ईश्वर सहित सभी का प्रिय होता है, सत्व गुण प्रधान व्यक्ति

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
06-04-2022 10:15 AM
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ईश्वर सहित सभी का प्रिय होता है, सत्व गुण प्रधान व्यक्ति

आपने अपने जीवन काल में कभी न कभी, ऐसे इंसान को जरूर देखा होगा जिसके प्रति सभी लोग अनायास ही आकर्षित हो जाते हैं। यहां तक की जानवर भी उस व्यक्ति की ओर खिंचे चले जाते हैं। शायद आपका व्यक्तित्व भी कुछ स्तर तक ऐसा ही हो, और आपको जिज्ञासा हो रही हो, की आखिर इस आकर्षण के पीछे कौन सा कारक निहित है?
इस प्रश्न का एक हाजिर और संतुष्टि जनक जवाब, संभवतः भागवत गीता में मिल सकता है, जहां भगवान कृष्ण ने “सत्व गुण प्रधान व्यक्तिव” को किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षण का कारण बताया है। हिन्दू दर्शन में, सत्त्व (शाब्दिक अर्थ : "अस्तित्व, वास्तविकता" ; विशेषण : सात्विक) सांख्य दर्शन में वर्णित तीन गुणों में से एक है।
सभी मनुष्यों में सत्व, रजस और तमस इन तीन में से एक, या केवल एक गुण निश्चित तौर पर प्रधान होता है। तीन गुणों की अविभाज्य अर्थात पूर्ण रूप से संतुलित अवस्था, ब्रह्मांड में प्रकट नहीं होती है। श्री कृष्ण ने भगवद्गीता के 14वें अध्याय में तीन गुणों की स्पष्ट व्याख्या की है। निष्क्रियता जैसे सुस्ती, नींद, मूर्खता, पाखंड, अहंकार, अभिमान और क्रोध, कठोरता और अज्ञानता, तमस के गुण हैं। तमस असंतुलन, विकार, अराजकता, चिंता, अशुद्ध, विनाशकारी, भ्रम, नकारात्मक, सुस्त या निष्क्रिय, उदासीनता, जड़ता या सुस्ती, हिंसक, शातिर, अज्ञानी का गुण होता है। रजस तत्व व्यक्ति को कर्म की ओर आकर्षित करता है। यह आत्मा को कर्मों और उनके फल के प्रति आसक्ति द्वारा बांधता है। रजस की विजय सत्त्व और तमस को वश में करने से होती है। रजस गतिशीलता, जुनून, क्रोध, काम, अहंकार, लालच, दूसरों पर आरोप लगाने, अत्यधिक कठोरता, असंतोष, उग्रता, लगाव आदि के रूप में व्यक्त होता है।
सत्व गुण, उच्चता, संतोष, क्षमा, धैर्य, बाह्य पवित्रता, किसी से शत्रुता नहीं रखना, अर्थात घृणा का अभाव, चंचलता का अभाव (अनिर्णय), जोश, आत्म-सम्मान/अभिमान की अनुपस्थिति, मन की पूर्ण शुद्धता, सत्यनिष्ठा मन के साथ-साथ शरीर और इंद्रियों, पूर्ण निर्भयता, ध्यान के योग में निरंतर स्थिरता और आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति के लिए ज्ञान प्राप्त करना जैसी विशेषताओं की अभिव्यक्ति करता है। सत्त्व अच्छाई, सत्य, शांति, संतुलन, सदाचार, सद्भाव, पवित्रता, सार्वभौमिकता, समग्र, रचनात्मक, निर्माण, सकारात्मक दृष्टिकोण, चमकदार, अस्तित्व, गुणी का गुण माना जाता है। रजस जुनून, गतिविधि का गुण है, न तो अच्छा और न ही बुरा। सांख्य विचारधारा के अनुसार, कोई भी और कुछ भी विशुद्ध रूप से सात्विक या विशुद्ध रूप से राजसिक या विशुद्ध रूप से तामसिक नहीं है। बौद्ध धर्म में सत्त्व का अर्थ "एक जीवित प्राणी, व्यक्ति या संवेदनशील प्राणी" होता है। भगवद गीता में, भगवान कृष्ण अर्जुन को तीन गुणों - सत्व, रज और तम के बारे में बताते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति में सत्व प्रमुख गुण होता है। ऐसी स्थिति में रजस और तम का दमन किया जाता है। और, यदि रजस हावी है, तो सत्त्व और तमस वश में रहते हैं। यदि तमस हावी हो जाता है, तो सत्त्व और रजस वश में हो जाते हैं।
प्रकृति में तीनों गुण विद्यमान हैं। जीवात्मा को प्रकृति के साथ होने के कारण दुःख, आनंद आदि का अनुभव होता है। व्यक्ति में सत्व प्रमुख गुण है। यह प्रमुख गुण उसके कर्म पर और उसके द्वारा खाए जाने वाले भोजन पर भी निर्भर करता है। हम किसी व्यक्ति के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि किसी व्यक्ति में सबसे महत्वपूर्ण गुण क्या है?
जब किसी व्यक्ति की ज्ञानेंद्रियां शुद्ध, असंबद्ध ज्ञान (disjointed knowledge) को दर्शाती हैं, तो यह माना जाता है की उस व्यक्ति के मामले में, सत्व की प्रधानता होती है। श्रीमद्भागवत में, भगवान कृष्ण उद्धव को इन तीन गुणों की व्याख्या करते हैं। सत्त्वगुण वाला व्यक्ति सदैव, यहां तक की सोते हुए भी जाग्रत रहता है। जब वह सो रहा होता है, तब भी वह वास्तव में भगवान का ध्यान कर रहा होता है। वहीँ रजस को सोते समय कई सपने आते हैं। तमस वाले को गहरी नींद आती है। यहां उद्धव जानना चाहते हैं कि भगवान कृष्ण के चरणों तक पहुंचने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए? कृष्ण उत्तर देते हैं कि सत्वगुण वाले लोग सदैव उच्च लोक में पहुंचेंगे। रजस वालों का मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म होगा। और यदि किसी व्यक्ति में तमस का गुण प्रबल होता है, तब वह नरक में अपने कर्म का भुगतान करेगा, जिसके बाद वह पशु, पक्षी या पौधे के रूप में पुनर्जन्म लेता है।
कृष्ण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के समय भगवान के बारे में सोचता है, तो वह उनके चरणों में पहुंच जाएगा। भोजन की आदतों को भी सात्विक, राजसिक और तामसिक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। सात्विक भोजन भगवान को प्रिय होता है। जीभ को जो अच्छा लगे वह खाना राजसिक है। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है उसे खाना और जो भगवान को नहीं चढ़ाया जाता है उसे खाना तामसिक माना जाता है। जो मनुष्य रज और तमस को जीत लेता है, जो अर्चन रूप में भगवान की पूजा करता है और अपना पूरा जीवन भगवान का ध्यान करता है, वास्तव में वही मोक्ष को प्राप्त करता!

संदर्भ
https://bit.ly/3NOWPYY
https://bit.ly/3r0qVyY
https://bit.ly/3qZhUWQ
https://en.wikipedia.org/wiki/Sattva

चित्र संदर्भ
१. शबरी और श्रीराम को दर्शाता एक चित्र (flickr)
२. क्रोधित आँखों को दर्शाता एक चित्र (PixaHive)
3. कृष्णा और सुदामा को दर्शाता एक चित्र (wikimedia)
४. चितपावन ब्राह्मण थाली को दर्शाता एक चित्र (wikimedia)