बसंत पंचमी के पीछे भाारत में अनेक पाराणिक कथाएं जुड़ी हुयी हैं, इनमें से एक है प्रेम के हिंदू देवता कामदेव से संबंधित है, आधुनिक समय में बहुत ज्यादा कामदेव के मंदिर स्थित नहीं हैं, लेकिन वे बसंत पंचमी के आसपास की कुछ विद्याओं में से एक के केंद्र में थे। बसंत की पहली हवा के साथ वसंत पचमी का आगमन होता है, जो कि प्रेम की भावनाओं और सभी भावनात्मक प्रत्याशाओं से जुड़ा हुआ है । प्रेम के देवता काम, मदन के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए बसंत पंचमी, मदनोत्सव भी कहा जाता है और उनकी सुंदर पत्नी रति से भी जुड़ा हुआ है। इनके बारे में कई कहानियां हैं, उनमें से एक यह है कि इस दिन ये पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और अपने साथ रोमांस और प्रेम की नई आशा और इसके साथ ही वसंत की पहली सुगन्धित हवा, ऋतु या पुनर्जन्म और नवीनीकरण लेकर आते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, प्रद्युम्न और सांबा - कृष्ण के पुत्र, सनत कुमार - ब्रह्मा के पुत्र, स्कंद - शिव के पुत्र, सुदर्शन (सुदर्शन चक्र के प्रमुख देवता), और भरत सभी कामदेव के अवतार हैं।
कामदेव को एक सुंदर युवा व्यक्ति के रूप में दर्शाया जाता है जो कि धनुष से तीर चलाते हैं। इनका धनुष गन्ने का बना है और उनके बाणों को पांच प्रकार के सुगंधित फूलों: सफेद कमल, अशोक के फूल, आम के फूल, चमेली के फूल और नीले कमल के फूल, से सजाया गया है। महान पुरातनता के कामदेव की एक टेराकोटा मूर्ति मथुरा संग्रहालय, उत्तर प्रदेश में रखी गई है।कामदेव के साथी कोयल, तोता, गुनगुनाती मधुमक्खियां, बसंत का मौसम और कोमल हवाएं हैं। ये सभी वसंत ऋतु के प्रतीक हैं।कामदेव का उल्लेख ऋग्वेद और अथर्ववेद के छंदों में किया गया है, हालांकि उन्हें पुराणों की कहानियों के माध्यम से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।शिव पुराण के अनुसार, कामदेव ब्रह्मा की रचना है। स्कंद पुराण जैसे अन्य स्रोतों में, कामदेव प्रसूति के भाई हैं; वे दोनों ब्रह्मा द्वारा बनाए गए शतरूप की संतान हैं। बाद की व्याख्याएं उन्हें विष्णु का पुत्र भी मानती हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार विष्णु-कृष्ण और कामदेव का ऐतिहासिक संबंध है। हरिवंश में, उनकी माता देवी लक्ष्मी हैं।कामदेव का उल्लेख 12वीं शताब्दी की जावानीस कविता स्मारकदान में भी किया गया है, जो कामदेव के शिव द्वारा जलने और स्वर्ग से पृथ्वी पर अवरित होने के मिथक का प्रतिपादन करती है। काम और उनकी पत्नी रति को काकाविन कविता और बाद में वायंग कथाओं में कामजाया और कामराती के रूप में संदर्भित किया गया है।
कामदेव की अधिकांश कहानियां भगवान शिव एवं पार्वती को मिलाने हेतु कामदेव की निर्णायक भूमिका से संबंधित है । शिव, माता सति की मृत्यु के बाद उनके शोक में वैरागी तपस्वी बन जाते हैं और हिमालय में जाकर ध्यानमग्न हो जाते हैं और अपने दुख को भूल जाते हैं । माता सती की अवतार पार्वती ने अपने पिता राजा हिमावत (हिमालय) से कहा कि वह केवल भगवान शिव से शादी करेंगी, जब हिमालय ने शिव को यह सूचित किया तो वे मना कर देते हैं और माता पार्वती को एक झलक देखे बिना ही वहां से चले जाते हैं। निडर माता पार्वती ध्यानमग्न शिव की देखरेख करने के लिए कैलाश में ही रूक जाती हैं। वर्षों बीत जाते हैं लेकिन माता पार्वती शिव को नहीं जीत पाती। परिणामस्वरूप देवताओं ने शिव को उनके गहरे ध्यान से जगाने और उन्हें पार्वती से प्रेम करने के लिए कामदेव से संपर्क किया।
वसंत पंचमी के दिन कामदेव ने इसमें अपनी स्वीकृति दी और अपने प्रेम के पांच बांणों से भगवान शिव पर प्रहार किया, जिनमें से एक ने शिव को पार्वती की सुंदरता से मोहित करने के लिए विचलित कर दिया। लेकिन जैसे ही उन्हें एहसास हुआ कि यह कामदेव की चाल है, उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोली और कामदेव को भस्म कर दिया। शिव के पार्वती से विवाह के बाद 'प्रेम के देवता' को पुर्नजीवित किया गया। अपने पति को पुर्नजीवित कराने हेतु रति ने 40 दिनों तक भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या ने 'रंग' को राख में बदल दिया, जिससे अंततः शिव ने काम को श्राप से मुक्त कर दिया और उसे पुनर्जीवित कर दिया, परिणामत: वह वसंत पंचमी के दिन पुर्नजीवित हो गए। यही कारण है कि इस दिन उनकी पत्नी रति के साथ प्रेम और इच्छा के देवता कामदेव की पूजा की जाती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3IUfrDQ
https://bit.ly/3AVLdNO
https://bit.ly/3rrk7Lv
चित्र संदर्भ:
1.कामदेव और रति का एक चित्रण(Wikimedia)
2.कामदेव का एक चित्रण(Wikimedia)