गंगा यमुना की दोआब में बसा मेरठ अपनी उपजाऊ जमीन की वजह से कृषि के लिए जाना जाता था। यह भारत के अर्धपतझड़ वाले वर्षाकालिक पवन और सवाना जंगल के क्षेत्र में आता है जो वनस्पति जीवन के लिए काफी अच्छा माना जाता है। पिछले कई सालों में हुई जंगलों की बेतरतीब कटौती और उद्योगों की वजह से बढ़ते प्रदुषण के कारण आज यहाँ वनस्पति एवं जीव जगत में काफी कमी हुई है और साथ ही वन आवरण भी मात्र 21314 हेक्टेयर ही बचा है। मेरठ में आज खेती के नाम पर बागवानी की जाती है और वह भी विशेषरूप से विदेशी फूलों की जिनकी माँग दिल्ली और आस-पास के शहरों में बहुत ज्यादा है। ये सभी फूल-पौधे घर और बागों की शोभा बढ़ाने के लिए तथा शादी या किसी कार्यक्रम में सजावट के लिए या फिर तो बाग-बगीचों, घरों के लिए उद्यान (लैंडस्केप) आदि के निर्माण में इस्तेमाल किये जाते हैं। रजनीगंधा जो मूल मेक्सिको का फूल है, ग्लेडियोलस- लिली यह एशिया सहित यूरोप में पाया जाता है तथा उष्णकटीबंधिय अफ्रीका और मुख्यतः साउथ अफ्रीका के दक्षिणी तट पर पाया जाने वाला फूल है, गेंदा जो दरअसल दक्षिण और उत्तर अमरीका से है, गुलाब और उसकी विविध देसी-विदेशी प्रजातियाँ जैसे फ्लिंडर्स रोज तथा बोगनविल की पुष्पलताएँ जो पुर्तगाल और अर्जेंटीना से पुरे विश्व में आयी हैं; इन सभी फूलों की प्रजातियों का मेरठ में खासा व्यापार होता है। मेरठ सी डैप रिपोर्ट के अनुसार सरकार पुष्पकृषि के लिए इन फूलों को बढ़ावा देना चाहती है। 1. द इलस्ट्रेटेड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ फ्लोवेरिंग प्लांट्स 2. फ्लोवेरिंग ट्रीज: एम एस रंधावा 3. सी डैप मेरठ 2007 4. न्यू प्लांट रेकॉर्ड्स फॉर द अप्पर गंगेटिक प्लेन फ्रॉम मेरठ एंड इट्स नेबरहुड: वाय एस मूर्ति और वी सिंह (स्कूल ऑफ़ प्लांट मोर्फोलोजी, मेरठ)
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