Post Viewership from Post Date to 13-Apr-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
303 26 329

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

चुनाव आयोग क्यों लगाता है, ओपेनियन अथवा एग्जिट पोल पर प्रतिबंध?

मेरठ

 15-03-2022 08:40 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

चुनाव किसी भी संवैधानिक देश की आधारशिला माने जाते हैं। यदि मतदान से लेकर परिणाम आने तक की प्रक्रिया, बिना किसी विवाद और पूरी पारदर्शिता के साथ संपन्न हो जाती हैं, तो यह एक आदर्श चुनाव एवं जागरूक लोकतंत्र को परिभाषित करती हैं। हालांकि कुछ ऐसे कारक भी होते हैं जो मतदान की पद्धति में पारदर्शिता को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन चुनाव आयोग इनके प्रति भी सतर्क रहता है। और ऐसे कारकों को मिटाने अथवा प्रतिबंधित करने का काम करता है। एग्जिट पोल के नतीजों को प्रदर्शित करने पर प्रतिबंध भी, चुनाव आयोग द्वारा उठाये गए ऐसे ही सराहनीय क़दमों में से एक हैं।
दरअसल मतदान के बाद विभिन्न मीडिया माध्यमों द्वारा मतदाताओं पर किये गए सर्वेक्षणों को एग्जिट पोल (exit polls) कहा जाता है। लेकिन पिछले महीने पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए, भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा 10 फरवरी से 7 मार्च के बीच एग्जिट पोल कराने और प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। चुनाव आयोग द्वारा लागू किये गए एग्जिट पोल प्रतिबंध के बीच की अवधि को ऐसी अवधि के रूप में अधिसूचित किया जाता है, जिसके दौरान कोई एक्जिट पोल आयोजित करना , प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से प्रकाशन या प्रचार करना या किसी अन्य तरीके से प्रसार करना प्रतिबंधित कर दिया जाता है। चुनाव आयोग स्पष्ट करता है कि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, जनमत सर्वेक्षण या किसी अन्य सर्वेक्षण के परिणामों सहित किसी भी चुनावी मामले को प्रदर्शित करना, सम्बंधित मतदान के समापन के लिए निर्धारित वाली 48 घंटों की अवधि के दौरान प्रतिबंधित होगा। आदेश का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति अथवा संगठन को दो साल की जेल या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
इस संदर्भ में चुनाव आयोग ने चुनाव वाले पांच राज्यों में शारीरिक रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध बढ़ा दिया था। 8 जनवरी को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर में चुनाव की तारीखों की घोषणा करते हुए, चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक शारीरिक रैलियों, रोड शो और बाइक रैलियों और इसी तरह के अभियान कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी।
एग्जिट पोल या ओपेनियन पोल पर लगाए गए प्रतिबंध यूं ही नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे का मुख्य कारण इन्हे आयोजित करने वाले संगठनों के प्रति उत्पन्न हुआ संदेह भी है। उदाहरण के तौर पर पारंपरिक मतदान एजेंसी लोकनीति-सीएसडीएस (Lokniti-CSDS) जो राजनीतिक वैज्ञानिकों का एक नेटवर्क माना जाता है के अलावा कोई भी पोलस्टर (एक व्यक्ति जो जनमत सर्वेक्षण करता है या उसका विश्लेषण करता है।) इसकी कार्यप्रणाली (अर्थात किस प्रक्रिया से एग्जिट पोल किये गए) का विवरण नहीं देता है। यह स्पष्ट रूप से नहीं बताते की वे अपने सर्वेक्षण कैसे करते हैं, वोट-शेयर के लिए त्रुटियों का मार्जिन क्या है और वोट-शेयर अनुमानों को पूर्वानुमानों में परिवर्तित करते समय किए गए सभी अनुमान छिपे रहते हैं।
कार्यप्रणाली के प्रति यह अस्पष्टता तथा उनके फंडिंग के बारे में खुलासे की कमी केवल उन संदेहों को बढ़ाने का काम करती है। " मतदान पारदर्शिता की कमी सबसे पहले और सबसे महत्त्वपूर्ण प्रदूषकों को प्रभावित करती है जो ईमानदारी के साथ अपना काम करते हैं, क्योंकि यह आम धारणा को बढ़ावा देती है कि राजनीतिक दलों या अन्य दलों के हितों के अनुरूप मतदान के परिणाम आसानी से खरीदे या निर्मित किए जा सकते हैं। मनुष्य एक जटिल प्राणी है, वोटिंग के सम्बंध में वास्तविकता कई कारणों से उसके द्वारा दिए गए उत्तरों से पूरी तरह भिन्न भी हो सकती है। अतः ओपेनियन और एग्जिट पोल सदा ही संदेह के घेरे में घिरे रहते हैं। वोटिंग की लम्बी परंपरा वाले देशों में भी ओपिनियन पोल गलत हो सकते हैं। यूके में, पोलस्टर्स (pollsters) ने 2015 में कंजर्वेटिव पार्टी (conservative party) के लिए और फिर 2016 में ब्रेक्सिट (Brexit) के लिए समर्थन को कम करके आंका। अमेरिका में, पोलस्टर्स ने लगातार दो राष्ट्रपति पद की दौड़ (2016 और 2020) में डोनल्ड ट्रम्प (Donald Trump) के समर्थन को कम करके आंका। दोनों देशों में उनकी चौतरफा आलोचना हुई, लेकिन वहाँ इस तरह के चुनावों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोई आह्वान नहीं किया गया।
यूके और यूएस (UK and US) के मामले में, गलत पूर्वानुमानों को त्रुटियों के रूप में देखा जाता है, जबकि भारत में, एक पोलस्टर द्वारा गलत पूर्वानुमान को धोखाधड़ी या घोटाले के सबूत के रूप में देखा जाता है।
ब्रिटेन में ब्रिटिश पोलिंग काउंसिल (british polling council) और अमेरिका में अमेरिकन एसोसिएशन फॉर पब्लिक ओपिनियन रिसर्च (American Association for Public Opinion Research) दोनों ने हालिया चुनावी हार के कारणों की जांच करना शुरू किया। ये संस्थान सर्वेक्षण विधियों पर अनुसंधान को सुविधाजनक बनाने, समय-समय पर सर्वेक्षण मानदंड निर्धारित करने और विशेषज्ञों को मतदान विधियों की समीक्षा करने में मदद करते हैं। भारत में, बिहार 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद इस तरह के एक स्व-नियामक निकाय के गठन की बात चल रही थी, जब मतदाताओं के मूड को पूरी तरह से गलत तरीके से पढ़ने के लिए मतदाताओं को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। लेकिन उससे कुछ नहीं निकला।
हालांकि यदि ओपिनियन पोल समय के साथ बेहतर होते जा रहे होते तो मतदान की अस्पष्टता इतनी मायने नहीं रखती। लेकिन औसत सर्वेक्षण की सटीकता में अभी भी बहुत सुधार नहीं हुआ है।

संदर्भ
https://bit.ly/35N9pqO
https://bit.ly/3CBOhzy
https://brook.gs/3i4plXW

चित्र सन्दर्भ
1. मतदान को दर्शाता चित्रण (NextBigWhat)
2. भारतीय चुनाव आयोग की बैठक को दर्शाता चित्रण (5 Dariya News)
3. चेक मार्क टिक को दर्शाता चित्रण (pixabay)
4. एग्जिट पोल फार्म को दर्शाता चित्रण (flickr)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id