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वैश्विक स्तर पर बढ़ने लगी है रामपुर सहित दक्षिण भारतीय वायलिन की मांग

मेरठ

 14-12-2021 10:35 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

भारतीयों का संगीत के प्रति प्रेम किसी से छिपा नहीं है! हमारे देश में विशेष तौर पर माता सरस्वती को संगीत की देवी के रूप में पूजा जाता है। सितार और तबला जैसे अनेकों वाद्य यंत्रों का विकास भारत में ही हुआ है। हालांकि वाद्य यंत्रों की मुख्य सूची में से एक, वायलिन (Violins) की खोज मूल रूप से भारत में होना अभी भी विवादित है, लेकिन वॉयलिन की लोकप्रियता और उच्च गुणवत्ता वाली वॉयलिन के निर्माण में भारत कई वर्षों से एक अग्रणी राष्ट्र रहा है। यदि हम और बारीकी से अवलोकन करें तो, भारत में तमिलनाडू, केरल और विशेष तौर हमारे शहर रामपुर मेंनिर्मित बेहतरीन वायलिन का संगीत न केवल भारत बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी संगीत प्रेमियों को रिझा रहा है।
भारतीय संगीत परिदृश्य में औपनिवेशिक शाशकों के साथ ही वायलिन ने भी अपनी मधुर दस्तक दे दी थी। आज भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रणाली में पूरी तरह से आत्मसात होने के बावजूद, वायलिन का पारंपरिक रूप से इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस उपकरण ने 18 वीं शताब्दी के अंत तक कर्नाटक संगीत में प्रवेश किया। हालांकि यह शुरु से भारत में लोकप्रिय है, किन्तु वायलिन निर्माण कला और शिल्प हाल के कुछ वर्षों तक भारत में नहीं पहुंचे थे। स्थानीय कारखाने में हाथ से निर्मित होने के बावजूद प्रदर्शन करने वाले कलाकार विदेशों से अपने वायलिन खरीदना पसंद करते हैं, और यहां तक ​​कि भारत के बाहर ही उनकी सर्विसिंग भी करवाते हैं।
प्रशिक्षित कारीगरों की कमी के अलावा, पारंपरिक भारतीय लकड़ी जैसे सागौन और कटहल के पेड़ की लकड़ी, वायलिन बनाने के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती हैं। वॉयलिन से सही स्वर निकालने के लिए मेपल और स्प्रूस (maple and spruce) जैसी यूरोपीय लकड़ियाँ आवश्यक हैं। यदि हम तमिलनाडु के संदर्भ में देखें तो यह वायलिन के निर्माण में, शुरू से ही अग्रणी राज्य रहा है। यहां के प्रमुख वायलिन निर्माताओं में से एक मुथुस्वामी दीक्षित के भाई बालास्वामी दीक्षित कर्नाटक संगीत के लिए वॉयलिन वाद्य यंत्र को अपनाने वाले सबसे अग्रणी भारतीय थे। हालांकि उनकी स्वदेशी रूप से हाथ से बने यंत्र को डिजाइन करने की कला सदियों तक एक रहस्य बनी रही। हाल ही में चार शिल्पकारों जिनमे से तीन केरल से और एक तमिलनाडु से थे, उन्होंने 1702 स्ट्राडिवेरियस वायलिन (Stradivarius violin) की हाथ से बनाई गई प्रतियों को पूरा करने में एक नया कीर्तिमान हासिल किया है। जिसे पहले इटली में एंटोनियो स्ट्राडिवरी (Antonio Stradivari) द्वारा डिजाइन किया गया था। इन शिल्पकारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध वायलिन निर्माता जेम्स विमर (James Wimmer) द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। उनकी इस उपलब्धि को भारत में वायलिन बनाने की कला में एक विशाल छलांग माना जा रहा है, क्यों की अब भारत में ही सर्वोच्च गुणवत्ता की वायलिन का निर्माण और संशोधन आसानी से किया जा सकता है। रामपुर के 700 साल पुराने पटियाला घराने से संबंध रखने वाले प्रसिद्द शास्त्रीय भारतीय वायलिन वादक जौहर अली खान, जो इंटरनेशनल वायलिन एसोसिएशन के सदस्य भी हैं, उनका दावा है कि वायलिन की उत्पत्ति भारत में हुई है। तार वाले और धनुष वाले वाद्ययंत्रों की अवधारणा शुरु से ही केवल भारत में प्रचलित थी, और कहीं नहीं। ऐसे उपकरणों का उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी मिलता है, और उन्हें 'वीणा' की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया था। वर्तमान वायलिन के समान एक वाद्य यंत्र को 'पिनाची वीणा' कहा जाता है।"बंगाली में, इसे 'बेला' और 'गज वाद्य' कहा जाता है। इसी तरह का एक वाद्य यंत्र, 'रावणहट्ट' अभी भी राजस्थान में बजाया जाता है। उनके अनुसार "ब्रिटिश और फ्रांसीसी इन वाद्ययंत्रों से प्रेरित थे, और उन्होंने वायलिन बनाने के लिए इन वाद्ययंत्रों को संशोधित किया।
पारंपरिक कला और वायलिन जैसे शिल्प उत्पादों को बढ़ावा देने के उद्द्येश्य से हमारे शहर रामपुर में 16 से 25 अक्टूबर तक 'हुनर हाट' महोत्सव आयोजित किया गया था। भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 'आजादी का अमृत महोत्सव' के तहत देश भर में ऐसे 75 मेलों का आयोजन किया जा रहा है। कोरोना संकट और चीन के सस्‍ते वायलिन से मिलने वाली चुनौती के कारण उत्‍तर प्रदेश (UP) के रामपुर (Rampur) के चार तार वाले एवं कश्‍मीर व हिमाचल की खास लकड़ी से निर्मित बेहतरीन लेकिन महंगे वायलिन की मांग लगातार घटती जा रही थी, लेकिन रामपुर के नुमाइश ग्राउंड में आयोजित 'हुनर हाट' (Hunar Haat) कार्यक्रम से स्‍थानीय चार तारे वाले इस वायलिन को बनाने वाले हुनरमंदों को खास पहचान देने की कोशिश की गई है। हुनर हाट में वायलिन के अलावा रामपुर के कारचोब, जरी व पेचवर्क के दस्‍तकारों को भी तव्‍वजो दी गई। इस आयोजन से इससे स्‍थानीय दस्‍तकारों और शिल्‍पकारों (Artisans) के उद्पादों की पहुंच दुनियाभर के बाजारों (Global Market) तक बढ़ाने का मौका मिलेगा, और उनकी आमदनी (Income) में इजाफा होगा।

संदर्भ

https://bit.ly/3ERgqDa
https://bit.ly/30qhoaA
https://bit.ly/3GTUZlF

चित्र संदर्भ   
1. रामपुर हुनर हाट में सजाई गई वयलिनों को दर्शाता एक चित्रण (twitter)
2. रामपुर के वायलिन कारीगरों को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. हाथ में वीणा पकडे हुए माँ सरस्वती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रामपुर हुनर हाट में सजाई गई वयलिनों एवं गिटार को दर्शाता एक चित्रण (google)

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