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मेरठ गंगा और यमुना नदी के तट पर स्थित है, जिसके कारण मेरठ और इसके आसपास के स्थानों
में कृषि ने अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, अपर्याप्त और
बेमौसम बारिश भी अनाज की कमी और फसलों के विनाश का कारण बनी है। इस प्रकार, बांध
सिंचाई और नहरों के माध्यम से फसलों की खेती यहां के किसानों के लिए आशाजनक साबित हुई है।
बांधों और नहरों की स्थापना मुगलों के समय से की जा रही है,जब मेरठ से सम्बंधित 12 मील लंबीकाली नदी को शुद्ध सिंचाई के बजाय मेरठ में पेड़ों और बगीचों में पानी की आपूर्ति के लिए उपयोग
करना शुरू किया गया। बाद में, ब्रिटिश शासन के दौरान 129 मील लंबी दोआब नहर खोली गई, जिसने
मेरठ, मुजफ्फरनगर आदि जिलों को फायदा पहुंचाया। इसके बाद बेहतर इंजीनियरिंग क्षमताओं की
आवश्यकता महसूस की गई, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने गंगेश नहर पर बड़ी कुशलता से काम
किया।क्षेत्र में उपलब्ध जल संसाधनों का दोहन करने के लिए बाद के वर्षों में कई नहरों और बांधों
की स्थापना की गई,लेकिन नदियों पर बनाए गए सभी बांध हर तरह से अच्छे साबित नहीं हुए।
उन्होंने नदियों में मछली की आबादी को गंभीर रूप से प्रभावित किया और कई मामलों में
पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर बना दिया।मछली की आबादी में कमी के कारण मत्स्य पालन भी
अत्यधिक प्रभावित हुआ क्यों कि नदियों में पहले के समान मछलियां मौजूद नहीं हैं।मीठे पानी के
आवास जैसे नदियाँ, खाड़ियाँ, झीलें, तालाब, धाराएँ आदि दुनिया के पानी का केवल तीन प्रतिशत
हिस्सा हैं और पृथ्वी की सतह के लगभग 0.8 प्रतिशत हिस्से को कवर करती हैं, लेकिन इनमें एक
अविश्वसनीय विविधता देखने को मिलती है।मीठे पानी की जैव विविधता को हाल के वर्षों में असमान
रूप से खतरा हो रहा है और नदियों में बाधों का निर्माण मीठे पानी की जैव विविधता के लिए
महत्वपूर्ण खतरों में से एक है। जबकि बड़े बांध जल सुरक्षा, बाढ़ संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे
प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं, वहीं वे बाढ़, हाइड्रोलॉजिकल (Hydrological) परिवर्तन और
विखंडन (नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावट) जैसी समस्याओं के साथ मीठे पानी के पारिस्थितिक
तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। मछली की 40 प्रतिशत प्रजातियां मीठे पानी के वातावरण में
पाई जाती हैं, तथा बांधों के निर्माण के कारण मीठे पानी के वातावरण का विखंडन मछली प्रजातियों
को अत्यधिक प्रभावित करता है, क्यों कि बांध मछली के प्रवास मार्गों को बाधित कर रहे हैं जो कि
अंडे देने, फीडिंग (Feeding)और प्रसार के लिए आवश्यक है। यह आशंका जताई गई है कि भविष्य में
दुनिया भर में जलविद्युत सुविधाओं के विस्तार से मीठे पानी की मछली जैव विविधता को और
खतरा होगा।एक अध्ययन के अनुसार आंध्र प्रदेश में कृष्णा मुहाने पर अपस्ट्रीम और प्रकाशम बैराज
में बने बांधों ने नदी से सारा पानी दूर कर दिया है, जिससे गर्मी के मौसम में मुहाना सूख जाता है
और लवणता में वृद्धि के कारण कई मीठे पानी की मछलियाँ जैसे कार्प (Carps), कैटफ़िश (Catfishes),
मुरल्स (Murrels), फेदर बैक (Feather backs) आदि गायब हो जाती हैं। कृष्णा, गोदावरी, महानदी, पेन्नार,
नर्मदा, तापी, साबरमती, माही और कावेरी में बने बांधों के कारण मत्स्य पालन तेजी से घट रहा है,
क्यों कि साल भर मुहानों में मीठे पानी की कमी बनी हुई है।सरदार सरोवर, नर्मदा सागर, ओंकारेश्वर,
महेश्वर, तवा और बरगी बांधों द्वारा नर्मदा में नदी और मुहाना मात्स्यिकी पहले से ही प्रभावित है।
तवा दामो के निर्माण के बाद पश्चिमी तट पर नर्मदा नदी प्रणाली में हिल्सा(Hilsa) मछली की आबादी
में गिरावट देखी गई है।बांध के कारण पानी की गहराई कम हो गई और कार्प के प्रजनन और
चारागाह को नुकसान हुआ है।बाढ़ नियंत्रण उपाय के रूप में ब्रह्मपुत्र पर बनाए गए तटबंधों के कारण
वे मैदान सिकुड़ गए हैं, जहां कई मछली प्रजातियां भोजन करने तथा अंडे देने के लिए आती
थीं।अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों सियांग, दिबांग, सुबनसिरी, कामेंग, तवांग और
लोहित पर 135 से अधिक बांध बनाने की योजना बनाई जा रही है, जिससे ट्राउट (trout) और
महासीर मछली के प्रवासी मार्ग अवरुद्ध होने की भी आशंका है। मछली की आबादी में कमी मत्स्य
पालन से सम्बंधित लोगों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।कोरोना महामारी के कारण लगे
प्रतिबंधों और जलवायु कारकों ने पहले ही इन लोगों के रोजगार को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया
है। ऐसे में मछली की आबादी में कमी इनकी समस्या को और भी बढ़ा देती है।चूंकि मछलियां प्रोटीन
तथा अन्य पोषक तत्वों का महत्वपूर्ण स्रोत हैं, इसलिए यह मानव के पोषण स्तर को भी महत्वपूर्ण
रूप से प्रभावित करती हैं। मछली प्रजातियों पर बड़े बांधों के निर्माण का प्रभाव बहुत बड़ा हो सकता है
और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। हमें उन वर्तमान तरीकों पर फिर से विचार करने
की तत्काल आवश्यकता है, जिनके द्वारा हम अपनी नदियों का प्रबंधन कर रहे हैं। इनमें वे संकीर्ण
तरीके शामिल हैं, जिनके द्वारा नदी और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर विचार किए बिना
जलविद्युत परियोजनाओं की योजना बनाई जा रही है। हमें उन मछली प्रजातियों तथा नदी घाटियों
पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जो जोखिम में हैं।साथ ही बांध हटाने और फिश बाइपास (Fish
bypasses)के निर्माण जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3cJ2NNt
https://bit.ly/3KIbNyN
चित्र संदर्भ
1. बांध एवं मृत पड़ी मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. नेय्यर बांध, तिरुवनंतपुरम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सूखी नदी में मृत पड़ी मछली को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
4. सूखी नदी को दर्शाता एक चित्रण (European Wilderness Society)
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