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कृषि प्रधान देश भारत में किसान होना, खेतों और बग़ीचों में मेहनत करने तथा अपनी मेहनत की
फसल की रकम प्राप्त करने के इंतज़ार करने तक ही सीमित नहीं है! बल्कि एक किसान को कई
बार या यूं कहें की हमेशा अपनी मेहनत के अच्छे परिणामों के लिए उपरवाले पर निर्भर रहना पड़ता
है! यहां “ऊपरवाला” शब्द भगवान के लिए नहीं बल्कि “मानसून” के लिए प्रयोग किया गया है!
भारत में मानसून के मौसम की समय पर शुरुआत, अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत देती है,
खासकर उन किसानों के लिए जिनकी भूमि वार्षिक दक्षिण-पश्चिम मानसून से सिंचित होती है।
यह मानसून देश के कुल खेती वाले क्षेत्र और इससे जुड़े उद्योगों के लगभग 60% के लिए एक
जीवन रेखा प्रदान करता है। हालांकि, विशेषज्ञों को डर है कि इस साल मानसून का वितरण
असमान हो सकता है।
पिछले हफ्ते दक्षिणी भारत में मानसूनी बारिश की पहली लहर आई थी, लेकिन यह सामान्य लहर
से बहुत कम रही है, जिससे यह आशंका बढ़ गई है कि उत्तरी क्षेत्र और उत्तर-पश्चिम में मानसून
प्रगति अनिश्चित हो सकती है, और शायद इसमें देरी भी हो सकती है। भारतीय मौसम विभाग
(IMD) के अधिकारियों के अनुसार, केरल राज्य में मानसून धीमा और कमजोर रहा है, 29 मई को
घोषित होने के बाद से पहले 10 दिनों में बारिश में 54% की कमी दर्ज की गई है।
मौसम पूर्वानुमान सेवाएं प्रदान करने वाले स्काईमेट वेदर (skymet weather) के अनुसार,
हालांकि मानसून अपने सामान्य समय से पहले केरल पहुंच गया, लेकिन इसकी शुरुआत कमजोर
हो गई है। "मानसून ने कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों को अपेक्षित समय से पहले ही
कवर कर लिया है।"
पिछले दो वर्षों से, मई के अंत और जून की शुरुआत में कई चक्रवातों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर
मानसूनी हवाओं को खींचने में मदद की, जिससे देश के कई हिस्सों में मौसम की शुरुआत हुई और
यहां तक कि कई स्थानों में बाढ़ भी आ गई थी।
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल (Roxy
Matthew Cole) के अनुसार पहले दो महीनों में देरी और सुस्त दक्षिण-पश्चिमी मानसून का
मतलब, खासकर उत्तर के कई क्षेत्रों में शुष्क मौसम हो सकता है। "मानसून की धीमी या विलंबित
प्रगति देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों के उन क्षेत्रों में पानी और खाद्य सुरक्षा को बढ़ा सकती है
जो पहले से ही बारिश की कमी और लू से प्रभावित हैं।"
भारत को अपनी वार्षिक वर्षा का लगभग 70% हिस्सा जून से सितंबर के बीच मानसून के मौसम
में ही मिलता है, जिससे यह अनुमानित 260 मिलियन किसानों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
भारतीयों का विशाल बहुमत - लगभग 800 मिलियन लोग - गांवों में रहते हैं और कृषि पर निर्भर
हैं, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 15% है। एक असफल मानसून आर्थिक
विकास पर एक लहरदार प्रभाव डाल सकता है। किसान आमतौर पर जून के पहले सप्ताह के भीतर
अपने खेतों को बुवाई के लिए तैयार करना शुरू कर देते हैं। चावल, गन्ना, दलहन और तिलहन जैसी
प्रमुख ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई जून में मानसून की बारिश के आगमन के साथ शुरू होती है।
भारत के खाद्य उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा ग्रीष्मकालीन फसलों का है, और विलंबित या
खराब मानसून का अर्थ सीधे तौर आपूर्ति के मुद्दे और खाद्य मुद्रास्फीति में तेजी होती है! एक
अच्छा मानसून सीजन मुद्रास्फीति को कम करने में मदद कर सकता है। मौसम विज्ञानी अक्षय
देवरस के अनुसार, "मानसून की धीमी प्रगति निश्चित रूप से इस समय चिंता का विषय है।
किसानों को जितना नुकसान कई बार तेज़ गर्मी या मानसून में देरी पहुंचाती है, उतना ही या कई
बार उससे कई अधिक नुकसान तेज़ बारिश भी पंहुचा सकती है! उदाहरण के तौर पर तेलंगाना के
कई हिस्सों में लगातार हो रही बारिश से सामान्य जनजीवन प्रभावित हो रहा है। लगातार बारिश ने
खड़ी फसलों को भी नुकसान पहुंचाया, जिनमें से अधिकांश पौधों के विकास के प्रारंभिक चरण में हैं!
साथ ही बारिश ने बुवाई कार्यों को भी प्रभावित किया है। बारिश ने उत्तरी जिलों में, ज्यादातर नदियों
या नालों के किनारे खड़ी फसलों में पानी भर दिया है और खेतों में गाद भी भर दी है।
इस समय भी देश में कुछ जगहों पर भारी बारिश हो रही है, जबकि कुछ जगहों पर अभी भी
संतोषजनक बारिश नहीं हो रही है। पिछले कुछ वर्षों में, वर्षा में अत्यधिक उतार-चढ़ाव देखा गया
है। इससे किसानों को लंबी बारिश, कम समय में भारी बारिश, बारिश में रुकावट, मूसलाधार बारिश,
भारी बारिश जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ा है। इसका अर्थ यह भी है की,अब किसानों को
बारिश के पैटर्न के अनुसार फसल योजना बनानी होगी।
किसानों को इस बात की चिंता है कि अनिश्चित वर्षा में वैकल्पिक फसलों की योजना कैसे बनाई
जाए। हालांकि इसके लिए वसंतराव नायक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, परभणी ने
निम्नलिखित सिफारिशें प्रदान की हैं:
1. - सभी खरीफ फसलों की कटाई उपयुक्त वर्षा की अवधि के दौरान यानी 15 जून से 30 जून और
1 जुलाई से 7 जुलाई तक की जा सकती है।
2. - 8 जुलाई से 15 जुलाई की अवधि के दौरान कपास, संकर ज्वार, संकर बाजरा, सोयाबीन, अरहर,
तिल और सूरजमुखी की खेती करनी चाहिए, जबकि मूंगफली, मूंग और उड़द नहीं उगानी चाहिए!
3. - सूरजमुखी, संकर ज्वार, सोयाबीन प्लस तूर, बाजरा प्लस तूर, अरंडी, इलायची और तिल,
अरंडी प्लस धनिया, अरंडी प्लस अरहर की खेती 16 जुलाई से 31 जुलाई तक करनी चाहिए। कपास,
संकर ज्वार मूंगफली जैसी फसलें नहीं उगानी चाहिए।
4. - संकर बाजरा, सूरजमुखी, अरहर, अरंडी प्लस धनिया, अरंडी प्लस अरहर और धनिया की
फसल 16 अगस्त से 31 अगस्त तक बो देनी चाहिए। कपास, संकर ज्वार, मूंगफली, रागी और तिल
नहीं उगाने चाहिए।
उपरोक्त अनुशंसाएं 4 से 5 दिनों तक कम या ज्यादा हो सकती हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि
आपातकालीन फसल नियोजन में अंतर फसल पद्धति को भी अपनाया जाना चाहिए।
संदर्भ
https://bit.ly/3z0ZGaM
https://bit.ly/3aY9sCL
https://bit.ly/3vytJWD
चित्र संदर्भ
1. बारिश के दौरान खेतों में काम करते किसानों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. सूखे खेत में चलते किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. नागफनी के खेतो को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. भारी बारिश से बर्बाद फसल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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