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मनुष्य को अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पौधों की आवश्यकता होती है। पौधे प्राकृतिक पारिस्थितिक
तंत्र का सबसे अहम हिस्सा भी हैं। पौधे हर साल लोगों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग 30
फीसदी तक अवशोषित करते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के लगातार खराब प्रभाव इनके जीवन को संकट में
डाल रहे हैं। वातावरण में बढ़ता को CO2 का स्तर और गर्म तापमान पेड़ पौधों की दुनिया को प्रभावित करत
रहा हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है की आने वाले दशकों में कार्बन डाइऑक्साइड सदी के अंत तक लगभग दोगुना
हो जाएगा और इसके साथ ही तापमान में 4 से 6 डिग्री सेल्सियस के बीच वृद्धि होगी, जिससे पौधों में पोषक
तत्वों का स्तर भी प्रभावित होता है, CO2 के बढ़ने से कुछ फसलों की पैदावार बढ़ सकती है, जबकि CO2 का
बढ़ता स्तर फसलों में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के स्तर को प्रभावित करता है। एक अध्ययन में पता चला कि
गेहूं, चावल और जौ और आलू में प्रोटीन की मात्रा में 10 से 15 प्रतिशत की कमी आई है, साथ ही साथ फसलों
में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, लोहा और जस्ता सहित महत्वपूर्ण खनिजों का नुकसान भी होता है। जैसा
की हम जानते ही हैं, पौधे सूर्य के प्रकाश में वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी का उपयोग कर प्रकाश
संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से अपना भोजन बनाते हैं। इस प्रक्रिया के तहत ऑक्सीजन और कार्बोहाइड्रेट
का उत्पादन करते हैं जो पौधे की ऊर्जा और विकास के लिए उपयोग होता है। परन्तु वातावरण में CO2 के
बढ़ते स्तर से पौधों में प्रकाश संश्लेषण में वृद्धि होती है। इस प्रभाव को कार्बन निषेचन प्रभाव के रूप में जाना
जाता है।
एक शोध में पाया गया है कि 1982 और 2020 के बीच, दुनिया भर में प्रकाश संश्लेषण में 12 फीसदी की
वृद्धि हुई। जिसके चलते वातावरण में CO2 के स्तर पर नजर रखी गई, जो कि 17 फीसदी बढ़ गया था।
प्रकाश संश्लेषण में इस वृद्धि का अधिकांश हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोग करने के कारण हुआ था।
उच्च CO2 सांद्रता के तहत, पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान कम पानी का उपयोग करते हैं। कार्बन
डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के दौरान, पौधे पत्ती की सतह के संकीर्ण उद्घाटन को बनाए रखते हैं जो पानी के
नुकसान में उनकी रक्षा करते हैं। पौधों में रंध्र नामक छिद्र होते हैं जो CO2 को अवशोषित करने और नमी को
वातावरण में छोड़ने में मदद करते हैं। जब CO2 का स्तर बढ़ता है, तो पौधे प्रकाश संश्लेषण की उच्च दर बनाए
रख सकते हैं और अपने रंध्रों को आंशिक रूप से बंद कर सकते हैं, जिससे पौधे की पानी की कमी 5 से 20
प्रतिशत के बीच कम हो जाती है।
जलवायु परिवर्तन से CO2 का अधिक स्तर पौधों को कार्बन निषेचन प्रभाव से फायदा पहुंचाने और अपने लिए
कम पानी का उपयोग करने में सक्षम बनाता है। लेकिन यह सभी पौधों के लिए अच्छा नहीं होता है। क्योंकि
जलवायु परिवर्तन पौधों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अन्य कारकों को भी प्रभावित कर रहा है, जैसे पोषक
तत्व, तापमान और पानी आदि। 1980 से 2017 के बीच सैकड़ों पौधों की प्रजातियों पर किए गए अध्ययन में
शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश असिंचित स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक तत्वों, विशेष रूप से नाइट्रोजन
(Nitrogen) में कमी हो रही हैं। उन्होंने पोषक तत्वों में इस कमी के लिए बढ़ते तापमान और CO2 के स्तर
सहित वैश्विक परिवर्तनों को जिम्मेदार ठहराया। नाइट्रोजन डीएनए और आरएनए में एक आवश्यक तत्व है और
पौधों में वृद्धि के लिए कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन बनाने के लिए इसकी आवश्यकता होती है। कोलंबिया
विश्वविद्यालय के पारिस्थितिकी, विकास और पर्यावरण जीव विज्ञान विभाग (Columbia University’s
Department of Ecology, Evolution and Environmental Biology ) के प्रोफेसर केविन ग्रिफिन (Kevin Griffin)
ने बताया कि अधिकांश जीवित चीजों में कार्बन और नाइट्रोजन के बीच अपेक्षाकृत निश्चित अनुपात होता है।
इसका मतलब यह है कि यदि पौधे अधिक CO2 लेते हैं और कार्बोहाइड्रेट बनाने के लिए क्योंकि वातावरण में
CO2 अधिक है, तो पत्तियों में नाइट्रोजन की मात्रा कम हो सकती है।
पौधे की उत्पादकता पर्याप्त नाइट्रोजन के
उपलब्ध होने पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा यदि CO2 के बढ़ते स्तर से उत्पादकता बढ़ जाती है, लेकिन
उत्पादकता में वृद्धि होगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर होता है कि उस हिस्से में पर्याप्त नाइट्रोजन है या
नहीं। इसलिए यदि नाइट्रोजन सीमित है, तो हो सकता है कि पौधे उस अतिरिक्त CO2 का उपयोग नहीं कर
पाए और उत्पादकता में कुछ समय के बाद वृद्धि कम हो जाए। साथ ही साथ जैसे-जैसे तापमान 25 डिग्री
सेल्सियस से ऊपर बढ़ता है, नाइट्रोजन स्थिरीकरण की दर कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की
उत्पादकता कम हो जाती है।
तापमान में वृद्धि से पौधे का जीवन चक्र भी तेज हो जाता है, जैसे-जैसे पौधा
अधिक तेजी से परिपक्व होता है, उसके पास प्रकाश संश्लेषण के लिए कम समय बचता है और परिणामस्वरूप
अनाज की कम पैदावार होती है। शोधकर्ताओं ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार और गंभीर
विषम मौसम की घटनाएं होंगी, जिसमें अत्यधिक वर्षा, तेज हवा, लू और सूखा शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन की गंभीर विषम मौसम की घटनाओं से बचने के लिये शोधकर्ताओं ने कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण
नामक एक विधि को इजात किया है। कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण नामक इस विधि के माध्यम से जैविक प्रकाश
संश्लेषण की आवश्यकता को पूरी तरह से बदलने और प्राकृतिक सूर्य के प्रकाश का उपयोग किए बिना भोजन
बनाने का एक तरीका खोजा है। अध्ययन “नेचर फूड” (Nature Food) में प्रकाशित हुआ था, जो एक ऑनलाइन
पत्रिका है और जो खाद्य उत्पादन के सभी पहलुओं पर शोध, समीक्षा और टिप्पणियां प्रकाशित करती है, और
यह पृथ्वी के भविष्य के लिए आशाजनक लग सकता है। इस कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण से पृथ्वी पर भोजन के
उत्पादन को ऊर्जा के लिहाज से और भी कारगर बनाया जा सकता है। यह तकनीक भविष्य में मंगल ग्रह पर
भी बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। इस शोध का सबसे बड़ा लाभ यही है कि यह कृषि को प्रत्यक्ष सूर्य पर
निर्भरता से मुक्ति दिलाने का रास्ता दिखाती है। इससे अपार संभावनाएं पैदा हो सकती हैं जिसमें विषम
परिस्थितियों में भोजन पैदा करने की क्षमता के साथ वैश्विक खाद्य समस्या का समाधान भी मिल सकता है।
इससे खाद्य उत्पादन संबंधी कई समस्याएं सुलझ सकती हैं जो जलवायु परिवर्तन के कारण और ज्यादा
चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं।
रिवरसाइड, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी (University of California, Riverside) और यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावारे
(University of Delaware ) के शोधकर्ताओं ने सूर्य की रोशनी से मुक्त कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण की ऐसी प्रक्रिया
विकसित की है जो खाद्य उत्पादन करने वाले पौधों को बिना जैविक प्रकाश संश्लेषण की मदद से विकसित
करने के में सक्षम है। हाल ही में नेचर फूड जर्नल में प्रकाशित इस शोध में वैज्ञानिकों ने दो चरणों की विद्युत
उत्प्रेरक प्रक्रिया (electrocatalytic process) के जरिए कार्बन डाइऑक्साइड, बिजली और पानी को एसिटेट
(acetate) में बदला है जिसमें सिरका अहम घटक होता है। खाना बनाने वाले जीव इस एसिटेट का उपयोग कर
अंधेरे में पनपते हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में सौर पैनल (solar panel) से पैदा हुई बिजली का उपयोग विद्युतउत्प्रेरक प्रक्रिया
(electrocatalytic process) को ऊर्जा देने में होता है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड से कच्चे पदार्थों को उपयोगी
अणुओं और उत्पादों में बदलने वाले उपकरण, जिन्हें इलेक्ट्रोलाइजर (Electrolyser) कहते हैं, अनुकूलनता बढ़ाई
जाती है। जिससे इस मिश्रित कार्बनिक-अकार्बनिक प्रणाली से सूर्य की रोशनी के भोजन में बदलने की कारगरता
को 18 गुना तक अधिक बढ़ाया जा सकता है। प्रयोगों से पता चला है कि इससे खाद्य-उत्पादक जीवों की एक
विस्तृत श्रृंखला को अंधेरे में विकसित किया जा सकता है जिसमें हरी काई (Green Algae), खमीर, मशरूम पैदा
करने वाले जीव तक शामिल हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि वे खाद्य उत्पादन करने वाले जीवों को बिना
जैविक प्रकाश संश्लेषण की मदद से विकसित करने में सफल रहे हैं। प्रायः ऐसे जीवों को पौधों से मिलने वाली
शक्कर के जरिए पैदा किया जाता है जिसमें पैट्रोलियम का उपयोग भी होता है जिसे बनने में करोड़ों साल
लगते हैं। लेकिन नई तकनीक ज्यादा कारगर है। इसका उपयोग टमाटर (Tomato), धान, मटर आदि फसलों में
भी किया जा सकता है जिससे खाद्य पैदावार भी बढ़ सकती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3uiUIoa
https://bit.ly/3AlBCBW
https://bit.ly/3a2V2Rn
https://on.natgeo.com/3I9O7SF
चित्र संदर्भ
1. शिकागो ओ'हारे एयरपोर्ट पर वर्टिकल फार्म को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. प्रकाश संश्लेषण, जल को तोडकर O2 निकालता है एवं CO2 को शर्करा (sugar) के रूप में बदल देता है।जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. प्राकृतिक प्रकाश संश्लेषण और कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अँधेरे में उग रहे पोंधों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
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