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आधुनिक भारतीय कला के पिता के रूप में प्रख्यात, राजा रवि वर्मा व्यापक रूप से भारतीय देवी-
देवताओं के यथार्थवादी चित्रण के लिए जाने जाते हैं। जबकि उन्होंने प्रमुख रूप से राजसी सत्ता के
लिए चित्रकारी करी, उन्हें उनके प्रिंट (Print) और ओलीयोग्राफ (Oleograph) के साथ कला को जनता
तक ले जाने का श्रेय भी दिया जाता है। 6 अप्रैल को, उनकी महत्वपूर्ण चित्रकारी में से एक, “द्रौपदीवस्त्रहरण”, पहली बार नीलामी के लिए रखी जा रही है तथा इसके 15 से 20 करोड़ रुपये के बीच नीलाम
होने का अनुमान लगाया गया है, चित्रफलक महाभारत का एक दृश्य जिसमें द्रौपदी के चीरहरण को
दर्शाता है। वहीं राजा रवि वर्मा के दो प्रसिद्ध कार्यों की नीलामी 17 से 20 फरवरी तक RtistiQ
(सिंगापुर स्थित ऑनलाइन कला बाज़ार) पर की गई थी। 'द कोक्वेट (The Coquette)' और
'रेक्लाइनिंग नायर लेडी (Reclining Nair Lady)' कलाकार की पहली कृतियाँ हैं जिन्हें चिह्नित और
ऑनलाइन प्रक्षेपित किया गया है। गैलरी जी (Gallery G), बेंगलुरु और राजा रवि वर्मा हेरिटेज
फाउंडेशन (Raja Ravi Varma Heritage Foundation) के साथ साझेदारी में आयोजित होने वाली,
नीलामी राजा रवि वर्मा की कला को सभी संग्रहकर्ता, निवेशकों और जनता के लिए सुलभ बनाती है।
हालांकि राजा रवि वर्मा की कृतियों को राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है इसलिए उन्हें भारत से बाहर
नहीं बेचा जाता है। हालांकि NFT (अपूरणीय टोकन (NFT एक डिजिटल संपत्ति है जो स्वामित्व को
अद्वितीय भौतिक या डिजिटल वस्तुओं, जैसे कला, अचल संपत्ति, संगीत या वीडियो के कार्यों से
जोड़ती है।))के जरिए ये संभव हो पाया है कि उनकी कृतियां विश्व के अन्य देशों में भी खरीदी जा
सके। ‘द कोक्वेट’ और 'रेक्लाइनिंग नायर लेडी’ का मूल्य वर्तमान में क्रमशः $2.5 और $3 मिलियन
है।नीलामी के लिए चुनी गई ये दो चित्रकारी महिला रूप, उसकी सुंदरता और ताकत का प्रतीक
हैं।कोक्वेट, जो वर्तमान में एक निजी संग्रह में रखा गया है, रवि वर्मा की सबसे अधिक अनुकृत और
प्रतिकृति की गई चित्रों में से एक है और अब बाजार में उपलब्ध नहीं है।इन दो चित्रों में कई विवरण
हैं जो रवि वर्मा के बारे में अधिक जानने के बाद ही समझ में आते हैं। उदाहरण के लिए, रेक्लाइनिंग
नायर लेडी कि चित्रकारी में महिला शिक्षित है क्योंकि वह एक किताब पढ़ रही है। 1902 के दौरान
जब यह चित्र बनाई गई थी तब रवि वर्मा द्वारा स्पष्ट रूप से महिला साक्षरता के बारे में एक बयान
दिया गया।वहीं द कोक्वेट द्वारा पहने गए आभूषण और साड़ी विस्तृत हैं। अनुमान है कि यह चित्र
1893 के आसपास बनाई गई थी और उस अवधि के दौरान पहने जाने वाले वस्त्रों, बुनाई तकनीकों,
बनावट और शैलियों का स्पष्ट दस्तावेजीकरण प्रदान करती है।फरवरी में उनके सात कार्यों की
नीलामी की गई। पांच भारतीय देवी-देवताओं के सभी शिला मुद्रण लगभग 74,600 रुपये के आरक्षित
मूल्य से काफी ऊपर बिके। 'लक्ष्मी जी' के शिला मुद्रणकी लगभग 1.6 लाख रुपये में सबसे अधिक
बोली लगाई गई।इसके अलावा नीलामी के लिए रवि वर्मा प्रेस पर आधारित एक 33 मिनट लंबी
फिल्म थी, जिसमें राजा रवि वर्मा के जन्मस्थान किलिमनूर पैलेस के कुछ हिस्सों की तस्वीरों का
एक संग्रह था। हालांकि यह 5 लाख रुपये से अधिकपर आंकी गई मूल्य को पूरा नहीं कर
सका।नीलामी में भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर और अमेरिका के एक हजार लोगों ने भाग
लिया।
राजा रवि वर्मा का जन्म अप्रैल 1848 में केरल के किलिमनूर में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो
त्रावणकोर के राजघरानों के बहुत करीब था।छोटी सी उम्र से ही वे पत्तियों, फूलों और मिट्टी जैसी
प्राकृतिक सामग्री से बने स्वदेशी रंगों को बनाकर दीवारों पर जानवरों और रोजमर्रा के दृश्यों को
चित्रित करते थे। उनके चाचा, राजा राजा वर्मा ने जब देखा तो उनकी प्रतिभा को प्रोत्साहित किया।
त्रावणकोर के तत्कालीन शासक अयिलम थिरुनल द्वारा संरक्षण प्राप्त, उन्होंने शाही चित्रकार
रामास्वामी नायडू से जलरंग चित्रकारी सीखी, और बाद में डच (Dutch) कलाकार थियोडोर जेन्सेन से
तेल चित्रकारी में प्रशिक्षण लिया। उनकी चित्रकारी की मांग कई अभिजात वर्गों में काफी बढ़ गई और
19 वीं शताब्दी के अंत में उन्हें कई चित्रों का कमीशन मिलने लगा। उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़
गई थी कि केरल के किलिमनूर पैलेस (Kilimanoor Palace) ने उनके लिए आने वाले चित्रकारी के
अनुरोधों की अधिक संख्या के कारण एक डाकघर खोला। उन्होंने काम और प्रेरणा के लिए पूरे भारत
में बड़े पैमाने पर यात्रा करी।बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव के चित्र के बाद, उन्हें बड़ौदा में नए लक्ष्मी
विलास राजमहल के दरबार कक्ष के लिए 14 पौराणिक चित्रों का कमीशन दिया गया था।
भारतीय संस्कृति का चित्रण करते हुए,उन्होंने महाभारत और रामायण के अध्यायों से चित्रों को लिया।
उन्हें मैसूर के महाराजा और उदयपुर के महाराजा सहित कई अन्य शासकों से भी संरक्षण प्राप्त
हुआ।जैसे ही उनकी लोकप्रियता बढ़ी, 1873 में वियना (Vienna) में अपने चित्रों की एक प्रदर्शनी के
लिए उन्होंने एक पुरस्कार जीता। उन्हें 1893 में शिकागो (Chicago) में विश्व के कोलंबियाई
(Columbian) प्रदर्शनी में तीन स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।माना जाता है कि वे 1906 में
58 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु से पहले 7,000 से अधिक चित्रकारी बना चुके थे, साथ ही उन्होंने
यूरोपीय (European) यथार्थवाद को भारतीय संवेदनाओं के साथ जोड़ा। चित्रकारी के लिए अपने
विषयों को खोजने के लिए जब उन्होंने यात्रा की, तो उनकी प्रेरणा भारतीय साहित्य से लेकर नृत्य
नाटक तक विभिन्न स्रोतों से आई तथा उन्होंने भारतीय राजघरानों और अभिजात वर्ग को चित्रित
किया।उनकी अधिकांश प्रसिद्ध कला भी भारतीय पौराणिक कथाओं से प्रेरित है । उन्हें अक्सर अपने
संबंधित और अधिक यथार्थवादी चित्रणों के माध्यम से भारतीय देवी-देवताओं की छवियों को
परिभाषित करने का श्रेय दिया जाता है।चित्रण में धन की देवी के रूप में देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी
के रूप में देवी सरस्वती, और भगवान विष्णु को उनकी पत्नी, देवी माया और देवी लक्ष्मी के साथ
दर्शाया गया है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3Kh1l0r
https://bit.ly/3r88okp
https://bit.ly/3j6bAsx
चित्र संदर्भ
1. राजा रवि वर्मा की कला शकुंतला पत्र लेखन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. राजा रवि वर्मा की कला रेक्लाइनिंग नायर लेडी (Reclining Nair Lady) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. राजा रवि वर्मा की कला शंकराचार्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. राजा रवि वर्मा की कला मार्कंडेय को दर्शाता एक चित्रण (Collections - GetArchive)
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