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सामाजिक जागरूकता की चिंगारी साबित हो सकती है ,सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली

मेरठ

 21-02-2022 09:46 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

शिक्षा का प्रारंभिक उद्देश्य जीवन के विविध पहलुओं को समझना और विभिन्न विषयों का ज्ञान अर्जित करना था। किंतु आज शिक्षा का विस्तार केवल किसी बड़े शिक्षा संस्थान में दाखिला प्राप्त करने या फिर किसी प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी पाने तक ही सीमित रह गया है! लेकिन इस संकुचित मानसिकता को तोड़ने में हमेशा से ही पुस्तकालयों ने अपनी अहम् भूमिका अदा की है। जीवन में पुस्तकालयों की क्षमता को भांप चुके 19वीं सदी के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आईंस्टाईन (Albert Einstein) ने लिखा है की "एक जानकारी जो आपको अवश्य होनी चाहिए, वह है की पुस्तकालय कहां हैं?" आईंस्टाईन जानते थे की पुस्तकालय अद्भुत संसाधन, सामुदायिक संपत्ति और ज्ञान के सच्चे खजाने हैं। और भारत के संदर्भ में तो उनकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती हैं।
भारत ने पश्चिमी देशों से विशेषतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका को कई दशकों से एक आदर्श के रूप में देखा है, और कई मायनों में उस देश की तरह बनने का प्रयास किया है। हालांकि वास्तव में वह देश सभी मायनों में आदर्श नहीं है। लेकिन अमेरिकी जीवन के एक आकर्षक पहलू के रूप में भारत जिसे अनुसरित कर सकता है, वह है सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली (public library system)। सार्वजनिक पुस्तकालय एक कल्याण केंद्र होता है, जो शिक्षा, संस्कृति को बढ़ावा देने, स्वस्थ मनोरंजन के लिए अवसर प्रदान करने और समाज के सभी वर्गों में सूचना प्रसारित करके समुदाय को उपयोगी सेवाएं प्रदान करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका की सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली की शुरुआत 1880 के दशक में साक्षरता के लिए जरूरत के रूप में शुरू हुई, जिससे कई पुस्तकालयों की स्थापना हुई जो कर राजस्व और निजी दान से वित्त पोषित थे, और जिनकी सदस्यता जनता के लिए मुफ्त थी। वे सभी के लिए हर दिन खुले रहते हैं, मुफ्त सेवा प्रदान करते हैं, जो कि समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति के लिए पुस्तकों, शब्दों और शिक्षा के जादू को बिखेरने का काम करती है। वहीं इसके विपरीत, भारत में बहुत कम सार्वजनिक पुस्तकालय हैं। अधिकांश अच्छी गुणवत्ता वाले पुस्तकालय सदस्यता मॉडल (subscription model) पर काम करते हैं, और कुछ पुस्तकालय ऐसे हैं जो दान पर चलते हैं, जो अपेक्षाकृत सस्ते हैं। लेकिन कुल मिलाकर भारत में गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक पुस्तकालयों की सूची दुखद रूप से कम है। जर्मनी में किए गए एक अन्य अध्ययन ने निष्कर्ष निकला है कि बैठने, सीखने और काम करने के लिए एक आदर्श जगह की पेशकश करके, सार्वजनिक पुस्तकालय समाज का एक अनिवार्य स्तंभ साबित हो रहे है। इंडियन लाइब्रेरी एसोसिएशन (Indian Library Association) ने सार्वजनिक पुस्तकालयों को 'स्मार्टसिटी' ('smart City') पहल का हिस्सा बनाने के लिए जोर देने की कोशिश की है। जहाँ न केवल किताबें, बल्कि ऑनलाइन डेटाबेस और इंटरनेट एक्सेस (Online database and internet access) करके डिजिटल इंडिया #DigitalIndia को एकीकृत किया है। शिक्षा के संदर्भ में भारत विश्व के लिए एक ऐतिहासिक मिसाल है। नालंदा के प्राचीन विश्वविद्यालय को दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक पुस्तकालयों में से एक के रूप में दर्ज किया गया है, जिसने कई चीनी विद्वानों को यहां आने और अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़, यूरोपीय संस्कृति के एक प्रसिद्ध प्रेमी, ने भारत में एक सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली को लागू करने की कोशिश की। और अपने राज्य में कई मुफ्त पुस्तकालयों को वित्त पोषित किया। भारत में, 2009 तक, 333 मिलियन साक्षर युवा हैं, आबादी का लगभग 27.4% जो कुल युवाओं का 73% हैं। साक्षर युवाओं की जनसंख्या में सालाना 2.49% की वृद्धि हुई है, जो कि 2.08% राष्ट्रीय दर से थोड़ा अधिक है। इसलिए, जबकि शिक्षा के अधिकार के लाभों को, यदि ईमानदारी से लागू किया जाता है, तो भी उसे आने में एक और दशक की आवश्यकता होगी। वर्तमान के लिए हमें पहले से ही साक्षर युवाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत में ज्ञान का विस्तार करने के लिए लार्ड कर्जन (Lord Curzon) ने भारत के पहले सार्वजनिक पुस्तकालय की कल्पना की थी, और 1906 में कलकत्ता में इंपीरियल लाइब्रेरी “Imperial Library” (अब राष्ट्रीय पुस्तकालय) खोला गया था। सयाजीराव गायकवाड़-तृतीय (Sayajirao Gaikwad-III) के तहत बड़ौदा की रियासत ने देश के पहले वैज्ञानिक रूप से संगठित, और मुक्त पहुँच सार्वजनिक पुस्तकालय का निर्माण किया। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के वास्तुकारों को इस प्रयोग का अनुकरण करने का अवसर मिला और इसलिए स्वतंत्रता आंदोलन के युवा अनुयायियों को साहित्य की ओर आकर्षित करने के लिए प्रमुख शहरों में अखिल भारतीय पुस्तकालय सम्मेलन आयोजित किया गया। 1948 में डॉ रंगनाथन ने तत्कालीन मद्रास राज्य के शिक्षा मंत्री अविनासलिंगम चेट्टियार को मद्रास पब्लिक लाइब्रेरी एक्ट पारित करने के लिए प्रेरित किया। इसने नौ अन्य राज्यों, आंध्र प्रदेश (1960), कर्नाटक के लिए एक प्रेरणा श्रोत के रूप में कार्य किया।
आदर्श पुस्तकालयों के कुछ ऐसी विशेष गुण होते हैं जो किसी पुस्तकालय को अद्वितीय और मूल्यवान बनाते हैं:
1. पुस्तकालयाध्यक्ष: सार्वजनिक, अकादमिक, स्कूल और विशेष पुस्तकालयाध्यक्ष लोगों को जानकारी से जोड़ने के लिए अपने अद्वितीय कौशल का उपयोग करते हैं, और जानकारी से भरी दुनिया में, यह एक मूल्यवान कौशल है।
2. ऐतिहासिक जानकारी: अच्छे पुस्तकालय दुर्लभ, अनूठी जानकारी के भंडार होते हैं। आज पुस्तकालय चारदीवारियों से परे जाकर महान डिजिटल संग्रह से जुड़ चुके हैं। चाहे ब्रिटिश अखबार के अभिलेखागार हों, व्यक्तिगत कागजात हों, हाल में छपी किताबें हों या अन्य दुर्लभ सामग्री, आज तकनीक की सहायता से शोधकर्ता उन संसाधनों तक आसानी से पहुंच और उनका विश्लेषण कर सकते हैं, जो पहले लगभग दुर्गम थे।
3. सूचना का विश्लेषण करने के लिए उपकरण: जब लोग जानकारी का विश्लेषण करने में मदद की तलाश में होते हैं, तो पुस्तकालय उनकी मदद कर सकते हैं। पुस्तकालयों में उपलब्ध परिष्कृत उपकरण, व्यावसायिक प्रवृत्तियों या साहित्यिक प्रवृत्तियों (गेल्स आर्टेमिस “Gails Artemis” का उपयोग करके) का विश्लेषण करने में मदद करते हैं।
4.किताबें: पुस्तकालय और किताबें आंतरिक रूप से कूल्हे के समान जुड़ी हुई हैं। पुस्तकें पुस्तकालय में जाने का एक प्रमुख कारण बनी होती हैं - चाहे वे पुस्तकें प्रिंट, ऑडियो, बड़े प्रिंट, या अन्य प्रारूप में ही उपलब्ध हों।
5.प्रौद्योगिकी: समृद्ध सूचना संसाधनों के अलावा, आदर्श पुस्तकालय कंप्यूटर और वाईफाई के मुफ्त उपयोग के साथ अपने समुदायों को अपडेट रखते हैं। जिनकी सहायता से सभी उम्र और क्षमता के लोग शोध पूरा कर सकते हैं, नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं, दुनिया के संपर्क में रह सकते हैं, और बहुत कुछ कर सकते हैं। प्राचीन शिक्षा संस्थानों के विपरीत आज ज्ञान ग्रहण करने के लिए पुस्तकालय एक प्रमुख अभ्यास बन चुके हैं। हालांकि धीरे-धीरे इन पुस्तकालयों के प्रति छात्रों में अरूचि भी बढ़ने लगी हैं। जैसे मेरठ में 128 साल पहले स्थापित तिलक पुस्तकालय में पुस्तकालयाध्यक्ष के अनुसार पुस्तकालय में हर साल 500 किताबें आती हैं। “लेकिन उनमें आज के कुछ ही युवा रुचि रखते हैं। निगम हर साल इन किताबों पर करीब 80,000 रुपये खर्च करता है। यहां मेरठ के 3 शानदार पुस्तकालयों की सूची दी गई हैं जिन्हें विशेषज्ञों ने ग्राहक समीक्षा, इतिहास, शिकायतें, रेटिंग, संतुष्टि, विश्वास, लागत और उनकी सामान्य उत्कृष्टता के आधार पर चुना है।
1.स्कॉलर हाउस लाइब्रेरी (SCHOLAR'S HOUSE LIBRARY) :
पता: 644, 6, रंगोली रोड, ओपी, मुकेश डेयरी, सेक्टर 3, शास्त्री नगर, मेरठ, यूपी 250004
समीक्षा: B3S स्कॉलर हाउस सबसे अच्छा पुस्तकालय और सबसे अच्छा अध्ययन स्थान है। स्कॉलर हाउस लाइब्रेरी प्रतियोगी परीक्षा की किताबें पढ़ने के लिए उपलब्ध कराती है। यहाँ पुस्तकालय साफ सुथरा है। स्कॉलर हाउस लाइब्रेरी शहर के केंद्र में स्थित है।
2. अखार पुस्तकालय (Akhar Library):
पता:
बद्रीशपुरम, श्रद्धापुरी फेज -2, सरधना बाईपास के पास, कांकेर खेरा, मेरठ, यूपी 250001
समीक्षा: अखार पुस्तकालय मेरठ में स्थित सर्वश्रेष्ठ पुस्तकालयों में से एक है। यह स्थान समाज के सदस्यों और गैर-सदस्यों के लिए सांस्कृतिक और शैक्षिक सुविधाओं के साथ सीमित आवासीय आवास का आयोजन और रखरखाव करता है। पुस्तकालय एक शोर मुक्त वातावरण, हाई-स्पीड वाईफाई, समाचार पत्र और पत्रिकाएं, अलग चर्चा और भोजन क्षेत्र प्रदान करता है।
3. गुरुदेव पुस्तकालय (Gurudev Library):
पता: स्टार प्लाजा, बच्चा पार्क, तीसरी मंजिल, मेरठ, यूपी 250001
समीक्षा: गुरुदेव पुस्तकालय मेरठ, भारत में स्थित एक प्रसिद्ध पुस्तकालय और अध्ययन स्थल है। यह पुस्तकालय एक शांति में पढ़ने के अनुभव के लिए एक स्वच्छ और शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखता है, और यहाँ का स्टाफ सदस्य विचारशील और विनम्र हैं। गुरुदेव पुस्तकालय एक शांत वाचनालय (reading room) का प्रदान करना सुनिश्चित करता है। पुस्तकालय अलग से बैठक, पूरी तरह से वातानुकूलित, RO पानी और मुफ्त वाई-फाई सुविधाएं प्रदान करता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3sQwHU0
https://bit.ly/36e3omD
https://bit.ly/34XoTYy
https://bit.ly/3LL5cnl
https://bit.ly/3p03XqZ

चित्र संदर्भ   

1. किताबें पढ़ते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. पुरानी सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली को दर्शाता चित्रण (flickr)
3. काउंटी पब्लिक लाइब्रेरी सिस्टम को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. 1906 में कलकत्ता में इंपीरियल लाइब्रेरी “Imperial Library” (अब राष्ट्रीय पुस्तकालय) खोला गया को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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