कत्था पान के स्वाद व इसके लाल रंग को बढाने के रूप में जाना जाता है। यह एक पेड़ से निकलता है। इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है और लगभग पूरे भारत में से पाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के खैर शहर मे इसकी अधिक मात्रा पाये जाने के कारण इसका नाम खैर पड़ा। यह भारत के बाहर भी चीन, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार आदि एशियाई देशों में पाया जाता है। खैर बबूल की प्रजाति का ही पेड़ है। इसकी टहनियां पतली व सीकों के जुड़ी होती हैं, जिसमें छोटे-छोटे पत्ते लगते हैं। कत्थे की टहनियां कांटेदार होती हैं। इसके फूल छोटे व सफेद या हल्के पीले रंग के होते हैं। पेड़ की छाल आधे से पौन इंच मोटी होती है और यह बाहर से काली भूरी रंग की और अंदर से भूरी रंग की होती है। जब इसके पेड़ के तने लगभग एक फुट मोटे हो जाते हैं तब इसे काटकर छोटे-छोटे टुकडे़ बनाकर गर्म पानी में पकाया जाता है। गाढा होने के बाद इसे चौकोर बर्तन में सुखाया जाता है और वहीं इसे काटकर चौकोर टुकड़ों में काट लिया जाता है। इसे कत्था कहते हैं। इसके पेड़ नदियों के किनारे अधिक होते हैं | मेरठ में खैर के पेड़ बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं तथा यहा पर कत्थे का व्यापार बड़ी संख्या में किया जाता है। कत्था मेरठ का एक बड़ा कुटिर उद्योग है। कत्थे का निर्यात कई देशों में किया जाता है तथा इस व्यापार से एक बड़ी आबादी को रोजगार प्राप्त होता है। 1. सी डैप मेरठ 2. मानव उपयोगी पेड़, रमेश बेदी
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