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हमारे देश भारत में अनेकों ऐसे तीर्थ स्थान हैं, जिनका धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही
इनकी अपनी ऐतिहासिक विशेषता भी है। इन्हीं तीर्थों में से एक हस्तिनापुर का शांतिनाथ
जैन श्वेतांबर तीर्थ है। शांतिनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर मेरठ जिले के हस्तिनापुर में स्थित है।
हस्तिनापुर का उल्लेख हिंदू और जैन ग्रंथों में बड़ी श्रद्धा के साथ किया गया है। जैन धर्म केअनुयायी अहिंसा और सत्य को ही ज्ञान का मुख्य मार्ग मानते हैं। जैन धर्म तीसरी शताब्दी
से आरंभ होकर 9वीं शताब्दी तक पूरे भारत में फैल चुका था।
जैन धर्म के अनुसार, इस स्थान पर जैन धर्म के 12 कल्याणकों में से 4 कल्याणक हुए हैं।
जैन धर्म के 3 तीर्थकरों श्री शांतिनाथ भगवान, श्री कुंथुनाथ भगवान और श्री अरनाथ
भगवान के 4 कल्याणकों में च्यवन कल्याणक (मां के गर्भ में आना), जन्म कल्याणक
(जन्म), दीक्षा कल्याणक (संतत्व) और केवल ज्ञान कल्याणक (ज्ञान प्राप्त करना) शामिल है।
इस स्थान के अन्य विशेष महत्वों की बात करें तो यह भगवान मल्लीनाथ के सम्वासरन के
निर्माण की भूमि भी कही जाती है। इसके अलावा, हमारे प्रथम तीर्थंकर श्री. आदिनाथ
भगवान ने 12 महीने के उपवास के बाद अपने प्रपौत्र श्रेयांस कुमार के हाथों से गन्ने का रस
ग्रहण करके अपना व्रत तोड़ा था। हस्तिनापुर से राजधानी दिल्ली की दूरी लगभग 100
किलोमीटर है। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार, उस समय दिल्ली और हस्तिनापुर एक ही माना
जाता था। जवाहर लाल नेहरू ने भी अपनी किताब डिस्कवरी आफ इंडिया (Discovery of
India) के पृष्ठ 107 पर इसका उल्लेख किया है। उनके अनुसार आज हम जिसे दिल्ली
कहते हैं वह कभी हस्तिनापुर एवं इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था।
महाभारत से भी हस्तिनापुर का इतिहास जुड़ा हुआ है। महाभारत काल में, हस्तिनापुर पांडवों
और कौरवों के राज्य की राजधानी थी। वर्तमान समय में, हस्तिनापुर की भूमि से महाभारतसे जुड़े कई शिलालेख और वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। जो इस बात का प्रमाण हैं कि आज मेरठ मेंमौजूद हस्तिनापुर महाभारत के समय में पांडवों और कौरवों के राज्य से संबंधित था। इसके
अलावा, यह भूमि हमारे देश के पहले चक्रवर्ती सम्राट भरत सहित 6 चक्रवर्ती सम्राटों की
जन्मभूमि रही है। रामायण के समय में, हस्तिनापुर भगवान परशुराम का जन्म स्थान भी
था। यह सभी पौराणिक तथ्य इस स्थान को और भी अधिक पवित्र और भव्य बनाते हैं।
वर्ष 1960 में, विजय वल्लभ सूरी जी संप्रदाय के आचार्य विजय समुद्र सूरी जी ने इस स्थान
का दौरा किया और इस तीर्थ का जिरनोद्वार करवाया। इससे पहले यह स्थान कई वर्षों तक
अज्ञात कारणों की वजह से गुमनामी में रहा। आचार्य सूरी जी ने एक नया शिखरबाध मंदिर
भी बनवाया और वहाँ प्राचीन पूर्वजों की मूर्तियां स्थापित करवाईं। यह मूर्तियां श्री शांतिनाथ
भगवान, श्री कुंथुनाथ भगवान और श्री अरनाथ भगवान की हैं। इस मंदिर से 1 किलोमीटर
दूर परना मंदिर स्थित है, जिसमें श्रेयांस कुमार के हाथों से गन्ने का रस ग्रहण करते
आदिनाथ भगवान जी की सुंदर मूर्ति उपस्थित है। इस स्थान को श्री निशिया जी कहते हैं।
यहाँ श्री आदिनाथ भगवान की चरण पादुकाएं रखी गई हैं। इस मंदिर के सामने परना हॉल
है। हर साल वैशाख के महीने में यहाँ अक्षय तृतीया के दिन हजारों की सँख्या में लोग आकर
दर्शन करते हैं और साल भर का वारसी-टप्प पूरा करने के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं।
कार्तिक माह में, यहाँ हर साल वार्षिक ध्वजारोहण समारोह होता है और इस स्थान पर मेला
भी लगता है। हाल ही की एक परियोजना के अंतर्गत, 'श्री अष्टपद जैन श्वेतांबर तीर्थ' नामक
एक विशाल 151 फीट की लंबाई वाला एक मंदिर भी इस स्थान के आसपास स्थापित किया
गया है। यह भारत में अब तक की एकमात्र बहु-करोड़ परियोजना मानी जाती है।
हस्तिनापुर के इस ऐतिहासिक महत्व के कारण यह जैन धर्म के प्रमुख तीर्थों में से एक है।
मंदिर की सुंदर बनावट इसे और भी अधिक आकर्षक बनाती है। यह तो हम सभी जानते हैं
कि भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। सम्राट
भरत के राजा बनने के उपरांत हस्तिनापुर को उनके राज्य की राजधानी बनाया गया। इसके
अतिरिक्त हस्तिनापुर में यहाँ जंबुद्वीप जैन मंदिर, श्वेतांबर जैन मंदिर, प्राचीन दिगंबर जैन
मंदिर, अस्तपद जैन मंदिर और श्री कैलाश पर्वत जैन आदि मंदिर भी स्थित हैं। जो इसे
उत्तर भारत के प्रमुख तीर्थों में से एक बनाते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3coiqKc
https://bit.ly/3TdzFhR
https://bit.ly/3QNRHpa
चित्र संदर्भ
1. हस्तिनापुर में जैन मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. शांतिनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर, हस्तिनापुर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. शांतिनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर, हस्तिनापुर में प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हस्तिनापुर में विभिन्न तीर्थकरों की प्रतिमाओं को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
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