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आपने आखिरी बार अपने घर में कब एक घरेलू गौरैया (पैसर डोमेस्टिकस (Passer domesticus))
को आते हुए देखा होगा?शायद, उन्हें देखे काफी समय हो गया हो। ये कभी आमतौर पर दिखने वाले
पक्षी अब भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में दुर्लभ होते जा रहे हैं।ब्रिटेन (Britain) की रॉयल
सोसाइटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स (Royal Society for Protection of Birds) ने हाल ही में
घरेलू गौरैया को अपनी लाल सूची(तेजी से घटती पक्षी की आबादी के लिए, जो वैश्विक संरक्षण के
लिए चिंता का विषय है) में शामिल किया है।इस एवियन (Avian) प्रजाति को अभी भी दुनिया की
दो-तिहाई से अधिक भूमि की सतह पर देखा जा सकता है। लेकिन पूरे भारत और दुनिया भर से इन
पक्षियों की आबादी में तेजी से गिरावट की खबरें आ रही हैं।प्राचीन रोमियों द्वारा घरेलू गौरैया को
उत्तरी अफ्रीका और यूरेशिया (Eurasia) से यूरोप (Europe) में लाया गया। हालांकि मानव अन्वेषण
और प्रवास की वजह से पक्षी उत्तर और दक्षिण अमेरिका (America), दक्षिण अफ्रीका (Africa),
ऑस्ट्रेलिया (Australia) और न्यूजीलैंड (New Zealand) सहित दुनिया के कई अन्य हिस्सों में लाई
गई। एक सामाजिक पक्षी होने के कारण, गौरैया मनुष्यों के आस-पास और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध
भोजन वाले क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में पनपती रही। इनके द्वारा 19वीं सदी के अंत में अनाज और अन्य
फसलों को नुकसान पहुंचाने के लिए'एवियन चूहा' के रूप में उपहासित किए जाने के बावजूद, गौरैया
द्वारा कई देशों में लगातार उपनिवेश स्थापित किया गया। हालांकि बड़ी संख्या में इस चंचल पक्षी
का मरना और भी चौंकाने वाला है क्योंकि यह एक उत्तरजीवी पक्षी है।गौरैयों को हिमालय में ऊपर
और नीचे यॉर्कशायर कोयला खदानों में प्रजनन करते हुए पाया गया है। अपने इलाके या शहर में
इसकी घटती आबादी को देखते हुए भारत के कई उत्साही पक्षी-दर्शकों द्वारा सैकॉन से संपर्क किया
गया। इनकी इस घटती आबादी के पीछे का कारण आधुनिक कंक्रीट की इमारतों में घोंसले के स्थलों
की कमी, गायब हो रहे रसोई बगीचे और एक विशेष कीटडिंभ (हेलिकोवरपा आर्मिगेरा
(Helicoverpaarmigera)) की अनुपलब्धता हैं।
दरसल पूर्व में भारत में शहरी परिवार सब्जी मंडियों
से सब्जी उगाने के लिए फली को खरीदते थे। जब फली टूट जाती है, तो इससे एक कीटडिंभ बाहर
निकलता है, जिसे गौरैयों द्वारा तुरंत खा लिया जाता था। लेकिन अब जबकि पैकेट में ताजे बीज
उपलब्ध हैं, ये कीटडिंभ गायब हो गए हैं, जिसके वजह सेगौरैया वंचित हो गई हैं।
वहीं जहां भारत के कई क्षेत्रों से इनकी आबादी के गायब होने की उदासीन खबरें आ रही हैं, वहीं
अनाइकट्टी (Anaikatty), कोयंबटूर में नए सैकॉन परिसर (Sacon campus) में गौरैयों की भीड़
उमड़ रही है। आज परिसर में इनमें से लगभग 30 पक्षी मौजूद हैं।यह विपरीत घटना प्रसिद्ध
वास्तुकार, लॉरी बेकर द्वारा बनाए गए परिसर के पर्यावरण के अनुकूल भवनों के कारण हो सकती
है। इन इमारतों में वायु-प्रवाहक गौरैयों के लिए आरामदायक घोंसले के स्थल प्रदान करते हैं।घरेलू
गौरैया का पतन केवल भारत तक ही सीमित नहीं है।
लंदन (London) के पक्षी प्रेमियों द्वारा भी
इसके लुप्त होने की चिंता को जताया जा रहा है। मध्य लंदन में सबसे प्रचुर मात्रा में वन्यजीव क्षेत्र
के रूप में प्रतिष्ठित बकिंघम पैलेस (Buckingham Palace) में गौरैया की आबादी घटकर शून्य हो
गई है।ब्रिटिश ट्रस्ट फॉर ऑर्निथोलॉजी (British Trust for Ornithology) के कॉमन बर्ड सेंसस
प्रोग्राम (Common Bird Census Programme) ने ब्रिटेन के ग्रामीण क्षेत्रों में 1973 से 1988 तक
58 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की।एक ब्रिटिश ट्रस्ट फॉर ऑर्निथोलॉजी द्वारा इनके घोंसले की
जनगणना ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 53 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की।ब्रिटिश गौरैया का
पतन 20वीं सदी की शुरुआत में ही शुरू होने का अनुमान है, जब ऑटोमोबाइल्स ने घोड़ों द्वारा
खींची जाने वाली गाड़ी को बदलना शुरू कर दिया था।
घोड़ों को प्रदान किए जाने वाले चारे कई बार
घोड़ा गाड़ी के मार्गों में गिर जाते थे, जिन्हें गौरैयों द्वारा आसानी से चुन लिया जाता था। लेकिन
शहरी सड़कों से घोड़ों के गायब होने के कारण गौरैयों को एक मूल्यवान खाद्य स्रोत से वंचित होना
पड़ा।छोटी गौरैया की घूमने का क्षेत्र छोटा होता है। इसके अलावा, ये अपने नवजात को पोषण देने के
लिए कीड़े प्रदान करती हैं। लेकिन उद्यान शाकनाशी और कीटनाशकों ने कीड़ों की आबादी को कम
कर दिया है, जिससे गौरैया का एक ओर अन्य खाद्य स्रोत कम हो गया है। संपूर्ण विश्व में बदलती
जीवन शैली और स्थापत्य विकास ने पक्षी के आवास और खाद्य स्रोतों पर कहर बरपाया है। छज्जों
और छेदों से रहित आधुनिक इमारतें, गायब हो रहे घर के बगीचे और रासायनिक कीटनाशकों के
उपयोग से खेतों से समाप्त होते कीड़े, सभी विशेष रूप से नवजात गौरैयों के लिएघोंसलों के स्थलों
और भोजन की कमी में एक अहम भूमिका निभाते हैं।
हालांकि गौरैया की आक्रामक प्रकृति के बावजूद भी गौरैया के सक्रिय और सामाजिक पक्षी होने की
वजह से काफी पसंद किया जाता है। और इनके खरपतवार के बीज का सेवन करने की वजह से वे
बगीचे में सच्चे दोस्त बन जाते हैं जहाँ वे प्राकृतिक खरपतवार नियंत्रण प्रदान करते हैं।
चूंकि
अधिकांश गौरैया जमीन पर रहने वाले पक्षी हैं, वे आसानी सेसड़ने या अंकुरित होने का मौका मिलने
से पहले गिरे हुए बीजों को हटा देती हैं, और यह सुनिश्चित करती हैं कि कोई भी खाद्य बीज बेकार
न जाए।कई अलग-अलग प्रकार की गौरैयाएँ हैं, जिन्हें बगीचों में आकर्षित किया जा सकता है। उत्तरी
अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में, न्यू वर्ल्ड गौरैया एम्बरिज़िडे (Emberizidae) पक्षी परिवार के
सदस्य हैं, और गौरैया जो आसानी से पक्षी-अनुकूल बगीचे में स्वयं आएंगी उनमें शामिल हैं:अमेरिकी
ट्री स्पैरो (American tree sparrow); चिपिंग स्पैरो (Chipping sparrow); डार्क-आइड जंको
(Dark-eyed junco); पूर्वी तौही (Eastern towhee); फॉक्स स्पैरो (Fox sparrow); गोल्डन क्राउन्ड
स्पैरो (Golden-crowned sparrow); हैरिस स्पैरो (Harris's sparrow); लिंकन स्पैरो (Lincoln's
sparrow); सॉन्ग स्पैरो (Song sparrow); चित्तीदार तौही (Spotted towhee); व्हाइट क्राउन्ड स्पैरो
(White-crowned sparrow); व्हाइट थरोटेडस्पैरो(White-throated sparrow)।यूरोप, एशिया और
अफ्रीका में, गौरैया पससेरिडे (Passeridae)परिवार का हिस्सा हैं, और सबसे आम आँगन और बगीचे
की किस्मों में हाउस स्पैरो (House sparrow), यूरेशियन ट्री स्पैरो (Eurasian tree sparrow) और
रॉक स्पैरो (rock sparrow) शामिल हैं।अपने आँगन या बगीचे में इन पक्षियों को आकर्षित करने के
लिए अपने बगीचे में भोजन, पानी, आश्रय और घोंसले के स्थलों को स्थापित करें। एक बगीचे को
गौरैया के अनुकूल बनाने के लिए, गौरैयों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करना आवश्यक है ताकि वे
आवास में सुरक्षित और आरामदायक महसूस करें।
1) भोजन: गौरैया आमतौर पर दाने चुनने वाली होती हैं और कई तरह के बीज और अनाज का सेवन
करती हैं। बीज वाले फूल और घास प्राकृतिक खाद्य स्रोत हो सकते हैं, या बाजरा, उद्भ्रांत मक्का,
या सूरजमुखी के बीज की पेशकश आदर्श है।बीजों को सीधे जमीन पर या बड़े, कम ऊंचाई वाले फीडर
(Feeder) में पेश किया जाना चाहिए जो कि चारागाहों को समायोजित कर सकें।
2) पानी: जैसा कि ये पक्षी नीचे रहना पसंद करते हैं इसलिए इनके लिए ऊंचे जल स्रोतों की तुलना में
नीचे स्थापित जल स्रोत इनका अधिक ध्यान आकर्षित करने में मदद करेंगे।
3)आश्रय: गौरैया डरपोक होती हैं और अगर उन्हें खतरा महसूस होता है तो वे जल्दी से घने आश्रय में
चली जाती हैं। सदाबहार पत्ते सहित मोटी झाड़ियाँ, एक बगीचे को गौरैया के अनुकूल बनाने में मदद
कर सकती हैं, और झाड़ी का ढेर जोड़ना पूरक आश्रय के लिए अच्छा है।
4) घोंसले के स्थल: कुछ गौरैया पक्षियों द्वारा उचित प्रवेश छेद के आकार वाले चिड़िया घरों में ही
घोंसला बनाया जाता है, इसलिए यदि संदेह हो, तो कुछ बड़े छेद वाले मूल, साधारण चिड़िया घर का
चुनाव करें।
यहां तक कि जब एक बगीचा एक गौरैया की सभी जरूरतों को पूरा करता है, तो भी कई बार पक्षी
अपने शर्मीले स्वभाव के कारण नियमित मेहमान बनने के लिए अनिच्छुक हो सकते हैं।
यदि आपको
गौरैयों को आकर्षित करने में परेशानी हो रही है, तो निम्न उपायों को करने का प्रयास करें:
# धूल में लोट-पोट होने के लिए उपयुक्त ढीली मिट्टी के साथ एक धूप वाला क्षेत्र प्रदान करें।
# जमीन पर रहने वाले पक्षियों का शिकार करने वाली जंगली बिल्लियों को दूर रखें।
# खतरे से बचने के लिए पक्षियों के उड़कर छुपने के लिए कई घने क्षेत्रों का निर्माण करें।
# बड़े गौरैयों के झुंड को समायोजित करने के लिए कई आहार क्षेत्रों की स्थापना करें।
गौरैयों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करके, प्रत्येक पक्षी प्रेमी इन पक्षियों के साथ का आनंद ले सकते
हैं और इनकी घटती आबादी को भी नियंत्रित करने में हम अपना अहम योगदान दें सकते हैं। पक्षियों
की घटती आबादी पहले से ही एक विशिष्ट चिंता का विषय बनी हुई है, ऊपर से ये बढ़ती गर्मी के
कहर का असर पक्षियों को काफी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। पिछले कुछ महीनों में लंबे समय से
चली आ रही लू का असरअब दिखना शुरू हो गया है। उत्तरी भारत में,पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा
लंबे समय तकहो रही गर्मीऔर आसपास के जल स्रोत जैसे तालाब और नहर के सूखने के
कारण,आसमान से निर्जलित पक्षियों के गिरने की सूचना दीगई है।वहीं अस्पताल के डॉक्टरों के
मुताबिक इस वर्ष दर्ज की गई उच्च गर्मी के कारण गंभीर हालत और इलाज के लिए लाए जाने वाले
पक्षियों की संख्या में दस गुना वृद्धि हुई है।अस्पताल में लाए जाने के बाद, डॉक्टर द्वारा पानी और
मल्टीविटामिन के मिश्रण से पक्षियों का इलाज किया जाता है। वहीं विभिन्न गैर सरकारी संगठनों
और पर्यावरणविदों ने लोगों से आग्रह किया था कि वे पक्षियों के लिए पानी के कटोरे अपनी छतों पर
रखें ताकि उन्हें निर्जलीकरण से बचाया जा सके।शुक्र है कि मानसून यहाँ अब पक्षियों, जानवरों और
इंसानों को समान रूप से राहत दे रहा है!
संदर्भ :-
https://bit.ly/3OvvDhf
https://bit.ly/3J1CVIo
https://bit.ly/3RZ7gLG
चित्र संदर्भ
1. घरेलू गौरैया के जोड़े को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. दाना चुगती घरेलू गौरैया को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. आईयूसीएन संस्करण 2019 के अनुसारहाउस स्पैरो पासर डोमेस्टिकस का वितरण नक़्शे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गौरैया के जोड़े को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पानी पीती गौरैया को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
6. मृत पड़ी गौरैया को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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