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ईसाई और सनातन धर्म में एक बड़ी समानता यह रही है की, दोनों धर्मों के धार्मिक ग्रंथों में यह वर्णन मिलता है की, हमारी पृथ्वी पर जीवन का सफाया विशालकाय समुद्री या सुनामी की लहरों (ब्रह्मांडीय जलप्रलय) से हुआ है। साथ ही बाढ़ या प्रलय से जुड़े दुनिया के कई प्राचीन मिथक सभी धर्मों में देखने को मिलते हैं।
समय के साथ विकसित हुए भूकंपों से प्रभावित क्षेत्रों में, प्रशांत महासागर के पास रहने वाली संस्कृतियों ने सुनामी की प्रारंभिक चेतावनी प्रणालीयां विकसित की हैं। इन्ही प्रणालियों में से एक, कहानियों और किंवदंतियों का उपयोग भावी पीढ़ियों को संभावित जोखिम से आगाह करने के लिए किया गया है और साथ ही यह सलाह भी दी गई है, कि ऐसी आपदा से कैसे बचा जाए।
1500 की दिनांकित और कोडिएक (Kodiak) मूल के अलुतिक लोगों (Native Alutic People) द्वारा अलास्का द्वीप के कार्लुक पुरातात्विक स्थल (Karluk Archaeological Site) पर प्राप्त, लकड़ी के बक्से पर एक कलाकृति, “उफनते समुद्र की ऊपरी लहरों की एक श्रृंखला दिखाती प्रतीत होती है। अलुतिक संस्कृति में, इस तरह के चित्रों और संबंधित कहानियों का उपयोग पिछली घटनाओं से प्राप्त ज्ञान को संरक्षित करने के लिए किया जाता था, जो उनके बाद के समुदाय के लिए एक चेतावनी का काम करते थे। साथ ही यह संभावना भी है कि, लहर-पैटर्न भविष्य की पीढ़ियों के लिए अनुस्मारक के रूप में ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न सुनामी की एक श्रृंखला प्रदर्शित करता है।
पैसिफिक नॉर्थ वेस्ट के कैस्केड रेंज (Cascade Range of the Pacific Northwest) के डुवा मिश लोगों के मिथकों के अनुसार, पुगेट साउंड, स्ट्रेट ऑफ जुआन डे फूका (Puget Sound, Strait of Juan de Fuca) और सिएटल (Seattle) शहर के आसपास के क्षेत्र में पाए जाने वाले कुछ बड़े बोल्डर भयानक अयाहोस (A’yahos) द्वारा प्रेतवाधित (Haunted) हैं। दरसल अयाहो आकार बदलने वाली आत्माएं थीं, जिन्हें अक्सर एक सांप के शरीर, हिरण के सिर और अग्रभाग के साथ एक खतरनाक शक्ति के रूप में वर्णित किया जाता है। माना जाता है की उस दौरान, युवा शिकारियों को अनुभवी लोगों द्वारा चेतावनी दी गई थी कि वे तट के पास अयाहोस के निवास स्थान के पास न जाएं, क्योंकि वहां आत्माएं पहले पृथ्वी को हिलाती हैं और फिर घुसपैठिए को मारने के लिए बड़ी लहरें (शायद सुनामी) भेजती हैं।
थाईलैंड में स्वदेशी मोकेन (Moken) लोग "ला बून (Laboon)" से संबंधित एक कहानी बताते हैं, जो एक राक्षसी लहर थी, जिसे क्रोधित पूर्वजों द्वारा सभी जीवित चीजों को खा जाने के लिए भेजा जाता है। साथ ही इसमें यह भी सलाह दी गई है की, "जब समुद्र गायब हो जाता है (समुद्र का पानी पीछे हटने लगता है।), तो पीछे मुड़कर न देखें, और जितनी जल्दी हो सके, उंची पहाड़ी तक दौड़ें"। जो वास्तव में सुनामी आने के ही संकेत होते हैं।
न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया (New South Wales, Australia) में खोजी गई, लगभग 1500 के आसपास की अशांत तलछटी परतें, कहानी की उत्पत्ति के समय के आसपास प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ी सुनामी की घटना का समर्थन करती प्रतीत होती हैं। ऑस्ट्रेलिया में, सुनामी ने स्थानीय कहानियों में भी निशान छोड़े। पाकांतजी (Paakantyi) जनजाति आकाश के पृथ्वी की ओर गिरने की कहानी सुनाती है, जिससे प्रचंड बाढ़ आती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में, तैत्तिरीय आरण्यक और शतपथ ब्राह्मण जैसे प्राचीन ग्रंथों में वर्णन किया गया है कि, कैसे दिव्य सूअर इमुशा ने पृथ्वी को समुद्र से उठाकर विशाल कछुए अकुपार की पीठ पर रख दिया। सदियों से, सनातन धर्म में समुद्र को वरुण देव के रूप में सम्मानित किया है, जो एक डॉल्फिन (Dolphin) जैसे जलीय जानवर (मकर) की सवारी करते और सांप के फंदे को धारण किये हुए दर्शाए जाते हैं। मकर जीवन और उर्वरता के प्रतीक है और उनका फंदा मृत्यु तथा विनाश का प्रतीक है जो दर्शाता है की जो समुद्र देता है, वह लेता भी है। वैदिक काल में, वरुण नैतिक व्यवस्था के रक्षक माने जाते थे। वह अपनी हज़ार आँखों से हर पक्षी की उड़ान को देख सकते थे और जानते थे कि सभी मनुष्यों के बीच क्या होता है।
उत्तर-वैदिक काल में वह उदार देवता, वर्षा और नदियों के स्रोत माने जाते थे, जो मनुष्य को पानी, नमक, मछली, मोती और नारियल जैसी अपनी संपत्ति को स्वतंत्र रूप से काटने और प्रयोग करने की अनुमति देते थे लेकिन बदले में कुछ भी नहीं मांगते थे। हालांकि वरुण अपने ग्रीक समकक्ष पोसीडॉन (Poseidon) की तरह शालीन और मांग करने वाले नहीं है, जिन्होंने उचित सम्मान नहीं मिलने पर ओडीसियस (Odysseus) को 10 वर्षों तक तूफानों के बीच भटकने के लिए छोड़ दिया। हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित है की, वरुण देव पृथ्वी पर जीवन के उदासीन पर्यवेक्षक है, जो लगातार अपने खजाने को दे ही रहे है। लेकिन जब वह लेते हैं तो ज्वार के चक्र का पालन करते हुए, प्रलय के समय तक समुद्र की लहरें उठती हैं और सभी को जलमग्न कर देती हैं। उनकी प्रलय में कुछ भी नहीं बचता है, यहां तक की श्री कृष्ण की द्वारका भी नहीं बच पाई।
बहता पानी परिवर्तन का एक शक्तिशाली प्रतीक है। बाइबल (The Bible) हमें बताती है कि एक बार परमेश्वर (Jesus) ने मानव जाति की दुष्टता से परेशान होकर इसे नष्ट करने का संकल्प ले लिया था। इसके बाद परमेश्वर ने नूह (Noah) से एक जहाज बनाने को कहा। नूह ने वैसा ही किया, और अपने परिवार और सब प्रकार के पशुओं के जोड़े के साथ जहाज पर सवार हो गया। जिसके बाद परमेश्वर ने पूरी धरती को ही जलमग्न कर दिया।
संदर्भ
https://bit.ly/3sO1D7T
https://bit.ly/3U4OV0g
https://bit.ly/3gQHqLL
चित्र संदर्भ
1. श्रीमद्भागवतम के 9वें अध्याय में वर्णन किया गया है कि, ऋषि मार्कंडेय ने भगवान कृष्ण को विशाल समुद्र में बरगद के पत्ते पर तैरते हुए देखा। को दर्शाता एक चित्रण (Quora)
2. सुनामी के बाद के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
3. भयानक अयाहोस को दर्शाता एक चित्रण (twitter)
4. सुनामी की दैत्याकार लहर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. पृथ्वी को बचाते वारह अवतार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. वरुण देव और मकर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. नोहा की नाव के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
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