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सर्दियों में स्वयं को ठंड से बचाने के लिए हम विभिन्न प्रकार के तापन प्रणाली का उपयोग करते हैं।
वैसे ही उत्तर भारत में पारंपरिक बुखारी तापन प्रणाली का प्रयोग किया जाता है, इसमें लकड़ीको
जलाकर कमरे को गरम किया जाता है।बुखारी पूरे उत्तरी क्षेत्र में पाए जाते हैं, अर्थात अफगानिस्तान
(Afghanistan), उत्तरी पाकिस्तान (Pakistan), उत्तर भारत, नेपाल (Nepal), भूटान (Bhutan) और पूर्वोत्तर
भारत।उत्तर भारत में मुर्गीपालन किसानों द्वारा सर्दियों की रातों में पक्षियों को गर्म रखने के लिए
बुखारी का व्यापक उपयोग किया जाता है।वन संरक्षण अनिवार्यता के परिणामस्वरूप भारत में
बुखारियों के लिए वैकल्पिक डिजाइनों का विकास हुआ है, जिसमें केरोसिन आधारित संस्करण शामिल
हैं जो पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक ईंधन-कुशल हैं।इसके बढ़ते उपयोग के चलतेपिछले कुछ
वर्षों मेंइसके कोयले, डीजल और बुरादे का उपयोग करने वाले प्रकार भी सामने आए हैं।बुखारी मूल
रूप से तीन प्रकार के होते हैं:
1) बुरादा वाली बुखारी : इस बुखारी में बुरादे से भरा एक डब्बा बुखारी के अंदर रखा जाता है और
उसके नीचे एक छोटी सी आग जलाई जाती है, जिसके बाद बुरादा धीरे-धीरे जलता रहता है।यह
सुरक्षित है और बुरादा आसानी से उपलब्ध भी हो जाता है।
2) लकड़ी वाली बुखारी : इसमें लकड़ी के टुकड़ों को सीधे जलाकर बुखारी में डाल दिया जाता है। ये
वाली ज्यादातर होटलों में देखने को मिलती है। यह काफी सुविधाजनक है क्योंकि आपको केवल
लकड़ी डालने की जरूरत होती है। लेकिन जैसा कि अब लकड़ी काफी महंगी हो रही है इसलिए इसके
उपयोग में भी काफी कमी देखी गई है। हालाँकि यह बुखारी बुरादा वाली बुखारीकी तुलना में अधिक
गर्मी उत्पन्न करती है।
3) कोयला वाली बुखारी :सभी बुखारी में सबसे अधिक गर्मी कोयला की बुखारी प्रदान करती है।
बुखारी में सीधे कोयला जलाया जाता है और यह काफी देर तक जलता रहता है। लेकिन यह वायु-
संचालन की कमी के मामले में श्वासावरोध और मृत्यु का कारण बनता है। इसका उपयोग सार्वजनिक
स्थानों पर किया जाना सुरक्षित है, लेकिन इसे शयनकक्षों में उपयोग नहीं करना चाहिए। वहीं हाल ही में लोगों द्वारा मिट्टी के तेल वाली बुखारीका उपयोग करना शुरू कर दिया गया है।
लेकिन कश्मीर में सर्दियों में ठंड से बचने के लिए अभी भी कई विकल्प तलाशे जा रहे हैं, क्योंकि
जीवाश्म-ईंधन की खपत की समस्या सर्दियों में बुखारी के उपयोग को कम कर देती है।कश्मीर द्वारा
कई प्रकार की तापन प्रणाली की खोज की जा रही है, जिसमें से एक तौसीफ (जिन्होंने स्नातककी है
और एक दैनिक वेतन भोगी हैं),जो रोजमर्रा की समस्याओं के विभिन्न समाधानों की खोज में गहरी
रुचि रखते हैं।उन्होंने पारंपरिक बुखारी में संशोधित किया, जैसा कि इसमें आमतौर पर एक विस्तृत
बेलनाकार अग्नि-कक्ष होता है जिसमें लकड़ी, लकड़ी का कोयला या अन्य ईंधन जलाया जाता है और
शीर्ष पर एक संकीर्ण बेलन होता है जो कमरे को गर्म करने में मदद करता है और चिमनी के रूप में
कार्य करता है।एक भारतीय बुखारी का तल अधिकांश पश्चिमी लकड़ी के जलने वाले स्टोव की तुलना
में व्यापकहै।
वहीं हाल ही में लोगों द्वारा मिट्टी के तेल वाली बुखारीका उपयोग करना शुरू कर दिया गया है।
लेकिन कश्मीर में सर्दियों में ठंड से बचने के लिए अभी भी कई विकल्प तलाशे जा रहे हैं, क्योंकि
जीवाश्म-ईंधन की खपत की समस्या सर्दियों में बुखारी के उपयोग को कम कर देती है।कश्मीर द्वारा
कई प्रकार की तापन प्रणाली की खोज की जा रही है, जिसमें से एक तौसीफ (जिन्होंने स्नातककी है
और एक दैनिक वेतन भोगी हैं),जो रोजमर्रा की समस्याओं के विभिन्न समाधानों की खोज में गहरी
रुचि रखते हैं।उन्होंने पारंपरिक बुखारी में संशोधित किया, जैसा कि इसमें आमतौर पर एक विस्तृत
बेलनाकार अग्नि-कक्ष होता है जिसमें लकड़ी, लकड़ी का कोयला या अन्य ईंधन जलाया जाता है और
शीर्ष पर एक संकीर्ण बेलन होता है जो कमरे को गर्म करने में मदद करता है और चिमनी के रूप में
कार्य करता है।एक भारतीय बुखारी का तल अधिकांश पश्चिमी लकड़ी के जलने वाले स्टोव की तुलना
में व्यापकहै।  वहीं तौसीफ द्वारा लंबे समय तक गर्मी बनाए रखने के लिए खरिया मिट्टी और पकी
हुई मिट्टी (ईंटों का पाउडर) से बने कुंदों का इस्तेमाल किया।संशोधित बुखारी में लकड़ी/कोयले की 1
किलो/घंटा से कम की आवश्यकता होती है, जो पारंपरिक रूप से 3-4 किलोग्राम/घंटा है। ईंधन के पूर्ण
दहन के बाद, यह लगभग 3-4 घंटे तक गर्मी को बनाए रख सकता है, जबकि पारंपरिक विकल्पों में
गर्मी आधे घंटे के लिए ही रहती है।प्रौद्योगिकी को एनआईटी श्रीनगर (NIT Srinagar) द्वारा मान्य
किया गया है और दक्षता को और बढ़ाने के लिए डिजाइन में सुधार किया जा रहा है।
वहीं तौसीफ द्वारा लंबे समय तक गर्मी बनाए रखने के लिए खरिया मिट्टी और पकी
हुई मिट्टी (ईंटों का पाउडर) से बने कुंदों का इस्तेमाल किया।संशोधित बुखारी में लकड़ी/कोयले की 1
किलो/घंटा से कम की आवश्यकता होती है, जो पारंपरिक रूप से 3-4 किलोग्राम/घंटा है। ईंधन के पूर्ण
दहन के बाद, यह लगभग 3-4 घंटे तक गर्मी को बनाए रख सकता है, जबकि पारंपरिक विकल्पों में
गर्मी आधे घंटे के लिए ही रहती है।प्रौद्योगिकी को एनआईटी श्रीनगर (NIT Srinagar) द्वारा मान्य
किया गया है और दक्षता को और बढ़ाने के लिए डिजाइन में सुधार किया जा रहा है।
वहीं अक्सर, बुखारी चिमनियां घर से बाहर धुआं निकालने के लिए सक्षम नहीं होती हैं, जिसके
परिणामस्वरूप क्षेत्र में कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon monoxide) विषाक्तता से वार्षिक मौतें होती
हैं। क्षेत्र में सार्वजनिक प्राधिकरण और जनसंचार माध्यम अक्सर लोगों को बंद कमरों में अँगीठी या
बुखारी का उपयोग न करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।बुखारी अपनी गर्म धातु की सतहों और ईंधन
जलाने वाले क्षेत्र तक आसान पहुंच के कारण बच्चों के लिए काफी खतरनाक मानी गई है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/32mQTDh
https://bit.ly/3JgL77x
https://bit.ly/32h8yfJ
https://bit.ly/3EeiGDp
https://bit.ly/3pcMrQM
चित्र संदर्भ   
1. बुखारी हीटर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कैफे में रखे बुखारी हीटर प्रणाली को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. बुखारी हीटर प्रज्वलन को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
 
                                         
                                         
                                         
                                        