वर्तमान में हमारे मेरठ सहित 6 शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी NCR का हिस्सा हैं। लेकिन उत्तरप्रदेश
सरकार शीघ्र ही 5 और जिलों को भी NCR क्षेत्र में शामिल करने के लिए प्रयासरत है। चलिए जानते हैं की
NCR में शामिल होने के पश्चात् इन जिलों में क्या परिवर्तन देखे जा सकते हैं? साथ ही 1947 में आज़ादी
के बाद, पंजाब राज्य के विभाजन से, जुड़वा शहर कहलाये जाने वाले लाहौर और अमृतसर, एक दूसरे से
काफी अलग हो गए थे! बंटवारें के उदाहरण से जानते है की, जब दो बेहद घनिष्टता से जुड़े शहर, पृथक
होते हैं तो वहां के आम नागरिकों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता?
राज्य सरकार चाहती है कि उत्तर प्रदेश के 5 और जिलों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में शामिल
किया जाए। एनसीआर योजना बोर्ड के सदस्य सचिव को लिखे पत्र में, प्रमुख सचिव, मुकुल सिंघल ने
मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, बिजनौर और शामली, सभी पश्चिमी यूपी जिलों को एनसीआर में शामिल करने
के लिए यूपी सरकार की सिफारिश को संप्रेषित किया है। अब तक, यूपी के 7 जिले, मेरठ, गाजियाबाद,
गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, हापुड़, , मुजफ्फरनगर और बागपत एनसीआर का हिस्सा हैं। एनसीआर का
हिस्सा बनने के इच्छुक जिलों के लिए मुख्य आकर्षण वे फंड हैं, जिन्हें वे एनसीआर प्लानिंग बोर्ड (NCR
Planning Board (NCRPB) से प्राप्त करेंगे, जो इस क्षेत्र में शीर्ष योजना निकाय है, तथा केंद्रीय शहरी
विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
जहां एक ओर मेरठ का NCR में शामिल होना भविष्य में प्राप्त होने वाले लाभों से प्रेरित है, वही दूसरी ओर
आज से 75 वर्ष पूर्व पंजाब राज्य के विभाजन से भारत के दो जुड़वा शहर कहलाये जाने वाले लाहौर और
अमृतसर भी एक दूसरे से अलग हो गए थे। दो शहरों का बंटवारा शहरवासियों के मानसिक एवं आर्थिक
हितों को किस हद तक प्रभावित कर सकता है?
1536 में (16वीं सदी के अंत में और 17वीं शताब्दी के प्रारंभ में सम्राट अकबर और शाहजहां के शासनकाल
के दौरान) लाहौर मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। यह साम्राज्य की राजधानी के रूप में कार्य करता
था। अभी भी मौजूद शालीमार गार्डन, किला (शाहजहाँ द्वारा निर्मित), बादशाही मस्जिद (औरंगजेब की
रचना), और जहाँगीर और उसकी रानी नूरजहाँ की कब्रें मुगल काल की याद दिलाती हैं। वहीँ अमृतसर की
कहानी में 1604, एक महत्वपूर्ण वर्ष है, जब आदि ग्रंथ, सिख धर्मग्रंथ, हरमंदिर साहिब में रुके जिसके
पश्चात् यह सिख धर्म का सबसे पवित्र मंदिर बन गया। चालीस वर्षों (1799-1839) के दौरान सिख सरदार
रणजीत सिंह ने पंजाब पर शासन किया और अमृतसर से आगे के क्षेत्रों को प्रमुखता मिली। इस समय के
दौरान हरमंदिर साहिब को सोने से मढ़ा गया था, और उसके बाद स्वर्ण मंदिर के रूप में जाना जाने लगा।
शहर समृद्ध और हलचल भरा हुआ था साथ ही यहाँ व्यापार का भी विस्तार हुआ।
दशकों बाद 1947 के खूनी विभाजन से पहले दो पड़ोसी देशों, भारत का अमृतसर और पाकिस्तान का
लाहौर शहर भारतीय राज्य पंजाब का ही हिस्सा थे। दोनों शहरों को बहन शहर (sister city) या जुड़वां
शहर भी कहा जाता है, क्योंकि वे भोजन, संस्कृति और परंपराओं के मामले में एक समान समानता साझा
करते हैं। उनके बीच की दूरी सिर्फ 50 किमी है जिसे आसानी से एक घंटे में पूरा किया जा सकता है।
लाहौर और अमृतसर दोनों चारदीवारी वाले शहर हैं, जिनमें कई द्वार हैं जो आक्रमणकारियों से निपटने के
लिए बनाए गए थे। बंटवारे के दौरान लाहौर का शाह आलम बाजार और अमृतसर का हॉल बाजार दोनों ही
शहरों में लगी आग की चपेट में आ गए। कथित तौर पर, स्वतंत्रता के दौरान अधिकांश प्रवास लाहौर और
अमृतसर के शरणार्थी शिविरों के बीच हुआ था। यह जुड़वां शहर प्रमुख व्यावसायिक केंद्र थे जहां विभिन्न
समुदायों के लोग एक साथ रहते थे।
ब्रिटिश शासन के अंत तक, सुविकसित बाजारों,कारखानों और मिलों के साथ अमृतसर एक प्रमुख
व्यापारिक केंद्र के रूप में उभर रहा था। लाहौर शहर, पंजाब के सबसे महत्वपूर्ण वाणिज्यिक और
औद्योगिक केंद्रों में से एक बन गया था। हालांकि, यहां मुसलमानों की आबादी बहुमत में थी, लेकिन शहर
में आर्थिक गतिविधियों को हिंदू और सिखों द्वारा ही बड़े पैमाने पर नियंत्रित किया जाता था। लाहौर का
औपनिवेशिक शहरी विकास हाल के कई अध्ययनों का केंद्र बिंदु रहा है। ईसाई मिशनरियों के आगमन के
साथ ही यहां जिला अदालतों, कोषागार, जेल और पुलिस लाइनों के कई नए सार्वजनिक भवनों के साथ
शैक्षणिक संस्थानों, चिकित्सा मिशनों और चर्चों का निर्माण किया गया। 1880 के दशक की शुरुआत में,
लाहौर में रेलवे ने मुगल पुरा क्षेत्र के साथ बड़ी मात्रा में भूमि का अधिग्रहण किया था, जिसमें मेयो गार्डन
(Mayo Garden) सहित रेलवे कर्मचारियों की कॉलोनियों के लिए नौलखा क्षेत्र भी स्थापित किया गया
था। 1892 में, रेलवे कार्यशालाओं में नियमित काम पाने वाले 4,000 से अधिक पुरुष वहां रहते थे। इनमें
से अधिकांश कर्मचारी रोजगार पाने की उम्मीद में शहर में आ गए थे। 1875 में, शहर में यूरोपीय आबादी
1,700 से अधिक हो गई।
यूरोपीय आबादी के बसने के साथ, शहरी आबादी ने भारी सामाजिक और शहरी परिवर्तन का अनुभव
किया। उच्च वर्ग, विशेष रूप से उच्च जाति के हिंदू और भीतरी शहर के सिख नई सुविधाओं के लाभार्थी
बन गए। 1901 की जनगणना तक, सिविल लाइंस (civil lines) की जनसंख्या बढ़कर 16,080.8 हो गई
थी। जैसे-जैसे शहर का विकास हुआ, इसकी अर्थव्यवस्था भी बढ़ती गई। पश्चिमी लोगों की मांग और
उनकी खपत की शैली ने कमोडिटी ट्रेडिंग (commodity trading) में तेजी से वृद्धि की और यहाँ नए
शहरी वातावरण में नई खुदरा दुकानें और किराना स्टोर खोले गए।
19वीं शताब्दी के अंत तक, छावनियों, सिविल लाइंस (civil lines) और ऊपरी माल रोड के क्षेत्रों में
विद्युतीकरण किया गया। शहर और जनसांख्यिकीय विकास ने इसके समूहों के बीच गहरा सामाजिक
और आर्थिक परिवर्तन किया। हालांकि, यहां हिंदू व्यावसायिक जातियों ने नव-निर्मित शहरी वातावरण
का सबसे अधिक लाभ उठाया। वास्तव में वे ही मॉल में नई दुकानें खोलने वाले पहले व्यक्ति थे। उस
दौरान माल रोड पर जानकी दास और देवी चंद के डिपार्टमेंटल स्टोर सबसे प्रसिद्ध थे।
शहरीकरण ने न केवल कारीगर समुदाय और हिंदू व्यापारी वर्ग को लाभान्वित किया, बल्कि नौकरियों,
डेयरी-कृषि और बाजार- बागवानी जैसी गतिविधियों में लगी जातियों के लिए नए अवसर भी प्रदान किए।
ईसाई धर्मांतरण के प्रसार के साथ, निचली जाति की आबादी का एक बड़ा हिस्सा काम की तलाश में लाहौर
आया। 1911-1921 के दशक के दौरान मुसलमानों की संख्या में लगभग 20,000 तक वृद्धि हुई। जबकि
गैर-मुसलमानों की संख्या बढ़कर लगभग 30,000 हो गई। यह प्राकृतिक वृद्धि के बजाय प्रवास अधिक
था, जिसने बड़े पैमाने पर लाहौर की पर्याप्त जनसंख्या वृद्धि में योगदान दिया।
लेकिन समय के साथ शहर ने बड़े परिवर्तन देखे। 1921 की जनगणना के अनुसार, मुसलमानों ने शहर की
आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान किया और यह एक दशक बाद बढ़कर 58 प्रतिशत और
1941 में 64 प्रतिशत से अधिक हो गया। मुख्य रूप से ऐसा लाहौर नगरपालिका की सीमाओं के विस्तार
के कारण हुआ था। विभाजन की पूर्व संध्या पर, शहर के छप्पन कॉलेजों और हाई स्कूलों में से केवल
सोलह मुस्लिम समुदाय द्वारा चलाए जा रहे थे।
1947 के विभाजन से पहले, जब अमृतसर और लाहौर दोनों भारतीय राज्य पंजाब में थे, वहां हिंदू, मुस्लिम
और सिख सभी रहते थे, जिनका दोनों शहरों से गहरा संबंध था। लेकिन बंटवारे के बाद लाहौर ने अपने
सभी हिंदू और सिख, तथा अमृतसर, अपने सभी मुसलमानों को खो दिया। 1947 के बाद लाहौर का
विकास बहुत तेज गति से हुआ। नतीजतन 1991 की जनगणना में लाहौर की जनसंख्या 70 लाख थी,
जबकि अमृतसर की जनसंख्या 10 लाख से भी कम थी।
संदर्भ
https://bit.ly/3R7LpAx
https://bit.ly/3colHJf
चित्र संदर्भ
1. लाहौर एवं अमृतसर की पुरानी छवियों को दर्शाता एक चित्रण (Picry, flickr)
2. मेरठ शहर की प्रसिद्ध इमारतों को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. पुराने स्वर्ण मंदिर सहित अमृतसर शहर को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
4. मानचित्र में लाहौर एवं अमृतसर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. लाहौर की घाटी (C.1860-1880) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. भारत, लाहौर में एक सड़क, भारतीय गेहूं क्षेत्र के केंद्र को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
7. लाहौर रेलवे स्टेशन पर गांधीजी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)