फार्म टू टेबल, किसानों और उपभोक्ताओं के बीच प्रत्यक्ष लेन-देन

फल और सब्जियाँ
13-09-2022 10:47 AM
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फार्म टू टेबल, किसानों और उपभोक्ताओं के बीच प्रत्यक्ष लेन-देन

किसान हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसानों द्वारा उगाए जाने वाले अनाज, फल तथा सब्जियाँ हम सभी के लिए आवश्यक हैं। परंतु किसानों द्वारा उगाई गई फसल हम उपभोक्ताओं तक सीधे नहीं पहुँचती बल्कि बिचौलिये किसानों से फसल खरीदकर बड़ी और छोटी मंडियों में बेचते हैं। मंडियों से यह फल तथा सब्जियाँ बाजारों में आती हैं। जहाँ से उपभोक्ता इन्हें खरीदते हैं। छोटे बड़े रेस्तरों, होटलों तथा ढाबों में भी ये फल तथा सब्जियाँ मंडियों और बाजारों से खरीदकर लाई जाती हैं। विश्व भर में फैली कोविड-19 महामारी के बाद लोगों की आदतों में बदलाव आया है। लोग स्वस्थ खाने की ओर अधिक आकर्षित हुए हैं। इस बीमारी के प्रतिकूल प्रभावों ने लोगों को स्वस्थ जीवन शैली की ओर धकेला है। लोगों ने साफ और स्वच्छ भोजन, प्राकृतिक स्वाद और कम या बिना कीटनाशकों के उत्पादों को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है।
फार्म टू टेबल (Farm to Table) अर्थात खेतों से सीधे मेज पर की अवधारणा में किसानों से प्रत्यक्ष रूप से ताजे फल तथा सब्जियों को खरीदना और उसे अपने मेज पर लाना शामिल है। हालाँकि आज के समय में भोजन आसानी से बाजारों में उपलब्ध हो जाता है। फिर चाहे वह फल तथा सब्जियाँ हो या पैकेट बंद भोजन। रेडीमेड (Readymade) सामग्री से बने भोजन से खाद्य उद्योग में तेजी आई है। परंतु पिछले कुछ समय से लोगों में अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बड़ी है। इसी के चलते लोग किसानों से ताजी सब्जियाँ और फल खरीद कर खाना चाहते हैं। इसके पीछे कारण यह है कि ताजे फल और सब्जियाँ स्वास्थ्य के लिए उत्तम और खाने में स्वादिष्ट होते हैं। स्थानीय ताजे फलों तथा सब्जियों को संरक्षित करने में अधिक समय और लागत की आवश्यकता नहीं होती है। इसके विपरीत दूर-दराज और विदेशों से लाए गए खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने में बहुत अधिक समय लगता है और संरक्षण लागत भी अधिक आती है। इसके अलावा उपभोक्ताओं तक पहुँचने के लिए परिवहन लागत भी लगती है। जिससे खाद्य पदार्थों के मूल्य में वृद्धि हो जाती है। इस प्रक्रिया में समय भी बहुत लगता है जिससे खाद्य पदार्थ ताजा नहीं रह पाते हैं।
स्थानीय खेती विविधता को बनाए रखने में मदद करती है। छोटे स्थानीय किसान आमतौर पर साल भर फसल काटने में सक्षम होने के लिए फसल की विभिन्न किस्मों को उगाते हैं। जिससे हमें विभिन्न प्रकार की फल तथा सब्जियाँ प्राप्त होती हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। बिचौलिये कम दामों पर किसानों से फसल खरीदकर उन्हें मंडियों में अधिक दामों पर बेचते हैं। जिससे किसानों को अपनी फसल का सही मूल्य नहीं मिल पाता है। स्थानीय सब्जियाँ और फल खरीदने से छोटे-बड़े किसानों की सहायता होती है। उन्हें अपनी फसल का सही दाम मिलता है। जिससे सभी किसान आर्थिक रूप से सशक्त हो पाते हैं। इससे किसान भविष्य में भी खेती करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। जैसे-जैसे किसानों को बेहतर मूल्य मिलता है, यह पारंपरिक कृषक समुदायों को संरक्षित करने में मदद करता है और मिट्टी और जल स्रोतों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। किसान भी इस स्थिति में न्यूनतम या कम कीटनाशकों के साथ भोजन उगाते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में, फार्म टू टेबल आंदोलन रेस्तराँ व्यवसाय में क्रांति लाने के लिए तैयार है। दिल्ली व मुंबई जैसे बड़े शहर इस पहल का हिस्सा हैं। वर्ष 2020 में, फेमिना पत्रिका ने चार रेस्तराँ नामित किए जिन्होंने भारत में इस पहल को शुरू किया है। मुंबई से द टेबल (The Table), योगिसत्व (Yogisattva), और मस्क (Masque) और बेंगलुरु के गो नेटिव (Go Native) का उल्लेख इस पत्रिका में किया गया है। आज के समय में कई रेस्तराँ, होटल इत्यादि भी इस अवधारणा से जुड़े हुए हैं। वे अपने ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ ही परोसना पसंद करते हैं। आज के समय में रेस्तराँ से लेकर ऑनलाइन स्टोर (Online Stores) तक फार्म टू टेबल एक सामाजिक आंदोलन बन गया है। विश्व भर में इसे मुख्य रूप से खाद्य उत्पत्ति, रसोई तक भोजन की दूरी और उत्पादकों के लाभ के रूप में देखा जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि अमेरिकी अग्रणी एलिस वाटर्स (Alice Waters) ने 1971 में कैलिफोर्निया (California) के बर्कले (Berkeley) में अपने रेस्तराँ चे पैनिस (Chez Panisse) के उद्घाटन के साथ खाद्य क्रांति की शुरुआत की। उन्होने स्थानीय उत्पादकों द्वारा उगाई जाने वाली स्थानीय मौसमी खाद्य सामग्री की सेवा को प्राथमिकता दी।
फार्म टू टेबल रेस्तराँ अपनी उपज अपने खेतों में ही उगाते हैं। इसके अलावा कई और सीधे स्थानीय किसानों से खाद्य पदार्थ खरीदते हैं। यह पहल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा ताजे खाद्य पदार्थों के सभी पोषक तत्व जीवित रहते हैं। भारत में, औसत खेत का आकार लगभग 1-2 एकड़ होता है। फार्म टू टेबल पहल से स्थानीय कृषकों को बुनियादी ढांचे को स्थापित करने और उसका अधिकतम लाभ उठाने में मदद मिलती है। यह किसानों को रसायनों का कम से कम उपयोग करके फसल उगाने में और अपव्यय को कम करने में भी मदद करता है। आज के समय में सभी बड़े रसोईया या शैफ (Chef) उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य उत्पादों को ही अपने व्यंजनों में शामिल करते हैं। इतना ही नहीं, उच्च गुणवत्ता वाले फलों को मिष्ठानों में भी शामिल किया जाता है। इस प्रकार फार्म टू टेबल की अवधारणा ना केवल किसानों को समृद्ध बनाती है बल्कि अन्य उद्योगों जैसे आतिथ्य उद्योग, रेस्तरों इत्यादि क्षेत्र भी इससे फल फूल रहे हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3Rjfb5P
https://bit.ly/3RfroZe
https://bit.ly/3wWDONt

चित्र संदर्भ
1. फार्म टू टेबल, को संदर्भित एक चित्रण (flickr)
2. खेत में महिला किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ताज़ी शाकाहारी सब्जियों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)