समय - सीमा 276
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1031
मानव और उनके आविष्कार 812
भूगोल 249
जीव-जंतु 301
| Post Viewership from Post Date to 09- Sep-2022 (30th Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 5168 | 24 | 0 | 5192 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
कन्नड़ साहित्य भारतीय और विश्वसाहित्य का अत्यधिक विकसित रूप है।8वीं
शताब्दी के "कविराजमार्ग" को कन्नड़ साहित्य की ऐसी पहली रचना माना जाता
है जो आज तक अपने मूल भाषा रूप में जीवित है। कविराजमार्ग से शुरू होकर,
और 12वीं शताब्दी के मध्य तक कन्नड़ में साहित्य लगभग विशेष रूप से
जैनियों द्वारा रचित था, जिन्हें चालुक्य, गंगा, राष्ट्रकूट, होयसल और यादव
राजाओं द्वारा संरक्षण प्राप्त हुआ। हालांकि कविराजमार्ग जो राजा अमोघवर्ष के
शासनकाल के दौरान लिखा गया था,भाषा में सबसे पुराना साहित्यिक कार्य है,
लेकिन आमतौर पर आधुनिक विद्वानों द्वारा यह माना गया है कि गद्य, पद्यऔर व्याकरण संबंधी परंपराएं पहले से मौजूद रही होंगी।
12वीं शताब्दी के लिंगायतवाद आंदोलन ने नए साहित्य का निर्माण किया,जो
जैन कार्यों के साथ फला-फूला। 14वीं शताब्दी के विजयनगर साम्राज्य के दौरान
जैन प्रभाव के ह्रास के साथ, 15वीं शताब्दी में एक नए वैष्णव साहित्य का
तेजी से विकास हुआ। 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद
कन्नड़ साहित्य को विभिन्न शासकों का समर्थन प्राप्त था, जिनमें मैसूर
साम्राज्य के वोडेयार और केलाडी के नायक शामिल थे।19वीं शताब्दी में, कुछ
साहित्यिक रूप, जैसे गद्य कथा, उपन्यास और लघु कहानी, अंग्रेजी साहित्य से
लिए गए थे।
पिछली आधी सदी के दौरान,कन्नड़ भाषा के लेखकों को भारत में आठ ज्ञानपीठ
पुरस्कार, 63 साहित्य अकादमी पुरस्कार और 9 साहित्य अकादमी फैलोशिप
प्राप्त हुई। कन्नड़ साहित्य से एक और नाम जुड़ा हुआ है, और वो है नवोदय
कन्नड़ साहित्य। आधुनिक युग, नवोदय कन्नड़ साहित्य को एक विशिष्ट रूप
में पहचानना महत्वपूर्ण है,जिसने बंगलौर और यहां तक कि ग्रामीण कर्नाटक के
जीवन को बहुत प्रभावित किया है।कई महत्वपूर्ण नवोदय क्लासिक्स का अभी
भी हिंदी में अनुवाद किया जाना बाकी है।लेकिन ऐसे कई हिंदी भाषी हैं,जो
कन्नड़ सीखते हैं और अक्सर नवोदय से प्रभावित होते हैं। यह प्रभाव उनकी
भाषा में दिखाई देता है, जब वे यह कहते हैं, कि "चन्नागिदिरा?", नानागे
कर्नाटकादल्ली इरालु तुम्बा खुशी इधे। (अर्थात क्या आप ठीक हैं?मैं यहां
कर्नाटक में आकर बहुत खुश हूं)।
आधुनिक कन्नड़ साहित्य के विकास के साक्ष्य 19वीं शताब्दी की शुरुआत से
प्राप्त होते हैं,जब महाराजा कृष्णराज वोडेयार तृतीय और उनके दरबारी कवियों
ने गद्य के प्राचीन चंपू रूप से संस्कृत महाकाव्यों और नाटकों के गद्य
प्रतिपादन की ओर रूख किया। केम्पु नारायण की “मुद्रा मंजुषा” कन्नड़ में
लिखा गया पहला आधुनिक उपन्यास है।20वीं शताब्दी की पहली तिमाही
आधुनिक नवोदय कन्नड़ साहित्य के लिए प्रयोग और नवाचार की अवधि थी,
किंतु बाद की तिमाही में इसने कई रचनात्मक उपलब्धियां प्राप्त की।
इस
अवधि में ऐसे कई प्रशंसित गीतकारों का उदय हुआ,जिनकी कृतियों में देशी
लोकगीत और मध्यकालीन वचनों और कीर्तन की रहस्यवादी कविताओं को
आधुनिक अंग्रेजी रोमांटिक प्रभाव के साथ जोड़ा गया है। इन प्रशंसित गीतकारों
में कुछ सबसे प्रसिद्ध गीतकार डी.आर बेंद्रे, गोपालकृष्ण अडिगा, के.वी.
पुट्टप्पा (कुवेम्पु), शिवराम कारंत, वी.के. गोकक, मस्ती वेंकटेश अयंगर, डी.वी.
गुंडप्पा, पी.टी. नरसिम्हाचर, एम.वी. सीतारामैया, जी.पी राजारत्नम, के.एस
नरसिम्हास्वामी और आद्या रंगाचार्य ('श्री रंगा') और गोरूर रामास्वामी अयंगर
आदि हैं।
आधुनिक कन्नड़ गीतकारों में सबसे उत्कृष्ट गीतकार बेंद्रे को माना जाता
है,जिन्होंने 27 कविताओं का संग्रह लिखा। उनके संग्रह में गरी ("विंग-wing,
1932), नदलीला (Nadaleela-1938) और सखीगीता (Sakhigeetha-
1940) जैसी उत्कृष्ट कृतियाँ शामिल हैं।
उनकी कविताओं में उनके बारे में एक
दिव्य गुण था जो न तो कथात्मक था और न ही नाटकीय। उन्होंने देशभक्ति,
प्रकृति प्रेम, वैवाहिक प्रेम, दिव्य अनुभव और गरीबों के लिए सहानुभूति सहित
कई विषयों को कवर किया।
सखीगीता उनके विवाहित जीवन और व्यक्तिगत
अनुभवों के बारे में एक आत्मकथात्मक कविता है।
के.वी पुट्टप्पा, जो बाद में
कन्नड़ के पहले ज्ञानपीठ (Jnanpith) पुरस्कार विजेता बने, ने अपनी महान
कृति श्री रामायण दर्शनम (1949) के साथ रिक्त छंद लिखने में महान प्रतिभा
का प्रदर्शन किया।यह काम आधुनिक कन्नड़ महाकाव्य कविता की शुरुआत का
प्रतीक है।इस काल के अन्य महत्वपूर्ण कार्य मस्तीस नवरात्रि (Masti's
Navaratri) और पी. टी. नरसिम्हाचर की हनथे (hanathe)है। इस समय
काव्य नाटक का विकास बी.एम श्री की “गदायुद्ध नाटकम” (1925) से प्रेरित
था।
बाद के नवोदय काल (1950-1975) में नव्या (आधुनिकतावादी) और
प्रगतिशिला (प्रगतिशील) जैसे नए रुझानों का उदय हुआ, हालांकि पूर्व के समय
के महान साहित्यकारों ने पुरानी नवोदय शैली में उल्लेखनीय काम करना जारी
रखा। शिवराम कारंत की मुकज्जिया कनासुगलु (Mookajjiya Kanasugalu)
जैसी उल्लेखनीय कृतियों के साथ नवोदय शैली के उपन्यास सफल होते रहे,जहां
लेखक ने देवी मां में मनुष्य के विश्वास की उत्पत्ति और सभ्यता के विकास के
चरणों का अंवेषण किया।कुवेम्पु की मालेगल्लाली मदुमगलु("द ब्राइड ऑफ द
हिल्स–The Bride of the Hills,1967) समाज के हर तबके में मौजूद प्रेम
संबंधों के बारे में है।एक नाटककार होने के नाते, श्री रंगा ने अपने पुरुषार्थ
(1947) को एक नाटकीय स्पर्श दिया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3BJQVEU
https://bit.ly/3db3mzC
https://bit.ly/3P2zItF
https://bit.ly/3bxbf1H
चित्र संदर्भ
1. कन्नड़ पांडुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कविराजमार्ग के एक श्लोक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कृष्णराज वाडियार III (1794-1868), भारत में मैसूर रियासत के शासक महाराजा, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. आधुनिक कन्नड़ गीतकारों में सबसे उत्कृष्ट गीतकार बेंद्रे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. शिवराम कारंत की मुकज्जिया कनासुगलु के कवर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)