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आपके लिए शायद यकीन करना मुश्किल होगा लेकिन भारत में एक ऐसा पक्षी भी पाया जाता है, जिसके घोसले की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग एक लाख रुपये है। और इसके घोंसले की खासियतआपको आश्चर्यचकितकर देंगी।
भारतीय स्विफ्टलेट या एयरोड्रामस यूनिकलर (Indian Swiftlet or Aerodramus Unicolor), सामान्यतया श्रीलंका और दक्षिण पश्चिम भारत की पहाड़ियों में पाया जाने वाला एक छोटा पक्षी होता है। यह पक्षी मुख्य रूप से अपने घोसलें के लिए बेहद प्रसिद्ध है। यह पक्षी अपने आधे कप के आकार के घोसलें को ज्यादातर, गुफाओं में, एक ऊर्ध्वाधर सतह पर बनाता है। नर स्विफ्टलेट सफेद, चमकदार घोंसला बनाने के लिए मोटी लार का उपयोग करता है, जिसमें दो अंडे रखे जा सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसके बेस्वाद घोंसलों को इंसानों द्वारा काटा जाता है, तथा चिकन, मसालों और अन्य स्वादों के साथ सूप (Soup) के रूप में मिलाया जाता है, जिसे एक कामोत्तेजक माना जाता है।
लगभग 12 सेंटीमीटर लंबाई वाली पक्षी की यह प्रजाति मुख्य रूप से गहरे भूरे रंग की होती है। इसके तिरछे पंख (Swept-Back Wings) होते हैं जो वर्धमान या बूमरैंग (Boomerang) के समान होते हैं। इसका शरीर पतला और पूंछ छोटी होती है। भारतीय स्विफ्टलेट के पैर बहुत छोटे होते हैं, जिसका उपयोग यह केवल ऊर्ध्वाधर सतहों पर चिपकने के लिए करती है। ये स्विफ्टलेट अपना अधिकांश जीवन हवा में बिताते हैं, और अपने बिलों में पकड़े गए कीड़ों पर जीवित रहते हैं।
कई स्विफ्टलेट प्रजातियाँ पूर्वी एशिया में सूप बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले खाद्य घोंसलों का उत्पादन करती हैं। इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन और हांगकांग में इस तरह के घोंसलों की भारी मांग है, जो लगभग 400 डॉलर प्रति किलो के हिसाब से बिकते हैं।
कई देशों में, इन पक्षियों को बड़े पैमाने पर पाला जाता हैं ,इनकी प्रजनन कॉलोनियों को संरक्षित किया जाता है और प्रजनन समाप्त होने के बाद घोंसलों को काट दिया जाता है। इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और हाल ही में कंबोडिया में भी कृत्रिम घोंसले की कॉलोनियों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष घरों का निर्माण और संशोधन किया गया है। जिसके अंतर्गत घरों में इन पक्षियों के घोंसलों की कॉलोनियां स्थापित की गई हैं, जहां ग्रामीण इन पक्षियों की रक्षा करते हैं। खाने वाले घोंसले वाली यह छोटी चिड़िया भोर में अपनी बसेरा गुफाओं से निकलती हैं और शाम को बसेरा करने के लिए लौट आती हैं। स्विफ्टलेट्स, दिन के समय चारे की खोज करते हैं और अन्य तेज-तर्रार पक्षियों की तरह हवाई कीड़ों को पकड़ते हैं । लेकिन बसेरा और प्रजनन के लिए गुफाओं में लौटने के लिए, वे अपनी प्रतिध्वनी निर्धारणक्षमताओं का उपयोग करते हैं। यह पक्षी मौसमकी शुरुआत में अपने घोंसले बनाते हैं, जिनमें वे अपने चूजों को पालते हैं। चूजों के उड़ने के बाद, उपयोग किए गए इन घोंसलों को भी काटा जाता है। कई औपनिवेशिक शिकारी पक्षियों की तरह, खाद्य-घोंसले वाले स्विफ्टलेट्स भी बार-बार एक ही क्षेत्र में आते हैं, लेकिन, प्रत्येक प्रजनन के मौसम में एक नया घोंसला बनाते हैं।
बाज़ार में इनके घोंसलों की मांग काफी अधिक है, इसलिए अवैध शिकार से इनकी सुरक्षा करना भी मुश्किल है। स्विफ्टलेट के घोंसलों का उपयोग बर्ड्स नेस्ट सूप (Bird's Nest Soup) बनाने के लिए किया जाता है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं।
इतनी अधिक मांग के कारण बचाव के पारंपरिक तरीके, इनके घोंसलों की गुफाओं को शिकारियों से नहीं बचा सकते। इसको देखते हुए स्विफ्टलेट्स को 2002 में भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची (Schedule of Indian wildlife Protection Act)
में भी लाया गया है। कई देशों ने खाद्य- घोंसलों का सतत उपयोग किया है और इसे कुटीर उद्योगों में बदल दिया है। हालांकि, भारत में यह बहस अभी भी जारी थी, कि इनके घोसलों की निरंतर कटाई की अनुमति दी जाए या नहीं। ग्रामीणों और स्थानीय लोगों ने गुफाओं/घोंसलों की रक्षा में रुचि खो दी थी क्योंकि उन्हें इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिख रहा था। अतः घोंसलों को शिकारियों से बचाने का सबसे अच्छा तरीका बिक्री का व्यावसायीकरण करना है, ताकि ग्रामीणों को आर्थिक लाभ हो और वे स्विफ्टलेट संरक्षण योजना का समर्थन करते रहें।
स्विफ्टलेट की लार से निर्मित घोंसलों की नियंत्रित बिक्री, केवल तभी संभव हो सकती थी जब वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) की अनुसूची एक के तहत उच्चतम सुरक्षा प्राप्त करने वाले पक्षी को अधिनियम से हटा दिया जाए। इस समस्या और संभावना को देखते हुए पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की अध्यक्षता में एनबीडब्ल्यूएल (NBWL) की स्थायी समिति की बैठक में, इस पक्षी को तीन साल के लिए इस सूची से हटा दिया गया । यह प्रस्ताव एनबीडब्ल्यूएल के पास तीन साल से लंबित था।विशेषज्ञों के अनुसार इसके घोंसले की व्यावसायिक कटाई की अनुमति देना, इस पक्षी की सुरक्षा का एक तरीका है। इसका अर्थ है कि पक्षियों के घोंसलों का अवैध शिकार, जो चूजों की मौत का कारण बनता है, बंद हो जाएगा। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का वन विभाग एडिबल नेस्ट स्विफ्टलेट (Edible Nest Swiftlet) के लिए कृत्रिम घोंसले के बाड़े बनाएगा। द्वीपों पर दो प्रमुख स्थलों पर घोंसलों की रखवाली के लिए स्थानीय समुदाय के सदस्यों शिकारियों की भर्ती की जा रही है। कड़ी निगरानी के बाद और चूजों के उड़ने के बाद ही घोंसलों को लेने की अनुमति दी जाएगी। पक्षी विज्ञानी और एनबीडब्ल्यूएल सदस्य असद रहमानी (Asad Rahmani) के अनुसार यह पक्षी की रक्षा करने की एक सही रणनीति है।
संदर्भ
https://bit.ly/3VbkLJj
https://bit.ly/3Uci49g
https://bit.ly/3OE42Mx
चित्र संदर्भ
1. इंडियन स्विफ्टलेट को घोसलों में दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. आसमान में उड़ते इंडियन स्विफ्टलेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कमरे के भीतर इंडियन स्विफ्टलेट के घोसलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इंडियन स्विफ्टलेट की उड़ान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. इंडियन स्विफ्टलेट के घोसलों के वाणिज्यिक उत्पादन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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