गर्मियों में चिलचिलाती धूप और बार-बार 46-50° सेल्सियस को छूता तापमान, हमें अवचेतन रूप से
दैनिक जीवन में पानी के महत्व के बारे में जागरूग कर रहा है। क्या आप जानते थे की, महज एक या दो
दशकों पूर्व, हमारे मेरठ शहर में 3000 से अधिक जल निकाय (water bodies) मौजूद थे। लेकिन आपको
जानकर हैरानी होगी की, आज छावनी क्षेत्र में एक को छोड़कर एक भी जल निकाय मौजूद नहीं है। चलिए
इन निकायों की विलुप्ति के कारणों, खतरों और निवारणों पर एक नज़र डालते हैं।
भारत में बावड़ी और तालाब जैसे पारंपरिक जल निकाय, लंबे समय से ग्रामीण जीवन का एक अभिन्न अंग
रहे हैं, जो इन लोगों को दैनिक प्रयोग के लिए पानी, और मछली प्रदान करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के
समतल मैदान, जहां गंगा और यमुना नदियाँ मिलती हैं, कभी ऐसे कई जलाशयों का घर माने जाते थे।
लेकिन आज इन्होने भी तेजी से शहरीकरण का मार्ग प्रशस्त कर लिया है।
राजस्व रिकॉर्ड (revenue record), बताते हैं कि अकेले मेरठ जिले के 663 गांवों में 3062 जलाशय मौजूद
हैं। 1960 के दशक तक, ये जल निकाय शहर के चारों ओर दिखाई देते थे, और विशेष रूप से गर्मियों के
दौरान एक महत्वपूर्ण जल बफर का निर्माण करते थे। किन्तु आज उनमें से अधिकांश बेहद दयनीय स्थिति
में हैं, क्यों की प्रशासन की नाक के नीचे लोगों द्वारा इनका अतिक्रमण कर लिया गया है।
मेरठ स्थित एक गैर सरकारी संगठन, नीर फाउंडेशन ने, हाल ही में गांधारी तालाब, नवलदेह कुआं, श्राग्रिषि
आश्रम की झील सहित क्षेत्र के अन्य प्राकृतिक जल निकायों और जल स्रोतों पर डेटा-आधारित सामूहिक
अध्ययन किया। इसके परिणामों से संकेत मिलता है कि, आज मेरठ जिले के परीक्षितगढ़ ब्लॉक के 52
गांवों में मूल 260 तालाबों में से केवल 170 ही मौजूद हैं, और यह क्षेत्र अब भीषण जल संकट से जूझ रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, लगभग 60 ऐसे ही जल निकायों से जुडी हुई मध्ययुगीन और औपनिवेशिक काल
की कहानियों को हरिशंकर शर्मा द्वारा "पश्चिम उत्तर प्रदेश के जलाशय: एक ऐतिहासिक विरासत" नामक
एक पुस्तिका में संकलित किया गया है। इन कहानियों में पौराणिक रूप से गांधारी तालाब जिसे कौरवों की
मां गांधारी द्वारा इस्तेमाल किया गया, और सूरज कुंड एक जलाशय जिसे बाबा मनोहर नाथ के समय का
पता लगाया जा सकता है, जो प्रसिद्ध सूफी संत शाहपीर के समकालीन थे, कभी यहां स्थित थे, का वर्णन
है।
60 मीटर लंबा, 50 मीटर चौड़ा और 6 मीटर गहरा गांधारी तालाब, अब भूजल पुनर्भरण के लिए उपयुक्त
नहीं है। मेरठ जिले के परीक्षितगढ़ प्रखंड में स्थित यह जलाशय तीन दशक पहले सूख गया था और अब
उस पर अतिक्रमण कर लिया गया है। वही. बाबा मनोहर नाथ मंदिर का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ के
समय में एक मकबरे के साथ किया गया था। कुंड के पानी का उपयोग धार्मिक उद्देश्यों, अनुष्ठान स्नान के
साथ-साथ जल संचयन के लिए भी किया जाता था।
मेरठ गजेटियर (Meerut Gazetteer) में लिखा गया
है कि, कैसे एक स्थानीय शासक लाला जवाहर मल ने इसकी उपचार शक्तियों से प्रभावित होकर 1700 में
जल निकाय का जीर्णोद्धार किया था। मुगल काल के दौरान तालाब अबू नाला के पानी से और बाद में गंगा
नहर के पानी से भर गया था। हालांकि आज इस क्षेत्र के अधिकांश लोग इन तालाबों की बिगड़ती स्थिति का
श्रेय जलाशय में अवैध निर्माणों और अतिक्रमण को दे रहे हैं। इस क्षेत्र में चीनी उद्योगों द्वारा अवैध भूजल
निकासी के कारण इन जल निकायों की स्थिति और खराब हो गई है। इसके अलावा, राज्य और भू-माफिया
सक्रिय रूप से जमीन के इस्तेमाल के तरीके में बदलाव लाने के लिए मिलीभगत कर रहे हैं। वे सूखे हुए जल
निकाय को कचरे के ढेर के रूप में उपयोग करते हैं और फिर बाद में इसे पुनः प्राप्त करते हैं और फिर इसे
बिक्री के लिए लगा देते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में ही, लोगों को जल निकायों के खराब प्रबंधन के कारण होने वाले तनाव का एहसास होने
लगा है, जिसके परिणामस्वरूप पानी की कमी भी होने लगी है। भारत विविध और विशिष्ट पारंपरिक जल
निकायों से संपन्न राष्ट्र है। लेकिन हाल के वर्षों में इन जल निकायों की अनुचित निगरानी के कारण इनके
पानी की गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट आई है और उनमें से कई गायब भी हो गए हैं। लगभग 35 लाख
लोगों की आबादी वाला मेरठ जिला बदहाली की स्थिति में है, क्योंकि यहां की नदियां और भूजल अत्यधिक
प्रदूषित हो चुके हैं। साथ की जल प्राप्ति के अंतिम उपाय, पारंपरिक जल निकाय भी सीवेज तालाबों में
परिवर्तित हो रहे हैं। इन जल निकायों की स्थिति की व्यावहारिक समझ हासिल करने के लिए मेरठ जिले
के 12 ब्लॉकों में वितरित 120 तालाबों के, जीपीएस, जीआईएस मैपिंग (GPS, GIS Mapping) और पानी
की गुणवत्ता परीक्षण का उपयोग करके जमीनी सर्वेक्षण किया गया। शोध दल ने इलाके की पानी की
स्थिति को समझने के लिए, आस-पास के तालाबों में स्थित लगभग 500 निवासियों के साथ अनौपचारिक
चर्चा भी की। परिणाम बताते हैं कि 50% से अधिक जल निकाय, (5mg/l से नीचे D.O) और कुल घुलित
ठोस (100 NTU से अधिक के साथ गंभीर रूप से प्रदूषित हैं। विश्लेषण किए गए सभी तालाबों में, फेकल
संदूषण (fecal contamination) देखा गया। यहां की प्रमुख समस्याएं अत्यधिक पोषक तत्व युक्त
प्रदूषण हैं, जिससे यूट्रोफिकेशन और सीवेज संदूषण (Eutrophication and sewage contamination)
होता है। स्थानिक विश्लेषण से पता चलता है कि क्षेत्र में लगभग आधे तालाब कम हो गए हैं।
केवल मेरठ ही नहीं बल्कि भारत में अधिकांश शहर पहले से ही पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इससे
उभरने के लिए, प्रदूषण को डिजिटाइज़ करना, निगरानी करना, नियंत्रित करना और रोकना आवश्यक है,
और इन आवश्यक जल निकायों को विलुप्त होने से बचाने के लिए लोगों और जमीनी संस्थानों को
अनिवार्य रूप से जागरूक करना आवश्यक है।
एक अद्वितीय और विशिष्ट भौगोलिक परिवर्तनशीलता भारत की विशेषता है, साथ ही भारत कुछ बहुत ही
विविध और विशिष्ट पारंपरिक जल निकायों सहित सीमित प्राकृतिक संसाधनों के विशाल भंडार से भी
संपन्न है। इन्हें देश के विभिन्न भागों में तालाब, झील, वायलगाम, अहार, बावड़ी, आदि कहा जाता है। इन्हें
व्यापक रूप से आर्द्रभूमि (wetlands) के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है, जो जैव विविधता के समृद्ध
भंडार होने के अलावा अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्र हैं, और कार्बन पृथक्करण में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाने के लिए भी जाने जाते हैं।
भारत में लगभग 757,060 आर्द्रभूमि हैं, जो 15.3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई हैं और देश के कुल
भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 4.7% है। हालांकि, ये जल निकाय मुख्य रूप से जनसांख्यिकीय दबाव और
आर्थिक विकास के कारण निरंतर दबाव में हैं। पिछले कुछ दशकों में इन आर्द्रभूमियों की गुणवत्ता और मात्रा
दोनों में इस हद तक गिरावट आई है कि विभिन्न आर्थिक और पर्यावरणीय सेवाएं प्रदान करने की उनकी
क्षमता में भारी कमी हो गई है।
”मवाना के प्रखंड विकास अधिकारी सुभाष चंद के अनुसार मेरठ शहर में स्थिति और भी चिंताजनक है
क्योंकि यहाँ अब एक भी तालाब नहीं बचा है। इस बीच, भूजल विभाग के अनुसार, भूजल भंडार प्रति वर्ष 68
सेमी की खतरनाक दर से घट रहा है। अतिक्रमण किए गए तालाबों पर कॉलोनियां और बस्तियां बन गई हैं
और अब उन्हें पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है, इसलिए पानी रिचार्जिंग सिस्टम (water recharging
system) वास्तव में ध्वस्त हो गया है!
भूजल, जिस पर आबादी का एक बड़ा हिस्सा पीने के पानी के लिए निर्भर है, जैविक, रासायनिक और भारी
धातु संदूषण और टीडीएस स्तर 314 - 942 मिलीग्राम / लीटर के साथ, मेरठ शहर में कई स्थानों पर पीने
के लिए अनुपयुक्त पाया गया है। 2011 में क्षेत्र में दूषित भूजल का सेवन करने के बाद लोग कैंसर, विकृति,
हेपेटाइटिस और कई अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित पाए गए। मेरठ जिले से मानव निर्मित और
प्राकृतिक जल स्रोत धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। अकेले शहर में 12 तालाब थे और कुछ इलाकों, उदाहरण
के लिए छिपी टैंक और सूरज कुंड, का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
लेकिन आज छावनी क्षेत्र में एक को छोड़कर एक भी जल निकाय मौजूद नहीं है। राजस्व अभिलेखों के
अनुसार, पूरे जिले में कुल तालाबों की संख्या 3,276 थी, जिनमें से 1,232 पर कब्जा कर लिया गया है।
“2015 में, जिला विकास कार्यालय ने एक सर्वेक्षण किया और जिले के 12 ब्लॉकों में 1,651 मौजूदा तालाब
पाए। इनमें से 261 को पुनः प्राप्त कर लिया गया है, जबकि 22 पर काम चल रहा है और नौ पर काम शुरू
होना है। तो कुल मिलाकर 292 तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया है या किया जा चुका है।
संदर्भ
https://bit.ly/3sTgBd3
https://bit.ly/38KRfaz
https://bit.ly/3PBZsyp
चित्र संदर्भ
1 सिंकुड़ चुके जल निकाय को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में जानवरों के लिए जल निकाय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गांधारी तालाब, को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. मेरठ गजेटियर (Meerut Gazetteer) को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
5. एक ग्रामीण तालाब को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
6. आर्द्रभूमि (wetlands) को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
7. नदी पर किये गए अतिक्रमण को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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