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भारतीय महिला धावक हिमा दास, आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी। उनके द्वारा रचे इस कीर्तिमान के बाद प्रत्येक भारतीय का सिर गर्व से ऊँचा हो गया। उन पर गर्व करने वाले लोगों में महिलाएं और पुरुष समान रूप से शामिल थे। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में खेलों में महिला एवं पुरुष प्रतिभागियों के बीच वेतन में समानता नदारद नज़र आती है।
खेलकूद की बात करें तो दर्शकों की संख्या और लोकप्रियता के मामले में भी महिला वर्ग को पुरुषों के क्षेत्र की तुलना में कम महत्व दिया जाता। यह खेल संप्रदायों के बीच एक स्वीकृति की तरह दिखता है कि महिलाओं की श्रेणी पुरुषों की तुलना में निम्न स्तर की है। उदाहरण के तौर पर इंग्लैंड के पास दुनिया की सबसे बड़ी फुटबॉल लीग, प्रीमियर लीग में से एक है। वहां पर पुरुष वर्ग का औसत वेतन प्रति सप्ताह 44000 पाउंड है, जबकि महिला वर्ग के शीर्ष खिलाड़ी भी प्रति वर्ष लगभग 200,000 पाउंड ही कमाते हैं। इन सबके अलावा बड़ी समस्या तब होती है जब एक राष्ट्र एक ही खेल में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले और खेलने वाले पुरुषों तथा महिलाओं को दो अलग-अलग वेतन देता है। अभी भी ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक राष्ट्रीय टीम के पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक भुगतान किया जाता है।
भारत में दुनिया की सबसे लोकप्रिय क्रिकेट लीग, इंडियन प्रीमियर लीग (Indian Premier League (IPL) के लिए पुरुषों को दी जाने वाली धन की राशि बहुत अधिक है। इसी प्रकार महिलाओं के लिए भी एक लीग है, लेकिन इसमें केवल तीन टीमें हैं किन्तु उन्हें भी पुरुषों की तुलना में मुश्किल से बहुत कम भुगतान मिलता है। भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के कप्तान, विराट कोहली को बोर्ड, बीसीसीआई (BCCI) से राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए 7 करोड़ का वार्षिक वेतन मिलता है, जबकि महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के कप्तान और ए ग्रेड खिलाड़ी यहां केवल 50 लाख प्रति वर्ष कमाते हैं, इन्हें भी बीसीसीआई (BCCI) ही वेतन देता है।
एक और मजेदार तथ्य यह है कि भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम में सबसे कम ग्रेड वाला खिलाड़ी सालाना 1 करोड़ कमाता है, किन्तु फिर भी वह महिला टीम के ए ग्रेड (A Grade) खिलाड़ियों से अधिक कमाता है।
20वीं सदी एक ऐसा समय है जब दुनिया भर में लाखों लड़कियों ने अपनी राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व किया है। जैसे मैरी कॉम (मुक्केबाजी), साइना नेहवाल और पी.वी सिंधु (बैडमिंटन), दुती चंद (एथलेटिक्स), दीपा करमाकर ( जिम्नास्टिक), दीपिका कुमारी (तीरंदाजी), पीटी उषा (एथलेटिक्स), मिताली राज (क्रिकेट), दीपिका पल्लीकल (स्क्वैश) आदि ने देश का नाम पूरे विश्व में उजागर किया है।
भारत ने भले ही शुरुआत से ही समान अधिकार देकर अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन "खेल में समान वेतन" के मामले में यह बुरी तरह विफल रहा है, जो उचित औचित्य के बिना खिलाड़ियों को मानसिक रूप से कमजोर बना देता है।
भारत में लिंग वेतन अंतर हावी है। यहां पर बुनियादी ढांचे के एक हिस्से के रूप में "समानता" होने के बावजूद, महिला एथलीटों को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में काफी कम भुगतान किया जाता है।
भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है जो हर पहलू को शामिल करना सुनिश्चित करता है। लेकिन जब खेल की बात आती है तो यह भी व्यर्थ साबित हो जाता है। वेतन अंतर संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 39 (ए) का उल्लंघन करता है। लेकिन खेल के संदर्भ यह पता नहीं क्यों लागू नहीं हो पा रहा रहा है।
हालांकि, भारत ने क्षेत्रीय कानूनों के माध्यम से "समान काम के लिए समान वेतन" की अवधारणा को सुरक्षित रखने का भी प्रयास किया है और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ता होने के कारण इसे मजबूत भी बनाया है, जिसे आम तौर पर CEDAW सम्मेलन के रूप में संदर्भित किया जाता है। जब खेल की बात आती है तो CEDAW विशेष रूप से प्रावधान करता है की, राज्य की पार्टियां, महिलाओं और पुरुषों की समानता के आधार पर समान अधिकार सुनिश्चित करेंगी तथा आर्थिक और सामाजिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने के लिए सभी उचित उपाय करेंगी।
उपरोक्त प्रावधानों से यह तथ्य बहुत स्पष्ट है कि भारतीय संविधान अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के समानांतर चलता है, और महिलाओं को भी खेल उद्योग में पुरुषों की तुलना में समान आर्थिक अधिकार हैं। हालांकि इन अधिकारों को संवैधानिक अधिकार माना जाता है और जब खेल के अलावा अन्य पहलुओं की बात आती है तो इनका कार्यान्वयन होता है, फिर भी वेतन में असमानता बनी हुई है।
चूंकि हमारा समाज पुरुष प्रधान रहा है, इसलिए पुरुषों को खेल के क्षेत्र में अपने कौशल को सुधारने की अनुमति थी, वहीँ महिलाओं को अक्सर ऐसा करने से प्रतिबंधित किया जाता था। लेकिन, इन सभी कारकों का यह मतलब नहीं है कि महिलाएं कड़ी मेहनत नहीं करती हैं। महिलाओं ने आज तक खेल जगत में कई चमत्कार किये है और अपने पुरुष समकक्षों के समान ही योगदान दिया है। वर्तमान स्थिति में, भारत में खेलों के लिए प्रभावी और सुसंगत कानून की आवश्यकता है जिसके तहत महिलाओं को समान रूप से भुगतान करना चाहिए, चाहे वह कोई भी खेल खेलती हो।
हाल ही में भारत में भी महिलाओं को समान वेतन प्रदान करने के संदर्भ में एक बेहद सकारात्मक कदम उठाया गया है, जिसके तहत भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा भारत की महिला क्रिकेटरों को भी उनके पुरुष समकक्षों के समान अंतरराष्ट्रीय मैच शुल्क का भुगतान किया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है की, दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट संस्था आखिरकार वेतन समानता पर बात करेगी, इसलिए यह कदम बेहद महत्वपूर्ण है। साथ ही, बीसीसीआई न्यूजीलैंड क्रिकेट के बाद दूसरा क्रिकेट निकाय बन जाएगा, जिसने जुलाई में घोषणा की थी कि वह अपने पुरुष और महिला दोनों खिलाड़ियों को समान मैच वेतन देगा। बीसीसीआई के सचिव जय शाह द्वारा ट्विटर पर घोषणा की गई की महिला क्रिकेटरों को, अपने पुरुष समकक्षों की तरह एक टेस्ट मैच के लिए 15 लाख रुपये, एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच के लिए 6 लाख रुपये और टी-20 के लिए 3 लाख रुपये मिलेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि बीसीसीआई ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह निश्चित रूप से राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं का मनोबल बढ़ाएगा। खेल विशेषज्ञ अयाज मेमन के अनुसार “बीसीसीआई ने वेतन समानता को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, लेकिन अधिक महिला क्रिकेट मैचों के आयोजन का बड़ा मुद्दा अभी भी बना हुआ है।महिला क्रिकेटर अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में कम मैच खेलती हैं। इसलिए, परिणामस्वरूप उनकी कमाई भी कम है। हालांकि अच्छी बात यह है कि देश में महिला क्रिकेट के लिए स्वीकार्यता बढ़ रही है।“
संदर्भ
https://bit.ly/3DU3j5X
https://bit.ly/3WqzktS
https://bit.ly/3T0Oz9E
चित्र संदर्भ
1. भारत पाकिस्तान के मैच को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारतीय महिला धावक हिमा दास,को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. आईपीएल टीम को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. मिताली राज (क्रिकेट), को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. वर्ल्ड कप के दौरान महिला क्रिकेट टीम को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. भारतीय महिला गेंदबाज़ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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