मेरठ अपने में करीब 3000-4000 वर्ष तक का इतिहास दबाये बैठा है यहाँ पर विभिन्न राजवंशों ने शासन किया तथा यहाँ पर कई सभ्यताओं ने पैर पसारा है। सनातनी से लेकर जैन धर्म तक का यहाँ पर विकास हुआ। यहाँ के ही हस्तिनापुर को ललित विस्तर में महानगर की संज्ञा दी गयी है। पूरे मेरठ में कई स्थान से मिट्टी के बर्तनों व मूर्तियों की प्राप्ति होती है जो यहाँ पर विभिन्न सभ्यताओं व संस्कृतियों के झलकियों को प्रस्तुत करती हैं। मेरठ के हस्तिनापुर के अन्त के विषय में यदि देखा जाये तो पुराणों से ज्ञात होता है कि कृष्ण के पुत्र के शासनकाल में यहाँ पर गंगा की बाढ ने इस महानगर का अंत कर दिया। मेरठ से बौद्ध धर्म से सम्बन्धित कई पुरास्थल प्राप्त हुये हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि यह नगर बौद्ध धर्म का केन्द्र भी था। मेरठ में अशोक ने एक स्तम्भ की स्थापना करवाया था जो की फिरोज़ शाह तुगलक के समय में दिल्ली लेते आया गया था। यह स्तम्भ वर्तमान में दिल्ली में हिन्दू राव अस्पताल के पास स्थित है। यह स्तम्भ फिरोज़ शाह तुगलक ने अपने शिकार महल (कुष्क-ए-शिकार) में सन् 1358 ई. में स्थापित करवाया था। यह स्तम्भ नदी के रास्ते मेरठ से दिल्ली लाया गया था। यह स्तम्भ फारुखसायर के शासन काल में 5 हिस्सो में टूट गया था (1713-19)। यहाँ के इस स्तम्भ का अभिलेख कई खण्ड में टूट गया था जिसे कलकत्ता के एशियाटिक सोसाइटी में भेजा गया, वहाँ पर इसके अभिलेख का संरक्षण किया गया तथा इसे सन् 1867 में पुनः खड़ा किया गया। वर्तमान में यह स्तम्भ 10 मीटर ऊँचा है। इस स्तम्भ पर अभिलेख लिखने के लिये ब्राम्ही लिपि का प्रयोग किया गया है तथा भाषा प्राकृत है। इस स्तम्भ का लेख अशोक के धर्म के प्रचार व प्रजा के हित की बात की गयी है। 1. भारतीय पुरातत्व और प्रागैतिहासिक संस्कृतियाँ, डॉ. शिव स्वरूप सहाय, मोतीलाल बनारसीदास
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