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मेरठ के हस्तिनापुर में सैफपुर पंज गुरुद्वारा, सिख समुदाय के सबसे पवित्र केंद्रों में से एक माना जाता है। माना जाता है की जब सिखों के दसवें गुरु, अपने पंज प्यारों को चुनने आए, तो सैफपुर करमचंद पुर के निवासी धर्म दास (उर्फ धर्म सिंह) भी निडरता से आगे आये थे। आज इस पवित्र धार्मिक स्थल में प्रवेश करते ही गुरुद्वारे में चल रहे गुरबानी के जाप आपको असीम आनंद से भर देंगे।
पंज प्यारे वे पाँच वीर और निर्भय व्यक्ति थे, जिनसे सिखों के अंतिम और दसवें गुरु, गुरुगोबिन्द सिंह ने बलिदान स्वरूप उनका शीश माँगा था। पंच प्यारों के चुनाव की कहानी बेहद प्रेरणादाई है। मान्यता है कि मुगल शासनकाल के दौरान बादशाह औरंगजेब का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। जिससे निपटने के लिए सिख धर्म के गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा बैसाखी पर्व पर आनंदपुर साहिब के विशाल मैदान में सिख समुदाय को आमंत्रित किया गया। इस स्थान पर गुरुजी के लिए एक तख्त बिछाया गया और तख्त के पीछे एक तम्बू लगाया गया। इस दौरान गुरु गोबिन्द सिंह जी के दायें हाथ में नंगी तलवार चमक रही थी। गोबिन्द सिंह नंगी तलवार लिए मंच पर पहुँचे और आह्वान किया की मुझे एक आदमी का सिर चाहिए, आप में से कौन अपना सिर दे सकता है?
इतना सुनते ही चारों ओर सन्नाटा छा गया। लेकिन इसके बावजूद लाहौर के निवासी दयासिंह (पूर्वनाम- दयाराम) नामक एक व्यक्ति अपना सर देने के लिए आगे आये। गुरुदेव उन्हें, पास ही बनाए गए तम्बू के भीतर ले गए। कुछ देर बाद तम्बू से खून की धारा निकलती दिखाई दी। तंबू से निकलते खून को देखकर पंडाल में सन्नाटा छा गया।
इसके बाद गुरु गोबिन्द सिंह तंबू से बाहर आए, अब उनकी नंगी तलवार से ताजा खून टपक रहा था। उन्होंने पुनः एक मस्तक की मांग की और कहा की मेरी तलवार अभी प्यासी है। इस बार हमारे मेरठ जिले के सैफपुर करमचंद पुर (हस्तिनापुर के पास) गाँव के निवासी धर्मदास (उर्फ़ धरम सिंह) आगे आये। गुरु साहिब उन्हें भी तम्बू में ले गए और पहले की भांति इस बार भी तंबू से खून की धारा बाहर निकलने लगी।
इसके बाद पुनः गुरु गोबिन्द सिंह ने अपनी तलवार की प्यास बुझाने के लिए एक और व्यक्ति के सिर की माँग की। इस बार जगन्नाथ पुरी के हिम्मत राय (उर्फ़ हिम्मत सिंह) सामने आए। गुरुजी उन्हें भी तम्बू में ले गए और वही दृश्य पुनः देखा गया, यानी फिर से तम्बू से खून की धारा बाहर आने लगी। गुरु साहिब द्वारा पुनः एक और सिर की माँग करने पर द्वारका के युवक मोहकम चन्द (उर्फ़ मोहकम सिंह) आगे आए। इसी तरह पाँचवी बार फिर गुरुसाहिब द्वारा सिर माँगने पर बीदर निवासी साहिब चन्द अपना सिर देने के लिए आगे आये। इस घटना को देख रहे सभी लोग सुन्न पड़ गए थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
अचानक तम्बू से गुरु गोबिन्द सिंह जी केसरिया बाना पहने पाँच सिख खालसा के साथ बाहर आए। पाँचों नौजवान वही थे जिनके सिर काटने के लिए गोबिन्द सिंह जी उन्हें तम्बू में ले गए थे। गुरु साहिब और पाँचों नौजवान मंच पर एक साथ आए, इसके बाद गुरुसाहिब तख्त पर बैठ गए। पाँचों नौजवानों ने कहा गुरु साहिब हमारे सिर काटने के लिए हमें तम्बू में नहीं ले गए थे बल्कि वह हमारी परीक्षा ले रहे थे। तब गुरु साहिब ने वहाँ उपस्थित सिक्खों से कहा आज से ये पाँचों मेरे पंज प्यारे हैं। इस तरह सिख धर्म को पंज प्यारे मिले, और तत्पश्च्यात, उनकी निष्ठा और समर्पण भाव से खालसा पंथ का जन्म हुआ।
गुरु गोबिन्द सिंह के पंज प्यारों में से एक भाई धरम सिंह का गुरुद्वारा सैफपुर करमचंद पुर, हस्तिनापुर, मेरठ में स्थित है, जिसे सिख समुदाय में सबसे पवित्र केंद्रों में से एक माना जाता है। भाई संतराम और माई साभो के वीर पुत्र "भाई धरम सिंह" का जन्म 1666 में हुआ था। इनका वास्तविक नाम धर्म दास था। 1698 में गुरु गोबिन्द सिंह की शरण में जाने के कुछ महीने बाद वो ऐतिहासिक बैसाखी मण्डली में पहुचे जहां वे गुरु गोबिन्द सिंह के लिये शहीद होने के लिये भी तैयार हो गये थे। इस प्रकार वह भरी सभा में त्याग और बलिदान का उदाहरण बनकर गुरु जी के प्यारे बन गए।
इस तरह मेरठ की धरती का एक लाल, सिखों के खालसा पंथ की स्थापना का न सिर्फ गवाह बना बल्कि इसे आगे बढ़ाने का काम किया। हस्तिनापुर से लगभग 2.5 किमी. की दूरी पर यह गुरुद्वारा आज सिख धर्म के अनुयायियों के लिए धार्मिक स्थल से कम नहीं। यह गुरुद्वारा कभी भाई धरम सिंह का पुश्तैनी घर हुआ करता था। भाई धरम सिंह मूलत: जाट समुदाय के थे। उन्होंने सिख धर्म को उस समय से जाना जब वह मात्र 13 वर्ष के थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय ज्ञान प्राप्त करने की खोज में लगा दिया। उनका देहावसान 42 साल की उम्र में 1708 में गुरुद्वारा नानदेव साहिब में हो गया था। उनके देहावसान के बाद ही उनके आवास के स्थान पर गुरुद्वारा स्थापित किया गया।
गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को लाहौर के पास राय भोई की तलवंडी में हुआ था। गुरु नानक जयंती को गुरु नानक देव जी के प्रकाश उत्सव और गुरु नानक देव जी जयंती के रूप में भी जाना जाता है। उनके जन्मस्थान पर एक गुरुद्वारा बनाया गया था और शहर को ननकाना साहिब के नाम से भी जाना जाता है और आज यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है।
आमतौर पर सिखों द्वारा सिख गुरुओं और गुरु ग्रंथ साहिब के अन्य लेखकों द्वारा विभिन्न रचनाओं को संदर्भित करने के लिए एक सिख शब्द "गुरबानी" का उपयोग किया जाता है। सिखों के केंद्रीय पाठ, गुरु ग्रंथ साहिब में भजन, गुरबानी कहलाते हैं। अमृतधारी सिखों में, दशम ग्रंथ के कुछ ग्रंथों जैसे तव-प्रसाद सवाई और चौपाई को भी गुरबानी माना जाता है। आदि ग्रंथ में, गुरबानी एक ऐसी ध्वनि है जो सीधे सर्वोच्च से आती है और पाठ सांसारिक भाषा और लिपियों में उसी का एक लिखित रूप है। इसे गुरु की बानी भी कहा जाता है। एक तरह से गुरबानी आदिम भगवान और आत्मा के गुणों की व्याख्या है जिसे एक सिख को जरूर समझना चाहिए, जिसके साथ वे सर्वोच्च स्थिति प्राप्त कर सकते हैं।
गुरबानी दो शब्दों से मिलकर बना है: 'गुर' और 'बानी'। संदर्भ के आधार पर गुरु के कई अर्थ होते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में, भजन के संदर्भ के अनुसार, गुरु का प्रयोग कई अर्थों के लिए किया जाता है। गुरु का सामान्य उपयोग या तो ज्ञान और आंतरिक चेतन मन के लिए होता है (जिन्हें चित्त या अंतर आत्मा कहा जाता है)। इस प्रकार गुरबानी का अर्थ या तो ज्ञान की वाणी है या चेतन मन की वाणी। आदि ग्रंथ में इसे आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत माना गया है। मान्यता यह भी है की जो व्यक्ति गुरबानी को समझता है उसकी आंतरिक गंदगी और पापों का संपूर्ण नाश हो जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3sYcSut
https://bit.ly/3FH8U0L
https://bit.ly/3zLyiid
https://bit.ly/3U5N8Z7
चित्र संदर्भ
1. पंच प्यारों और गुरु गोबिन्द सिंह जी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. गुरु गोबिन्द सिंह जी के आह्वान को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. पांच प्यारों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. गुरु गोबिन्द सिंह के पंज प्यारों में से एक भाई धरम सिंह का गुरुद्वारा सैफपुर करमचंद पुर, हस्तिनापुर, मेरठ में स्थित है, को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. भाई धरम सिंह के गुरूद्वारे की स्मारक पट्टिका को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. गुरबानी के पाठ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)