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क्यों है संतृप्ति डाइविंग एक जोखिम भरा परन्तु अति आवश्यक पेशा?

मेरठ

 08-12-2022 11:29 AM
समुद्री संसाधन

हमारे लिए पैराशूट (Parachute) लगाकर सैकड़ों फीट की ऊंचाई से कूदना, जितना मुश्किल कार्य है, समुद्र के भीतर पानी के लाखों टन दबाव को सहकर, गोता लगाना भी उतना ही या उससे भी अधिक मुश्किल कार्य है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कई चुनौतियों और जोखिमों के बावजूद, संतृप्ति डाइविंग (Saturation Diving) को आज कई युवाओं ने आजीविका के रूप में अपना लिया है।
मानव इतिहास में, तेल और गैस उद्योग को ऐसे वाणिज्यिक गोताखोरों की आवश्यकता आन पड़ी, जो अपतटीय कुओं (Offshore Wells) तथा रिग्स (Rigs) का प्रबंधन करने, पाइपलाइनों को एक साथ बनाए रखने तथा नाजुक युद्धाभ्यास करने के लिए गहरे समुद्र के अंदर जा सकने में सक्षम हों। इसके समाधान के तौर पर 1930 के दशक में किए गए प्रयोगों से पता चला कि भारी दबाव में एक निश्चित समय के बाद, गोताखोरों के शरीर अक्रिय गैस (Inert Gas) से पूरी तरह से संतृप्त (Saturated) हो जाते हैं, जिसके बाद गोताखोर उस भारी दबाव में भी अनिश्चित काल तक रह सकते हैं, बशर्ते उन्हें अंत में एक लंबा अपघटन मिले। इसी प्रक्रिया को नाम दिया गया- “संतृप्ति डाइविंग” । संतृप्ति डाइविंग वाणिज्यिक डाइविंग के सबसे उन्नत रूपों में से एक है। संतृप्ति डाइविंग, पेशेवर गोताखोरों को एक ही समय में कई दिनों या हफ्तों के लिए 50-160 fsw से अधिक के जल दबाव में रहने और काम करने की अनुमति देती है। संतृप्ति गोताखोरी इस सिद्धांत पर आधारित है कि रक्त और ऊतकों में घुली हुई गैस का दबाव फेफड़ों में गैस के समान होता है। वास्तव में, एक गोताखोर समुद्र के अंदर 300 फीट तक की गहराई तक जाता है, और तब तक वहां रहता है जब तक कि ऊतकों में गैर-विषैले स्तर तक ऑक्सीजन को पतला करने के लिए श्वास मिश्रण में उपयोग की जाने वाली अक्रिय गैस घुल न जाए ।उनके ऊतक नाइट्रोजन से संतृप्त होते हैं। संतृप्ति डाइविंग गोताखोर सामान्य वायु दबाव में काम करने से पहले दिनों या हफ्तों के लिए एक ही दबाव में रहते हैं। इस समय सांस लेने वाली गैस की आपूर्ति सतह से एक नली के माध्यम से की जाती है।
गोताखोर अपने जागने के अधिकांश घंटे आमतौर पर समुद्र तल पर कई फीट पानी के नीचे ही बिताते हैं। एक संतृप्ति गोताखोर का कार्य तभी शुरू हो हो जाता है जब वह “समुद्र तट" (किसी भी ठोस जमीन) को छोड़ देता है, और एक गोता समर्थन पोत (Dive Support Vessel (DSV) के रूप में जाना जाने वाले जहाज पर कदम रखता है। गोताखोरों के काम और जीवन की रक्षा करने के लिए जहाज पर उपकरण और कई अन्य व्यक्ति भी उपस्थित होते हैं। 1960 के दशक से, संतृप्ति डाइविंग की खोज और अनुसंधान के बाद से और गैस मिश्रण में अनुसंधान के माध्यम से, इसी कार्य तकनीक को विकसित किया गया। 22 दिसंबर, 1938 को, ‘एडगर एंड’ और ‘मैक्सिमिलियन यूजीन नोहल’ (Edgar End and Maximilian Eugene Nohl) ने मिल्वौकी, विस्कॉन्सिन (Milwaukee, Wisconsin) में काउंटी आपातकालीन अस्पताल में, पुनर संपीड़न सुविधा में 27 घंटे के लिए 30.8 मीटर (101 फीट) के दबाव में सांस लेते हुए पहला नियोजित संतृप्ति गोता लगाया था। संतृप्ति गोताखोरी निश्चित रूप से अपतटीय गोताखोर कार्य विधियों में से एक है। हाल ही के वर्षों और दशकों में, इसमें कार्य पनडुब्बियों, रोबोट या ऑटोमेटन (Robot or Automaton (ROV) और बख़्तरबंद डाइविंग सूट का उपयोग भी जोड़ा गया है। इन सभी तरीकों को मिलाकर, गोताखोर के जोखिम, लागत तथा काम के दबाव को कम किया जा सकता है ।
हालांकि, ऐसे सभी प्रयासों के बावजूद, इस व्यवसाय में दुर्घटना दर उच्च है। कुछ लोग कठिनाई के कारण या लंबे सप्ताह घर से दूर रहने के कारण इस व्यवसाय को ही छोड़ देते हैं। साथ ही यह एक ऐसा काम भी है जिसमे जीवन का संकट है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन रिपोर्ट1998 (Centre for Disease Control and Prevention Report) का अनुमान है कि सभी व्यावसायिक गोताखोरों के लिए व्यावसायिक मृत्यु दर अन्य व्यवसायों की तुलना में राष्ट्रीय औसत का 40 गुना है। अपतटीय तेल और गैस उद्योगों के समर्थन में सैचुरेशन डाइविंग (Saturation Diving) का कार्य सामान्यतया अनुबंध आधारित होता है। भारत के तेल और गैस क्षेत्र के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक गोताखोरों की कमी भी है। वर्तमान में, देश में लगभग 1,500 वायु, मिश्रित गैस और संतृप्ति गोताखोर हैं जो ओएनसीजी (ONCG), केयर्न इंडिया (Cairn India), ऑयल इंडिया लिमिटेड (Oil India Limited) और एस्सार ऑयल (Essar Oil) जैसी प्रमुख कंपनियों में अपनी सेवा दे रहे हैं।
प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी और कम वेतन इस कमी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। इसीलिए कई भारतीय गोताखोर विदेशों में भी प्रवास कर रहे हैं। “पिछले कुछ वर्षों से, लगभग 30% भारतीय गोताखोर इंडोनेशिया, मलेशिया, खाड़ी(Gulf) और थाईलैंड में कार्य करने जा रहे हैं। भारत में, एक एयर डाइवर (Air Diver) (एक नवागत जो पानी के नीचे 50 मीटर तक गोता लगाता है) को एक दिन में लगभग 2,500 रुपये मिलते हैं। एयर गोताखोर को मिश्रित गैस गोताखोर बनने के लिए तब स्नातक की उपाधि लेनी होती है जब उन्हें 70 मीटर तक गोता लगाना होता है । इसके बाद अगले चरण में वे संतृप्त गोताखोर बन जाते हैं जहां उन्हें 70 मीटर की गहराई से से अधिक गोता लगाने की आवश्यकता होती है और इस पद पर वह एक दिन में 4,000-6,000 रुपये के बीच कमाते हैं। विदेशों में "संतृप्ति डाइविंग में वे एक दिन में लगभग $375 कमाते हैं।
लेकिन भारत में मिश्रित और संतृप्त प्रशिक्षण सुविधाएं नहीं होने के कारण, हवाई गोताखोरों को आगे के प्रशिक्षण के लिए विदेश जाना पड़ता है। कोच्चि में देश का एकमात्र प्रशिक्षण संस्थान ‘नौसेना प्रशिक्षण संस्थान’ में एक समय में चौदह प्रशिक्षुओं को लिया जाता है और प्रशिक्षण लगभग 10 सप्ताह तक चलता है। तेल कंपनियों को डाइविंग सेवाएं प्रदान करने वाली एकमात्र संस्था डॉल्फिन ऑफशोर (Dolphin Offshore) के संयुक्त प्रबंध निदेशक, सतपाल सिंह के अनुसार “भारत को ड्रिलिंग (Drilling), पाइपलाइन,प्लेटफॉर्म बिछाने, निरीक्षण , रखरखाव और जैकेट की स्थापना, जैसे कार्य करने के लिए लगभग 1,500-2,000 गोताखोरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए, डॉल्फिन तमिलनाडु में अनुसंधान और (संतृप्ति) डाइविंग संचालन के लिए एक संस्थान स्थापित करने के लिए केंद्र के साथ बातचीत कर रही है। डॉल्फिन को अंडरवाटर रिसर्च करने के लिए नॉर्वे सरकार से भी समर्थन मिला है।

संदर्भ
https://bit.ly/3B7FG86
https://bit.ly/3XSpilL
https://bit.ly/2rCGcHH

चित्र संदर्भ
1. संतृप्ति डाइविंग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. समुद्र के नीचे के केबल से समुद्री शैवाल जंग लगे जिंक एनोड को हटाते हुए गोताखोरों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. गहरे समुद्र में गोताखोर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. गोता समर्थन पोत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पानी के नीचे वेल्डिंग करते गोताखोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. गहरे समुद्र में नेवी के गोताखोर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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