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भारतीय संस्कृति में संगठित कढ़ाई का महत्व

मेरठ

 17-09-2022 10:18 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

कपड़ों को और भी अधिक सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए उस पर सूई और रंग बिरंगे धागों से आकृतियाँ बनाकर सजाया जाता है। यह प्रक्रिया कढ़ाई कहलाती है। कढ़ाई में अन्य सामग्री जैसे मोती, शीशे, मनके और सिक्के आदि का भी प्रयोग किया जाता है। भारत के अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की कढ़ाई शैलियाँ प्रसिद्ध हैं। भारत के हर राज्य और क्षेत्र की अपनी शैली है। कढ़ाई भारतीय परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। भारतीय कढ़ाई शैली में प्राकृतिक परिवेश, धार्मिक शिलालेख, आर्थिक स्थिति आदि का अलंकरण मिलता है। कई प्राचीन कढ़ाई शैलियों को पुनः प्राप्त और लोकप्रिय करने का प्रयास किया जा रहा है। ये कढ़ाई शैलियाँ न केवल भारतीय डिजाइनरों के बीच अपनी स्वीकृति प्राप्त कर रही हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत लोकप्रिय हैं।
कई बड़े कपड़ा ब्रांड (Brands) इस कारीगरी को अपने वस्त्रों में जगह देते हैं। उदाहरण के लिए, गुच्ची (Gucci), वैलेंटिनो (Valentino), मैसन मार्जिएला (Maison Margiela), क्रिश्चियन डायर (Christian Dior) जैसे ब्रांड मुंबई स्थित कढ़ाई फर्म चाणक्य के साथ और रॉबर्टो कैवल्ली (Roberto Cavalli), सल्वाटोर फेरागामो (Salvatore Ferragamo), वर्साचे (Versace), माइकल कोर्स (Michael Kors) जैसे ब्रांड मुंबई की एक अन्य कढ़ाई फर्म आदित्य डिज़ाइन्स के साथ साझेदारी में हैं। कुछ प्रशंसित और प्रसिद्ध भारतीय कढ़ाई तकनीकें इस प्रकार हैं: काशीदा- काशीदा एक लोकप्रिय कश्मीरी कढ़ाई है। जो घाटी के खूबसूरत परिवेश से प्रोत्साहित होती है। 15वीं शताब्दी में सुल्तान-ज़ैन-उल-आबिदीन ने काशीदाकारी की कला का परिचय दिया था। बुनाई तकनीक की नई शैली पेश करने के लिए बुनकरों को तुर्किस्तान (Turkistan) और फारस (Persia) से लाया गया था। इस प्रकार की कढ़ाई अपने रंग, बनावट, डिजाइन और तकनीकों के कारण बहुत लोकप्रिय है। काशीदा कढ़ाई शैली में प्राकृतिक फूल, पौधों, वनस्पति और जीव जंतुओं, पक्षियों जैसे किंगफिशर (Kingfisher), तितलियों, फलों में आम, बादाम, चेरी (Cherry) अंगूर इत्यादि का समावेश मिलता है। रेशम, कपास, ऊन और कॉटस्वोल्ड (Cotswold) (एक खास तरह की ऊन) का उपयोग इस कढ़ाई के लिए किया जाता है। चिकनकारी- चिकनकारी शब्द फ़ारसी शब्द चाकीन से बना है जिसका अर्थ होता है कपड़े पर सुरुचिपूर्ण आकृति। चिकनकारी कढ़ाई को छाया कार्य या शैडो वर्क (Shadow Work) के रूप में भी जाना जाता है। इसका कारण यह है कि इसमें हेरिंगबोन (Herringbone) सिलाई का उपयोग करके कपड़े के विपरीत ओर कढ़ाई की जाती है। जिससे कपड़े की सीधी तरफ एक सुंदर डिजाइन बनकर सामने आता है। चिकनकारी उत्तर प्रदेश राज्य में विशेष रूप से लखनऊ में प्रसिद्ध है, जिसे चिकनकारी कढ़ाई के केंद्र के रूप में जाना जाता है। परंपरागत रूप से चिकनकारी कढ़ाई सफेद धागे का उपयोग करके सफेद मलमल के कपड़े पर की जाती थी। आजकल यह विभिन्न प्रकार के कपड़ों जैसे लिनन (Linen), नायलॉन, जॉर्जेट, कपास, शिफॉन और सिंथेटिक कपड़ों पर भी की जाती है। इस प्रकार की कढ़ाई विभिन्न घरेलू चीजों जैसे पर्दे, चादर, तकिए के खोल, कुशन खोल, मेजपोश पर भी की जाती है। कांथा- यह कला विशेष रूप से बंगाल में प्रचलित है। इससे संबंधित पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में महिलाएँ फटे कपड़ों के टुकड़ों को इकट्ठा करके वस्त्र सिलती थीं। ऐसा कहा जाता है कि महात्मा बुध भी इस कला से जुड़े हुए थे। क्योंकि भगवान बुद्ध और उनके शिष्य लोगों द्वारा फेंके हुए कपड़े के टुकड़ों का प्रयोग शरीर को ढकने के लिए करते थे। इस प्रकार की कशीदाकारी सफेद धागे में साधारण चलने वाली सिलाई के साथ धोती, साड़ी की परतों की तरह छोड़े गए वस्त्रों पर की जाती है जो ठंड से सुरक्षा प्रदान करती है। सिलेटी, काले या सफेद रंगों की मलमल की साड़ी, हथकरघा वस्त्रों का सुरुचिपूर्ण और सुंदर चित्रण है, जिसे बंगाल की महिलाओं द्वारा मूल्यवान माना जाता है। कांथा कढ़ाई की दो श्रेणियां हैं - पहले प्रकार में, सूती साड़ियों या धोती को एक दूसरे के ऊपर ढेर किया जाता है और फिर उन पर कढ़ाई की जाती है। फुलकारी- फुलकारी कढ़ाई 15 वीं शताब्दी में शुरू हुई और आज भी प्रचलन में है। फुलकारी दो संस्कृत शब्द फुल जिसका अर्थ है फूल और कारी का अर्थ है काम से व्युत्पन्न। यह हस्तनिर्मित काम की एक पंजाबी ग्रामीण परंपरा है। यह कला पूरे पंजाब में प्रचलित है। इस शैली में कपड़ों पर फूल पत्ती आदि की सुंदर कलाकारी की जाती है। यह विशेषकर शॉल में देखी जा सकती है। जरी कार्य- जरी को जरदोजी कढ़ाई के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार की कढ़ाई भारत में ऋग्वेद के समय से मौजूद है। जरदोजी दो फारसी शब्दों का एक संयोजन है। जरी का अर्थ है सोना और दोजी का अर्थ है कढ़ाई। कढ़ाई के काम के लिए सोने और चांदी के धागे का उपयोग करके जरी की कढ़ाई की जाती है। यह मुख्य रूप से सूरत और वाराणसी में देखी जा सकती है। जहाँ धातु के धागे को कलाबती के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान समय में कढ़ाई उद्योग को नई दिशा मिली है। पारंपरिक कढ़ाई प्रक्रिया का स्थान कंप्यूटरीकृत कढ़ाई मशीनों ने ले लिया है। मशीनों द्वारा जटिल कलाकृतियों को वस्त्रों पर आसानी से उतारा जाता है। भारत के ईएमबीआईक्यू (EMBiQ) के संस्थापक विकास कपूर और कविता अहलावत पारंपरिक कढ़ाई के तरीकों से आगे बढ़कर कढ़ाई उद्योग के उत्थान के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। कुछ समय से भारत कढ़ाई उद्योग में चुनौतियों का सामना कर रहा है। लगभग 22 लाख कार्यबल होने के बावजूद, भारत कई देशों जैसे बांग्लादेश (Bangladesh), वियतनाम (Vietnam) और कंबोडिया (Cambodia) से मिलने वाले कढ़ाई किए हुए वस्त्रों के आर्डर (Orders) खो रहा है। जो एक दशक पहले सभी के लिए एक महत्वपूर्ण निर्यातक था। सरकार द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। लाखों सिलाई संचालक प्रधानमंत्री के प्रशिक्षण संस्थानों से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। सेक्टर स्किल काउंसिल (एसएससी) (Sector Skill Council) ने दो साल पहले अपने पाठ्यक्रम में कढ़ाई को शामिल किया था।
लेकिन एक पूछताछ से पता चला है कि कोई भी एसएससी (SSC) के कढ़ाई कोर्स से प्रशिक्षित नहीं हुआ है। प्रशिक्षण प्रत्येक विभाग के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया जाना चाहिए जैसे पर्यवेक्षक प्रशिक्षण, ऑपरेटर प्रशिक्षण, तकनीशियन प्रशिक्षण और डिजिटाइज़र प्रशिक्षण।
भारत अभी भी कढ़ाई के लिए एक अविकसित बाजार है। अध्ययनों से पता चला है कि भारत में प्रति व्यक्ति कढ़ाई की खपत 8 रुपये प्रति वर्ष है। भारतीय कढ़ाई का बाजार आकार लगभग 800-900 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है और भारत का कढ़ाई बाजार 20 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है। आज के युग में, परिधान उद्योग इस बात पर जोर दे रहा है कि लागत बढ़ रही है, प्रतिस्पर्धा कड़ी होती जा रही है और व्यापार सुचारू रूप से नहीं चल रहा है। लेकिन जब भी दक्षता बढ़ाने की बात होती है, तो बहुत कम निर्माता उन समाधानों को अपनाने के लिए कदम बढ़ाते हैं जो दक्षता में सुधार करते हैं। 

संदर्भ:
https://bit.ly/3qLVEj3
https://bit.ly/3xgfGFY
https://bit.ly/3DbAUZi

चित्र संदर्भ
1. भारतीय शैली में कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, flickr)
2. कश्मीर से एक ऊनी शॉल पर कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. चिकनकारी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. कांथा कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. फुलकारी कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. जरदोजी कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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