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हम सबको लगता है कि मनुष्य का इस ब्रह्मांड में रहना एक नैसर्गिक बात है, अन्यथा यह कैसे संभव था ? हम यह भी विचार कर बैठते हैं कि अगर ब्रह्मांड में हम ही नहीं होते तो ब्रह्मांड का मतलब ही क्या होता ? वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवन अपरिहार्यता से बहुत दूर हैं एवं ब्रह्मांड में हमारी उपस्थिति शायद भाग्यशाली घटनाओं की एक श्रृंखला का परिणाम हो सकता है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात है कि हमने आज तक किसी भी एलियन (Alien) या परजीवन को न तो देखा है और न ही जाना है; जो हमारा पृथ्वी पर अस्तित्व और भी विशेष बनाता है।
आइए जानते हैं पृथ्वी पर हमारे अस्तित्व का समर्थन कैसे होता है। पृथ्वी पर जो जीवन है उसका अस्तित्व पांच मुख्य स्तंभों पर टिका है। पहला, पृथ्वी की सूर्य से दूरी, पृथ्वी सूर्य के न तो बहुत नजदीक है और न ही बहुत दुर, परंतु यह दूरी तरल जल के लिए उचित है। दूसरा, चुंबकीय मूल या अंतरभाग, जो वातावरण को, सौर हवा के खींचाव और ब्रह्मांडीय विकिरण से बचाए रखता है। तीसरा, वातावरण, जिसका ग्रीन हाउस(Greenhouse) प्रभाव पृथ्वी पर पानी को जमने नहीं देता। चौथा, पानी जो जीवन का सार्वभौमिक आधार है और पांचवा, ऑक्सीजन जो हमारे द्वारा सांस लेने का मूल है।
लगभग 4.56 अरब वर्षों पहले हमारी आकाशगंगा के एक कोने में गैस और धूल के एक बादल ने एक प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क (Protoplanetary disc) से घिरे हुए एक ऐसे तारे को जन्म दिया जिसका द्रव्यमान लगातार बढ़ने लगा । फिर कुछ दशलक्ष वर्षों में सौरमंडल आज जैसा दिखता है वैसा दिखने लगा। परंतु शुक्र और मंगल ग्रहों के बीच एक नहीं बल्कि 2 ग्रह थे। व्यापक रूप से स्वीकृत परिकल्पना के अनुसार ‘प्रोटोपृथ्वी ’(Proto-Earth) तथा थिया (Theia) जो मंगल ग्रह के आकार की एक अन्य वस्तु थी, के बीच टक्कर हुई और इस तरह लगभग 4.51 अरब वर्ष पहले हमारी पृथ्वी का निर्माण हुआ।
और उसी समय हमारा चंद्रमा भी अस्तित्व में आया। यह आंकड़े सीसा (Lead) जैसे तत्वों के आइसोटोप (Isotope) के अनुपातों का अध्ययन करके प्राप्त किए गए हैं, जो अरबो वर्षों में यूरेनियम (Uranium) के रेडियोएक्टिव क्षय द्वारा निर्मित हुए हैं। संयोगवश, यह ‘नया ग्रह’ जो कि तब बहुत गर्म था, सूर्य से उतनी ही उचित दूरी पर था कि ठंडा होने पर जम ना जाए और इस पर तरल पानी मौजूद रहे। इसके अतिरिक्त, यह ग्रह के द्रव्यमान पर भी निर्भर करता था। इसके वातावरण में ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करने के लिए वातावरण पर्याप्त घना था। इस वातावरण की दृढ़ता को एक डायनेमो(Dynamo) की तरह कार्यकरने वाले , ग्रह के मूल या अंतरभाग जो कि पिघले हुए धातुओं से बना था, ने एक चुंबकीय शक्ति द्वारा ग्रह से बांध के रखा।
सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तो जल ही निभाता है। यह माना जाता है कि जब पृथ्वी गर्म थी तब पूरी तरह से सूखी थी। जब उल्कापिंड और धूमकेतु पृथ्वी से टकराते थे तब उन पर पानी रह जाता था। हालांकि एक अध्ययन यह भी कहता है कि इन प्रभावों के बावजूद, पृथ्वी का अधिकांश पानी वास्तव में ग्रह के निर्माण वाले खंड अर्थात बिल्डिंग ब्लॉक्स में मौजूद हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से ही बना हो।
अतःलगभग 4.4 अरब वर्षों पहले हमारा ग्रह लगभग रहने योग्य तो था परंतु तब यह एक वैश्विक महासागर से ढका हुआ था। कुछ सबूत बताते हैं कि तब पृथ्वी तेजी से ठंडी होती गई और 3.4 अरब वर्षों पहले, पानी लगभग 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर आ गया। भूगर्भीय सबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि स्थलीय सूक्ष्मजीव लगभग 3.8 अरब वर्षों पहले ही मौजूद थे । सबसे पहले एककोशिकीय जीव मीथेन (methane) और अमोनिया (ammonia) जैसी गैसों से बने एक असहनीय वातावरण में रहते थे। फिर 2.4 अरब वर्षों पहले एक विशेष ऑक्सीडेशन (oxidation) की घटना हुई और तब वायुमंडल में सांस लेने योग्य आण्विक ऑक्सीजन भर गया। और इसी कारण प्रकाश संश्लेषक साइनोबैक्टीरिया (cynobacteria) का भी जन्म हुआ।
ऑक्सीजन जो वर्तमान जीवन का भी अविभाज्य घटक है; जिस ने आज जीवन को संभव बनाया हुआ है, वही ऑक्सीजन उस समय पहले स्थलीय जीवो के विलुप्त होने का कारण था। क्योंकि तब ऑक्सीजन अन्य प्रारंभिक जीवित चीजों के लिए एक जहर के रूप में था। बाद में मीथेन के साथ ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया हुई और इस प्रतिक्रिया में मीथेन का उपभोग हुआ और पानी और कार्बन डाइऑक्साइड( Carbon dioxide) का उत्पादन हुआ। इसका परिणाम यह रहा कि पृथ्वी अगले 300 दशलक्ष वर्षों तक बर्फ में ढंकी रही।
इस प्रकार ऑक्सीजन पृथ्वी पर जीवो के विलुप्त होने का पहला कारण था। लेकिन साथ ही यह आज के जीवन का इंजन भी है।यह जीवो के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है,जिसने बहुकोशिकीय प्राणियों को जन्म दिया और पृथ्वी पर जीवन का विस्फोट हुआ।
दूसरी बात, जिस के पीछे वैज्ञानिक कई वर्षों से अपना समय निवेश कर रहे हैं, वह यह है कि क्या ब्रह्मांड में मानव अकेले हैं? मानव की आज तक के तकनीकी तथा वैज्ञानिक कौशल के बावजूद भी हमें आज पृथ्वी के अलावा ब्रह्मांड में कहीं और जीवन मौजूद होने का सबूत नहीं मिल पाया है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने इसके बारे में कई तर्क भी दिए हैं -जैसे कि शायद एलियंस (Aliens) पहले मौजूद थे और अब वे जा चुके हैं या तो हम उन्हें देख नहीं पाते या फिर शायद वे भी यही चाहते हैं।
अगर हमें अन्य ग्रह से संबंधित जीवन पर विचार करना ही है तो इसके लिए ड्रेक समीकरण(Drake equation) एक प्रसिद्ध तर्क है।ड्रेक समीकरण एक संभावित तर्क है जिसका उपयोग आकाशगंगा (Milkyway), जिसका हम एक भाग है, में अन्य ग्रहों से संबंधित सक्रिय तथा संचारी जीवन की संख्या का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। समीकरण उन मुख्य अवधारणाओं को सारांशित करता है जिनको वैज्ञानिकों को अन्य जीवन के प्रश्न पर विचार करते समय ध्यान में रखना चाहिए। इसे एक सन्निकटन के रूप में सोचा जाता है ना की एक संख्या निर्धारित करने के लिए।
हम सच में भाग्यशाली है कि हमें इस पृथ्वी पर रहने का मौका मिल रहा है। यह ग्रह निसंदेह ही जीवन के लिए एक संपन्न तथा सबसे बढ़िया ग्रह है।हमने वे सारे कारक देखें जिनकी वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव है।वैज्ञानिक तो आज भी यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या ब्रह्मांड में हमारे ग्रह के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रह पर जीवन संभव है भी या नहीं ? वैसे तो इस बात की पुष्टि होने के लिए हमें कुछ समय और इंतजार करना पड़ेगा।
संदर्भ–
https://bit.ly/3VVN2Ue
https://bit.ly/3FtJVNX
https://bit.ly/3Pa0Yb4
चित्र संदर्भ
1. जब आकाशगंगाएं टकराती हैं, के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. सौर परिवार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ज्वालामुखियों और महाद्वीपों द्वारा चिह्नित बड़े पैमाने पर ठंडे ग्रहों की पपड़ी और पानी से भरपूर बंजर सतह के बाद के आर्कियन के दौरान पृथ्वी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मॉस की कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट को दर्शाता एक चित्रण (Store norske leksikon)
5. अंतरिक्ष यात्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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