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भारतीय धर्मग्रंथ और शास्त्र सदियों से ज्ञान के महान स्त्रोत रहे हैं। फिर चाहे वह चिकित्सा से
सम्बंधित हो, विज्ञान से सम्बंधित हो या गणित और खगोल से संबंधित विषय हो। आधुनिक
युग में भी इनमें लिखित विषय-समाग्री वैज्ञानिकों और गणितज्ञों का मार्गदर्शन करती है।खगोल
विज्ञान और गणित की पांडुलिपियों का कई दशकों से सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण किया गया
है।अनुमानित रूप से खगोल विज्ञान और गणित के 9000 कार्य-स्त्रोतों को लगभग 30,000
पांडुलिपियों में संग्रहित किया गया है।
सन् 1800-1947 के दौरान मात्र 150 ग्रंथों क संपादन
और 30 ग्रंथों का अनुवाद किया गया है। इसके पश्चात सन् 1948-2019 के दौरान अन्य 300
ग्रंथों क संपादन और 66 ग्रंथों का अनुवाद विस्तृत और व्याख्यात्मक टिप्पणियों के साथ किया
गया है।भारतीय खगोल विज्ञान और गणित के कार्य-स्त्रोतों का व्यवस्थित अध्ययन 1780 के
दशक से आरम्भ हुआ। जिनमें से कुछ वर्ष 1784 में कलकत्तामें स्थापित एशियाटिक सोसाइटी
(Asiatic Society) द्वारा एक जर्नल (Journal) में प्रकाशित हुए थे।
पांडुलिपियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं और इनका संरक्षण एक गंभीर विषय है। हालाँकि कई
संग्रहालयों में इन्हें आज भी सुरक्षित रखा गया है। परंतु इनका संग्रह, सूचीकरण, डिजीटलीकरण
(Digitalization), सम्पादन, प्रकाशनऔर सुव्यवस्थित अध्ययन प्राथमिकता देने योग्य है।दिवंगत
प्रो. डेविड पिंगरी(David Pingree) ने अपना अधिकतर समय भारतीय पांडुलिपियों के अध्ययन
में गुजारा। उनका अनुमान था कि यदि सार्वजनिक व सरकारी पुस्तकालयों और निजी संग्रहों को
गिना जाए तो अब तक लगभग 30 लाख पांडुलिपियाँ मिली हैं।सार्वजनिक पुस्तकालयों के
प्रकाशित कैटालॉग(Catalog) के आँकड़ों के अनुसार, गुजरात के काबा में एक जैन पांडुलिपी
पुस्तकालय है। 2003 में इसके द्वारा प्रकाशित कैटलॉगके अनुसार यहाँ अनुमानित 250,000
पांडुलिपियाँमौजूद हैं।इसके अलावा बनारस शहर के सरस्वती भवन पुस्तकालय में 100,000 से
अधिक पांडुलिपियाँ संग्रहित हैं।तमिलनाड़ु के तंजावुर में स्थित सरस्वती महल पुस्तकालय में
50,000 पांडुलिपियाँ संग्रहित हैं।
वर्ष 1965 में भारतीय पांडुलिपियों के कैटलॉग का पहला व्यवस्थित सर्वेक्षण क्लाउस जेनेर्ट
(Klaus Janert) द्वारा प्रकाशित किया गया जिसमें उन्होंने अनुमान लगाया कि भारतीय
पांडुलिपियों की कुल संख्या दस लाख से भी अधिक हो सकती है।विभिन्न संग्रहालयों द्वारा
प्रकाशित किए गए कैटालॉग के माध्यम से पांडुलिपियों को विस्तृत रूप से सूचीबद्ध किया जाता
है। इनमें से कई पांडुलिपियों को सूचीबद्ध करते समय पांडुलिपि में उल्लेखित प्रत्येक पाठ को
शीर्षक के साथ व्यवस्थित रूप से उल्लेखित करते हैं।विभिन्न विषयों में पांडुलिपियों की सीमा
का आकलन करने के लिए, विभिन्न कैटलॉग में प्रदान की गई जानकारी को व्यवस्थित रूप से
एक 'संघ सूची' में संकलित करना आवश्यक होता है, जिसमें लेखक, अनुशासन, भाषा, विषय-
वस्तु जैसे कई तथ्यों के साथ कार्यों को सूचीबद्ध किया जाता है।इस प्रकार का पहला संकलन
थियोडोर औफ्रेच (Theodor Aufrecht) ने अपने कैटलॉग में किया था, जो 1891-1903
(औफ्रेच, 1891, 1896 और 1903) के दौरान तीन खंडों में प्रकाशित हुआ था। यह कार्य 94
कैटलॉग पर आधारित है।
भाषा के आधार पर भारतीय पांडुलिपियों के वितरण को इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया है:
भाषा पांडुलिपियों की संख्या प्रतिशत
वर्ष 1998 में सुभाष बिस्वास और एम. के. प्रजापति द्वारा प्रकाशित भारतीय पांडुलिपियों के
कैटलॉग के सर्वेक्षण द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसारभारतीय पांडुलिपियों की कुल संख्या
लगभग 3.5 लाख है। जिनमेंसे मात्र 1 लाख ही सूचीबद्ध की गई हैं।हमारे देश में अलग-अलग
स्थानों में बिखरी कई हजारों पांडुलिपियों के सुव्यवस्थित संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय मिशन
स्थापित करने की योजना बनाई गई है। इस मिशन को तीन चरणों में बाँटा गया है।पहले चरण
में उन सभी संस्थानों/व्यक्तियों की एक निर्देशिका का संकलन और प्रकाशन तथाउनके
ऐतिहासिक महत्व, भौतिक स्थिति और उपलब्ध संरक्षण सुविधाओं के आँकड़े एकत्र करनेहोंगे
जहाँसभी पांडुलिपियों को रखा गया है।
दूसरे चरण में एकत्र किए गए आंकड़ों के विश्लेषण और
भौतिक सत्यापन तथा इन पांडुलिपियों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर (Register) तैयार करने की
परिकल्पना की गई है, जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होगा।तीसरे और अंतिम
चरण में इन दुर्लभ पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा ताकि बिना किसी भौतिक
संचालन के इन पांडुलिपियों तक पँहुचा जा सके।इस मिशन को राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन कहा
गया जिसकी स्थापना फरवरी, 2003 में केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा की गई थी।
जिसके अंतर्गत वर्ष 2004-2005 के दौरान दिल्ली में आयोजित किए गए एक वर्षीय प्रायोगिक
क्षेत्र-सर्वेक्षणकी रिपोर्ट के अनुसार उड़ीसा, बिहार के राज्यों में 35,000 संग्रहालयों में वितरित
650,000 पांडुलिपियों का दस्तावेजीकरण किया गया। वर्तमान समय में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन
के वेबपेज (webpage) पर 1,00,00,000पांडुलिपियों के होने का अनुमान लगाया गया है।
अभी तक पांडुलिपियों के धन का उल्लेख केवल तमिल पांडुलिपियों में मिला है।वर्ष 1991 में,
तमिल विश्वविद्यालय तंजावुर ने 21,973 तमिल पाण्डुलिपियों का एक पांच खंड का संघ
कैटलॉग प्रकाशित कियाजो 17 भारतीय भंडारों (जहाँ 20,804 पांडुलिपियों को रखा गया है) और
विदेशों में स्थित 22 भंडारों (जहाँ 1,169 पांडुलिपियों को रखा गया है) से प्रकाशित विभिन्न
कैटलॉग में सूचीबद्ध किया गया है। तमिल पांडुलिपियों में धर्म, दर्शन, मानविकी और सामाजिक
विज्ञान, साहित्य, भाषा, चिकित्सा तथा ज्योतिष शास्त्रको विशेष स्थान दिया गया है। कुछ
आँकड़ों के अनुसार लगभग 3,350 पांडुलिपियाँ (जिनका कुल 15.3% भाग) चिकित्सा से
औरलगभग 1,250 पांडुलिपियाँ (जिनका कुल 5.7% भाग) ज्योतिष शास्त्र से संबंधित है। इसके
अलावा, खगोल विज्ञान और गणित पर लगभग 120 पांडुलिपियाँ, वास्तुकला पर 100 और
रसायन विज्ञान पर 40 पांडुलिपियाँउपलब्ध हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3Jx7shy
https://bit.ly/3vJtms4
चित्र संदर्भ
1. प्राचीन पाण्डुलिपि एवं गणितज्ञों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, youtube)
2. पाण्डुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
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