Post Viewership from Post Date to 19-Feb-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
3185 111 3296

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

भारत में सबसे अधिक उगाए जाने वाले आकर्षक मशरूम

मेरठ

 12-01-2022 03:22 PM
फंफूद, कुकुरमुत्ता
बटन मशरूम (Button mushroom), ढिंगरीमशरूम (Oyster) और पैडी स्ट्रॉ मशरूम (Paddy straw) भारत में खेती के लिए उपयोग किए जाने वाले तीन प्रमुख प्रकार हैं।पैडी स्ट्रॉ मशरूम 35-40 डिग्री सेल्सियस (Celsius) के तापमान में उगाया जा सकता है।दूसरी ओर ढिंगरी मशरूम उत्तरी मैदानों में उगाए जाते हैं जबकि बटन मशरूम सर्दियों के मौसम में उगते हैं। व्यावसायिक महत्व से भरपूर ये सभी मशरूम अलग-अलग तरीकों और तकनीकों से उगाए जाते हैं।मशरूम को विशेष जगह में उगाया जाता है जिसे खाद डब्बे के रूप में जाना जाता है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि मशरूम की खेती सबसे अधिक लाभदायक कृषि-व्यवसायों में से एक है जिसे कम निवेश और कम जगह के साथ शुरूकिया जा सकता है।भारत में मशरूम की खेती कई लोगों की आय के वैकल्पिक स्रोत के रूप में धीरे-धीरे बढ़ रही है।विश्व भर में, अमेरिका (America), चीन (China), इटली (Italy) और नीदरलैंड (Netherland) मशरूम के शीर्ष उत्पादक हैं। वहीं भारत में, उत्तर प्रदेश मशरूम का प्रमुख उत्पादक है, इसके बाद त्रिपुरा और केरल हैं।उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली कुछ मशरूमकी किस्में हैं:बटन मशरूम; ढिंगरी मशरूम तथा धानपुआल।
बटन मशरूम उगाने के लिए चरण दर चरणनिम्न विधि को देखें :
खाद बनाना : मशरूम उगाने का पहला कदम खुले में खाद बनाना है। बटन मशरूम की खेती के लिए खाद का बाडा बजरी सेबना, उभरी हुई सतह पर तैयार किया जाता है।सतह उभरी हुई होनी चाहिए ताकि अतिरिक्त पानी इकट्ठा न हो।हालांकि खाद खुले मेंबनाई जाती है, लेकिन बारिश के पानी से बचाने के लिए उन्हें ढककर रखना चाहिए। तैयार की गई खाददो प्रकार की होती हैं - प्राकृतिक और संश्लेषितखाद। खाद 100 X 50 X 15 सेमी आयामों के डब्बे में बनाई जाती है।
संश्लेषित खाद :मशरूम की खेती के लिए संश्लेषित खादगेहूं के भूसा, चोकर, यूरिया (Urea), कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट / अमोनियम सल्फेट (CalciumAmmonium Nitrate / Ammonium Sulphate) और जिप्सम(Gypsum)। भूसे को 8 से 20 सेमी लंबाई में काटा जाना चाहिए।फिर इसे खाद के बाडे पर एक पतली परत बनाने के लिए समान रूप से फैलाया जाता है।इसके बाद पानी छिड़क कर इसे अच्छी तरह से भिगो दें। अगला कदम अन्य सभी सामग्री जैसे यूरिया, चोकर, जिप्सम, कैल्शियम नाइट्रेट को गीले भूसे के साथ मिलाना है।
प्राकृतिक खाद : यहां आवश्यक सामग्री हैं घोड़े का गोबर, कुक्कुट खाद, गेहूं का भूसा और जिप्सम। गेहूं के भूसे को बारीक काट लें। घोड़े के गोबर को अन्य पशुओं के गोबर के साथन मिलाएं। इन्हें ताजा एकत्र किया जाना चाहिए और बारिश के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए।सामग्री मिश्रित करने के बाद, वे समान रूप से खाद के बाडे में फेला दिए जाते हैं। भूसे को गीला करने के लिए सतह पर पानी का छिड़काव किया जाता है। इसे संश्लेषित खादकी भांति ढेरमें रखा जाता है और बदल दिया जाता है।किण्वन के कारण, ढेर का तापमान बढ़ जाता है और अमोनिया के निकलने के कारण यह एक गंध छोड़ता है। यह एक संकेत है कि खाद खुल गई है। ढेर को हर तीन दिन में घुमाया जाता है और पानी के साथ छिड़का जाता है। डब्बे में खाद भरना :तैयार खाद गहरे भूरे रंग की होती है। जब आप खाद को डब्बे में भरते हैं, तो वह न तो ज्यादा गीला होना चाहिए और न ही ज्यादा सूखा होना चाहिए।अगर खाद सूखी है तो पानी की कुछ बूंदों का छिड़काव करें। अगर बहुत गीला है, तो थोड़ा पानी वाष्पित होने दें।खाद फैलाने के लिए डब्बे का आकार आपकी सुविधा के अनुसार हो सकता है। लेकिन, यह 15 से 18 सेमी गहरा होना चाहिए। इसके अलावा, सुनिश्चित करें कि डब्बा सॉफ्टवुड (Softwood) से बना हों। डब्बे को किनारे तक खाद से भरा जाना चाहिए और सतह पर समतल किया जाना चाहिए।
स्पॉनिंग (Spawning) :स्पॉनिंग मूल रूप से मशरूम कवकजाल को क्यारियों में बोने की प्रक्रिया है।स्पॉन को प्रमाणित राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं से नाममात्र की कीमत पर प्राप्त किया जा सकता है। स्पॉनिंग दो तरीकों से की जा सकती है –डब्बे में क्यारी की सतह पर खाद को बिखेरकर या फिर डब्बे भरने से पहले बीज को खाद के साथ मिलाकरडाला जा सकता है।स्पॉनिंग के बाद डब्बे को पुराने अखबारों से ढक दें। फिर नमी को बनाए रखने के लिए अखबारों को थोड़े से पानी के साथ छिड़का जाता है। शीर्ष डब्बे और छत के बीच कम से कम एक मीटर का शीर्ष स्थान होना चाहिए।
आवरण :बगीचे की मिट्टी के साथ बारीक पिसी और छलनी, गाय का सड़े हुए गोबर को मिलाकर आवरण मिट्टी बनाई जाती है।पीएच (pH) क्षारीय पक्ष पर होना चाहिए। एक बार तैयार होने के बाद, कीटों, सूत्रकृमि, कीड़ों और अन्य फफूंदी को मारने के लिए आवरण मिट्टी को रोगाणुहीन करना पड़ता है।इसे नि:संक्रामक के घोल से उपचारित करके या भाप देकर बंध्यीकरण किया जा सकता है।आवरण मिट्टी को खाद पर फैलाने के बाद तापमान 25oCपर 72 घंटों के लिए बनाए रखा जाता है और फिर 18oCतक कम कर दिया जाता है।याद रखें कि आवरण चरण के लिए बहुत अधिक ताजी हवा की आवश्यकता होती है। इसलिए आवरण चरण के दौरान कमरे में पर्याप्त वायु-संचालन की सुविधा होनी चाहिए।
फसल:आवरण के 15 से 20 दिनों के बाद, सिरा दिखाई देने लगता है। इस अवस्था के 5 से 6 दिनों के भीतर सफेद रंग के, छोटे आकार के बटन विकसित होने लगते हैं।जब वे पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं तब उनकी कटाई की जा सकती है। कटाई :कटाई के दौरान, टोपी को धीरे से मोड़ना चाहिए। इसके लिए, आपको इसे तर्जनी अंगुली से धीरे से पकड़ना है, मिट्टी के प्रतिकूल दबाना है और फिर मोड़ना है। डंठल का आधार जिसमें फुई वाले तंतु और मिट्टी के कण चिपके रहते हैं, उन्हेंकाट देना चाहिए।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मशरूम पौधे नहीं हैं, इसलिए इनके इष्टतम विकास के लिए विभिन्न परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से विकसित होते हैं, एक प्रक्रिया जोवायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (Carbondioxide)कोकार्बोहाइड्रेट(Carbohydrates), विशेष रूप से कोशिकारस में परिवर्तित करती है। जबकि सूर्य का प्रकाश पौधों के लिए एक ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है, मशरूम जैव रासायनिक अपघटन प्रक्रियाओं के माध्यम से अपनी सभी ऊर्जा और विकास सामग्रीको प्राप्त करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि मशरूम के विकास के लिए प्रकाश एक अप्रासंगिक आवश्यकता है, क्योंकि कुछ कवक प्रकाश का उपयोग फलने के संकेत के रूप में करते हैं।हालांकि, विकास के लिए सभी सामग्री पहले से ही विकास माध्यम में मौजूद होनी चाहिए। मशरूम लगभग 95-100% की सापेक्ष आर्द्रता के स्तर पर और 50 से 75% के सबस्ट्रेट (Substrate) नमी के स्तर पर अच्छी तरह से विकसित होते हैं। साथ हीबीज के बजाय, मशरूम बीजाणुओं के माध्यम से अलैंगिक रूप से प्रजनन करते हैं। बीजाणु वायुजनित सूक्ष्मजीवों से दूषित हो सकते हैं, जो मशरूम के विकास में बाधा डालते हैं और स्वस्थ फसल को उगने से रोकते हैं।
धान पुआल मशरूम उगाने के लिए चरण दर चरणनिम्न विधि को देखें :
धान पुआल मशरूम एशिया के दक्षिण-पूर्वी भागों में उगाया जाता है। यह अपने स्वाद के कारण सबसे लोकप्रिय मशरूम में से एक है। बटन मशरूम के विपरीत, वे छाया के नीचे या अच्छी तरह हवादार कमरों में उभरी हुई सतह पर उगाए जाते हैं।धान पुआल मशरूम कटे हुए, भीगे हुए धान के भूसे पर उगते हैं। कभी-कभी वे अनाज या बाजरा पर उगते हैं। जब वे धान की भूसी पर उत्पन्न होते हैं, तो उन्हें पुआल स्पॉन (Straw spawn) के रूप में जाना जाता है और जब वे अनाज के दानों पर उगते हैं, तो उन्हें ग्रेन स्पॉन (Grain spawn) कहा जाता है।भारत में इस मशरूम को धान की पुआल पर उगाया जाता है। अच्छी तरह से सूखे और लंबे पुआल को 8 से 10 सेमी व्यास के बंडलों में एक साथ बांधा जाता है। फिर उन्हें 70 से 80 सेमी की एक समान लंबाई में काटा जाता है और 12 से 16 घंटे के लिए पानी में भिगोया जाता है। फिर अतिरिक्त पानी को निकाल दिया जाता है।चूंकि मशरूम की खेती उभरे हुए सतह पर की जाती है, इसलिए ईंटों और मिट्टी से बनी नींव को ऊपर उठाया जाता है। आकार क्यारी से थोड़ा बड़ा होना चाहिए और क्यारी के वजन को उठाने के लिए पर्याप्त मजबूत होना चाहिए।नींव के आकार का एक बांस का ढांचा नींव के ऊपर रखा जाता है।भीगे हुए भूसे के लगभग चार बंडल को ढांचे पर लगाया जाता है। अन्य चार बंडल को विपरीत दिशा में ढीले सिरों के साथ रखा जाता है। ये आठ बंडल मिलकर बिस्तर की पहली परत बनाते हैं। पहली परत से लगभग 12 सेमी की दूरी पर, ग्रेन स्पॉन को बिखेरा जाता है।आखिरी परत बनने के बाद पूरे क्यारी को पारदर्शी प्लास्टिक चादर से ढक दें। हालांकि यह सुनिश्चित करने के लिए उचित देखभाल की जानी चाहिए कि चादर क्यारी के संपर्क में न आयें।आमतौर पर, मशरूम स्पॉनिंग के 10 से 15 दिनों के भीतर उगने लगते हैं। वे अगले 10 दिनों तक उगते रहते हैं। एक बार जब वोल्वा (Volva) फूट जाता है और अंदर का मशरूम खुल जाता है, तो फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।बहुत नाजुक होने के कारण इन मशरूमों की अचल आयु बहुत कम होती है इसलिए इन्हें ताजा ही खाना चाहिए। वहीं ढिंगरी मशरूम की खेती दुनिया के कई हिस्सों में तेजी से फैल रही है। इसके पोषण मूल्य के प्रति बढ़ती जागरूकता और बाजार की बढ़ती मांग ने मशरूम की खेती को कृषक समुदायों के बीच सबसे अधिक मांग वाले व्यवसायों में से एक बना दिया है।ढिंगरी मशरूमको उन स्थानों पर उगाया जाता है जहाँ बटन मशरूम के लिए जलवायु परिस्थितियाँ उपयुक्त नहीं होती हैं।ढिंगरीमशरूम को सबस्ट्रेट में उगाया जाता है जिसमें रोगाणुहीन गेहूं, धान के भूसे और यहां तक कि कॉफी (Coffee) के मैदान भी शामिल होते हैं, जबकि इसे अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा जगह की आवश्यकता नहीं होती है। इसका प्रति इकाई उत्पादन और निकाला गया लाभ अन्य फसलों की तुलना में तुलनात्मक रूप से अधिकहोता है।ढिंगरी मशरूम को सामग्री का उपयोग कर घर के अंदर भी उगाया जा सकता है।
मशरूम की विभिन्न खेती की प्रजातियों में से, शिटाकी मशरूमकी किस्मभी अपने स्वादकी वजह से उपभोक्ताओं के बीचउच्च मांग पर है। विशेष रूप से उत्तरी भारत में उपभोक्ता इस मशरूम को पसंद करते हैं क्योंकि इसे गुणवत्ता में औषधीय माना जाता है। वर्तमान में, चीन और जापान (Japan) इस बेशकीमती मशरूम के थोक उत्पादक हैं।कुछ समय तक इस किस्म को सफल व्यावसायिक पैमाने पर उगाने के लिए कोई उचित तकनीक नहीं थी, लेकिन हाल ही में सोलन जिले के चंबाघाट में स्थित मशरूम अनुसंधान निदेशालय और बैंगलोर के पास हेसरगट्टा में भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान ने इस फसल को उगाने के लिए नई तकनीक विकसित की है। हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के एक किसान ने विलो (Willow) लकड़ी को सबस्ट्रेट के रूप में उपयोग करके बढ़ती तकनीक को और परिष्कृत किया है। वह देश के पहले किसान हैं जिन्होंने शिटाकी किस्म को उगाने के लिए विलो पेड़ की लकड़ी को सब्सट्रेट के रूप में इस्तेमाल किया है।मशरूम की खेती के लिए जो सब्सट्रेट माध्यम बहुत महत्वपूर्ण है। जिस तरह एक स्वस्थ मिट्टी अच्छी फसल में मदद करती है, उसी तरह एक अच्छा माध्यम एक अच्छी उपज प्राप्त करने में मदद कर सकता है।लकड़ी के अलावा उन्होंने मशरूम उगाने के लिए विलो के पेड़ के बुरादे का भी इस्तेमाल किया जो और भी प्रभावी साबित हुआ क्योंकि फसल की कटाई केवल 45 दिनों में शुरू हो गई थी।इस मशरूम की अचल आयु अच्छी है और सूखे शिटाकीमशरूम बाजार में 2,000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। इसे उन जगहों पर उगाया जा सकता है जहां तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है। इसे देश के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी भागों के पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है।जैसे अपनी पहाड़ियों, प्राकृतिक संसाधनों और उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों के साथ नागालैंड प्राकृतिक शिटाकीके लिए अनुकूलतम है। यहाँ के जंगलों में दृढ़ लकड़ी का प्रभुत्व है, जैसे ओक (Oak), एल्डर (Alder), चेस्टनट (Chestnut) इत्यादि। और यह शिटाकीके बढ़ने का आदर्श माध्यम है।हालांकि नागालैंड में कई लोगों द्वारा शिटाकीकी खेती करना आरंभ कर दिया गया है।

संदर्भ :
https://bit.ly/3GeumHQ
https://bit.ly/3tacgTV
https://bit.ly/3HQPnJ6
https://bit.ly/3r4x1ha
https://bit.ly/3zKGaiH

चित्र संदर्भ:
1.नियंत्रित वातावरण में उगाए जा रहे खाद्य मशरूम(youtube)
2.कवक पालन का एक उदाहरण(youtube)
***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • सुबह नाश्ते से लेकर शाम की चाय और ‘हाई टी’ पर देखा जा सकता है ब्रिटिश व्यंजनों का प्रभाव
    स्वाद- खाद्य का इतिहास

     26-07-2024 09:32 AM


  • मेरठ के चमेली और सूरजमुखी जैसे गैमोपेटलस पौधों के बारे में कितना जानते हैं, आप?
    बागवानी के पौधे (बागान)

     25-07-2024 09:47 AM


  • अब आप मेरठ में भी उगा सकते हैं, कुछ प्रसिद्ध व सुंदर समुद्र तटीय पौधे
    निवास स्थान

     24-07-2024 09:45 AM


  • अपनी सूंघने की क्षमता की सराहना करें और गंध विकारों से बचें
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     23-07-2024 09:32 AM


  • गुजरात में चालुक्य एवं वाघेला राजवंश के शासन में हिंदू शिल्प ने गढ़े नए कीर्तिमान
    मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक

     22-07-2024 09:40 AM


  • आइए देखें, मेरठ शहर के कुछ पुराने और दुर्लभ चलचित्र
    द्रिश्य 1 लेंस/तस्वीर उतारना

     21-07-2024 09:04 AM


  • मेरठ में भी मिलेगा सबसे ज्यादा बिकने वाला, मोनोपोली नामक बोर्ड खेल
    हथियार व खिलौने

     20-07-2024 09:20 AM


  • प्रथम विश्व युद्ध में, भारतीय सैनिकों का विभिन्न स्थानों पर योगदान है प्रशंसनीय
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     19-07-2024 09:33 AM


  • जिज्ञासा एवं खोज की देन हैं मानवता की यह सबसे बड़ी चिकित्सा उपलब्धियां
    कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल

     18-07-2024 09:43 AM


  • मुहर्रम पर्व पर महत्त्वपूर्ण होते हैं, मेरठ के ‘इमामबाड़ा बुढ़ाना’ जैसे धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     17-07-2024 09:43 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id