यदि आप भारत के पहाड़ी राज्यों जैसे हिमांचल अथवा उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों के दर्शन करने
हेतु जाएं, तो आपको वहां के सभी मंदिरों में एक समानता जरुर देखने को मिल जाएगी। और वह
यह हैं की, सभी मंदिरों की स्थापना हमेशा विशालकाय पेड़ों के नीचे ही की गई हैं। साथ ही मैदानी
क्षेत्रों के अधिकांश मंदिरों के परिसर में भी आमतौर पर पुराने और विशालकाय पेड़ आसानी से
दिखाई दे जाते हैं। मंदिरों के निकट पेड़ों की अनिवार्य उपस्थिति स्पष्ट रूप से यह दर्शाने के लिए
काफी हैं की, हिंदू धर्म और प्रकृति कितनी निकटता के साथ जुड़े हैं। हालाँकि हमारे लिए यह जानना
भी बेहद जरूरी है की कुछ विशेष वृक्षों को उनकी कुछ अद्वितीय खासियतों के कारण विशेष तौर
पर पवित्र वृक्षों की मान्यता दी गई है, और बरगद का वृक्ष इन सभी में विशेष वरीयता रखता है।
बरगद, जिसे "बैनियन (Banyan)" भी कहा जाता है, एक एपिफाइट वृक्ष (epiphyte tree) है। यानी
ऐसा पौंधा, जो दूसरे पौधे पर उगता है।
बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है, और बरगद के पेड़ की पत्तियाँ बड़ी, चमकदार, हरी और अण्डाकार
होती हैं। युवा पत्तियों में एक आकर्षक लाल रंग का रंग होता है। जड़ों की जटिल संरचना और
व्यापक शाखाओं के कारण, बरगद का उपयोग पेनजिंग और बोन्साई (Penjing and Bonsai) में
विषय नमूने के रूप में किया जाता है। ताइवान में सबसे पुराना जीवित बोन्साई 240 साल पुराना
बरगद का पेड़ है।
बरगद के पेड़ कई एशियाई, प्रशांत धर्मों और मिथकों में प्रमुख रूप से शामिल हैं। जिनमें हिंदू धर्म
सबसे प्रमुख हैं, जहां बरगद के पेड़ के पत्ते को भगवान कृष्ण का विश्राम स्थल कहा माना जाता है।
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।
भगवत गीता में, कृष्ण के अनुसार, " बरगद ऐसा पेड़ है जिसकी जड़ें ऊपर की ओर हैं और इसकी
शाखाएं नीचे हैं, और इसके पत्ते वैदिक भजन हैं। जो इस पेड़ को जानता है वह वेदों का ज्ञाता है।
अर्थात बरगद को संदर्भित करते हुए, यहां भौतिक जगत को एक ऐसे वृक्ष के रूप में वर्णित किया
गया है, जिसकी जड़ें ऊपर और शाखाएं नीचे की ओर हैं। इसी तरह, यह भौतिक दुनिया वास्तव में
आध्यात्मिक दुनिया का प्रतिबिंब है। भौतिक जगत् वास्तविकता की छाया मात्र है। छाया में कोई
वास्तविकता या पर्याप्तता नहीं होती है।
बरगद से जुडी हुई परंपरा के रूप में वट पूर्णिमा उत्तर भारत और पश्चिमी भारतीय राज्यों महाराष्ट्र,
गोवा, गुजरात में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर में ज्येष्ठ महीने के तीन
दिनों के दौरान (जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में मई-जून में पड़ता है) विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं, और
बरगद के पेड़ के चारों ओर धागा बांधती हैं, तथा अपने पति की भलाई के लिए प्रार्थना करती हैं।
धार्मिक और ऐतिहासिक मायनों में महत्वपूर्ण कुछ बरगद के पेड़ों की सूची निम्नवत दी गई हैं:
1. थिम्मम्मा मारिमानु अनंतपुर में एक बरगद का पेड़ है, जो भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कादिरी
शहर से लगभग 35 किमी दूर स्थित है। यह भारतीय वनस्पति उद्यान में मौजूद है और 550 वर्ष
से अधिक पुराना है।
2. भारत के सबसे बड़े पेड़ों में से एक, ग्रेट बरगद (Great Banyan) भारत के कोलकाता में पाया
जाता है। यह 250 साल से अधिक पुराना बताया जाता है और 4.67 एकड़ में फैला हुआ है।
3. ऐसा ही एक और पेड़, "बिग बरगद का पेड़ (big banyan tree)" के रूप में दोड्डा आलादा मारा,
भारत के बैंगलोर के बाहरी इलाके रामोहल्ली गाँव में पाया जाता है। यह लगभग 2.5 एकड़ में फैला
हुआ है।
4. होनोलूलू, हवाई में इओलानी पैलेस बरगद (Iolani Palace Banyan in Honolulu, Hawaii):
1880 के दशक में रानी कपिओलानी (queen kapiolani) ने इओलानी पैलेस (Iolani Palace)
मैदान के भीतर दो बरगद के पेड़ लगाए। ये पेड़ तब से पुराने ऐतिहासिक महल के मैदान में पेड़ों के
बड़े समूहों में विकसित हो गए हैं।
5. पुरी में जगन्नाथ मंदिर के परिसर के अंदर एक बड़ा बरगद का पेड़, कल्पबाटा है। इसे भक्तों में
पवित्र माना जाता है और इसे 500 वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है।
6. फ्लोरिडा के विंटर हेवन (Florida's Winter Haven) में स्थित लेगोलैंड थीम पार्क (Legoland
Theme Park) में एक बड़ा बरगद का पेड़ स्थित है। इसे 1939 में में लगाया गया था।
इसके अलावा भारत के इतिहास में भी बरगद के वृक्ष का, धार्मिक महत्व के साथ ही स्वतंत्रता के
आंदोलन में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
यह हमारे लिए बड़े ही गर्व का विषय है, क्यों की हमारे मेरठ शहर के मेरठ कॉलेज में स्थित वटवृक्ष
(बरगद के पेड़) के नीचे ही गांधीजी ने आजादी की अलख जगाई थी।
गांधी जी का मेरठ से खासालगाव रहा है, और जब 1920 में पहली बार वह मेरठ आए तो उन्होंने चार जगहों पर सभाएं की। वह
मेरठ कॉलेज गए और छात्रों से मुलाकात की। मेरठ कॉलेज में वट वृक्ष के नीचे ही उन्होंने यज्ञ में
शामिल होकर आहुति दी थी। बापू 1920 में आए तो मेरठ की धरती भाईचारे की मिसाल बन गई।
जब मेरठ कॉलेज में वट वृक्ष के नीचे आयोजित यज्ञ में आहुति देकर स्वतंत्रता की अलख जगाई
थी। आज शहर के जागरूक लोग मेरठ कालेज परिसर में लगे बरगद के पेड़ को भी विरासत वृक्ष या
हैरिटेज पेड़ (heritage tree) घोषित करते हुए विरासत पेड़ों की सूची में शामिल कराने की मांग
कर रहे हैं। गांधीजी के त्याग का प्रतीक माने जाने वाले मेरठ कॉलेज में स्थित इसी बरगद के पेड़
के नीचे बैठकर गांधीजी ने छात्र-छात्राओं को संबोधित किया था। और इसे देखने के लिए आज भी
कई लोग यहां आते हैं। आज मेरठ वासियो की मांग है की धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से खासियत
वाले सौ साल से अधिक पुराने पेड़ को हैरिटेज पेड़ घोषित किया जाए।
संदर्भ
https://bit.ly/34Pixe1
https://bit.ly/36jpX9y
https://bit.ly/3LSwpF4
https://bit.ly/3h3mf65
https://bit.ly/34ZOFLP
चित्र संदर्भ
1. मेरठ कॉलेज में वटवृक्ष स्मृति को दर्शाता चित्रण (twitter)
2. कोलकाता, भारत में महान बरगद, को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. मेरठ कॉलेज प्रवेश द्वार को दर्शाता चित्रण (facebook)