Post Viewership from Post Date to 07-Sep-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2190 19 2209

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

कपड़ों पर बढ़ते हुए जीएसटी के साथ भारतीय पारंपरिक हथकरघा उद्योग के लिए अन्य चुनातियाँ

मेरठ

 08-08-2022 08:51 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

भारत में हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, सरकार और अन्य संगठन देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में हथकरघा बुनाई समुदाय को अपने अपार योगदान के लिए सम्मानित करते हैं। यह दिन भारत की अपनी गौरवशाली हथकरघा विरासत की रक्षा करने और आजीविका सुनिश्चित करने के लिए अधिक से अधिक अवसरों के साथ बुनकरों और श्रमिकों को सशक्त बनाने की पुष्टि का भी प्रतीक है।
प्राचीन भारतीय संस्कृति और पारंपरिक सभ्यता को प्रदर्शित करता हथकरघा उद्योग छोटे-बड़े हर क्षेत्र के बुनकरों के लिए आय के सबसे बड़े माध्यमों में से एक है। पुराने समय से ही भारत में हाथ से बने हुए वस्त्रों को धारण करने का चलन है। मुख्यत: हथकरघा उद्योग तब मजबूत हुआ जब महात्मा गाँधी जी ने खादी को अपनी स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का हिस्सा बनाया। सभी भारतीय स्वदेशी वस्तुओं सहित हाथ से बने हुए वस्त्रों का उपयोग करें, यह गांधीजी का सपना था। भारत में विदेशी शासन के परिणामस्वरुप मशीनों से तैयारवस्त्रों को पहनने की प्रथा चलन में आई है। वर्तमान समय में भी पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव हमारे वस्त्र- आभूषणों में देखा जा सकता है। कई वर्षों से हथकरघा उत्पाद सामाजिक, आर्थिक, वैचारिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण कपड़ों पर लगे वस्तु एवं सेवा कर (GST) के बढ़ते प्रतिशत को माना जा रहा है। वर्ष 2022 में सूक्ष्म लघु और मध्यम वर्ग के कपड़ा उत्पादकों के लिए बढ़ते हुए वस्तु एवं सेवा कर बहुत चिंताजनक रहे हैं। देश में लगभग 80% कपड़ा उत्पादक सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयों से आते हैं। वस्तु एवं सेवा कर 5% से बढ़कर 12% तक पहुँच है। कपड़ा उद्योग अधिकतम 3 से 5% तक की कर वृद्धि का सामना करने में सक्षम है।
किंतु कर में 7% की बढ़ोत्तरी अचानक और बहुत तीव्र है। इस वृद्धि से कपड़ा उद्योग जगत में गहन निराशा की लहर व्याप्त है। कई लोगों का मानना है कि भारतीय पारंपरिक वस्त्र उद्योग पहले ही देश में पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव और बदलते फैशन (Fashion) का सामना कर रहा है ऊपर से बढ़ते हुए कर के कारण हथकरघा उद्योग रोजगार में बहुत कमी आई है। कई बुनकरों ने हथकरघा जो कि उनका पैतृक व्यवसाय हुआ करता था को छोड़ दूसरे रोज़गार की तरफ रुख कर लिया है। उनका मानना है कि हथकरघा व्यवसाय से प्राप्त आय में कुछ वर्षों में भारी कमी आई है। जिससे परिवार का भरण-पोषण करना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। समय के साथ ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो हथकरघा व्यवसाय को छोड़कर रोजगार के वैकल्पिक अवसर तलाशने के लिए बाध्य हैं। वर्ष 1995-96 में आयोजित दूसरी हथकरघा जनगणना के अनुसार 65.5 लाख लोग हथकरघा और संबंधित व्यवसाय से जुड़े हुए थे। वही वर्ष 2009-10 में उनकी संख्या घटकर 43 लाख ही रह गए हैं। कई वर्षों से इस क्षेत्र में रोजगार में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
कुछ आंकड़ों पर नजर डालें तो मंत्रालय की 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 में हथकरघा वस्त्रों का उत्पादन 64,332 लाख वर्ग मीटर था, जो 2016-17 में घटकर 63,480 लाख वर्ग मीटर रह गया। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009-10 में हथकरघा बुनकरों की औसत आय 37,704 रुपये प्रति वर्ष थी। एक सभ्य जीवन जीने के लिए यह आय पर्याप्त नहीं है। पिछले 5 वर्षों से हथकरघा उद्योग बजट आवंटन में भी भारी गिरावट आई है। इसे नीचे दिए गए ग्राफ द्वारा आसानी से समझा जा सकता है: बीते कई वर्षों से हथकरघा उद्योग की सामाजिक व राजनैतिक स्थिति और देश की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान सराहनीय नहीं रहा है। इसकी उत्पादकता और दक्षता को भारतीय समाज में गंभीर रूप से नहीं लिया गया है। हथकरघा उत्पादों की नकल और इसके बाजारों के अवैध अतिक्रमण के फलस्वरुप हथकरघा उद्योग का विकास हाशिये पर पहुंच गया है। हथकरघा ग्रामीण क्षेत्रों में की जाने वाली एक घरेलू गतिविधि है। देश में उदारीकरण के बाद हथकरघा उद्योग को कपड़ा व्यापार के विकास में वह जगह नहीं मिल पाई है जो मिलनी चाहिए थी।
मेरठ सहित उत्तर प्रदेश के कई शहरों में जीएसटी की बढ़ती दर के विरोध में कई कपड़ा व्यापारियों ने विरोध प्रदर्शन किया। उनका मानना है कि इन ऊंची दरों के साथ बढ़ते कपड़े के मूल्यों के कारण छोटे और मध्यम वर्गीय व्यापारी और बुनकर बाजार में अपना अस्तित्व नहीं बचा पाएँगे। सरकार ने कपास और ₹1000 से कम कीमत वाले कपड़ों पर जीएसटी की दर 5% और ₹1000 से ऊपर की कीमत वाले कपड़ों पर जीएसटी की दर 12% तय की है। शहर में इसके विरोध में हथकरघा वस्त्र व्यापारी संघ ने 1 दिन की हड़ताल भी की। संगठन के अध्यक्ष नवीन अरोड़ा के अनुसार कई बुनकर गरीब तबके से आते हैं।
कई सहकारी समितियां और मास्टर बुनकर आमतौर पर छोटे बुनकरों को सूत और रंगों की आपूर्ति करते हैं। तैयार किए गए कपड़ों की आपूर्ति बाजार में इन समितियों या मास्टर बुनकरों द्वारा की जाती है। छोटे बुनकर जिनके पास करघे नहीं होते हैं वे मास्टर बुनकरों के अंतर्गत काम करते हैं। बुनकरों का यही तबका सबसे गरीब श्रेणी से आता है। कर की उच्च दरों के कारण हथकरघा उत्पादों की बिक्री में भारी कमी आएगी जिसका सीधा असर इन गरीब बुनकरों पर पड़ेगा। हथकरघा एक भावनात्मक विचार मात्र नहीं बल्कि हमारी पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत है। यदि हम इसे बचाना चाहते हैं तो सरकार सहित सभी आम नागरिकों को इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार को हाथ से बुने हुए वस्त्रों के प्रति आम नागरिक को जागरूक करने की आवश्यकता है। इसके लिए सोशल मीडिया अभियान (Social Media Campaign) चलाए जा सकते हैं। इसके अलावा बुनकरों को भी प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हथकरघा उत्पादों को बेचने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए। हम सभी के प्रयासों से ही हम हथकरघा को भविष्य के लिए जीवित रखने में सक्षम हो पाएँगे। सरकार को हथकरघा उद्योग में कच्चे माल की आपूर्ति, उत्पादों की गुणवत्ता और शिक्षण-प्रशिक्षण में निवेश करने की आवश्यकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3Svb9YW
https://bit.ly/3Q2ccOJ
https://bit.ly/3d8gyFn
https://bit.ly/3zW63hk

चित्र संदर्भ
1. भारतीय बुनकर एवं जीएसटी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. हथकरघा बुनते बुजुर्ग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. वस्तु एवं सेवा कर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id