Post Viewership from Post Date to 11-Apr-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
251 144 395

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

पारंपरिक अष्टांग योग और समकालीन योग प्रथाएं आज एक दूसरे से बहुत दूर हो गई हैं

मेरठ

 06-04-2022 10:05 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

कई मायनों में भौतिकवाद (materialism), दलदल के बीच में खिला एक ऐसा पुष्प है, जिसे पाने की तलाश में हम दलदल में कूद तो जाते हैं, किन्तु यह हमें खुद में ही इतना उलझा या फंसा देता है की, पथिक अपने मूल मार्ग से न केवल भटक जाता है, बल्कि अपने मूल लक्ष्य को ही भूल जाता है! वही इसके विपरीत, “समाधि या ध्यान” अपने परम लक्ष्य अर्थात ईश्वर को पाने का एक ऐसा मार्ग है, जो शुरू में भले ही कठिन लगे, लेकिन इस मार्ग में कुछ दूरी तय करने के बाद, परम शांति का और ईश्वर के साथ एक होना निश्चित है।
हिन्दू धर्म में ध्यान, भारत महर्षि पतंजलि द्वारा विरचित योगसूत्र में वर्णित अष्टांग योग का एक अंग माना जाता है। ये आठ अंग, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि होते है। ध्यान का अर्थ किसी भी एक विषय को विचारकर उसमें मन को एकाग्र करना होता है। मानसिक शांति, एकाग्रता, दृढ़ मनोबल, ईश्वर का अनुसंधान, मन को निर्विचार करना, मन पर काबू पाना आदि, ध्यान के मूल उद्देश्य होते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही ध्यान का अभ्यास किया जाता रहा है। गीता के अध्याय-६ में श्रीकृष्ण द्वाराध्यान की पद्धति का वर्णन किया गया है।
व्यक्ति की रुचि के अनुसार ध्यान की अनेक प्रकार की पद्धतियां होती है, जिसमें से कुछ निम्न प्रकार की है:- ध्यान करने के लिए स्वच्छ जगह पर स्वच्छ आसन पर बैठकर, साधक अपनी आँखे बंद करके, अपने मन को दूसरे सभी संकल्प-विकल्पों से हटाकर शांत कर देता है, और ईश्वर, गुरु, मूर्ति, आत्मा, निराकार परब्रह्म या किसी की भी धारणा मे अपने मन को स्थिर करके उसमें ही लीन हो जाता है। जिस ध्यान में ईश्वर या जहाँ किसी की धारणा का अनुसरण किया जाता है, उसे साकार ध्यान तथा किसी की भी धारणा का आधार लिए बिना ही कुशल साधक अपने मन को स्थिर करके लीन होता है, उसे योग की भाषा में निराकार ध्यान कहा जाता है।
ध्यान करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठा जाता है। ध्यान करने के लिए मन को शांत और चित्त को प्रसन्न करने वाला स्थल चुनना अनुकूल माना जाता है। रात्रि, प्रात:काल या संध्या का समय भी ध्यान के लिए अनुकूल माना गया है। ध्यान के अंतर्गत हृदय पर , ललाट के बीच (between the frontal), श्वास-उच्छवास की क्रिया में, इष्ट देव या गुरु की धारणा करके उसमे ध्यान केन्द्रित करना, मन को निर्विचार करना और आत्मा पर ध्यान केन्द्रित करना जैसी कई पद्धतियाँ शामिल है।
शुरू में ध्यान के अभ्यास करने पर साधक को मन की अस्थिरता और एक ही स्थान पर एकांत में लंबे समय तक बैठने में असुविधा होने जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि निरंतर अभ्यास के बाद मन को स्थिर करना संभव है। ध्यान को सरल करने के लिए सदाचार, सद्विचार, यम और सात्विक भोजन करना आदि अनुकूल गुण माने गए है। ध्यान का अभ्यास करने के बाद प्राप्त शांत मन को योग की भाषा में चित्तशुद्धि कहा जाता है। ध्यान में साधक अपने शरीर, वातावरण को भी भूल जाता है साथ ही उसे समय का भान भी नहीं रहता। उसके बाद समाधि दशा की प्राप्ति होती है। योग ग्रंथों के अनुसार ध्यान से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है, और इससे साधक को कई प्रकार की शक्तियाँ भी प्राप्त होती है। ध्यान के सर्वोच्च स्तर को समाधि से संबोधित किया जाता है। समाधि के बाद प्रज्ञा का उदय होता है, इसे योग का अंतिम लक्ष्य माना गया है।
हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा योगी आदि सभी धर्मों में समाधि का महत्व बताया गया है। जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान मे पूरी तरह से डूब जाता है और उसे अपने अस्तित्व का भी ज्ञान नहीं रहता है तो, इस अवस्था को समाधि कहा जाता है। समाधि, पतंजलि के योगसूत्र में वर्णित आठवीं और (अन्तिम) अवस्था है। मानव मन दो स्तरों पर काम करता है। पहला है सचेतन तल, जिसमें सभी कार्य हमेशा अहंकार की भावना के साथ होते हैं। दूसरा है अचेतन भाग जो अहंकार की भावना के साथ नहीं है। यह चेतना से परे जा सकता है। जब मन आत्म-चेतना की इस रेखा से परे चला जाता है, तो इसे समाधि या अतिचेतनता कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति गहरी नींद में चला जाता है, तो वह चेतना के नीचे एक तल में प्रवेश करता है।
वास्तव में योग एक प्रकार का आध्यात्मिक अनुशासन होता है, जो व्यक्ति के मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर केंद्रित होता है। जैसे-जैसे दुनिया व्यस्त और तेज होती जा रही है, वैसे-वैसे इस अभ्यास की आवश्यकता भी बढ़ने लगी है। योग की उत्पत्ति 5,000 साल पहले उत्तर भारत में खोजी जा सकती है। "योग" शब्द का सबसे पहले प्राचीन पवित्र ग्रंथ ऋग्वेद में उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद में योग की उत्पत्ति दो संस्कृत मूलों युजिर और युज हैं, जिसका अर्थ है 'योकिंग', 'जुड़ना', 'एक साथ आना' और 'कनेक्शन से हुई है। वेद संस्कृत में लिखे गए चार प्राचीन पवित्र ग्रंथों का एक समूह है। जिसमें से ऋग्वेद सबसे पुराना है और दस अध्यायों में एक हजार से अधिक भजनों और मंत्रों का संग्रह है, जिन्हें मंडल के रूप में जाना जाता है, जिनका उपयोग वैदिक युग के पुजारियों द्वारा किया जाता था।
योग को ऋषियों द्वारा परिष्कृत और विकसित किया गया था, जिन्होंने उपनिषदों में अपनी प्रथाओं और विश्वासों का दस्तावेजीकरण किया था, जिसमें 200 से अधिक शास्त्र शामिल थे। शास्त्रों के अनुसार, योग का अभ्यास करना व्यक्ति को चेतना और सार्वभौमिक चेतना के मिलन (union of universal consciousness) की ओर ले जाता है। यह अंततः मानव मन को शरीर और प्रकृति के बीच एक महान सामंजस्य की ओर ले जाता है।
लगभग पांच या छह शताब्दी ईसा पूर्व सिल्क रोड (silk Road) के साथ योग का वैश्विक प्रसार भी शुरू हुआ, और यह अभ्यास पूरे एशिया में फ़ैल गया। जैसे ही योग ने एक नए क्षेत्र में प्रवेश किया, वैसे-वैसे योग प्रत्येक नई संस्कृति में फिट होने के अनुरूप परिवर्तित होने लगा।
पश्चिम में योग की शुरुआत का श्रेय अक्सर स्वामी विवेकानंद (1863-1902) को दिया जाता है, जो पहली बार 1883 में संयुक्त राज्य अमेरिका आए थे। उन्होंने योग को "मन का विज्ञान" के रूप में वर्णित करके विश्व योग सम्मेलनों का आयोजन किया और योग ग्रंथों का संस्कृत से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। पश्चिम में इसकी शुरुआत के साथ, योग धार्मिक संबंधों और इसकी जड़ों की शिक्षाओं से और अधिक दूर हो गया। आज कई लोगों के लिए, योग का अभ्यास केवल हठ योग और आसन तक ही सीमित है। लेकिन मूल रूप से, हठ योग एक प्रारंभिक प्रक्रिया है, ताकि शरीर ऊर्जा के उच्च स्तर को बनाए रख सके। यह प्रक्रिया पहले शरीर से शुरू होती है, फिर श्वास, मन और आंतरिक स्व (inner self) तक जाती है। दुर्भाग्य से आजकल, योग को केवल स्वास्थ्य और फिटनेस के लिए एक चिकित्सा या व्यायाम प्रणाली के रूप में समझा जाने लगा है। जबकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, योग के स्वाभाविक परिणाम माने जाते है। वास्तव में योग का लक्ष्य कहीं अधिक दूरगामी है।
योग किसी विशेष धर्म, विश्वास प्रणाली या समुदाय तक ही सीमित नहीं है। जो कोई भी योग का अभ्यास करता है, वह किसी भी आस्था, जातीयता या संस्कृति के बावजूद इसके लाभों को प्राप्त कर सकता है। सभी का यह जानना बेहद जरूरी है की, इन तकनीकों की उत्पत्ति आध्यात्मिक विकास के लिए योग अभ्यास पर आधारित है, न कि स्ट्रेच और मूवमेंट (Stretch and Movement) की सामान्य प्रथा पर, जो आज कई पश्चिमी स्कूल सिखाते हैं। पारंपरिक और समकालीन योग प्रथाएं आज एक दूसरे से बहुत दूर हो गई हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट की पहुंच के साथ, योगी और शिक्षक अपने अभ्यास को पहले से कहीं अधिक साझा करने में सक्षम तो हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश इसे आधे अधूरे ज्ञान के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं!

संदर्भ
https://bit.ly/3x39HFd
https://bit.ly/3j0BAp0
https://bit.ly/38qWH1P
https://en.wikipedia.org/wiki/Samadhi#Hinduism

चित्र संदर्भ
१. योग मुद्रा में उच्च पद के भारतीय व्यक्ति को दर्शाता एक चित्र (lookandlearn)
२. गीता बोध आत्म साक्षात्कारी को दर्शाता एक चित्र (flickr)
3. योग चक्रों को दर्शाता एक चित्र (wikimedia)
४. कुंडलिनी जागरण को दर्शाता एक चित्र (lookandlearn)
५. अपश्चिमी योग अभ्यास को दर्शाता एक चित्र (Medical News Today)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id