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कई लोगों के लिए “नानखताई” की केवल सुगंध ही उनके बचपन की सुनहरी यादों को ताज़ा कर देती है। खासतौर पर मेरठवासियों पर तो यह बात विशेष तौर पर लागू होती है, क्यों की हमारे मेरठ शहर को अपनी लज़ीज नानखताई के लिए दूर-दूर तक जाना जाता है। हालांकि नानखताई देश या विश्व में सबसे लोकप्रिय व्यंजनों में से एक है, किंतु फिर भी यह एकमात्र बिस्कुट नहीं है, जिसने भारत में अपार लोकप्रियता हासिल की। बल्कि भारत में तो बिस्कुट (Biscuits) का एक समृद्ध इतिहास रहा है।
शुरुआती खाद्य पदार्थ जिन्हें हम “बिस्कुट” कह सकते हैं, वह नवपाषाण युग में पत्थरों पर पकाए गए थे। हालांकि, पके हुए अनाज के ये पुरातात्विक अवशेष पूरी तरह केक, या समतल, कुरकुरे बिस्कुट की तरह नहीं थे। बिस्किट शब्द फ्रांसीसी (बिस-क्यूई) से अंग्रेजी में आता है, जिसका लैटिन मूल पैनिस बिस्कुट (Panisse Biscuit), दो बार पकी हुई रोटी को संदर्भित करता है।
रोमनों के पास बिस्कुट का जो रूप था, उसे अब हम रस्क (Rusk) के नाम से जानते हैं। यह अनिवार्य रूप से रोटी ही थी, जिसे कुरकुरा बनाने के लिए दो बार बेक (Bake) किया गया था। जिस कारण यह आम रोटी से अधिक समय तक टिकता था, और यात्रियों तथा सैनिकों के राशन में उपयोगी खाद्य था।
14वीं शताब्दी तक, बिस्किट या बिस्कुट शब्द अंग्रेजी में आमतौर पर दिखाई देने लगा था, साथ ही इसकी परिभाषा भी व्यापक होती जा रही थी। दो बार पके हुए स्वादिष्ट नमकीन तथा मीठे, दोनों बिस्कुट लोकप्रिय थे। वेफर्स (Wafers) सबसे लंबे समय तक चलने वाले मध्ययुगीन बिस्कुटों में से एक थे, जिन्हें आग पर पकाया और ढाला या रोल किया जा सकता था। उन्हें अक्सर भोजन के अंत में, एक पाचक के रूप में खाया जाता था।
कठोर बिस्कुट भी समय के साथ नरम हो जाते हैं। इस समस्या को हल करने के लिए, शुरुआती बेकर्स (Bakers, बिस्कुट निर्माताओं) ने कठोर बिस्कुट बनाने का भरपूर प्रयास किया। क्योंकि यह बहुत ठोस और सूखे होते हैं और यदि इन्हें ठीक से संग्रहीत तथा परिवहन किया जाता है, तो इन्हें कई वर्षों तक खराब हुए बिना रखा जा सकता है। लंबी यात्राओं में इन्हें अक्सर चाय, कॉफी, या किसी भी अन्य तरल में डुबोकर खाया जा सकता था। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की शुरुआत होने तक बिस्कुट रॉयल नेवी नाविकों (Royal Navy Sailor) के आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने रहे।
आधुनिक बिस्किट का सबसे पुराना जीवित उदाहरण 1784 का मिलता है, जिसे एक जहाज का बिस्किट कहा जाता है। वे अपनी लंबी अवधि तक टिकने के गुणों के लिए प्रसिद्ध थे, और इतने अविनाशी थे कि कुछ नाविकों ने उन्हें पोस्टकार्ड (Postcard) के रूप में भी इस्तेमाल किया था।
17वीं सदी में बिस्कुट बदलने लगे। उस समय से पहले चीनी बहुत महंगी होती थी, इसलिए इन्हें केवल अमीरों द्वारा ही खाया जाता था, और निकट पूर्व (Middle East) से आयात किया जाता था। किंतु ब्रिटेन में, चीनी की कीमत गिरने से चीनी का उपयोग करने वाले सभी खाद्य पदार्थ सस्ते और अधिक सुलभ हो गए, जिनमें बिस्कुट भी शामिल थे।
अतः समय के साथ बिस्कुट के प्रकार भी बढ़ते गए, जिस कारण लोगों ने अलग-अलग मौकों पर उनका सेवन करना शुरू कर दिया। बिस्किट को कभी विशेष रूप से पाचन में सहायता के लिए औषधीय लाभ भी माना जाता था। इसलिए, जीविका और बीमारी से बचाव दोनों के लिए, बिस्किट का दैनिक सेवन लाभदायक माना जाता था।
18वीं शताब्दी तक बिस्कुट मुख्य रूप से मिठाई के रूप में ही खाए जाते थे। लेकिन जैसे-जैसे ब्रिटिश सामाजिक परिदृश्य में चाय की जड़ें बढ़ती गईं, वैसे-वैसे बिस्कुट भी समाज का एक अभिन्न अंग बन गए। जिसे अंततः दोपहर की चाय के समय खाने जाने लगा । 19वीं सदी तक बिस्कुट हर जगह छा गए थे। क्यों की उन्हें घर पर बनाने में आसानी होती थी, और वह हर अवसर के लिए उपलब्ध व उपयोगी होते थे। इस दौर के शुरुआती बिस्कुट सख्त, सूखे और बिना मिठास के होते थे। वे अक्सर सामूहिक बेकर्स ओवन (Bakers Oven) में पकाए जाते थे, इसलिए वे गरीबों के लिए जीविका का एक सस्ता रूप बन गए थे।
ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति ने विभिन्न उद्योगों में व्यवसायों के गठन की शुरुआत की, और 1850 तक मैकैविटी, कैर, हंटले और पामर्स और क्रॉफर्ड (Mcvities, Carr, Huntley & Palmers & Crawford) जैसी ब्रिटिश बिस्किट फर्मों की स्थापना की गई। औद्योगिक क्रांति और इसके द्वारा बनाए गए उपभोक्ताओं की बदौलत चॉकलेट और बिस्कुट जनता के लिए आम उत्पाद बन गए। 19वीं शताब्दी के मध्य तक, मीठे बिस्कुट एक किफायती भोग थे और व्यवसाय काफी फलफूल रहा था। ब्रिटिश बिस्कुट कंपनियां नए उत्पादों और आकर्षक पैकेजिंग के साथ बाजार पर हावी होने की होड़ में थीं। हंटले एंड पामर्स (Huntley & Palmers) द्वारा 1831 में आविष्कार किए गए सजावटी बिस्किट टिन (Biscuit Tin) ने दुनिया भर में ब्रिटिश बिस्कुटों का निर्यात किया।
भारत में बिस्कुट की कहानी मुगलों और फारसियों के आगमन से जुड़ी है। बिस्कुट के लिए भारतीयों का प्रेम सर्वज्ञ है। चाहे वह पंजाब में बनी घी से लदी आटा कुकीज हो, मुंबई में बिकने वाली खारी या फिर मेरठ की कुरकुरी नानखटाई, हर शहर का अपना पसंदीदा बिस्किट होता है।
भारत में कोयले से चलने वाले ओवन में पके हुए हस्तनिर्मित बिस्कुट की परंपरा सदियों पुरानी है। लेकिन यहां पर कारखाने में निर्मित बिस्कुट की अवधारणा बिल्कुल नई है। यह एक सदी पहले ब्रिटानिया और पारले (Britannia and Parle) जैसी कंपनियों के साथ शुरू हुई थी।
भारत में आधुनिक बिस्किट का पहला प्रमाण 16वीं शताब्दी में मुगलों के आगमन के साथ मिलता है। कहा जाता है कि भारत में खारी, परतदार बिस्किट, जिसे फैन बिस्कुट भी कहा जाता है, मक्खन से प्यार करने वाले फारसी-ईरानी लोगों के साथ आया था। स्वादिष्ट नानखताई का आगमन डचों (Dutch) के जहाजों के साथ हुआ था। संपन्न बिस्किट संस्कृति को मुंबई और गुजरात में लाने के संदर्भ में पारसियों को भारतीय बिस्कुट का संरक्षक माना जा सकता है। पारसी ही सुरती बतासा को मुंबई लेकर आए और मुसलमान नानखताई को सिंध, पंजाब तथा दिल्ली ले गए।
हालांकि भारतीय बिस्कुट की कहानी ब्रिटिश योगदान के उल्लेख के बिना अधूरी मानी जाती है। वे अपने साथ अपने पसंदीदा बिस्कुट लाए और उन्होंने भारतीयों को इन्हे बेक करना भी सिखाया। “ओवन”, (Oven) जो उससे पहले तक अनसुना नाम था, अब आम हो गया। चूंकि व्यंजनों में अक्सर अंडे का इस्तेमाल किया जाता था, इसलिए बेकर अनिवार्य रूप से मुस्लिम या पारसी लोग ही होते थे। जहां उत्तर भारत ने अपना बिस्कुट घी से बनाया, तो वहीँ दक्षिणी राज्यों में, बिस्कुट को अंडे, नारियल और काजू के साथ स्थानीयकृत किया गया। चूंकि ज्यादातर लोग यहां अंडा नहीं खाते थे, इसलिए कई बेकरियों ने इसे काजू पाउडर से बदल दिया। काजू स्थानीय रूप से उगाया जाता था और देश के हर हिस्से में बहुत पसंद किया जाता था। "कोलकाता में सबसे लोकप्रिय बिस्किट प्रजापति है, जो फ्रेंच (French) के साथ बंगाल आया था।
मेरठ की लोकप्रिय नानखटाई पूरे भारत का एक पारंपरिक बिस्कुट है, जिसे बिना अंडे के तैयार किया जाता है। नानखटाई एशिया में ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान और भारत का लोकप्रिय बिस्किट है। गरमागरम नानखटाई खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगती है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही मेरठ की मशहूर नान खटाई की खुशबू शहर के हलवाइयों की दुकानों में महकने लगती है। मेरठ की मशहूर नान खटाई की खासियत है कि इसे मुंह में रखते ही ये घुल जाती है। इसे बनाने में हुई थोड़ी सी भी चूक से इसका मजा और स्वाद दोनों ही बिगड़ जाता है।
हमारे मेरठ की नान खटाई की मांग देश के हर कोने में है, जिसकी कीमत 150 रुपए से 350 रुपये किलो तक होती है। साथ ही विदेशों से आने वाले लोग भी अपने साथ यहां की नान खटाई का डिब्बा जरूर लेकर जाते हैं। इसका स्वाद बच्चों और बड़ों सभी को भाता है। हालांकि देशी घी से तैयार नान खटाई महंगी होती है, वहीँ बाजार में काजू नान खटाई, काजू बादाम नान खटाई, मूंग बादाम नान खटाई आदि विविधता भी मौजूद है।
संदर्भ
shorturl.at/qRZ17
shorturl.at/bijFO
shorturl.at/GLQX3
https://cutt.ly/UNcC0cf
चित्र संदर्भ
1. नानखटाई को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. विभिन्न प्रकार के बिस्कुट को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. सबसे पुराना जहाज बिस्किट-क्रोनबोर्ग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मैरीलैंड बिस्किट कंपनी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. हंटले और पामर्स बिस्कुट टिन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पार्ले के बिस्कुटों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
7. चाय बिस्कुट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. नानखताई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)