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पुराने समय से ही महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में लिंग आधारित भेदभाव का शिकार होती रही हैं
तथा कृषि क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है।वर्तमान समय में महिला श्रमिकों को गन्ने के खेतों
में काम करने में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसे पितृसत्तात्मक राज्य में
बड़े पैमाने पर 'पुरुषों की नौकरी' के रूप में माना जाता है।महिलाओं को अक्सर एक ही प्रकार
के काम के लिए पुरुषों को दिए जाने वाले वेतन की तुलना में आधे से भी कम वेतन दिया
जाता है। एक अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि कुछ महिलाएं गिरी हुई पत्तियों के ढेर
के बदले में(जिसे वे पशुओं के चारे के रूप में उपयोग करती हैं),अन्य ग्रामीणों के खेतों पर
काम करती हैं।ग्रामीण भारत में, अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर महिलाओं का
प्रतिशत 84% तक है।महिलाएं, कृषकों का लगभग 33% और खेतिहर मजदूर का लगभग 47%
हिस्सा बनाती हैं।2009 में, फसल की खेती में संलग्न 94% महिला कृषि श्रम शक्ति अनाज
उत्पादन में थी, जबकि 1.4% ने सब्जी उत्पादन में काम किया। इसके अलावा 3.72% महिलाएं
फल, मेवा, पेय पदार्थ और मसाला फसलों में संलग्न थी। कृषि क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी
दर चाय बागानों में लगभग 47%,कपास की खेती में 46.84%,तिलहन में 45.43% और सब्जी
उत्पादन में 39.13% थी।जबकि इन फसलों में श्रम प्रधान कार्य की आवश्यकता होती है,
लेकिन इस कार्य को काफी अकुशल माना जाता है।महिलाएं सहायक कृषि गतिविधियों में
गहन रूप से भाग लेती हैं।श्रम शक्ति में अपने प्रभुत्व के बावजूद भी भारत में महिलाओं को
अभी भी वेतन, भूमि अधिकार और स्थानीय किसान संगठनों में प्रतिनिधित्व के मामले में
अत्यधिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।भारत में, महिला खेतिहर मजदूर या काश्तकार
का विशिष्ट कार्य कम कुशल नौकरियों तक सीमित है, जैसे कि बुवाई, रोपाई, निराई और
कटाई।कई महिलाएं कृषि कार्य में अवैतनिक निर्वाह श्रम के रूप में भी भाग लेती हैं। संयुक्त
राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार केवल 32.8% भारतीय महिलाएं औपचारिक रूप से
श्रम शक्ति में भाग लेती हैं, यह दर 2009 के आंकड़ों के बाद से स्थिर बनी हुई है।
तुलनात्मक रूप से पुरुषों के लिए यह आंकड़ा81.1% है।अपनी आजीविका को बनाए रखने
तथा खराब हुई फसलों के लिए उचित मुआवजा प्राप्त करने हेतु महिलाएं आज भी संघर्ष कर
रही हैं।विश्व स्तर पर 400 मिलियन से अधिक महिलाएं कृषि कार्य में संलग्न हैं, हालांकि 90
से अधिक देशों में उनके पास भूमि के स्वामित्व में समान अधिकारों का अभाव है। दुनिया
भर में महिलाएं गैर-मशीनीकृत कृषि व्यवसायों में संलग्न हैं जिनमें बुवाई, कटाई, निराई और
अन्य प्रकार की श्रम-गहन प्रक्रियाएं जैसे चावल प्रत्यारोपण शामिल हैं।ऑक्सफैम (Oxfam -
2013) के अनुसार, भारत में लगभग 80 प्रतिशत कृषि कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है।
हालांकि, उनके पास केवल 13 फीसदी जमीन है। मैरीलैंड (Maryland) विश्वविद्यालय और
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (National Council of Applied Economic
Research) द्वारा जारी हालिया आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं भारत में कृषि श्रम शक्ति का
42 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बनाती हैं, लेकिन दो प्रतिशत से भी कम कृषि भूमि के मालिक
हैं। कृषि में महिलाएं मान्यता या पहचान के मुद्दों से प्रभावित होती हैं और भूमि अधिकारों
के अभाव में महिला खेतिहर मजदूरऔर काश्तकार किसानों को किसानों के रूप में मान्यता
और परिणामी अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। इस समस्या की मुख्य जड़ महिला
कृषि कार्यकर्ता की आधिकारिक मान्यता की कमी है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें संस्थागत
ऋण, पेंशन, सिंचाई के स्रोत,प्रौद्योगिकी आदि जैसे अधिकारों से बहिष्कृत कर दिया जाता
है।भारत मानव विकास सर्वेक्षण (IHDS, 2018) के अनुसार, देश में 83 प्रतिशत कृषि भूमि
परिवार के पुरुष सदस्यों को विरासत में मिली है और दो प्रतिशत से कम उनकी महिला
समकक्षों को।खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, भूमि और स्वामित्व अधिकारों के माध्यम
से महिलाओं को सशक्त बनाना विकासशील देशों में कुल कृषि उत्पादन को 2.5 से 4
प्रतिशत तक बढ़ाने की क्षमता रखता है और दुनिया भर में भूख की समस्या को 12-17
प्रतिशत तक कम कर सकता है।सतत विकास लक्ष्य, महिलाओं को संपत्ति के अधिकार और
कृषि भूमि के कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करना चाहता है।ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक,
राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कृषि क्षेत्र में
महिलाओं के साथ होने वाले नीतिगत पक्षाघात को संबोधित करने की अत्यधिक आवश्यकता
है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन कार्यक्रम के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए
गन्ना विभाग ने एक योजना संचालित की है।अब गन्ना न केवल किसानों की आय का
जरिया है, बल्कि उत्तर प्रदेश की महिलाओं को सशक्त बनाने का एक साधन भी है। महिलाएं
वर्ष में दो बार गन्ने के पौध तैयार कर बेच रही हैं, जो अभूतपूर्व वित्तीय स्थिरता प्रदान कर
रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन कार्यक्रम के तहत गन्ना विभाग ने महिलाओं को
आत्मनिर्भर बनाने की योजना चलाई है।इसके तहत महिला समूह बनाकर सिंगल बड विधि
और बड चिप विधि से गन्ने की नर्सरी तैयार करती हैं। इस तरह उत्पादित नर्सरी में गन्ने
की प्रत्येक पौध पर सिंगल बड विधि से 1.30 रुपये और बड चिप विधि से 1.50 रुपये का
अनुदान गन्ना विकास विभाग द्वारा दिया जा रहा है। इससे जहां महिलाएं स्वावलंबी बन
रही हैं, वहीं इस विधि में बीज कम लगने एवं शत प्रतिशत जमाव होने से नवीन गन्ना
प्रजातियों का विस्तार भी तेजी से हो रहा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3rcUjSa
https://bit.ly/3qeYmxQ
https://bit.ly/3GhRDbY
https://bit.ly/3Gk5sXu
https://bit.ly/3nf60X8
चित्र संदर्भ
1. गन्ने के खेत में महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. चीनी मिल में गन्ने की तुलाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. खेतों की सिचांई करती महिला को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. ट्रक में गन्नों को लादती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (
Telegraph India)
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