Post Viewership from Post Date to 08-Apr-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2458 141 2599

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

झींगा मछलियों की वैश्विक मांग और भारत में झींगा मछली की खेती का महत्व

मेरठ

 04-04-2022 09:07 AM
समुद्री संसाधन

झींगा मछली (Lobster) जैसे उच्च मूल्य वाले समुद्री भोजन की लगातार बढ़ती मांग ने मत्स्य पालन उत्पादन को चरम सीमा पर पहुंचा दिया है। झींगा मछली अत्यधिक कीमत वाले समुद्री भोजन हैं‚ जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बड़ी मांग है। यह एक स्वादिष्ट भोजन है जिसका आनंद दुनिया भर में लिया जाता है‚ विशेष रूप से जीवित झींगा मछलियों को सबसे अधिक पसंद किया जाता है। संपन्न देशों के ग्राहक ताजे समुद्री भोजन के लिए अधिक भुगतान करने को भी तैयार होते हैं। झींगा मछलियों को जीवित (live)‚ जमी हुई पूंछ (frozen tails)‚ पूरा जमा हुआ (whole frozen)‚ पूरा ठंडा (whole chilled)‚ पूरा पका हुआ (whole cooked)‚ जमा हुआ (frozen) और लॉबस्टर मांस (lobster meat) जैसे विभिन्न रूपों में में निर्यात किया जाता है।
झींगा मछली पालन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग 20 वीं शताब्दी की शुरुआत से ही क्रस्टेशियंस (crustaceans) से मांस की उच्च मांग को पूरा करने के लिए किया जाता रहा है। अत्यधिक कीमत वाले समुद्री क्रस्टेशियन होने केकारण झींगा मछली की खेती एक आकर्षक और लाभदायक विकल्प है। इनके रहने तथा बढ़ने में मदद करने के लिए स्वस्थ स्थान‚ स्वच्छ जल और मछली के चारे की आवश्यकता होती है। इनकी बढ़ती मांग के कारण‚ सभी आकार के झींगो का विपणन किया जाता है। चीन (China) तथा यूरोप (Europe) में इसकी अधिक मांग है। इंट्राफिश (IntraFish) के अनुसार‚ 2017 में मेन झींगा मछली (Maine lobster) सीजन के लिए अच्छी संभावनाएं थीं। 2015 में 55‚500 टन झींगा मछली उतरी थीं। तीन साल से घटती हुई लैंडिंग में 2016 में वापस उछाल आया जिसके बाद पर्यवेक्षक एक बहुत अच्छे वर्ष की उम्मीद करने लगे। मेन झींगा लैंडिंग का मूल्य US$533.1 मिलियन हुआ‚ जो 2015 के US$501.3 मिलियन से अधिक था। मूल्य में वृद्धि झींगे की बढ़ती कीमतों को भी दर्शाती है। झींगे की पहली कीमत 2012 में US$ 2.69 प्रति एलबी से बढ़कर 2013 में US$ 2.90 हो गई थी‚ फिर 2014 में US$ 3.70 प्रति एलबी और 2015 में US$ 4.09 प्रति एलबी पर पहुंच गई थी‚ लेकिन 2016 में थोड़ा सा गिर कर US$ 4.07 प्रति एलबी पर पहुंच गई थी। यह विकास घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती मांग को दर्शाता है। झींगा मछलियों की कई प्रजातियां उपलब्ध हैं। अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए तीन प्रकार की झींगा मछलियों की खेती की जा सकती है: (1) टाइगर लॉबस्टर (पैनुलीरस ऑर्नाटस) (Tiger lobster (Panulirus ornatus)) - ये अपने धब्बेदार पैरों के कारण अलग दिखाई देती है‚ (2) बैम्बू लॉबस्टर (पैनुलीरियस वर्सिकलर) (Bamboo lobster (Panulirius Versicolor)) - इनके पैरों पर धारियाँ होती हैं जो एक बाँस के तने जैसी दिखाई देती है‚ (3) आदिक-आदिक झींगा मछली (पैनुलीरस एडुलिस) (Adik-Adik lobster (Panulirus edulis)) - ये अपनी विशिष्ट लाल रंग की पीठ से पहचानी जाती है। खेती की जाने वाली सबसे आम झींगा मछलियों में‚ टाइगर और बैम्बू झींगा मछली शामिल हैं‚ क्योंकि वे तेजी से बढ़ते हैं और विपणन आकार को तेज करते हैं। ये तीनों प्रजातियां एक दूसरे से काफी अलग हैं तथा स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी भारी मांग और लागत है। झींगा मछली की खेती करने के लिए अपने स्थान और इच्छित उत्पाद प्रकार के आधार पर इनमें से किसी भी नस्ल का चयन कर सकते हैं। इनके इष्टतम बढ़ते वातावरण को सुनिश्चित करने के लिए अपना तालाब तैयार करना महत्वपूर्ण है। इनके तालाबों को प्रमाणित सफाई एजेंटों और चूने का उपयोग करके अच्छी तरह से साफ और कीटाणुरहित किया जा सकता है‚ ये हानिकारक गैस और वायरस को बढ़ती सुविधा अनुसार हटा देता है। तालाब में गाय का गोबर जैसी प्राकृतिक खाद डालने तथा 5 से 7 दिनों तक रहने देने से जलीय जीवों की वृद्धि सुनिश्चित होती है और झींगा मछलियों की वृद्धि के लिए अच्छा वातावरण मिलता है। उचित पर्यावरण स्थिति के साथ भूमि आधारित होल्डिंग सिस्टम (land-based holding systems) में झींगा पालन सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
विकट जल गुणवत्ता मापदंडों में विघटित ऑक्सीजन (oxygen)‚ अमोनिया (ammonia)‚ नाइट्राइट (nitrite) और कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) की सांद्रता होती है। इस सिस्टम के अन्दर नाइट्रेट‚ पीएच स्तर‚ लवणता और क्षारीयता स्तर की एकाग्रता भी आवश्यक है। जलीय कृषि के लिए विस्तार को बढ़ावा देने की दुविधा को हल करने के साथ- साथ‚ पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रौद्योगिकियों और कृषि पद्धतियों के विकास की मांग करना भी आवश्यक है। जब तक हैचरी प्रौद्योगिकी (hatchery technology) का व्यावसायीकरण नहीं होता‚ तब तक अल्पकालिक मेद (short- term fattening) के माध्यम से झींगा मछलियों का मूल्य संवर्धन संभव है। मूल्य संवर्धन के इरादे से कम मूल्य की झींगा मछलियों को पकड़ना और व्यावसायिक विकास के लिए जंगली पुएरुली (pueruli) की कटाई करना तकनीकी और आर्थिक रूप से संभव है। काँटेदार झींगा मछलियों (spiny lobsters) तथा उष्णकटिबंधीय प्रजातियों में अधिक अनुकूल विशेषताएं होती हैं‚ जो खेती की परिस्थितियों के अनुकूल होती हैं। नियंत्रित परिस्थितियों में उच्च माल-संग्रह के प्रति सहिष्णुता‚ नरभक्षण के बिना सामुदायिक जीवन और मजबूत बाजार मांग कुछ ऐसी विशेषताएं हैं‚ जो झींगा मछली को व्यापक रूप से स्वीकृत जलीय कृषि प्रजाति बनाती हैं। एक सतत जलीय कृषि अभ्यास के लिए‚ बीजों का हैचरी उत्पादन महत्वपूर्ण है। भारत में उपलब्ध बीजों में: पैनुलीरस होमरुशोमर्स (Panulirus homarushomarus)‚ पी. ऑर्नाटस (P. ornatus)‚ पी. पॉलीफैगस (P. polyphagus) और थेनस यूनिमैकुलैटस (thethenus unimacultus) आशाजनक प्रजातियां हैं। इन प्रजातियों को इनके रंग और रूपात्मक लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है। यहां टी. ओरिएंटलिस (T. orientalis) का हैचरी उत्पादन स्थापित है‚ हालांकि इसकी खेती जंगली या पोस्ट लार्वा पर निर्भर करती है। झींगे के लार्वा का उत्पादन और उन्हें एक महीने तक तैयार करने का काम मत्स्य पालन या हैचरी में किया जाता है। 1 वर्ग मीटर के पेन में 150 से 200 ग्राम वजन की 10 झींगा मछलियों को रखा जा सकता है। सामान्य तौर पर प्रति एकड़ लगभग 10‚000 लार्वा के टुकड़े रखे जा सकते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3NDfION
https://bit.ly/3LBWqXY
https://bit.ly/3DvzcQy

चित्र संदर्भ
1. भोजन के तौर पर झींगा मछली को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. एक यूरोपीय झींगा मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बिक्री हेतु रखे गए रॉक लॉबस्टर को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
4. झींगा मछली जाल मछली पकड़ने की नाव को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
5. झींगा मछली जालों दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आइए देखें, विभिन्न खेलों के कुछ नाटकीय अंतिम क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     29-12-2024 09:21 AM


  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id