मेरठ और इस जैसे कई अन्य बड़े भारतीय शहरों में, सड़कों के किनारे कीचड़ में गोते लगाते और अपने
परिवार के साथ मस्ती में रहते, सूअरों को देखना आम बात है! आमतौर पर कूड़े के ढेर के पास दिखाई देने
वाले इन जानवरों को घृणा की नज़रों से देखा जाता है, लेकिन आज हमें इनके प्रति अपना नजरिया
सकारात्मक करने की आवश्यकता है। क्यों की आपको शायद यह जानकर हैरानी होगी की, यह गोल-मटोल
और गुलाबी जानवर, आज देश के कई परिवारों की रोजी-रोटी का अहम् जरिया बन चुका है, तथा देश की
पशुधन आबादी में भी इनका अहम् योगदान है!
दुनिया की तेजी से बढ़ती आबादी के लिए, भोजन और पोषण सुरक्षा जैसी चुनौतियों से निपटने हेतु, पशुधन
खेती (livestock farming) एक अहम् योगदान निभा सकती है। विभिन्न पशुधन प्रजातियों में, सूअर
मांस उत्पादन के लिए सबसे संभावित स्रोत माना जाता है, तथा ब्रॉयलर चिकन (broiler chicken) के बाद,
सूअर सबसे अधिक कुशल फ़ीड कन्वर्टर्स (feed converters) होता हैं। सुअर पालन मौसमी रूप सेनियोजित, ग्रामीण किसानों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है और उनके जीवन स्तर में सुधार के लिए
पूरक आय भी प्रदान करता है।
सूअर कई प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं, जिनमें कई प्रकार के मांस भी शामिल हैं। साथ ही
ख़राब हुआ अनाज, कम पोषित भोजन और रसोई से बासी बचे हुए भोजन को भी सूअर आसानी से पचा
सकता है।
अन्य सामान्य पशुओं की तुलना में, सूअर अधिक तेजी से प्रजनन करते हैं। सुअर पालन में पिग पेन (pig
pen), रखरखाव, सफाई आदि हेतु उपकरण बनाने के लिए न्यूनतम प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती
है। सूअर के मांस का ड्रेसिंग प्रतिशत ( “शरीर का उपयोग किया जा सकने वाला हिस्सा!” dressing
percentage) 65-80% होता है। यह अन्य सामान्य रूप से पाले जाने वाले पशुओं जैसे मुर्गी, भेड़ या भैंस
की तुलना में बहुत अधिक है, जिनके ड्रेसिंग प्रतिशत कभी भी 60% से अधिक नहीं होते हैं।
सुअर फार्म का एक अन्य महत्वपूर्ण अनुप्रयोग, सुअर से खाद का उत्पादन होता है, जिसका उपयोग कृषि,
मछली पालन के लिए मछली तालाब और तालाब में निषेचन के रूप में किया जा सकता है। अधिकांश अन्य
जानवरों की तुलना में सूअर तेजी से वसा का निर्माण करते हैं। इस संग्रहित वसा का प्रयोग, साबुन बनाने
और उद्योगों में रासायनिक प्रसंस्करण में होता है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सुअर के मांस की उच्च मांग है, क्योंकि इसका उपयोग हैम, सॉसेज, बेकन (ham,
sausage, bacon) आदि बनाने में किया जाता है। घरेलू बाजार में, लोगों की जीवनशैली और खानपान की
आदतों में बदलाव के कारण, पोर्क (Pork “सुअर का मांस”) की उच्च मांग है, जिसका देश के कुल मांस
उत्पादन में लगभग 6.7% का योगदान है।
भारत में, सूअरों की 70% आबादी को केरल, पंजाब और गोवा में अर्ध-व्यावसायिक सुअर फार्म (Semi-
Commercial Pig Farm) के तहत, पारंपरिक छोटे धारक, कम-इनपुट मांग संचालित उत्पादन प्रणाली
(low-input demand driven production system) के तहत पाला जाता है। देशभर में सुअर की
आबादी का वितरण भी एक समान नहीं है, उदाहरण के लिए पूर्वी राज्यों में सूअरों की आबादी (2.8
मिलियन) और उत्तर-पूर्वी राज्यों में (4.5 मिलियन) दर्ज की गई है। सूअरों की सबसे अधिक जनसंख्या
असम में (2 मिलियन) है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (1.35 मिलियन), पश्चिम बंगाल (0.82 मिलियन), झारखंड
(0.73 मिलियन) और नागालैंड में (0.70 मिलियन) सूअर दर्ज किये गए हैं। सूअरों की अधिकांश आबादी,
देश के उन आदिवासी इलाकों में है, जहां के अधिकांश लोग मांसाहारी हैं।
जनसांख्यिकी (Demographics) की पिछली जनगणना की तुलना में, देश में कुल सूअरों की संख्या में
7.54% की कमी आई है! 2012 में देश में कुल सूअरों की संख्या 10.29 मिलियन दर्ज की गई। सूअर, कुल
पशुधन आबादी का लगभग 2.01% योगदान करते हैं। सूअरों की कुल आबादी में नरों की संख्या 4.96
मिलियन (3.68 मिलियन स्वदेशी और 1.28 मिलियन विदेशी) और मादाओं की संख्या 5.33 मिलियन
(4.16 मिलियन स्वदेशी और 1.17 मिलियन विदेशी) हैं।
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में स्वदेशी तथा क्रॉसब्रेड (crossbred) अर्थात विदेशी सूअरों की
आबादी में बड़ा बदलाव देखा गया है। भारत में सूअरों की बहुसंख्यक 76 प्रतिशत आबादी स्वदेशी नस्लों की
है, हालांकि क्रॉस-ब्रेड और विदेशी सूअरों की आबादी में वर्ष 2003 से 2012 तक 12.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई
है।
भारत में पोर्क, अर्थात घरेलू सूअरों के मासं का उत्पादन और प्रसंस्करण, 'मांस खाद्य उत्पाद आदेश'
(meat food product order), 1973 द्वारा नियंत्रित होता है। यह आदेश बूचड़खानों के लिए स्वच्छता के
मानकों को स्थापित करता है और मांस उत्पाद लिए अवशेष स्तर को निर्धारित करता है। भारत में सूअर के
मांस का उत्पादन, सीमित है, जो देश के पशु प्रोटीन स्रोतों के केवल 9% का प्रतिनिधित्व करता है। इसका
उत्पादन मुख्य रूप से देश के पूर्वोत्तर राज्यों में केंद्रित है और इसमें मुख्य रूप से पिछवाड़े और
अनौपचारिक क्षेत्र के उत्पादक शामिल हैं।
भारत की 19वीं पशुधन गणना (2012) के अनुसार, देश में कुल सूअरों की आबादी, पिछले 50 वर्षों में
लगातार बढ़ी है। हालांकि भारत की 17 वीं पशुधन गणना (Livestock Census) से संकेत मिलता है की,
हाल के दशक में, इनकी जनसंख्या 2003 के 14 मिलियन के उच्च स्तर से घटकर लगभग 10 मिलियन हो
गई है। 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार देश में मांस का उत्पादन 6.6 मिलियन टन था, जिसमें प्रति व्यक्ति
उपलब्धता 4.94 किलोग्राम थी। इसमें सूअरों ने 9% का योगदान दिया। 2014-15 में सुअर से 464.11
हजार टन मांस उत्पादित किया गया था।
प्रसंस्कृत पोर्क उत्पादों (processed pork products) के लिए भारतीय बाजार छोटा माना जाता है,
जिसके अधिकांश हिस्से की आपूर्ति आयात के माध्यम से की जाती है। हालांकि कुछ स्थानीय कंपनियां हैं,
जो सॉसेज और बेकन (Sausage and Bacon) जैसे प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्माण करती हैं, लेकिन इनकी
मात्रा सीमित है, तथा उद्योग छोटा है।
MoFPI के अनुसार, भारत में बहुत कम संख्या में ऐसे बूचड़खाने हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते
हैं। जानकारों द्वारा अनुमान लगाया गया है कि, अगले दस वर्षों में, भारत में मांस की कुल खपत इसकी
वर्तमान संख्या से दोगुनी हो जाएगी। जैसे-जैसे व्यक्तियों की प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है, वे अपनी जीवन
शैली और भोजन की खपत की आदतों में सुधार पर खर्च करते हैं। हालांकि भारत में भी प्रति व्यक्ति आय
बढ़ने, शहरीकरण , जीवनशैली और खान-पान की आदतों में बदलाव के कारण सूअर के मांस की मांग बढ़
रही है। इस मांग का अधिकांश भाग भारत के अन्य राज्यों और म्यांमार से आयात करके पूरा किया जाता
है। उत्तर पूर्व भारत में, पोर्क की खपत देश के बाकी हिस्सों की तुलना में बहुत अधिक है। इन राज्यों में से
नागालैंड में प्रति व्यक्ति खपत सबसे ज्यादा है।
भारत में सूअरों के मांस की बढ़ती हुई मांग, इस क्षेत्र में रोजगार की नई संभावनाओं को भी जन्म दे रही है!
भारत में, लोग मत्स्य पालन, चिकन और मांस की अन्य किस्मों के उत्पादन में बहुत अच्छा कर रहे हैं,
लेकिन इसमें अभी भी सूअर के मांस के लिए एक विशेष स्थान की कमी है। आज देश में सुरक्षित पोर्क की
आवश्यकता और मांग को समझते हुए, लोगों को स्वच्छ और ताजा पोर्क प्रदान करने के लिए सीरियल
उद्यमी ओके संजीत (OK Sanjeet) द्वारा 2008 में डीएलजी फार्म (DLG farm) की स्थापना की गई थी,
जो अमेरिका में आईटी पेशेवर थे। अपने ही देश में कुछ परिवर्तनकारी करने के लिए उन्होंने अपनी
अमेरिकी नौकरी को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने सुअर पालन में अवसर की पहचान की और 100 एकड़ बंजर
भूमि को अत्याधुनिक सुअर फार्म में बदल दिया। आज यह कंपनी भारत में शुद्ध विदेशी नस्लों में अग्रणी
मानी जाती है!
संदर्भ
https://bit.ly/3KtkAmM
https://bit.ly/3vqv55T
https://bit.ly/3vuORNH
https://bit.ly/3vU1elp
चित्र संदर्भ
1 सूअर को चारा देते किसान को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. आसाम में सूअर पालक को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. खेत में खड़े सूअर को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. सूअर मीट के बाजार को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. पोर्क उत्पाद को दर्शाता एक चित्रण (Open Food Facts)
6. डीएलजी फार्म (DLG farm) उत्पाद बैनर को दर्शाता एक चित्रण (Facebook)
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