्रेय औपनिवेशिक काल को दिया जाता है। ब्रिटिश इस वाहन को देश में आराम से यात्रा करने के लिए और कुछ अपने एथलेटिक कौशल का प्रदर्शन करने के लिए लाए थे । जब यह शुरू में आया, तो यह अभिजात वर्ग और उच्च-मध्यम वर्ग का प्रतीक था, जिसमें ज्यादातर अंग्रेजी और पारसी समुदाय के लोग यात्रा करते थे। हालाँकि, जैसे-जैसे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई, वैसे-वैसे उत्पादन भी बढ़ता गया और जल्द ही, साइकिल ने कई घरों में अपनी जगह बना ली।
1890 के दशक के बाद से, यूरोपीय ईसाई मिशनरियों (European Christian missionaries), ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारियों और उनकी कुछ पत्नियों ने भारत में सबसे पहले साइकिल की सवारी करना शुरू किया था। प्रारंभ में मनोरंजन, संदेह और अविश्वास होने के साथ साइकिल को अंततः एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपकरण के रूप में देखा जाने लगा। हालाँकि, 20 वीं शताब्दी की शुरुआत तक, सिलाई मशीन और पश्चिमी आयात या पश्चिमी मूल के अन्य औद्योगिक उत्पादों के साथ, साइकिल को "रोज़ाना तकनीक" के रूप में माना जाने लगा। 1920 के दशक तक, कलकत्ता और बॉम्बे जैसे शहरों में युवाओं की एक बड़ी संख्या विशेष रूप से पारसी और उच्च-जाति के बंगालियों ने उत्साहपूर्वक न केवल एक खेल के रूप में, बल्कि परिवहन के एक साधन के रूप में भी साइकिल को अपनाया जिससे वे स्वतंत्र रूप से और आसानी से घूम सके। बहुत से लोग युद्ध क्षेत्र में परिवहन के साधन के रूप में साइकिल का चयन नहीं करेंगे, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, 60,000 से अधिक एयरबोर्न पैराट्रूपर साइकिलें (Airborne Paratrooper Bicycles) विशेष रूप से युद्ध के दौरान उपयोग करने के लिए बनाई गई थीं। बर्मिंघम स्मॉल आर्म्स (Birmingham Small Arms (BSA)) द्वारा निर्मित (आज का एक लोकप्रिय साइकिल ब्रांड) इन साइकिलों का ब्रिटिश और भारतीय पैराट्रूपर्स द्वारा बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता था। आयात प्रतिस्थापन और उच्च टैरिफ नीतियों के साथ, 1950 के दशक में जवाहरलाल नेहरू द्वारा संचालित योजना आयोग, उस समय प्रचारित किए जा रहे भारी उद्योगों के साथ-साथ औद्योगिक आत्मनिर्भरता के युग की शुरुआत करने के लिए साइकिल निर्माताओं की ओर देख रहा था। हिंद साइकिल ने इस "राष्ट्रवादी" आह्वान को आकर्षित किया और राज्य ने साइकिल उद्योग को अपनी सुरक्षा और सहायता जारी रखी। जल्द ही साइकिल कामकाजी वर्ग की गतिशीलता का प्रतीक बन गई। नगर निगमों द्वारा अपने पुरुष कर्मचारियों को साइकिल खरीदने या किराए पर लेने के लिए छोटे ऋण की सहायता भी की जाने लगी।
किंतु अब तक साइकिल का सामाजिक जीवन अत्यधिक लैंगिक बना रहा। युवा लड़कियों के साइकिल चलाने के खिलाफ पूर्वाग्रहों, जैसा कि 19 वीं शताब्दी के अंत में यूरोपीय (European) और अमेरिकी (American) समकक्षों के लिए था, ने साइकिल को भारतीय महिलाओं के चलाने पर प्रतिबंध लगा दिया। साइकिल के बारे में कई भ्रांतियां जैसे कि इससे महिलाओं को चोट लगने से लेकर सम्मान की धारणा का उल्लंघन करने और महिलाओं को स्वच्छंद बनाने तक, फैली हुई थीं । इसके अलावा, साइकिलों की अपेक्षाकृत उच्च लागत और उनके बोझिल डिजाइन ने भी महिलाओं और लड़कियों द्वारा उन्हें अपनाने में प्रमुख बाधाओं के रूप में कार्य किया। फिर भी, यह भारतीय महिलाओं को साइकिल के इतिहास से दूर नहीं रख सका। उदाहरण के लिए, पारसी पुरुषों की तरह, कई पारसी महिलाओं ने साइकिल चलाना शुरू किया, जिसमें प्रतिस्पर्धी स्तर भी शामिल है। बॉम्बे और पुणे जैसे शहरों ने इन परिवर्तनों को देखा और 1970 और 1980 के दशक में, अरेथना बहनों (Arethna sisters), जैस्मीन (Jasmin) और आर्मिन (Armin) जैसे राष्ट्रीय साइकिलिंग चैंपियनों ने देश में तूफान ला दिया। पुरुष इन साइकिलों का इस्तेमाल काम पर जाने के लिए करते थे । कुम्हारों, दूधियों, सब्जी बेचने वालों आदि जैसे लोगों के लिए अपने माल को ले जाने के लिए परिवहन को आसान बनाकर साइकिलों ने अधिक सामाजिक-आर्थिक अवसर पैदा किए । इस प्रकार साइकिल ने समग्र अर्थव्यवस्था में योगदान दिया। न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में यही स्थिति थी। साइकिल को न कि केवल परिवहन के एक साधन के रूप में बल्कि विश्वव्यापी विकास के एक उपकरण के रूप में मान्यता देते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 3 जून को 2018 में विश्व साइकिल दिवस के रूप में चिह्नित किया। परिवहन के अन्य सार्वजनिक साधनों के बढ़ने के साथ ही साइकिल सार्वजनिक दृश्य से गायब हो गई, लेकिन साइकिल अभी भी भारत का अभिन्न अंग है। आज हम विभिन्न विकल्पों जैसे कि ई-बाइक, माउंटेन बाइक, हाइब्रिड बाइक, गियर वाली साइकिल , और बहुत कुछ का उपयोग कर रहे हैं । जैसे-जैसे साइकिल मध्यम और निम्न वर्ग तक पहुँचती गई, वैसे-वैसे साइकिल के विभिन्न ब्रांड समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करने लगे । विक्रम पेंडसे साइकिल संग्रहालय (Vikram Pendse Cycles Museum) भारत में साइकिल और उनके इतिहास के बारे में जानकारी से भरा पड़ा है।
संग्रह की सबसे पुरानी साइकिल 1914 की गोल्डन सनबीम (golden sunbeam) है। यह 28 इंच का चक्र अभी भी कार्यात्मक है, इसका मूल रंग, डिकल्स (decals) और पुर्जे अभी भी बरकरार हैं। साइकिल को हैरिसन कार्टर (Harrison Carter) के 'लिटिल ऑयल-बाथ चेन केस' (little oil-bath chain case’) के एक संस्करण के साथ शामिल किया गया था। इसके माध्‍यम से साइकिल का चक्र स्‍वयं को ही तेल पहुंचा सकता है। ड्राइविंग गियर (driving gear) और बेयरिंग रन (bearing run) को तेल में डुबोया जाता है और डस्ट-प्रूफ केस (dust-proof case) के अंदर रखा जाता है। पेंडसे का दावा है कि यह साइकिल अपनी तरह की इकलौती साइकिल है जिसका मालिक इसे जीवनभर चला सकता था। आज, साइकिल के दो प्रमुख उपभोक्ता खंड हैं तथा प्रत्येक के उद्देश्य अलग हैं । कई क्षेत्रों में सुरक्षित और किफायती सार्वजनिक परिवहन की कमी है, सामान्य मजदूर, मुख्य रूप से पुरुष, अभी भी आने-जाने के लिए मजबूत, कम कीमत वाली साइकिल का उपयोग करते हैं। दूसरे क्षेत्र में, साइकिल ने मध्यम और उच्च वर्ग के लोगों की बढ़ती संख्या के बीच ध्यान आकर्षित किया है, जो इसे अवकाश, शारीरिक स्वास्थ्य और रोमांच के लिए उपयोग करते हैं।

संदर्भ:

https://bit.ly/3VknZcJ
https://bit.ly/3VhktzQ
https://bit.ly/3WeGHUJ

चित्र संदर्भ
1. बॉम्बे साइकिल क्लब को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. 1820 के आसपास से ड्रैसाइन, जिसे रनिंग मशीन के रूप में भी जाना जाता है। रनिंग मशीन का आविष्कार 1817 में मैनहेम में बाडेन के कार्ल फ्रीहरर वॉन ड्रैस द्वारा किया गया था। को संदर्भित करता चित्रण (wikimedia)
3. विशाल पहिये वाली साइकिल चलाती महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. साइकिल के विकास क्रम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. विक्रम पेंडसे साइकिल संग्रहालय में रखी गई साइकिल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id