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जलवायु परिवर्तन और बीमारियां दोनों ही बेहद डरावने से शब्द लगते हैं। लेकिन हाल ही में शोधकर्ताओं ने रोगाणुओं का अध्ययन करके इससे भी अधिक डरावनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें उन्होंने चेताया है की, “जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अधिकांश संक्रामक रोग या बीमारियां और भी बदतर हो रहे हैं।”
समय के साथ जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अनदेखा करना या नकारना कठिन साबित होता जा रहा है, वैसे-वैसे वैश्विक नेता और जलवायु वैज्ञानिको की चिंता भी बढ़ती जा रही हैं। जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी एक स्पष्ट खतरा है।
जलवायु परिवर्तन की एक केंद्रीय विशेषता, पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर इसका तेज और अक्सर विनाशकारी प्रभाव है। पारिस्थितिक तंत्र के विघटन के परिणाम स्वरूप शिकारी और शिकार प्रजातियों के बीच संतुलन की भारी गड़बड़ी देखी जा रही है। कीट आबादी में, इस प्राकृतिक संतुलन के विघटन को शिकार प्रजातियों की बढ़ती आबादी के साथ-साथ शिकारी प्रजातियों में सहसंबद्ध गिरावट के साथ देखा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप कीटों की जनसंख्या भी बढ़ रही है। इन रोग फैलाने वाले कीड़ों में टिक्स, मच्छर आदि शामिल हो सकते हैं।
जैसे-जैसे इन विषाक्त प्रजातियों की आबादी बढ़ती है, वैसे- वैसे इनकी खाद्य स्रोतों तक पहुंच कम हो जाती है, जिससे कीड़े अपनी सीमा को उन नए क्षेत्रों में भी विस्तारित कर लेते हैं, जहां मानव आबादी को इन कीटों से होने वाली बीमारियों का कोई अनुभव या प्रतिरोध नहीं होता है।
इससे मलेरिया, लाइम रोग, और रॉकी माउंटेन स्पॉटेड फीवर (Rocky Mountain spotted fever) जैसी जानलेवा बिमारियां उन क्षेत्रों में भी प्रवेश कर जाती है, जहां वे कभी अज्ञात थे और जहां रोकथाम और उपचार सीमित हो सकते हैं। रोग फैलाने वाले कीटों के प्रसार और विस्तार के कारण विषाणु जनित और संक्रामक रोग नए क्षेत्रों में भी प्रवेश कर रहे हैं।
चूंकि जानवरों को अपने प्राकृतिक एवं मूल आवासों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है, इसलिए वे अपने साथ ऐसी बीमारियां लाते हैं जिनसे उनकी प्रजातियों को भी नुकसान होता हैं। साथ ही मनुष्यों सहित अन्य प्रजातियों के साथ उनका निकट संपर्क, क्रॉस-प्रजाति रोग संचरण (cross-species disease transmission) के जोखिम को बढ़ाता है।
जलवायु परिवर्तन भी पर्यावरणीय विनाश के माध्यम से फैलने वाली बीमारी में भी योगदान देता है।
उदाहरण के लिए, अत्यधिक गर्मी और ठंड जैसी अनिश्चित घटनाएं फसल की पैदावार पर कहर बरपा सकती हैं। उपजाऊ खेत सूख जाते हैं और अनुत्पादक हो जाते हैं, स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय खाद्य आपूर्ति में गिरावट आती है, तथा व्यापक खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, और संभावित रूप से, अकाल जैसी स्थिति खड़ी हो जाती है। जलवायु परिवर्तन के कारण उभरा कुपोषण भी अपने आप में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम है, यह एक संक्रामक बीमारी के अनुबंध और आत्महत्या की संभावना को भी बढ़ाता है।
नेचर क्लाइमेट चेंज (nature climate change) में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि, जलवायु परिवर्तन के कारण 58 प्रतिशत संक्रामक रोग बढ़ गए हैं, जिनमें डेंगू, हेपेटाइटिस, निमोनिया, मलेरिया और जीका शामिल हैं। हवाई विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की प्रोफेसर कैमिलो मोरा (Camella Mora) की टीम ने 70,000 से अधिक लेखों की समीक्षा की, और 375 संक्रामक रोगों में से उन्होंने 218 ऐसे रोग पाए जो कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ गए थे।
अर्जेंटीना-चिली में माइक्रोबायोलॉजिस्ट जूलियट ऑरलैंडो (Microbiologist Juliet Orlando, Argentina, Chile) अंटार्कटिका और उप-अंटार्कटिका जैव विविधता के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य का अध्ययन कर रहे हैं, जिसमें सूक्ष्मजीव भी शामिल हैं। उनके अनुसार सूक्ष्मजीव नाइट्रस ऑक्साइड (nitrous oxide) और मीथेन जैसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और खपत में उनकी भूमिका के कारण जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने या कम करने में योगदान दे सकते हैं। जलवायु परिवर्तन न केवल पूरे पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व के लिए खतरा है। साथ ही यह विषाणु जनित रोगों के बढ़ते प्रसार के कारण मानव अस्तित्व को भी खतरे में डालता है। हालांकि जलवायु वैज्ञानिकों के काम और स्मार्ट खेती के तरीकों को अपनाकर जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते रोगों को कम किया जा सकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3rWrgmi
https://bit.ly/3CZQNRX
https://bit.ly/3eGcnS6
चित्र संदर्भ
1. जलवायु परिवर्तन के बिमारियों पर प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
2. नेपियर ग्रास स्टंटिंग रोग के लक्षण और छोटे कीट को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. रेबीज वायरस को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. जलवायु परिवर्तन को दर्शाता एक चित्रण (NASA Climate Change)