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काल के त्रास से बेबीलोन, माया, और विश्व की सबसे प्राचीनतम मेसोपोटामिया जैसी ज़बरदस्त तौर पर
विकसित तथा सुसंस्कृत सभ्यताएं भी नहीं बच पाई! लेकिन प्राचीन समय से ही भारत ने अपनी संस्कृति
को न केवल भौतिक जगत में विकसित किया बल्कि हमने अपने भीतरी शरीर को एक अहम् कड़ी अथवा
विश्व समतुल्य मानकर अपने आंतरिक शरीर का भी विकास किया है और इसे सुरक्षित रखा है। आज
हजारों वर्षों बाद आत्मविकास की हमारी प्राचीन मान्यताओं के बलबूते हम अपनी प्राचीनतम सभ्यताओं
और संस्कृतियों को जीवित रखने में सफल हो पाए हैं। आज हमारी प्राचीन मान्यताओं और विश्वासों को
पश्चिमी जगत भी प्रमाण दे रहा है, तथा अपने नज़रिये से समझने की कोशिश कर रहा है। जिसका बेहद
रोमांचक उदाहरण हमें नोबेल पुरस्कार विजेता और मैक्सिकन कवि ऑक्टेवियो पाज़ (Octavio Paz) की
पुस्तक द मंकी ग्रैमेरियन (The Monkey Grammarian) के माध्यम से देखने को मिलता है, जिसमे
चिरंजीवी हनुमान को "व्याकरण के नौवें लेखक" के रूप में समझा और संदर्भित किया गया है।
दिवंगत मैक्सिकन कवि-आलोचक ऑक्टेवियो पाज़ ने अपनी एक असामान्य पुस्तक, द मंकी ग्रैमेरियन
में श्री हनुमान के बारे में हिंदू पौराणिक कथाओं में नौवें व्याकरणकर्ता होने की क्षमता में बारे में अपना तर्क
दिया है।
इस पुस्तक में, हनुमान को "पेंसी का एक रूपक, अचेतन की गतिविधि का कुल प्रवाह, नियंत्रण या
नियमों से परे" शक्ति के रूप में दर्शाया गया है।
संसार का व्याकरण करने का क्या अर्थ है?
मानव लेखन और परमात्मा के बीच अंतर इस तथ्य में निहित है कि पूर्व के संकेतों की संख्या सीमित है
जबकि बाद की अनंत है; इसलिए ब्रह्मांड एक अर्थहीन पाठ है, जिसे देवता भी पढ़ नहीं पाते हैं। पाज़ एक
बार भारत में एक छोटे शहर "गलता" जयपुर राजस्थान में खंडहर के भ्रमण पर जाते हैं। उन्होंने अपने
अनुभवों में लिखा है की जैसे ही वह गलता यात्रा के लिए जाते है, उन्हें अनुभव होता है कि वह अपने स्वयं के
विभिन्न कक्षों का पुनरीक्षण कर रहे है। यहाँ वे ब्रह्मांड की समालोचना को व्याकरण कहते हैं...।"
फ्रांसीसी दार्शनिक जैक्स डेरिडा (Jacques Derrida's) के 'व्याकरण विज्ञान' के विचार से, व्याकरण की
उत्पत्ति, लोगो की तर्क और ज्ञान की शक्ति के स्रोत के रूप में संबंधित भाषा संरचनाओं के पालन करने के
लिए नियमों के रूप में निर्धारित की जाती हैं। किन्तु पाज़ हमें व्याकरण की उत्पत्ति का दूसरा पक्ष देते हैं,
जिनके अनुसार ब्रह्मांड का देवत्व और ज्ञानमीमांसा को समझने के लिए मनुष्य द्वारा व्याकरण का
आविष्कार किया गया है। हमारे द्वारा खोजे गए और पुनरुत्पादित संकेतों की संख्या की सीमाओं के कारण
ही हम मनुष्य एक सुपाठ्य ब्रह्मांड बनाने में सक्षम हैं।
पाज़ गलता के खंडहरों को देखने के लिए शुरू की गई यात्रा का एक और पक्ष भी मानते हैं , जो आंखों के लिए
अदृश्य है, और भौतिक यात्रा में निहित और उसके परिणामस्वरूप आंतरिक विचारों के बारे में है। अपनी
पुस्तक में पाज़ अपने द्वारा देखे गए दृश्यों को निम्नवत दर्ज करते हैं " वर्ग के बीच में एक दीवार जहां
सड़क के किनारे बच्चे "लाल, काले और नीले रंग के निशान काल्पनिक एटलस बनाते हैं" तीर्थयात्री एक
अभयारण्य के रास्ते में एक रहस्यवादी साधु का वर्णन करते हैं।
अपनी पुस्तक में उन्होंने हनुमान का वर्णन करते हुए लिखा है की रामायण महाकाव्य कथा के मूल में
चित्रित हनुमान एक लोकप्रिय वानर देवता हैं। पाज़ ने हनुमान की आकृति के चारों ओर एक चित्रलिपि
ब्रह्मांड (hieroglyphic universe) को पाया। वह बहादुरी और दृढ़ता का प्रतिनिधित्व करते है, और
वफादारी और निस्वार्थता का प्रतीक है। पाज़ इसे लेटमोटिफ (leitmotif) के रूप में उपयोग करते है।
उन्होंने जॉन डावसन के एक उद्धरण के साथ पुस्तक की शुरुआत की, जो प्रसिद्ध ब्रिटिश "इंडोलॉजिस्ट
(Indologist)" थे, जिन्होंने उर्दू और भारत के इतिहास के बारे में लिखा था, और जिन्होंने स्टिल-इन-प्रिंट ए
क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ हिंदू माइथोलॉजी (A Classical Dictionary of Hindu Mythology (1879)
के संपादक के रूप में कार्य किया। डाउसन ने हनुमान को एक कूदते हुए बंदर के रूप में वर्णित किया है,
जिसने "पेड़ों को तोड़ दिया, हिमालय को उठा लिया, बादलों को अपने अधीन कर लिया और कई अन्य
अद्भुत कारनामे भी किए।" यहाँ सर्वप्रथम जॉन डावसन ने ही लिखा है की हनुमान "व्याकरण के नौवें
लेखक" भी हैं।
श्री हनुमान की यही विशेषता, उग्रता, ब्रह्मांड की यात्रा करने की क्षमता और उनकी भाषाई योग्यता, पाज़
को मोहित करती है। पाज़ का तर्क है की सभी मनुष्य भी कुछ अर्थों में बिलकुल यही करते हैं। जैसे हम
अपने पर्यावरण का निर्माण और विनाश स्वयं करते हैं, फिर उन कार्यों का वर्णन करने के लिए भाषा का
उपयोग करते हैं। जिस प्रकार प्राकृतिक संसार में हमारा व्यवहार चंचल है, उसी प्रकार मौखिक रूप से उसे
अभिव्यक्त करने का हमारा प्रयास भी चंचल है।
पाज़ ने हनुमान के माध्यम से जीवन का अर्थ निकालने की कोशिश की, जो न तो वास्तविक है और न ही
लेखन, बल्कि वादे की यात्रा है। पाज़ हनुमान पर इस अजीब तरह से तैयार, काव्य कहानी में लिखते हैं” एक
संभावना होने के नाते, कुछ ऐसा जो आपके सोचते ही गायब हो जाता है, भाषा भी एक चालबाज है, हनुमान
की तरह तेज चालबाज है, जिसने पूरे शहर को जलाने के लिए अपनी जलती हुई पूंछ का इस्तेमाल किया।
पाज़ लिखते हैं, “सब कुछ पहले से प्लान करने की कोशिश करना बंद करो। बस अपने दम से उतरो, आगे
बढ़ो, और जैसे-जैसे आगे बढ़ो मार्ग का निर्माण करों।
संदर्भ
https://bit.ly/3rlDPsd
https://bit.ly/3g78B1d
चित्र संदर्भ
1. ऑक्टेवियो पाज़ और रामायण पढ़ते हनुमान को दर्शाता एक चित्रण (flickr, amazon)
2. मैक्सिकन कवि ऑक्टेवियो पाज़ (Octavio Paz) की पुस्तक द मंकी ग्रैमेरियन (The Monkey Grammarian)को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
3. लंका में हनुमान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)